Tuesday, 12 March 2013

भीम बेटका --

भीम बेटका --

कहते है महाभारत काल में पांडवों को जब अज्ञातवास मिला था तब पांडव कुछ दिन यहाँ आ कर रुके थे।मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से जब होशंगाबाद की तरफ जाते है तो रास्ते से ही पहाड़ियों पर एक उंचा टीला नुमा पहाड़ी दिखने लगती है जहां कहते है भीम बैठ कर प्रकृति को निहारा करते थे।इसीसे इस स्थान का नाम भीम बैटिका पडा।इन पहाड़ियों में घुमने पर कई रोचक स्थान दीखते है , जिन्हें देख कर हम अनुमान लगा सकते है की यहाँ पांडवों की बैठक होगी , यहाँ विश्राम करते होंगे , यहाँ भोजन करते होंगे और एक कुंद जैसा स्थान है , जहां अब पानी तो नहीं है पर कभी पानी हुआ होगा।यहाँ से भोजपुर का शिव मंदिर भी दिखाई पड़ता है।कहते है द्रौपदी और पांडवों की माता यहाँ से रोज़ शिव दर्शन के लिए जाती थी।
प्राकृतिक सुन्दरता से घिरा यह स्थल बहुत सुकून देता है।
1957 में वी. एस. वाकणकर एक बार रेल से भोपाल जा रहे थे तब उन्होंने कुछ पहाड़ियों को इस रूप में देखा जैसा कि उन्होंने स्पेन और फ्रांस में देखा था।वे इस क्षेत्र में पुरातत्ववेत्ताओं की टीम के साथ आये और 1957 में कई पुरापाषाणिक गुफाओं की खोज की.
भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैल चित्र पाये गये. पूर्व पाषाण काल से मध्य पाषाण काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा।
भीमबेटका की पहाड़ी गुफाओं को यूनेस्‍को द्वारा विश्‍व विरासत स्‍थल के रूप में मान्‍यता दी गई है।सेंड स्टोन के बड़े खण्‍डों के अंदर अपेक्षाकृत घने जंगलों के ऊपर प्राकृतिक पहाड़ी के अंदर पांच समूह हैं, जिसके अंदर मिज़ोलिथिक युग से ऐतिहासिक अवधि के बीच की तस्‍वीरें मौजूद हैं। इस स्‍थल के पास 21 गांवों के निवासियों की सांस्‍कृतिक परम्‍परा में इन पहाड़ी तस्‍वीरों के साथ एक सशक्‍त साम्‍यता दिखाई देती है।यहाँ के कुछ चित्र पचास हजार वर्ष पुराने हैं, और एक प्याला नुमा आकृति के बारे में कहा जाता है कि वो कोई एक लाख वर्ष पुराना है।

इसमें से अधिकांश तस्‍वीरें लाल और सफेद रंग के साथ कभी कभार पीले और हरे रंग के बिन्‍दुओं से सजी हैं, जिनमें दैनिक जीवन की घटनाओं से ली गई विषय वस्‍तुएं चित्रित हैं, जो हज़ारों साल पहले का जीवन दर्शाती हैं। यहां दर्शाए गए चित्र मुख्‍यत: नृत्‍य, संगीत बजाने, शिकार करने, घोड़ों और हाथियों की सवारी, शरीर पर आभूषणों को सजाने तथा शहद जमा करने के बारे में हैं। घरेलू दृश्‍यों में भी एक आकस्मिक विषय वस्‍तु बनती है। शेर, सिंह, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घडियालों जैसे जानवरों को भी इन तस्‍वीरों में चित्रित किया गया है। इन आवासों की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई है, जो पूर्व ऐतिहासिक कलाकारों के बीच लोकप्रिय थे।
भीम बेटका --

कहते है महाभारत काल में पांडवों को जब अज्ञातवास मिला था तब पांडव कुछ दिन यहाँ आ कर रुके थे।मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से जब होशंगाबाद की तरफ जाते है तो रास्ते से ही पहाड़ियों पर एक उंचा  टीला नुमा पहाड़ी दिखने लगती है जहां कहते है भीम बैठ कर प्रकृति को निहारा करते थे।इसीसे इस स्थान का नाम भीम बैटिका पडा।इन पहाड़ियों में घुमने पर कई रोचक स्थान दीखते है , जिन्हें देख कर हम अनुमान लगा सकते है की यहाँ पांडवों की बैठक होगी , यहाँ विश्राम करते होंगे , यहाँ भोजन करते होंगे और एक कुंद जैसा स्थान है , जहां अब पानी तो नहीं है पर कभी पानी हुआ होगा।यहाँ से भोजपुर का शिव मंदिर भी दिखाई पड़ता है।कहते है द्रौपदी और पांडवों की माता यहाँ से रोज़ शिव दर्शन के लिए जाती थी।
प्राकृतिक सुन्दरता से घिरा यह स्थल बहुत सुकून देता है।
1957 में वी. एस. वाकणकर एक बार रेल से भोपाल जा रहे थे तब उन्होंने कुछ पहाड़ियों को इस रूप में देखा जैसा कि उन्होंने स्पेन और फ्रांस में देखा था।वे इस क्षेत्र में पुरातत्ववेत्ताओं की टीम के साथ आये और 1957 में कई पुरापाषाणिक गुफाओं की खोज की.
भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैल चित्र पाये गये. पूर्व पाषाण काल से मध्य पाषाण काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा। 
भीमबेटका की पहाड़ी गुफाओं को यूनेस्‍को द्वारा विश्‍व विरासत स्‍थल के रूप में मान्‍यता दी गई है।सेंड स्टोन के बड़े खण्‍डों के अंदर अपेक्षाकृत घने जंगलों के ऊपर प्राकृतिक पहाड़ी के अंदर पांच समूह हैं, जिसके अंदर मिज़ोलिथिक युग से ऐतिहासिक अवधि के बीच की तस्‍वीरें मौजूद हैं। इस स्‍थल के पास 21 गांवों के निवासियों की सांस्‍कृतिक परम्‍परा में इन पहाड़ी तस्‍वीरों के साथ एक सशक्‍त साम्‍यता दिखाई देती है।यहाँ के कुछ चित्र पचास हजार वर्ष पुराने हैं, और एक प्याला नुमा आकृति के बारे में कहा जाता है कि वो कोई एक लाख वर्ष पुराना है।

इसमें से अधिकांश तस्‍वीरें लाल और सफेद रंग के साथ कभी कभार पीले और हरे रंग के बिन्‍दुओं से सजी हैं, जिनमें दैनिक जीवन की घटनाओं से ली गई विषय वस्‍तुएं चित्रित हैं, जो हज़ारों साल पहले का जीवन दर्शाती हैं। यहां दर्शाए गए चित्र मुख्‍यत: नृत्‍य, संगीत बजाने, शिकार करने, घोड़ों और हाथियों की सवारी, शरीर पर आभूषणों को सजाने तथा शहद जमा करने के बारे में हैं। घरेलू दृश्‍यों में भी एक आकस्मिक विषय वस्‍तु बनती है। शेर, सिंह, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घडियालों जैसे जानवरों को भी इन तस्‍वीरों में चित्रित किया गया है। इन आवासों की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई है, जो पूर्व ऐतिहासिक कलाकारों के बीच लोकप्रिय थे।
ॐ विष्णुं जिष्णुं महाविष्णुं प्रभविष्णुं महेश्वरम् |
अनेकरूपं दैत्यान्तं नमामि पुरुषोत्तमम् || ||
उन विष्णु को हम वंदन करते हैं जो अजेय हैं , महाविष्णु हैं , महेश्वर है , सभीके स्वामी हैं , जो असुरों के संहार कर्ता हैं , जिनके अनेक स्वरूप हैं और जो पुरुषोत्तम हैं +
>>> SUDDHA-SATTVA AND MISRA SATTVA <<<

There is no tinge of material influence in Lord Krishna's energies: they are transcendental and exist in pure goodness (suddha-sattva).

Sattva, or goodness, is of two kinds: suddha sattva and misra-sattva (mixed goodness). Everything in the category of cid-vaibhava is suddha-sattva, or pure goodness. All sattva in the material nature is mixed, or misra-sattva.

Suddha-sattva is devoid of passion and ignorance. Birth indicates the mode of passion in action. The eternally existent spiritual essence, suddha-sattva, has never been touched by birth, which is a manifestation of passion, nor by annihilation, which occurs in the mode of ignorance.

As the Supreme Lord's separated parts and parcels, the jivas (the living entities, who are individual spirit souls) are originally suddha-sattva, but due to their contact with nescience they have come under the sway of the material modes of passion and ignorance, and hence are now in the mixed or misra-sattva category. Even demigods like Siva, though far superior in many ways to the ordinary jivas, are nevertheless captivated by the material glare due to false identification, and so fall in this category of misra-sattva.

The Supreme Lord is always in pure goodness. He descends to this material world by His inconceivable spiritual potency and is always the controller of the material nature, maya, who is ever-ready to act as His maidservant.

--Harinama Cintamani (excerpt from chapter one)--
>>> SUDDHA-SATTVA AND MISRA SATTVA <<<

There is no tinge of material influence in  Lord Krishna's energies: they are transcendental and exist in pure goodness (suddha-sattva).  
 
     Sattva, or goodness, is of two kinds: suddha sattva and misra-sattva (mixed goodness).  Everything in the category of cid-vaibhava is suddha-sattva, or pure goodness.  All sattva in the material nature is mixed, or misra-sattva.  
 
     Suddha-sattva is devoid of passion and ignorance.  Birth indicates the mode of passion in action.  The eternally existent spiritual essence, suddha-sattva, has never been touched by birth, which is a manifestation of passion, nor by annihilation, which occurs in the mode of ignorance.  
 
     As the Supreme Lord's separated parts and parcels, the jivas (the living entities, who are individual spirit souls) are originally suddha-sattva, but due to their contact with nescience they have come under the sway of the material modes of passion and ignorance, and hence are now in the mixed or misra-sattva category.  Even demigods like Siva, though far superior in many ways to the ordinary jivas, are nevertheless captivated by the material glare due to false identification, and so fall in this category of misra-sattva.  
 
     The Supreme Lord is always in pure goodness.  He descends to this material world by His inconceivable spiritual potency and is always the controller of the material nature, maya, who is ever-ready to act as His maidservant. 

--Harinama Cintamani (excerpt from chapter one)--
 

वैदिक सनातन धर्ममें ऐसा क्यों ?

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वैदिक सनातन धर्ममें ऐसा क्यों ?
अ. किसीसे मिलनेपर हस्तांदोलन (हैंडशेक) न कर, हाथ जोडकर नमस्कार करना इष्ट क्यों है ?
१. जब दो जीव हस्तांदोलन करते हैं, तब उनके हाथोंसे प्रक्षेपित राजसी-तामसी तरंगें हाथोंकी दोनों अंजुलियोंमें संपुष्ट होती हैं । उनके शरीरमें इन कष्टदायक तरंगोंके वहनका परिणाम मनपर होता है ।
२. यदि हस्तांदोलन करनेवाला अनिष्ट शक्तिसे पीडित हो, तो दूसरा जीव भी उससे प्रभावित हो सकता है, इसलिए सात्त्विकताका संवर्धन करनेवाली नमस्कार जैसी कृतिको आचरणमें लाएं । इससे जीवको विशिष्ट कर्म हेतु ईश्वरका चैतन्यमय बल तथा ईश्वरकी आशीर्वादरूपी संकल्प-शक्ति प्राप्त होती है ।
३. हस्तांदोलन करना पाश्चात्य संस्कृति है । हस्तांदोलनकी कृति, अर्थात् पाश्चात्य संस्कृतिका पुरस्कार । नमस्कार, अर्थात् भारतीय संस्कृतिका पुरस्कार । स्वयं भारतीय संस्कृतिका पुरस्कार देकर, भावी पीढीको भी यह सीख दें ।
आ. किसीसे भेंट होनेपर नमस्कार कैसे करें ?
किसीसे भेंट हो, तो एक-दूसरेके सामने खडे होकर, दोनों हाथोंकी उंगलियोंको जोड़ें । अंगूठे छातीसे कुछ अंतरपर हों । इस प्रकार कुछ झुककर नमस्कार करें । इस प्रकार नमस्कार करनेसे जीवमें नम्रभावका संवर्धन होता है, व ब्रह्मांडकी सात्त्विक-तरंगें जीवकी उंगलियोंसे शरीरमें संक्रमित होती हैं । एक-दूसरेको इस प्रकार नमस्कार करनेसे दोनोंकी ओर आशीर्वादयुक्त तरंगोंका प्रक्षेपण होता है ।
इ. नमस्कारमें क्या करें व क्या न करें ?
* नमस्कार करते समय नेत्रोंको बंद रखें ।
* नमस्कार करते समय पादत्राण धारण न करें ।
* एक हाथसे नमस्कार न करें ।
* नमस्कार करते समय हाथमें कोई वस्तु न हो ।
* नमस्कार करते समय पुरुष सिर न ढकें व स्त्रियोंको सिर ढकना चाहिए ।
• भारतीय संस्कृति अनुसार नमस्कारके लाभ क्या हैं ?
• देवताको नमन करनेकी योग्य पद्धति व उसका आधारभूत शास्त्र क्या है ?
• वयोवृद्धोंको नमस्कार क्यों करना चाहिए ?
• मृत व्यक्तिको नमस्कार क्यों करना चाहिए ?
• विवाहोपरांत पति व पत्नीको एक साथ नमस्कार क्यों करना चाहिए ?

उपर्युक्त प्रश्नोंके उत्तर और इस संदर्भमें और जानकारीके लिए पढ़ें:
‘सनातन संस्था’ द्वारा प्रकाशित ग्रंथ “नमस्कार करनेकी योग्य पद्धति’’
ग्रंथ पानेके लिए संपर्क करें – www.sanatan@sanatan.org या sanatanshop.com
आप इस लिंकपर भी भेंट देकर इस विषयके बारेमें और जानकारी प्राप्त कर सकते हैं
http://www.hindujagruti.org/hinduism/knowledge/category/namaskar

10. Why is it so in Vedic Saanatan Dharma?

(a) Upon meeting someone, why is it desirable to do Namaskar (wish with folded hands) instead of shaking hands.

(i) When two people shake hands, the Rajasik-Tamasik (spiritually impure) vibrations from the hands get corroborated by the fingers. Their bodies bear the negative vibrations that have an impact on the mind.



(ii) If the person making the handshake is troubled by negative energies, the other person too can be affected by it. Hence, follow actions like Namaskar to promote sattvikta (piousness). This earns God’s Chaitanya Bal (strength through divine consciousness) through specific actions and God’s resolution power is received in the form of blessings.
(iii) Handshake is a western concept. The act of handshake means an act of western culture. Namaskar is a reward of the Indian culture. Taking this reward one must also give the younger generation a lesson.


(b) How to do Namaskar upon meeting anyone?

When meeting someone of the same age-group, offer Namaskar by joining the fingers and placing tips of the thumbs on the Anahat Chakra (at the centre of the chest). This type of Namaskar increases the spiritual emotion of humility in the embodied soul. Sattva (pure) frequencies from the universe are attracted by the fingers (which act as an antenna) and are then transmitted to the entire body through the thumbs that have awakened the Anahat Chakra. This activates the soul energy of the embodied soul. In addition, by doing Namaskar in this manner to each other, the frequencies of blessings are also transmitted.

(c ) Namskar: Do’s and Don’ts

(a) While offering Namaskar, keep the eyes closed.
(b) Do not sport any footwear while offering Namaskar.
(c) Do not offer Namaskar with one hand.
(d) There should be no object in your hands while offering Namaskar.
(e) While offering Namaskar, men should not cover their head, while women should cover their heads.

• According to Indian culture, what are the benefits of Namaskar?
• What is the correct method of paying obeisance to Gods and the underlying principle behind it?
• Why should you offer Namaskar to old people?
• Why should you offer Namaskar to a dead person?
• After marriage, why should a husband and wife not offer Namaskar together?

For answers to the above-mentioned questions and for more information on the topic, please read the holy text “The correct methods of doing Namaskar?”
To receive the publication, send a mail to sanatan@sanatan.org , or can visit sanatanshop.com

You can also visit this link and access more information on the subject.
http://www.hindujagruti.org/Hinduism/knowledge/category/namaskar




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Why should we immerse the ashes of the deceased in water?

Tanuja Thakur shared Spiritual Science Research Foundation's photo.
Why should we immerse the ashes of the deceased in water?

* Share with family and friends *

After the body is cremated, immersion of the ashes in water is spiritually the best way of disposing of the ashes. The reasons for this are as follows:

1. It is easier for ghosts (demons, devils, negative energies, etc.) to gain control of the ashes and the subtle body and misuse it. This is especially so when they find the ashes all together in one place in the ground. By immersing the ashes in water, they are dispersed and hence unavailable to the ghosts in a collected form to gain control of.

2. As water is all-assimilating, it imbibes the distressing vibrations remaining from the dead body in the ashes and the other Absolute Cosmic elements related to the subtle body like Absolute Earth, Fire, Air element etc. This helps to break the remaining attachment of the subtle body to its physical body on Earth. As a result, the probability of the subtle body getting stuck in the Earth plane as well as that of being attacked by ghosts is dramatically reduced.

3. The demerits (sins) of the person add to the subtle basic raja-tama frequencies of the ashes. By scattering the ashes of the deceased in the water, the demerits i.e. the raja-tama frequencies related to the demerits are washed into the water.

4. Sea water is the best for disposal of ashes. This is because sea water has the maximum all-assimilating property among all types of waters. Amongst other waters, holy rivers are the best. Holy rivers are those rivers whose waters have a very high content of subtle basic sattva component. For example, in rivers like the Ganges in India the subtle basic sattva component is high despite the water being heavily polluted. In general, flowing water is the best as it scatters the ashes thus making it near impossible for the ghosts to gain control on the subtle body through the ashes.

For the full article on Scattering Ashes from a Cremation Urn visit:

TREND OF KALIYUGA:

TREND OF KALIYUGA:

Pic: These people are willingly violating rules. The police are receiving hhuge salaries and allowences, but, are silently watching them. This is the trend in India. Anyone can escape fro police and anyone can do any cheating. Nobody will ask. Because the law is that much weak.

In this kaliyuga, we can see a portion of people as pretending people. They do not know what dharma is and what Straightforwardness is!


This is the news in Sunday papers. In 2006, a man sexually exploited a german woman in India. He was arrested and the court offered 7 years jail term as punishment. After being in jail for a few months, he came on Parole for 15 days for doing some family assignments (It is permitted for prisoners to go to their home for a few days or hours if they have any important family function) . But, he absconded.

What happened then?

That man prepared bogus certificates and was working in a leading bank in the nearby district. The police could not find him. The prisoner who escaped from police is working in a leading bank as officer for the past 8 months comfortably.

On last Saturday, the bank received a anonymous letter that the officer of that bank is the person absconded from police custody 6 years back. So, the bank gave a complaint to police.

So, On Sunday, the police arrested that man and again took him to jail. This is the status of law and order in India.

A person has lived like old wine in new bottle.

Even some devotees are acting like that as they use the spritual platform for settling personal scores. We indicated their flaws of being against the management of ISKCON , but using its writings, when they did something in their page. They once said that our page is poking them. They realised that they can not run the show further in that page as they wished. So, they cleaned another page similar to that and continue the same activity in new name. To show that it is not their page, they are telling so many lies differently. Old wine in new bottle. But, Krishna devotees are wise to understand everything and they are aware that krishna will warn His genuine devotees. Those who lied that we are poking them, are now doing whatever we do here in their new page. This is their real nature and reality. To multiply the lies , they also say that they are of just early teen age. Being the people who do not support the management of ISKCON except Srila Prabhupada, they use its name and writings for settling personal scores.

So, everywhere you go, there is pretentions, betrayals, cheatings, confusions in this kaliyuga.

These things can be corrected only if Krishna personally enter into action or visit the earth again.
TREND OF KALIYUGA:

Pic:  These people are willingly violating rules.  The police are receiving hhuge salaries and allowences, but, are silently watching them.  This is the trend in India.  Anyone can escape fro police and anyone can do any cheating.  Nobody will ask.  Because the law is that much weak.

In this kaliyuga, we can see a portion of people as pretending people.  They do not know what dharma is and what Straightforwardness is!  


This is the news in Sunday papers.  In 2006, a man sexually exploited a german woman in India.  He was arrested and the court offered 7 years jail term as punishment.  After being in jail for a few months, he came on Parole for 15 days for doing some family assignments (It is permitted for prisoners to go to their home for a few days or hours  if they have any important family function) .  But, he absconded.    

What happened then?

That man prepared bogus certificates and was working in a leading bank in the nearby district.   The police could not find him.  The prisoner who escaped from police is working in a leading bank as officer for the past 8 months comfortably.

On last Saturday, the bank received a anonymous letter that the officer of that bank is the person absconded from police custody 6 years back.  So, the bank gave a complaint to police.  

So, On Sunday,  the police arrested that man and again took him to jail.   This is the status of law and order in India.  

A person has lived like old wine in new bottle.

Even some devotees are acting like that as they use the spritual platform for settling personal scores.  We indicated their flaws of being against the management of ISKCON , but using its writings, when they did something in their page.  They once said that our page is poking them.  They realised that they can not run the show further in that page as they wished. So, they cleaned another page similar to that and continue the same activity in new name. To show that it is not their page, they are telling so many lies differently.  Old wine in new bottle.  But, Krishna devotees are wise to understand everything and they are aware that krishna will warn His genuine devotees.  Those who lied that we are poking them, are now doing whatever we do here in their new page.  This is their real nature and reality.  To multiply the lies , they also say that they are of just early teen age.  Being the people who do not support the management of ISKCON except Srila Prabhupada, they use its name and writings for settling personal scores.

So, everywhere you go, there is pretentions, betrayals, cheatings, confusions in this kaliyuga.

These things can be corrected only if Krishna personally enter into action or visit the earth again.

Monday, 11 March 2013

from सनातन धर्म एक ही धर्म FB

सनातन धर्म एक ही धर्म
 सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम

  1. जल से धरती की उत्पत्ति हुई :
    सचमुच ऐसा ही हुआ। जलता हुआ जल कहीं जमकर बर्फ बना तो कहीं भयानक अग्नि के कारण काला कार्बन होकर धरती बनता गया कहना चाहिए कि ज्वालामुखी बनकर ठंडा होते गया। अब आप देख भी सकते हैं कि धरती आज भी भीतर से जल रही है और हजारों किलोमिटर तक बर्फ भी जमी है। धरती पर 75 प्रतिशत जल ही तो है। कोई कैसे सोच सकता है कि जल भी जलता होगा या वायु भी जलती होगी?
    2

  2. सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम

    अग्नि से जल की उत्पत्ति :
    वायु जब बदल गई विराट अग्नि के गोले में तो उसी में जल तत्व की उत्पत्ति हुई। अं‍तरिक्ष में आज भी ऐसे समुद्र घुम रहे हैं जिनके पास अपनी कोई धरती नहीं है लेकिन जिनके भीतर धरती बनने की प्रक्रिया चल रही है।

  3. वायु के पश्चात अग्नि :
    वायु में ही अग्नि और जल तत्व छुपे हुए रूप में रहते हैं। वायु ठंडी होकर जल बन जाती है गर्म होकर अग्नि का रूप धारण कर लेती है। वायु का वायु से घर्षण होने से अग्नि की उत्पत्ति हुई। अग्नि की उत्पत्ति ब्रह्मांड की सबसे बड़ी घटना थी। वायु जब तेज गति से चलती है तो धरती जैसे ग्रहों को उड़ाने की ताकत रखती है लेकिन यहां जिस वायु की बात कही जा रही है वह किसी धरती ग्रह की नहीं अंतरिक्ष में वायु के विराट समुद्री गोले की बात कही जा रही है।
  4. सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम

    आकाश के पश्चात वायु :
    आत्मा से अवकाश, अवकाश से आकाश और आकाश से वायु की उत्पत्ति हुई। वायु आठ तरह की होती है। सूर्य से धरती तक जो सौर्य तूफान आता है वह किसकी शक्ति से यहां तक आता है? संपूर्ण ब्रह्मांड में वायु का साम्राज्य है, लेकिन हमारी धरती की वायु और अंतरिक्ष की वायु में फर्क है।
    वायु को ब्रह्मांण का प्राण और आयु कहा जाता है। जैसे- हमारे शरीर में हमारे बाद मन की सत्ता है। फिर प्राण की और फिर जल, अग्नि और शरीर की। शरीर और हमारे बीच वायु का सेतु है।

  5. सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम

    अवकाश और आकाश के पूर्व अंधकार :
    जब तक एक है तो दूसरा भी होगा लेकिन अद्वैत सिद्धांत कहता है कि वह परम एक, शुद्ध एक। सारे द्वैतवादी है लेकिन सनातन धर्म अद्वैतवादी है। सचमुच सबकुछ दो जैसा दिखाई देता है लेकिन है नहीं। अंत में एक ही हाथ लगेगा दो जैसा व्यवहार करता हुआ।
    नर और मादा सृष्टि की सबसे अंतिम रचना है। नकारात्मक और सकारात्म शक्तियां भी बाद की उत्पत्ति है। इसलिए कहना की ईश्वर के विपरित शैतान है यह ईश्वर के खिलाफ बात है। सबसे बड़ी ईशनिंदा यही है कि आपने शैतान को ईश्वर के विपरित माना या उसे ईश्वर के समकक्ष रखा। जो लोग द्वैतवादी है वह अधूरे हैं।
    ब्रह्म (आत्मा) से आकाश अर्थात जो कारण रूप द्रव्य (ब्रह्माणु) सर्वत्र फैल रहा था उसको इकट्ठा करने से अवकाश उत्पन्न होता है। वास्तव में आकाश की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि बिना अवकाश (खाली स्थान) के प्रकृति और परमाणु कहां ठहर सके और बिना अवकाश के आकाश कहां हो। अवकाश अर्थात जहां कुछ भी नहीं है और आकाश जहां सब कुछ है।
  6. सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम

    अवकाश और आकाश के पूर्व अंधकार :
    आकाश एक अनुमान है। दिखाई देता है लेकिन पकड़ में नहीं आता। धरती के एक सूत ऊपर से, ऊपर जहां तक नजर जाती है उसे आकाश ही माना जाता है। लेकिन ऊपर अंतरिक्ष भी तो है।
    आकाश अर्थात वायुमंडल का घेरा- स्काई। खाली स्थान अर्थात स्पेस। जब हम खाली स्थान की बात करते हैं तो वहां अणु का एक कण भी नहीं होना चाहिए, तभी तो उसे खाली स्थान कहेंगे। है ना? हमारे आकाश-अंतरिक्ष में तो हजारों अणु-परमाणु घुम रहे हैं।
    खाली स्थान को अवकाश कहते हैं। अवकाश था तभी आकाश-अंतरिक्ष की उत्पित्ति हुई। अर्थात अवकाश से आकाश बना। अवकाश अर्थात अनंत अंधकार। अंधकार के विपरित प्रकाश होता है, लेकिन यहां जिस अंधकार की बात कही जा रही है उसे समझना थोड़ा कठिन जरूर है। यही अद्वैतवादी सिद्धांत है।

  7. सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम

    उत्पत्ति और विकास :
    अब सृष्टि की उत्पत्ति और विकास कैसे हुआ यह जानते हैं। ब्रह्म की जगह हम समझने के लिए अत्मा को रख देते हैं। आप पांच तत्वों को तो जानते ही हैं- आकाश, वायु, अग्नि, जल और ग्रह (धरती या सू...See more


  8. सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम

    ब्रह्म और ब्रह्मांड और आत्मा- तीनों ही आज भी मौजूद हैं। सर्वप्रथम ब्रह्म था आज भी ब्रह्म है और अनंत काल तक ब्रह्म ही रहेगा। यह ब्रह्म कौन है? ईश्वर है, परमेश्वर है या परमात्मा? यह तीनों नहीं है और तीनों ही है। यह ब्रह्म संपूर्ण विश्‍व के भीतर परिपूर्ण हैं तथा इस विश्‍व के बाहर भी है।
    ब्रह्म ने सृष्टि की रचना नहीं की। ब्रह्म की उपस्थिति से सृष्टि की रचना हो गई। यह सात दिन या सात करोड़ वर्ष का मामला नहीं है यह अनंत काल के अंधकार के बाद अरबों वर्ष के क्रमश: विकास का परिणाम है।



सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
जीवन की उत्पत्ति :
यह नीचे गिरने और ऊपर उठने की प्रक्रिया अनंत काल से जारी और आज भी चल रही है। जब आत्मा जड़ बन गई तो उसने फिर से उठने का प्रयास किया और फिर वह मोटे तौर पर जल में पौधों के रूप में अभिव्यक्त हुई। फिर जलचर के रूप में, फिर उभयचर और फिर थलचर के रूप में। थलचर में भी आत्मा ने मानव के रूप में खुद को अच्छे तरीके से अभिव्यक्त किया। यह क्रमश: हुआ। कैसे?
आकाश के पश्चात वायु, वायु के पश्चात अग्निछ, अग्नि के पश्चात जल, जल के पश्चात पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औष धियों से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है।- तैत्तिरीय उपनिषद
नातन धर्म एक ही धर्म
सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
ब्रह्मांड का मूलक्रम-
यह ब्रह्मांड अंडाकार है। यह ब्रह्मांड जल या बर्फ और उसके बादलों से घिरा हुआ है। इससे जल से भी दस ‍गुना ज्यादा यह अग्नि तत्व से ‍घिरा हुआ है और इससे भी दस गुना ज्यादा यह वायु से घिरा हुआ है।
 
सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
ब्रह्मांड का मूलक्रम-
वायु से दस गुना ज्यादा यह आकाश से घिरा हुआ है और यह आकाश जहां तक प्रकाशित होता है, वहां से यह दस गुना ज्यादा तामस अंधकार से घिरा हुआ है। और यह तामस अंधकार भी अपने से दस गुना ज्यादा महत् से घिरा हुआ है और महत् उस एक असीमित, अपरिमेय और अनंत से घिरा है। उस अनंत से ही पूर्ण की उत्पत्ति होती है और उसी से उसका पालन होता है और अंतत: यह ब्रह्मांड उस अनंत में ही लीन हो जाता है। प्रकृति का ब्रह्म में लय (लीन) हो जाना ही प्रलय है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति कही गई है। इसे ही शक्ति कहते हैं।

Cow & Hinduism / Gau Mata ki Jai

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सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है....

पत्नी की सत्यनिष्ठा पति में होने को हिन्दू धर्म में आदर्श के रूप में देखा गया है । स्त्री संतान को जन्म देती है । बालक/बालिका को प्रारम्भिक संस्कार अपनी माता से ही मिलता है । यदि स्त्री स्वेच्छाचारिणी होगी तो उसकी संतान में भी उस दुर्गुण के आने की अत्यधिक सम्भावना रहेगी । पुरुष संतति-पालन का भार उठाने को प्राय: तभी तैयार होगा जब उसे विश्वास होगा कि उसकी पत्नी के उदर से उत्पन्न संतान का वास्तविक पिता वही है । पति की मृत्यु होने पर भी उत्तम संस्कार वाली स्त्री संतान के सहारे अपना बुढ़ापा काट सकती है । पश्चिम के आदर्शविहीन समाज में स्त्रियाँ अपना बुढ़ापा पति के अभाव में अनाथाश्रम में काटती हैं ।

इसका अर्थ यह नहीं है कि पुरुष को उच्छृंखल जीवन जीने की छूट मिली हुई है । एक पत्नीव्रत निभाने की अपेक्षा पुरुष से भी की गयी है; किन्तु ऐसा करने वाले पुरुष पर कोई महानता नहीं थोपी गयी है । गृहस्थी का कामकाज देखने वाली स्त्री अपने पति के प्रति सत्यनिष्ठ होकर ही महान हो जाती है जबकि पुरुष देश की रक्षा, निर्बलों की रक्षा, जनोत्थान के कार्य करके महान बनता है ।

अपने पति की चिता में बैठकर या कूदकर जल मरने वाली स्त्री को सती नहीं कहा गया । इस तरह का दुष्प्रचार पाखण्डियों द्वारा ही किया जाता है । विधवा स्त्री को मिलने वाली सम्‍पत्ति का हरण करने के लिए उसके परिवार वाले इस प्रकार का नाटक रचाते हैं । शान्तनु के मरने पर सत्यवती जीवित रही । दशरथ के मरने पर उनकी तीनों रानियां जीवित रहीं । पाण्डु के मरने पर कुन्ती जीवित रही । माद्री ने चिता में कूदकर आत्महत्त्या ग्लानिवश की क्योंकि वह पति के मरण का कारण बनी थी । सती अनसूया, सती सावित्री किसी को भी सती पति के साथ जल मरने के लिए नहीं कहा गया ।
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सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है....

 पत्नी की सत्यनिष्ठा पति में होने को हिन्दू धर्म में आदर्श के रूप में देखा गया है । स्त्री संतान को जन्म देती है । बालक/बालिका को प्रारम्भिक संस्कार अपनी माता से ही मिलता है । यदि स्त्री स्वेच्छाचारिणी होगी तो उसकी संतान में भी उस दुर्गुण के आने की अत्यधिक सम्भावना रहेगी । पुरुष संतति-पालन का भार उठाने को प्राय: तभी तैयार होगा जब उसे विश्वास होगा कि उसकी पत्नी के उदर से उत्पन्न संतान का वास्तविक पिता वही है । पति की मृत्यु होने पर भी उत्तम संस्कार वाली स्त्री संतान के सहारे अपना बुढ़ापा काट सकती है । पश्चिम के आदर्शविहीन समाज में स्त्रियाँ अपना बुढ़ापा पति के अभाव में अनाथाश्रम में काटती हैं ।

 इसका अर्थ यह नहीं है कि पुरुष को उच्छृंखल जीवन जीने की छूट मिली हुई है । एक पत्नीव्रत निभाने की अपेक्षा पुरुष से भी की गयी है; किन्तु ऐसा करने वाले पुरुष पर कोई महानता नहीं थोपी गयी है । गृहस्थी का कामकाज देखने वाली स्त्री अपने पति के प्रति सत्यनिष्ठ होकर ही महान हो जाती है जबकि पुरुष देश की रक्षा, निर्बलों की रक्षा, जनोत्थान के कार्य करके महान बनता है ।

 अपने पति की चिता में बैठकर या कूदकर जल मरने वाली स्त्री को सती नहीं कहा गया । इस तरह का दुष्प्रचार पाखण्डियों द्वारा ही किया जाता है । विधवा स्त्री को मिलने वाली सम्‍पत्ति का हरण करने के लिए उसके परिवार वाले इस प्रकार का नाटक रचाते हैं । शान्तनु के मरने पर सत्यवती जीवित रही । दशरथ के मरने पर उनकी तीनों रानियां जीवित रहीं । पाण्डु के मरने पर कुन्ती जीवित रही । माद्री ने चिता में कूदकर आत्महत्त्या ग्लानिवश की क्योंकि वह पति के मरण का कारण बनी थी । सती अनसूया, सती सावित्री किसी को भी सती पति के साथ जल मरने के लिए नहीं कहा गया ।

सनातन धर्म एक ही धर्म

  • कुछ भक्त कहते हैं कि भगवान् शिव परम वैष्णव हैं। एकदम सही। वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जानी रे ! भोले बाबा करुणावतारम हैं, तो वैष्णव हुए ही। उसी प्रकार भगवान् विष्णु भी परम शैव हैं। राम एवं कृष्णावतार में उन्होंने महादेव की पूजा अर्चना की है। विष्णु और शिव में भेद देखना बहुत बड़ा पाप करना है। इस पाप से बचें। जहां भेद है वहां प्रेम कहाँ, श्रद्धा कहाँ, भक्ति कहाँ ? सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं । रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं ॥
    कुछ भक्त कहते हैं कि भगवान् शिव परम वैष्णव हैं। एकदम सही। वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जानी रे ! भोले बाबा करुणावतारम हैं, तो वैष्णव हुए ही। उसी प्रकार भगवान् विष्णु भी परम शैव हैं। राम एवं कृष्णावतार में उन्होंने महादेव की पूजा अर्चना की है। विष्णु और शिव में भेद देखना बहुत बड़ा पाप करना है। इस पाप से बचें। जहां भेद है वहां प्रेम कहाँ, श्रद्धा कहाँ, भक्ति कहाँ ? सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं । रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं ॥


  • हे मन, कृपा करने वाले श्रीराम का भजन करो जो कष्टदायक जन्म-मरण के भय का नाश करने वाले हैं, जो नवीन कमल के समान आँखों वाले हैं, जिनका मुख कमल के समान है, जिनके हाथ कमल के समान हैं, जिनके चरण रक्तिम (लाल) आभा वाले कमल के समान हैं
    हे मन, कृपा करने वाले श्रीराम का भजन करो जो कष्टदायक जन्म-मरण के भय का नाश करने वाले हैं, जो नवीन कमल के समान आँखों वाले हैं, जिनका मुख कमल के समान है, जिनके हाथ कमल के समान हैं, जिनके चरण रक्तिम (लाल) आभा वाले कमल के समान हैं
    रे मन हरि सुमिरन करि लीजै ॥टेक॥

    हरिको नाम प्रेमसों जपिये, हरिरस रसना पीजै ।
    हरिगुन गाइय, सुनिय निरंतर, हरि-चरननि चित दीजै ॥

    हरि-भगतनकी सरन ग्रहन करि, हरिसँग प्रीति करीजै ।
    हरि-सम हरि जन समुझि मनहिं मन तिनकौ सेवन कीजै ॥

    हरि केहि बिधिसों हमसों रीझै, सो ही प्रश्न करीजै ।
    हरि-जन हरिमारग पहिचानै, अनुमति देहिं सो कीजै ॥

    हरिहित खाइय, पहिरिय हरिहित, हरिहित करम करीजै ।
    हरि-हित हरि-सन सब जग सेइय, हरिहित मरिये जीजै
    रे मन हरि सुमिरन करि लीजै ॥टेक॥
 
हरिको नाम प्रेमसों जपिये, हरिरस रसना पीजै ।
 हरिगुन गाइय, सुनिय निरंतर, हरि-चरननि चित दीजै ॥
 
हरि-भगतनकी सरन ग्रहन करि, हरिसँग प्रीति करीजै ।
 हरि-सम हरि जन समुझि मनहिं मन तिनकौ सेवन कीजै ॥
 
हरि केहि बिधिसों हमसों रीझै, सो ही प्रश्न करीजै ।
 हरि-जन हरिमारग पहिचानै, अनुमति देहिं सो कीजै ॥
 
हरिहित खाइय, पहिरिय हरिहित, हरिहित करम करीजै ।
 हरि-हित हरि-सन सब जग सेइय, हरिहित मरिये जीजै


  • HOW MANY LIKES FOR OUR CUTEST LITTLE SAI
    HOW MANY LIKES FOR OUR CUTEST LITTLE SAI

  • नटवर नागर नन्दा, भजो रे मन गोविन्दा ।
    श्यामसुन्दर मुख चन्दा, भजो रे मन गोविन्दा ॥ टेर॥
    तूँ ही नटवर, तूँ ही नागर, तूँ ही बाल मुकुन्दा ॥१॥
    सब देवनमें कृष्ण बड़े हैं, ज्यूँ तारा बिच चन्दा ॥२॥
    सब सखियनमें राधाजी बड़ी हैं, ज्यूँ नदियाँ बिच गंगा ॥३॥
    ध्रुव तारे, प्रह्लाद उबारे, नरसिंह रुप धरन्ता ॥४॥
    कालीदह में नाग ज्यों नाथो, फण-फण निरत करन्ता ॥५॥
    वृन्दावन में रास रचायो, नाचत बाल मुकुन्दा ॥६॥
    मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, काटो जम का फन्दा ॥७॥
    ''जय श्री राधे कृष्णा ''