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श्री हरिदास गोस्वामी
श्री हरिदास गोस्वामी
वे गोस्वामी
थे, जिनका अन्तिम संस्कार श्री चैतन्य महाप्रभु ने किया था ।
मुस्लिम परिवार में जन्म लेने वाले श्री हरिदास गोस्वामी का भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति इतना अगाध प्रेम था कि जीवन में आने वाली अनेक कठिनाइयाँ कृष्ण भक्ति के कारण उन्हें विचलित नहीं कर सकी ।
श्री हरिदास गोस्वामी
का जन्म शक संवत् 1372 में जसोर जिले के बुरहान नामक गाँव में हुआ था ।
मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद उनकी हिन्दू धर्म में अटूट निष्ठा थी ।
भगवान् श्रीकृष्ण के तीन लाख नामों का उच्चारण जोर-जोर से किया करते थे।
भगवान् ने अपने भक्त की अनेक बार परीक्षा ली, परन्तु प्रत्येक बार श्री हरिदास गोस्वामी
उत्तीर्ण होते चले गए ।
एक बार किसी काजी ने कहा कि तुम मुसलमान होकर हिन्दुओं के देवताओं का नाम लेते हो, क्या यह ठीक है ?
चूँकि उस समय मुस्लिम सल्तनत थी, इसलिए अधिकतर प्रशासन सम्बन्धी अधिकारी भी मुसलमान ही हुआ करते थे ।
इतना होने पर भी श्री हरिदास गोस्वामी
ने भगवान् श्रीकृष्ण का नाम लेना नहीं छोड़ा ।
इस पर उन्हें यह चेतावनी दी गई कि यदि तुमने हिन्दुओं के देवताओं का स्मरण करना नहीं छोड़ा, तो सजा दी जाएगी ।
इस पर श्री हरिदास गोस्वामी ने कहा कि, “चाहे मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएँ, परन्तु मैं हरीनाम का स्मरण नहीं छोड़ सकता ।”
इस पर श्री हरिदास गोस्वामी को कोड़े मारते हुए शहर भर में घुमाने की सजा दी गई ।
उन पर जैसे-जैसे कोड़े बरसाए जाते,वे हरीनाम का उच्चारण और तेज गति से करने लगते।
अन्त में अत्यधिक मार से वे बेसुध होकर गिर पड़े, परन्तु अन्तिम समय में भी उन्होंने भगवान् से यही प्रार्थना की कि,
‘हे प्रभु ! इन अज्ञानी जीवों को क्षमा करो ।
ये तुम्हारे रुप और लीला को नहीं जानते हैं ।
तुम्हारे नाम की महिमा से भी अनभिज्ञ हैं ।
इनके मन में भक्ति भर दो ।’
ऐसा सोचते हुए श्री हरिदास गोस्वामी बेसुध होकर गिर पड़े ।
मरा हुआ समझकर उन्हें सिपाहीयों ने उठाकर यमुनाजी में बहा दिया।
यमुनाजी में तो बहा दिया लेकिन देखो हरिनाम का प्रभाव! मानो यमुनाजी ने उसको गोद में ले लिया।
डेढ़ मील तक श्री हरिदास गोस्वामी पानी में बहते रहे।
वह शांतचित्त होकर, मानो उस पानी में नहीं, हरि की कृपा में बहते रहे
कुछ ही दूर बहते हुए उन्हें होश आ गया और तैरकर किनारे पर चले आए और दूसरे दिन श्री गौरांग की प्रभातफेरी में शामिल हो गये ।
और पुनः भगवान् की भक्ति में रम गए ।
लोग आश्चर्यचकित हो गये कि चमत्कार कैसे हुआ?
उनका इन्द्रिय निग्रह भी अद्भुत था ।
उन्हें भगवान् श्रीकृष्ण की भक्ति से हटाने के लिए एक बार उनके इन्द्रिय निग्रह की भी परीक्षा हुई ।
उनको भक्ति से च्युत करने के लिए उनके पास एक वेश्या को भेजा गया ।
उसका उनके चरित्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।
उनको चरित्र से डिगाना सम्भव नहीं था ।
वेश्या स्वयं उनकी भक्त बन गई और हरीनाम जपने लगी ।
श्री चैतन्य महाप्रभु भी उनकी भक्ति से प्रभावित थे ।
आयु में श्री हरिदास गोस्वामी श्री चैतन्य महाप्रभु से लगणग 30-35 वर्ष बड़े थे।
कुछ समय श्री हरिदास गोस्वामी ने श्री चैतन्य महाप्रभु के साथ भी बिताया ।
जब उनका देहान्त हुआ, तब श्री हरिदास गोस्वामी श्री चैतन्य महाप्रभु के पास ही थे।
नीताई गौर हरि हरि बोल...
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
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श्री हरिदास गोस्वामी
वे गोस्वामी
थे, जिनका अन्तिम संस्कार श्री चैतन्य महाप्रभु ने किया था ।
मुस्लिम परिवार में जन्म लेने वाले श्री हरिदास गोस्वामी का भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति इतना अगाध प्रेम था कि जीवन में आने वाली अनेक कठिनाइयाँ कृष्ण भक्ति के कारण उन्हें विचलित नहीं कर सकी ।
श्री हरिदास गोस्वामी
का जन्म शक संवत् 1372 में जसोर जिले के बुरहान नामक गाँव में हुआ था ।
मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद उनकी हिन्दू धर्म में अटूट निष्ठा थी ।
भगवान् श्रीकृष्ण के तीन लाख नामों का उच्चारण जोर-जोर से किया करते थे।
भगवान् ने अपने भक्त की अनेक बार परीक्षा ली, परन्तु प्रत्येक बार श्री हरिदास गोस्वामी
उत्तीर्ण होते चले गए ।
एक बार किसी काजी ने कहा कि तुम मुसलमान होकर हिन्दुओं के देवताओं का नाम लेते हो, क्या यह ठीक है ?
चूँकि उस समय मुस्लिम सल्तनत थी, इसलिए अधिकतर प्रशासन सम्बन्धी अधिकारी भी मुसलमान ही हुआ करते थे ।
इतना होने पर भी श्री हरिदास गोस्वामी
ने भगवान् श्रीकृष्ण का नाम लेना नहीं छोड़ा ।
इस पर उन्हें यह चेतावनी दी गई कि यदि तुमने हिन्दुओं के देवताओं का स्मरण करना नहीं छोड़ा, तो सजा दी जाएगी ।
इस पर श्री हरिदास गोस्वामी ने कहा कि, “चाहे मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएँ, परन्तु मैं हरीनाम का स्मरण नहीं छोड़ सकता ।”
इस पर श्री हरिदास गोस्वामी को कोड़े मारते हुए शहर भर में घुमाने की सजा दी गई ।
उन पर जैसे-जैसे कोड़े बरसाए जाते,वे हरीनाम का उच्चारण और तेज गति से करने लगते।
अन्त में अत्यधिक मार से वे बेसुध होकर गिर पड़े, परन्तु अन्तिम समय में भी उन्होंने भगवान् से यही प्रार्थना की कि,
‘हे प्रभु ! इन अज्ञानी जीवों को क्षमा करो ।
ये तुम्हारे रुप और लीला को नहीं जानते हैं ।
तुम्हारे नाम की महिमा से भी अनभिज्ञ हैं ।
इनके मन में भक्ति भर दो ।’
ऐसा सोचते हुए श्री हरिदास गोस्वामी बेसुध होकर गिर पड़े ।
मरा हुआ समझकर उन्हें सिपाहीयों ने उठाकर यमुनाजी में बहा दिया।
यमुनाजी में तो बहा दिया लेकिन देखो हरिनाम का प्रभाव! मानो यमुनाजी ने उसको गोद में ले लिया।
डेढ़ मील तक श्री हरिदास गोस्वामी पानी में बहते रहे।
वह शांतचित्त होकर, मानो उस पानी में नहीं, हरि की कृपा में बहते रहे
कुछ ही दूर बहते हुए उन्हें होश आ गया और तैरकर किनारे पर चले आए और दूसरे दिन श्री गौरांग की प्रभातफेरी में शामिल हो गये ।
और पुनः भगवान् की भक्ति में रम गए ।
लोग आश्चर्यचकित हो गये कि चमत्कार कैसे हुआ?
उनका इन्द्रिय निग्रह भी अद्भुत था ।
उन्हें भगवान् श्रीकृष्ण की भक्ति से हटाने के लिए एक बार उनके इन्द्रिय निग्रह की भी परीक्षा हुई ।
उनको भक्ति से च्युत करने के लिए उनके पास एक वेश्या को भेजा गया ।
उसका उनके चरित्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।
उनको चरित्र से डिगाना सम्भव नहीं था ।
वेश्या स्वयं उनकी भक्त बन गई और हरीनाम जपने लगी ।
श्री चैतन्य महाप्रभु भी उनकी भक्ति से प्रभावित थे ।
आयु में श्री हरिदास गोस्वामी श्री चैतन्य महाप्रभु से लगणग 30-35 वर्ष बड़े थे।
कुछ समय श्री हरिदास गोस्वामी ने श्री चैतन्य महाप्रभु के साथ भी बिताया ।
जब उनका देहान्त हुआ, तब श्री हरिदास गोस्वामी श्री चैतन्य महाप्रभु के पास ही थे।
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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
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