मनरूपी
देह का नाम अन्तवाहक शरीर है वह संकल्परूप सब जीवों का आदि वपु है । उस
संकल्प में जो दृढ़ आभास हुआ है उससे आधिभौतिक भासने लगा है और आदि स्वरूप
का प्रमाद हुआ है । यह जगत् सब संकल्परूप है और स्वरूप के प्रमाद से
पिण्डाकार भासता है । जैसे स्वप्नदेह का आकार आकाशरुप है उसमें पृथ्वी आदि
तत्त्वों का अभाव होता है परन्तु अज्ञान से आधिभौतिकता भासती है सो मन ही
का संसरना है वैसे ही यह जगत् है, मन के फुरने से भासता है । जहाँ मन है
वहाँ दृश्य है और जहाँ दृश्य है वहाँ मन है । जब मन नष्ट हो तब दृश्य भी
नष्ट हो ।
सनातन धर्म एक ही धर्म
मनरूपी
देह का नाम अन्तवाहक शरीर है वह संकल्परूप सब जीवों का आदि वपु है । उस
संकल्प में जो दृढ़ आभास हुआ है उससे आधिभौतिक भासने लगा है और आदि स्वरूप
का प्रमाद हुआ है । यह जगत् सब संकल्परूप है और स्वरूप के प्रमाद से
पिण्डाकार भासता है । जैसे स्वप्नदेह का आकार आकाशरुप है उसमें पृथ्वी आदि
तत्त्वों का अभाव होता है परन्तु अज्ञान से आधिभौतिकता भासती है सो मन ही
का संसरना है वैसे ही यह जगत् है, मन के फुरने से भासता है । जहाँ मन है
वहाँ दृश्य है और जहाँ दृश्य है वहाँ मन है । जब मन नष्ट हो तब दृश्य भी
नष्ट हो ।
सनातन धर्म एक ही धर्म