सनातन धर्म एक ही धर्म
सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
जल से धरती की उत्पत्ति हुई :
सचमुच ऐसा ही हुआ। जलता हुआ जल कहीं जमकर बर्फ बना तो कहीं भयानक अग्नि के कारण काला कार्बन होकर धरती बनता गया कहना चाहिए कि ज्वालामुखी बनकर ठंडा होते गया। अब आप देख भी सकते हैं कि धरती आज भी भीतर से जल रही है और हजारों किलोमिटर तक बर्फ भी जमी है। धरती पर 75 प्रतिशत जल ही तो है। कोई कैसे सोच सकता है कि जल भी जलता होगा या वायु भी जलती होगी?- सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
अग्नि से जल की उत्पत्ति :
वायु जब बदल गई विराट अग्नि के गोले में तो उसी में जल तत्व की उत्पत्ति हुई। अंतरिक्ष में आज भी ऐसे समुद्र घुम रहे हैं जिनके पास अपनी कोई धरती नहीं है लेकिन जिनके भीतर धरती बनने की प्रक्रिया चल रही है। - वायु के पश्चात अग्नि :
वायु में ही अग्नि और जल तत्व छुपे हुए रूप में रहते हैं। वायु ठंडी होकर जल बन जाती है गर्म होकर अग्नि का रूप धारण कर लेती है। वायु का वायु से घर्षण होने से अग्नि की उत्पत्ति हुई। अग्नि की उत्पत्ति ब्रह्मांड की सबसे बड़ी घटना थी। वायु जब तेज गति से चलती है तो धरती जैसे ग्रहों को उड़ाने की ताकत रखती है लेकिन यहां जिस वायु की बात कही जा रही है वह किसी धरती ग्रह की नहीं अंतरिक्ष में वायु के विराट समुद्री गोले की बात कही जा रही है। - सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
आकाश के पश्चात वायु :
आत्मा से अवकाश, अवकाश से आकाश और आकाश से वायु की उत्पत्ति हुई। वायु आठ तरह की होती है। सूर्य से धरती तक जो सौर्य तूफान आता है वह किसकी शक्ति से यहां तक आता है? संपूर्ण ब्रह्मांड में वायु का साम्राज्य है, लेकिन हमारी धरती की वायु और अंतरिक्ष की वायु में फर्क है।
वायु को ब्रह्मांण का प्राण और आयु कहा जाता है। जैसे- हमारे शरीर में हमारे बाद मन की सत्ता है। फिर प्राण की और फिर जल, अग्नि और शरीर की। शरीर और हमारे बीच वायु का सेतु है। - सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
अवकाश और आकाश के पूर्व अंधकार :
जब तक एक है तो दूसरा भी होगा लेकिन अद्वैत सिद्धांत कहता है कि वह परम एक, शुद्ध एक। सारे द्वैतवादी है लेकिन सनातन धर्म अद्वैतवादी है। सचमुच सबकुछ दो जैसा दिखाई देता है लेकिन है नहीं। अंत में एक ही हाथ लगेगा दो जैसा व्यवहार करता हुआ।
नर और मादा सृष्टि की सबसे अंतिम रचना है। नकारात्मक और सकारात्म शक्तियां भी बाद की उत्पत्ति है। इसलिए कहना की ईश्वर के विपरित शैतान है यह ईश्वर के खिलाफ बात है। सबसे बड़ी ईशनिंदा यही है कि आपने शैतान को ईश्वर के विपरित माना या उसे ईश्वर के समकक्ष रखा। जो लोग द्वैतवादी है वह अधूरे हैं।
ब्रह्म (आत्मा) से आकाश अर्थात जो कारण रूप द्रव्य (ब्रह्माणु) सर्वत्र फैल रहा था उसको इकट्ठा करने से अवकाश उत्पन्न होता है। वास्तव में आकाश की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि बिना अवकाश (खाली स्थान) के प्रकृति और परमाणु कहां ठहर सके और बिना अवकाश के आकाश कहां हो। अवकाश अर्थात जहां कुछ भी नहीं है और आकाश जहां सब कुछ है। - सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
अवकाश और आकाश के पूर्व अंधकार :
आकाश एक अनुमान है। दिखाई देता है लेकिन पकड़ में नहीं आता। धरती के एक सूत ऊपर से, ऊपर जहां तक नजर जाती है उसे आकाश ही माना जाता है। लेकिन ऊपर अंतरिक्ष भी तो है।
आकाश अर्थात वायुमंडल का घेरा- स्काई। खाली स्थान अर्थात स्पेस। जब हम खाली स्थान की बात करते हैं तो वहां अणु का एक कण भी नहीं होना चाहिए, तभी तो उसे खाली स्थान कहेंगे। है ना? हमारे आकाश-अंतरिक्ष में तो हजारों अणु-परमाणु घुम रहे हैं।
खाली स्थान को अवकाश कहते हैं। अवकाश था तभी आकाश-अंतरिक्ष की उत्पित्ति हुई। अर्थात अवकाश से आकाश बना। अवकाश अर्थात अनंत अंधकार। अंधकार के विपरित प्रकाश होता है, लेकिन यहां जिस अंधकार की बात कही जा रही है उसे समझना थोड़ा कठिन जरूर है। यही अद्वैतवादी सिद्धांत है। - सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
उत्पत्ति और विकास :
अब सृष्टि की उत्पत्ति और विकास कैसे हुआ यह जानते हैं। ब्रह्म की जगह हम समझने के लिए अत्मा को रख देते हैं। आप पांच तत्वों को तो जानते ही हैं- आकाश, वायु, अग्नि, जल और ग्रह (धरती या सू...See more - सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
ब्रह्म और ब्रह्मांड और आत्मा- तीनों ही आज भी मौजूद हैं। सर्वप्रथम ब्रह्म था आज भी ब्रह्म है और अनंत काल तक ब्रह्म ही रहेगा। यह ब्रह्म कौन है? ईश्वर है, परमेश्वर है या परमात्मा? यह तीनों नहीं है और तीनों ही है। यह ब्रह्म संपूर्ण विश्व के भीतर परिपूर्ण हैं तथा इस विश्व के बाहर भी है।
ब्रह्म ने सृष्टि की रचना नहीं की। ब्रह्म की उपस्थिति से सृष्टि की रचना हो गई। यह सात दिन या सात करोड़ वर्ष का मामला नहीं है यह अनंत काल के अंधकार के बाद अरबों वर्ष के क्रमश: विकास का परिणाम है।
सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
जीवन की उत्पत्ति :
यह नीचे गिरने और ऊपर उठने की प्रक्रिया अनंत काल से जारी और आज भी चल रही है। जब आत्मा जड़ बन गई तो उसने फिर से उठने का प्रयास किया और फिर वह मोटे तौर पर जल में पौधों के रूप में अभिव्यक्त हुई। फिर जलचर के रूप में, फिर उभयचर और फिर थलचर के रूप में। थलचर में भी आत्मा ने मानव के रूप में खुद को अच्छे तरीके से अभिव्यक्त किया। यह क्रमश: हुआ। कैसे?
आकाश के पश्चात वायु, वायु के पश्चात अग्निछ, अग्नि के पश्चात जल, जल के पश्चात पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औष धियों से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है।- तैत्तिरीय उपनिषद
जीवन की उत्पत्ति :
यह नीचे गिरने और ऊपर उठने की प्रक्रिया अनंत काल से जारी और आज भी चल रही है। जब आत्मा जड़ बन गई तो उसने फिर से उठने का प्रयास किया और फिर वह मोटे तौर पर जल में पौधों के रूप में अभिव्यक्त हुई। फिर जलचर के रूप में, फिर उभयचर और फिर थलचर के रूप में। थलचर में भी आत्मा ने मानव के रूप में खुद को अच्छे तरीके से अभिव्यक्त किया। यह क्रमश: हुआ। कैसे?
आकाश के पश्चात वायु, वायु के पश्चात अग्निछ, अग्नि के पश्चात जल, जल के पश्चात पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औष धियों से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है।- तैत्तिरीय उपनिषद
नातन धर्म एक ही धर्म
सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
ब्रह्मांड का मूलक्रम-
यह ब्रह्मांड अंडाकार है। यह ब्रह्मांड जल या बर्फ और उसके बादलों से घिरा हुआ है। इससे जल से भी दस गुना ज्यादा यह अग्नि तत्व से घिरा हुआ है और इससे भी दस गुना ज्यादा यह वायु से घिरा हुआ है।
ब्रह्मांड का मूलक्रम-
यह ब्रह्मांड अंडाकार है। यह ब्रह्मांड जल या बर्फ और उसके बादलों से घिरा हुआ है। इससे जल से भी दस गुना ज्यादा यह अग्नि तत्व से घिरा हुआ है और इससे भी दस गुना ज्यादा यह वायु से घिरा हुआ है।
सनातन धर्म : सृष्टि उत्पत्ति का क्रम
ब्रह्मांड का मूलक्रम-
वायु से दस गुना ज्यादा यह आकाश से घिरा हुआ है और यह आकाश जहां तक प्रकाशित होता है, वहां से यह दस गुना ज्यादा तामस अंधकार से घिरा हुआ है। और यह तामस अंधकार भी अपने से दस गुना ज्यादा महत् से घिरा हुआ है और महत् उस एक असीमित, अपरिमेय और अनंत से घिरा है। उस अनंत से ही पूर्ण की उत्पत्ति होती है और उसी से उसका पालन होता है और अंतत: यह ब्रह्मांड उस अनंत में ही लीन हो जाता है। प्रकृति का ब्रह्म में लय (लीन) हो जाना ही प्रलय है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति कही गई है। इसे ही शक्ति कहते हैं।
ब्रह्मांड का मूलक्रम-
वायु से दस गुना ज्यादा यह आकाश से घिरा हुआ है और यह आकाश जहां तक प्रकाशित होता है, वहां से यह दस गुना ज्यादा तामस अंधकार से घिरा हुआ है। और यह तामस अंधकार भी अपने से दस गुना ज्यादा महत् से घिरा हुआ है और महत् उस एक असीमित, अपरिमेय और अनंत से घिरा है। उस अनंत से ही पूर्ण की उत्पत्ति होती है और उसी से उसका पालन होता है और अंतत: यह ब्रह्मांड उस अनंत में ही लीन हो जाता है। प्रकृति का ब्रह्म में लय (लीन) हो जाना ही प्रलय है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति कही गई है। इसे ही शक्ति कहते हैं।
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