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Saturday 6 April 2013

Tanuja Thakur

The Great Bhartiya scientists :
ACHARYA BHARADWAJ (800 BCE)

PIONEER OF AVIATION TECHNOLOGY

Acharya Bharadwaj had a hermitage in the holy city of Prayag and was an ordent apostle of Ayurveda and mechanical sciences. He authored the "Yantra Sarvasva" which includes astonishing and outstanding discoveries in aviation science, space science and flying machines. He has described three categories of flying machines: 1.) One that flies on earth from one place to another. 2.) One that travels from one planet to another. 3.) And One that travels from one universe to another. His designs and descriptions have impressed and amazed aviation engineers of today. His brilliance in aviation technology is further reflected through techniques described by him:

Profound Secret: The technique to make a flying machine invisible through the application of sunlight and wind force.
Living Secret: The technique to make an invisible space machine visible through the application of electrical force.
Secret of Eavesdropping: The technique to listen to a conversation in another plane.
Visual Secrets: The technique to see what's happening inside another plane.

Through his innovative and brilliant discoveries, Acharya Bharadwaj has been recognized as the pioneer of aviation technology.

Thursday 4 April 2013

साधक किसे कहते हैं ?


साधक किसे कहते हैं ?
इस शीर्षकके अंतर्गत साधक किसे कहते हैं उससे संबन्धित धर्मप्रसारकी सेवा करते समय मुझे हुए कुछ अनुभव आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहती हूं जिससे कि आपको भी साधकत्व किसे कहते हैं यह समझमें आएगा |
एक बार झारखंडके एक जिलेमें एक अत्यंत ही संभ्रांत परिवारकी स्त्री साधना करने लगीं | उनके पति राजसिक प्रवृत्तिके थे और अपने करोडपति होनेका अहं था | परंतु वे सज्जन प्रवृत्तिके थे और प्रसारसेवामें अपनी गाडीसे हम साधकोंको सहर्ष सेवास्थल तक पहुंचा दिया करते थे और पुनः यदि उन्हें दूरभाषसे सूचित करते थे तो वे हमें लेकर भी आते थे | मुझे सुबह सैर करनेकी आदत है और सैरमें हमारी उनसे बातें हुआ करती थीं | मैं जब भी उन्हें नामजप करनेके लिए कहती, वे कहते, “मैं क्यों करूँ नामजप ईश्वरने मुझे सब कुछ दिया और मुझे कुछ चाहिए नहीं, मैं संतुष्ट हूं और सुखी भी”, यह कहकर वह मेरी बात टाल देते हैं | एक दिन पुनः इसी विषयपर चर्चा होने लगी वे जानबूझ कर विषय उठाते थे क्योंकि उन्हे थोडी जिज्ञासा भी थी और मेरी सुई उन्हें नामजप करनेके लिए प्रवृत्त करनेपर अटक जाती थी, एक दिन उन्होंने पुनः वही प्रश्न किया, “मैं क्यों नामजप करूँ” ? पता नहीं कैसे मेरे मुंहसे सहज ही निकल गया “भैया जब विपरीत परिस्थिति आती है तब ईश्वर काम आते हैं पैसे नहीं “ | उन्होंने कहा “ मैं आपकी बातसे सहमत हूं परंतु मेरे जीवनमें ऐसी परिस्थिति क्यों आएगी” ? मैंने मौन रहना ही उचित समझा | 20 जनवरी २००० को वे कोई अपने व्यावसायिक कार्य हेतु गुजरात गए थे | 26 जनवरीको भुजमें अत्यंत बडा भूकंप आया | वे उस समय भुज क्षेत्रमें थे | 26 जनवरीके दिन हमारा साप्ताहिक सत्संग था और उनकी पत्नी उस सत्संगका संचालन करती थी | मैंने वहांके सत्संगका उत्तरदायित्व उन्हें सौंप दूसरे शहर प्रसारके लिए जाने लगी थी | जैसे ही वे सत्संगमें जानेके लिए निकलीं उन्हे सूचना मिली कि जिस क्षेत्रमें भूकंप आया था उनके पति और मित्र दोनों उसी क्षेत्रमें एक दिन पहले पहुंचे थे और वहां भूकंपके कारण भयंकर विनाश हुआ था | इतना सुननेपर भी वह स्त्री साधक सत्संग लेनेको अपना कर्तव्य मान, मनको स्थिर कर सत्संग लेने चली गईं और वहां किसीको भी नहीं बताया कि उनके पति भूकंपवाले क्षेत्रमें कलसे हैं | अगले दो दिन तक उनके पतिकी कोई सूचना नहीं मिल पायी | मुझे किसी अन्य साधकके माध्यमसे यह सब पता चला | मैंने उनसे दूरभाषपर बातचीत की तो वह थोडी चिंतित थी जो स्वाभाविक था, मैंने सांत्वना देते हुए उनसे कहा, “आप चिंता न करें ईश्वर सब अच्छा ही करेंगे “ | तीसरे दिन उनके पतिने उन्हें दूरभाष कर बताया कि जिस होटलमें वे रुके थे वह भूकंपके झटकेसे धराशायी हो गया था और ईश्वर कृपासे वे मलबेसे सुरक्षित निकल पाये थे परंतु सारा संचार तंत्र उद्ध्वस्त होनेके कारण तुरंत सूचना नहीं दे पाये थे | एक सप्ताहके पश्चात मैं उनके घर पहुंची तो उनके पति आ पहुंचे थे और भूकंपका आतंक उनके चेहरेपर स्पष्ट दिख रहा था | उन्होंने जो आपबीती बताई वह बताती हूं , उन्होंने कहा , “जब भूकंप आया तो मैं और एक मित्र दोनों भुजमें एक होटलमें थे | मित्र शौचालयमें था और मैं भी स्नान कर निकला ही था | अचानक ताशके पत्ते समान उनका भव्य होटल हिलने और ढहने लगा | मैंने अपने मित्रको शौचालयसे बुला दोनों पलंगके नीचे हो लिए” | और आश्चर्य उनका कमरा एक माचिसके डिब्बे समान सुरक्षित ढह कर नीचा आ गिरा | रात भर वे उसी स्थितिमें रहे और अगले दिन कुछ मलबा हटनेपर वे किसी प्रकार बाहर आ पाये | उन्होंने कहा, “दो दिन हम दोनों मित्र तौलियेमें विनाश लीला देख रहे थे, हमारे पास इतना पैसा होते हुए भी हम पूर्णत: असहाय थे और मुझे आपकी बात याद आ रही थी और मुझे लगता है मैं अपनी पत्नीकी साधनाके कारण जीवित हूं’’ !!!! परंतु इतना होने पर भी उन सज्जनने साधना आरंभ नहीं की क्योंकि ईश्वरका नाम प्रत्येक व्यक्तिके बस की बात नहीं | जब तक उनकी कृपा न हो कोई कितना भी पैसेवाला हो वह भक्ति नहीं कर सकता | यहां पर उस स्त्रीके साधकत्वने उस सज्जनकी रक्षा की | ईश्वर भक्तवत्सल हैं, सज्जनवत्सल नहीं, उन्होंने गीतामें कहा है ‘परित्राणाय साधूनाम’ अर्थात साधकोंका रक्षण करता हूं सज्जनका नहीं; परंतु उस स्त्रीके साधकत्वका परिणाम ईश्वरने दे दी | अतः सज्जनों साधक बनो !!

पूजा करते समय इन बातों का रखें ध्यान !


पूजा करते समय इन बातों का रखें ध्यान !
धर्म प्रसारके मध्य कुछ घरों में पूजक द्वारा किए जा रहे अयोग्य कृतियों को मैंने अनुभव किए उसे आपके समक्ष प्रस्तुत करने की धृष्टता मात्र इसलिए कर रही हूँ कि आप भी अंतर्मुख होकर विचार करें कहीं आपके द्वारा ऐसी अयोग्य कृति देवतापूजन के मध्य तो नहीं हो रहा है !
१. देवता पूजन भक्तियोग अंतर्गत कर्मकांड की साधना है | कर्मकांड की साधना अर्थात शरीर के माध्यम से ईश्वरप्राप्ति हेतु प्रयास करना | जब हम कर्मकांड करते हैं तब शरीर की सुचिता का ध्यान अवश्य रखना चाहिए | यदि स्त्री रजस्वला (माहवारी) हुई हो तब उन्होंने पूजा नहीं करना चाहिए कारण यह है कि उस समय स्त्री का रजोगुण बढ़ जाता है अतः ऐसी स्थिति में पूजा नहीं करना चाहिए परंतु नामजप चूंकि मन से होता है उसे अवश्य कर सकते हैं | वैसे ही घर में यदि सूतक हो उस समय भी पूजा नहीं करनी चाहिए उसका भी कारण यही है कि मृत्यु के पश्चात प्रेत तेरह दिनों तक घर के आस पास घूमता रहता है अतः घर में रजोगुण का प्रमाण बढ़ जाता है | पूजा करने से स्नान इत्यादि कर सात्त्विक वस्त्र ( सूती या रेशमी भारतीय परिधान सात्विक वस्त्र में आते हैं )पहन कर पूजन करने से मन की एकाग्रता तो साध्य होती ही है साथ ही पूजक की कुंडलिनी शक्ति भी जागृत होती है |
२. कुछ भक्तों के घर जाने पर उनके पूजा घर में दीपका की लौ से दीवारों पर कालिमा फैली होती है | अतः पूजा घर में दीपक की लौ सौम्य और माध्यम हो यह ध्यान रखें ! दीपक जलाने से देवता के तत्त्व आकृष्ट होते हैं मशाल जलाने से नहीं !!
३. कुछ भक्तों के घर अनेक पुराने एवं फटे हुए देवताओं के चित्र लगे रहते हैं, कुछ मूर्तियां भी पुरानी और खंडित होती है, जब उनसे पूछती हूं कि इतने पुराने फटे हुए चित्र और खंडित मूर्ति पूजा घरमें क्यों रखी है तो वे कहते हैं कि वे उनके किसी प्रिय एवं निकट संबंधी के है जो अब इस संसार में नहीं है या उन्होने दी थी | ध्यान रहे चित्र यदि जीर्ण शीर्ण हो जाए और मूर्ति खंडित हो तो उससे देवता के चैतन्य के प्रक्षेपण का प्रमाण नगण्य हो जाता है अतः उन्हें स्वच्छ एवं बहते जल में प्रवाहित करें और नयी चित्र या मूर्ति लाकर पूजा घर में रखें ! (मूर्ति विज्ञान अनुसार संतों के मार्गदर्शन में बने हुए सात्विक चित्र पाने हेतु इसपर संपर्क कर सकते हैं - ९३२२३१५३१७ (9322315317))
४. पूजा करते समय पुष्प की पंखुरियों को तोड़ कर न चढ़ाएँ | पुष्प के रूप, रंग और गंध से देवता का तत्त्व आकृष्ट होता है | पुष्प के आकृति को तोड़ देने पर उसके रूप विकृत हो जाते हैं ऐसे में देवताके तत्त्व नाम मात्र ही आकृष्ट हो पाते हैं | अतः पुष्प कम हो और पुष्पांजलि अर्पित करनी हो तो मन से अर्थात सूक्ष्म से पुष्प अर्पित करें पुष्प की पंखुरियों को तोड़कर पुष्प न चढ़ाएं !
५. अनेक व्यक्ति पूजा घर को प्लास्टिक के फूल, पत्ते और रोलेक्स के बने वंदनवार से पूजाघर को सजाते हैं तो कुछ पूजाघर में अति छोटे आकार के बिजली के बल्ब (ट्यूनीबल्ब) जलाकर उसकी सजावट करते हैं | यह सब तमोगुणी होने के कारण पूजा घर की सात्त्विकता को न्यून कर देता है | अतः पूजा घर में ताजे फूल, आम्रपल्लव या उत्सवों के समय केले के स्तम्भ से सजावट करें एवं घी या तिल के तेल का दीप जलाएं
६. कुछ भक्त अपने घर के सभी कमरों में देवी-देवता के अनेक चित्र लगा कर रखते हैं | चित्र का सभी कमरे में लगाना तब तक ठीक है जब तक आप उस सभी चित्रों का पंचोपचार पूजन करते हैं और अधिकांशत: मैंने पाया है लोग ऐसे करते नहीं है | देवी-देवता कोई सजावट की वस्तु नहीं हैं वे पूज्य है अतः जहां भी उनका स्वरूप हो उसे प्रतिदिन पूजाघर में रखें स्वच्छ सूखे कपड़े से पोछें और कम से कम धूप अवश्य दिखाएँ | ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि देवता के रूप के साथ शब्द, रस, गंध नाम और शक्ति सहवर्ती होती हैं, ऐसा न करना एक प्रकार से उनकी अवमानना करना है, अतः यदि आपसे देवता की पूजा सर्वत्र नहीं हो पाती है तो प्रयास करें कि मात्र देवघर में देवताओं की प्रतिमा या चित्र रखें |
७. पूजा घर में कम से कम देवी या देवता का चित्र या मूर्ति रखें, उतना ही रखें जितने देवताओं की आप नियमित भावपूर्वक पंचोपचार पूजन कर सकते हैं, (अधिकतम संख्या पाँच से आठ हो) | मैंने पाया है कि अनेक भक्तों के पूजा घर में एक ही देवता के अनेक चित्र या मूर्ति होते हैं वस्तुत: एक देवता के एक चित्र या मूर्ति पर्याप्त होता है | आपके पूजा घर आपके वास्तु को शुद्ध और सात्विक बनाए रखने में सहायता करता है अतः पूजा घर को सात्विक रखने का प्रयास करें | जब भी कोई हमें कोई चित्र या मूर्ति भेंट स्वरूप देता है हम उसे पूजा घर में रख देते हैं आपका पूजा घर आपके देवताओं का संग्रहालय नहीं है और न ही देवता की मूर्ति सजावट की वस्तु इसे ध्यान में रख सभी को देवता के चित्र या मूर्ति भेंट न करें | और जब भी आपके पास अनावशयक चित्र या मूर्ति एकत्रित हो जाये उसकी पूजा इत्यादि कर उसे उसे नए वस्त्र में लपेट कर बहते जल में विसर्जित करें

गीता सार

गीता सार
प्रकृतेर्गुणसम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्‌ ॥ श्री मदभग्वद्गीता (३:२९ )
अर्थ : प्रकृतिके गुणोंसे अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणोंमें और कर्मोंमें आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझने वाले मन्दबुद्धि अज्ञानियोंको पूर्णतया जाननेवाला ज्ञानी विचलित न करे॥
भावार्थ : सम्पूर्ण सृष्टि भिन्न आध्यात्मिक स्तरपर है अतः ज्ञानीने इस सिद्धान्तको जानकार वर्तन करना चाहिए क्योंकि जीवोंका वर्तन उनके आध्यात्मिक स्तरके अनुसार होता है | मनुष्य जन्म लेकर भी अनेक जीव जिनका आध्यात्मिक स्तर निम्न होता है वे सांसरिक सुख उपभोगमें लिप्त रहते हैं, उन्हें लगता है कि मैं देह हूँ और इस संसारमें आनेका मुख्य कारण है विषयोंका उपभोग कर सुखका अनुभव करना | ऐसे मनुष्यको अध्यात्म और साधनामें तनिक भी रुचि नहीं होती , भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ऐसे मनुष्यको ज्ञान देना उचित नहीं है और उन्हें मंद बुद्धि संबोधित किया गया है | ऐसे मनुष्यको अपने तमोगुणी प्रकृति अनुरूप वर्तन करने हेतु छोड देना चाहिए, ज्ञानी यदि इस बातको समझ ले कि सृष्टि आगे सहस्रो वर्ष चलने वाली है और प्रत्येक जीव सृष्टिके संचालनकी घटनाक्रममें अपना स्थान और महत्व रखता है और ऐसी सोच रखनेपर उन्हें मायामें लिप्त देखकर ग्लानि नहीं होगी |
ज्ञान देते समय जिसे ईश्वर में तनिक भी रुचि नहीं है और वह कुछ जानना भी नहीं चाहता है उन्हें ज्ञान नहीं देना चाहिए, उसी प्रकार जिसे यह लगता है कि उसे अत्यधिक ज्ञान है और उसमें अहंकारका प्राबल्य अधिक है उसे भी ज्ञान नहीं देना चाहिए | ज्ञान मात्र उसे देना चाहिए जिसे अध्यात्म पता नहीं है परंतु जब बताया जाये तो वह नम्रतासे सुनकर उसे आचरणमें लानेका प्रयास करता है या ज्ञान उसे देना चाहिए जो नम्र है और जिज्ञासु प्रवृत्तिका है | अतः ज्ञानीको ज्ञानका प्रसार करते समय जिसे वह ज्ञान देने वाला है उसके बारेमें थोडा अभ्यास करना चाहिए तभी उसके ज्ञान देने की कृति परिणामकारक होगी | अनेक जीव इस सृष्टिमण्डलमें आध्यात्मिक स्तरके भिन्न चरणपर है और कालानुरूप उनमें भी निम्न गतिसे उतरोत्तर प्रगति होगी और ज्ञानीने इस तथ्यको स्वीकार कर साक्षीभावसे वर्तन करना चाहिए और सभी ईश्वर उन्मुख हो जाये और इस हेतु बिना पात्रता देखे ज्ञान देना अयोग्य होगा | अत: तमोगुणी प्रवृत्तिके व्यक्तिको संसारमें पूर्णत: लिप्त देखकर ज्ञानीने विचलित नहीं होना चाहिए |
courtesy : www.tanujathakur.com
गीता सार
प्रकृतेर्गुणसम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्‌ ॥ श्री मदभग्वद्गीता (३:२९ )
अर्थ :  प्रकृतिके गुणोंसे अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणोंमें और कर्मोंमें आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझने वाले मन्दबुद्धि अज्ञानियोंको पूर्णतया जाननेवाला ज्ञानी विचलित न करे॥ 
भावार्थ : सम्पूर्ण सृष्टि भिन्न आध्यात्मिक स्तरपर है अतः ज्ञानीने इस सिद्धान्तको जानकार वर्तन करना चाहिए क्योंकि जीवोंका वर्तन उनके आध्यात्मिक स्तरके अनुसार होता है | मनुष्य जन्म लेकर भी अनेक जीव जिनका आध्यात्मिक स्तर निम्न होता है वे सांसरिक सुख उपभोगमें लिप्त रहते हैं, उन्हें लगता है कि मैं देह हूँ और इस संसारमें आनेका मुख्य कारण है विषयोंका उपभोग कर सुखका अनुभव करना | ऐसे मनुष्यको अध्यात्म और साधनामें तनिक भी रुचि नहीं होती , भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ऐसे मनुष्यको ज्ञान देना उचित नहीं है और उन्हें मंद बुद्धि संबोधित किया गया है | ऐसे मनुष्यको अपने तमोगुणी प्रकृति अनुरूप वर्तन करने हेतु छोड देना चाहिए, ज्ञानी यदि इस बातको समझ ले कि सृष्टि आगे सहस्रो वर्ष चलने वाली है और प्रत्येक जीव सृष्टिके संचालनकी घटनाक्रममें अपना स्थान और महत्व रखता है और ऐसी सोच रखनेपर उन्हें मायामें लिप्त देखकर ग्लानि नहीं होगी |
   ज्ञान देते समय जिसे ईश्वर में तनिक  भी रुचि नहीं है और वह कुछ जानना भी नहीं चाहता है उन्हें ज्ञान नहीं देना चाहिए, उसी प्रकार जिसे यह लगता है कि उसे अत्यधिक ज्ञान है और उसमें अहंकारका प्राबल्य अधिक है उसे भी ज्ञान नहीं देना चाहिए | ज्ञान मात्र उसे देना चाहिए जिसे अध्यात्म पता नहीं है परंतु जब बताया जाये तो वह नम्रतासे सुनकर उसे आचरणमें लानेका प्रयास करता है या ज्ञान उसे देना चाहिए जो नम्र है और जिज्ञासु प्रवृत्तिका है | अतः ज्ञानीको ज्ञानका प्रसार करते समय जिसे वह ज्ञान देने वाला है उसके बारेमें थोडा अभ्यास करना चाहिए तभी उसके ज्ञान देने की कृति परिणामकारक होगी | अनेक जीव इस सृष्टिमण्डलमें आध्यात्मिक स्तरके भिन्न चरणपर है और कालानुरूप उनमें भी निम्न गतिसे   उतरोत्तर प्रगति होगी और ज्ञानीने इस तथ्यको स्वीकार कर साक्षीभावसे वर्तन करना चाहिए और सभी ईश्वर उन्मुख हो जाये और इस हेतु बिना पात्रता देखे ज्ञान देना अयोग्य होगा | अत: तमोगुणी प्रवृत्तिके व्यक्तिको संसारमें पूर्णत: लिप्त देखकर ज्ञानीने विचलित नहीं होना चाहिए |  
courtesy : www.tanujathakur.com

Friday 29 March 2013

Tanuja Thakur

जिस प्रकार कुम्हार आगे में पके हुए घड़े पर हाथ की थाप मार मार कर वह कितना पका है उसकी पहचान करता है उसी प्रकार साधक के जीवन में विषम परिस्थितिका निर्माण कर, गुरु या ईश्वर अपने भक्त की साधकत्व और शरणागति की परीक्षा लेता है ! वस्तुतः एक उत्तम साधक के लिए विषम परिस्थितियाँ गुरु समान होती है जो उसे अंतर्मुख कर अध्यात्म के अनेक सूक्ष्म पक्ष सिखा देती है ! आखिर सोना तपकर ही कुन्दन बनता है |
जिस प्रकार कुम्हार आगे में पके हुए घड़े पर हाथ की थाप मार मार कर वह कितना पका है उसकी पहचान करता है उसी प्रकार साधक के जीवन में विषम परिस्थितिका निर्माण कर, गुरु या ईश्वर अपने भक्त की साधकत्व और शरणागति की परीक्षा लेता है ! वस्तुतः एक उत्तम साधक के लिए विषम परिस्थितियाँ गुरु समान होती है जो उसे अंतर्मुख कर अध्यात्म के अनेक सूक्ष्म पक्ष सिखा देती है ! आखिर सोना तपकर ही कुन्दन बनता है |

Thursday 21 March 2013

आपकी व्यष्टि साधना ( स्वयं की साधना) का आधार ठोस हो

आपकी व्यष्टि साधना ( स्वयं की साधना) का आधार ठोस हो


आपकी व्यष्टि साधना ( स्वयं की साधना)  का आधार ठोस हो
speech+tanuja


कुछ भक्त, सन्यासी, धर्म प्रसारक समाज में धर्म की बातें को पहुंचाना चाहते हैं और जब उनके फेसबुक प्रोफ़ाइल पर उनकी बातों की ओर लोगों का ध्यान नहीं जाता है तो वे अपनी भड़ास मेरे पेज के कॉमेंट के माध्यम से निकालते हैं अर्थात अधिकांशतः उनकी प्रतिक…्रिया का लेख से कोई संबंध नहीं होता है |

मैं ऐसे लोगों को यह बताने की धृष्टता करना चाहूंगी कि आपके विचार अच्छे है कि समाज तक आप जो भी बातें पहुंचाना चाहते हैं और इसे समष्टि साधना कहते हैं परंतु आपकी समष्टि साधना तभी परिणामकारक होगी

जब आपकी व्यष्टि साधना ( स्वयं की साधना)  का आधार ठोस हो | अतः अपनी व्यष्टि साधना पर अधिक ध्यान दें | ईश्वर को ऐसे जीव जिनमें समष्टि साधना करने की तड़प होती है वे प्रिय होते हैं परंतु ईश्वर ऐसे जीव को चुनते हैं जिनकी व्यष्टि साधना अच्छी है | अतः व्यष्टि साधना हेतु निम्नलिखित नियमित प्रयास करें

: १. अधिक से अधिक समय नामजप करें , नामजप में संख्यात्मक और गुणांत्मक वृद्धि करें

२. प्रार्थना को अपनी दिनचर्या का अविभाज्य अंग बनाएँ

३. आप जिस भी बात को समाज तक पहुंचाना चाहते हैं सर्वप्रथम उसे आत्मसात करें इससे आपकी लेखन और वाणी दोनों में चैतन्य आएगा और इससे समाज आपकी ओर सहज ही आकृष्ट होगा

४. ईश्वर को नम्र जीव अति प्रिय होते हैं अतः अहम का त्याग हेतु विशेष प्रयास करें , इस हेतु अपने सर्व कृतियों का कर्तापन ईश्वर के चरणो में सातत्य से अर्पण करें

५. अपने त्याग के प्रवृत्ति को बढ़ाएँ अर्थात तन,मन धन तीनों का त्याग के प्रतिशत में निरंतर वृद्धि हो रही है क्या  इसकी समीक्षा करें

६. जब भी आप कुछ साझा कर रहे हैं तो  उसे कहाँ से सीखा है वह अवश्य समाज को बताएं इससे कर्तापन का भाव घटने लगता है और मैं ज्ञानी हूँ इस अहंभाव कम होने  लगता है , अधिकांश व्यक्ति गर्भ से सीख कर नहीं आते , माता पिता , आचार्य , ग्रंथ , साधक , मार्गदर्शक और गुरु के माध्यम से सब सीखते हैं , उनके प्रति एक क्षण के लिए भी कृतज्ञता का भाव कम न होने दें !

७. जहां पर आवश्यक हो वहीं पर अपने ज्ञान की अभिव्यक्ति करें , सर्वत्र अपने मन की भड़ास उगलते न फिरें इसे बहिर्मुखता  कहते हैं ! अपनी वृत्ती को अंतर्मुख करें ! देखिएगा ईश्वर आपको अपने कार्य हेतु अवश्य चुनेंगे ! समष्टि साधना हेतु आपको ढेरों शुभेच्छा !

Prayer

guruprayer
Scroll down to read in English :
श्रृंगार-युक्त शब्द प्रयोग, कोरा पांडित्य और दिखावटी स्तुतिसे कोई ढोंगी गुरुका चेला बन सकता है, आत्मज्ञानी व्यक्तिकी कृपा प्राप्त नहीं कर सकता है | यदि हमें पता चले कि कोई अध्यात्मविद संत हैं, तो मनसे किया …नमन उन तक पहुंचता है; और हमारा उनके प्रति निरपेक्ष प्रेम,  उनकी आज्ञाका पालन कर, साधना करना और उनके कार्यमें यथाशक्ति तन, मन, धन, बुद्धि और कौशल्य-अर्पण करनेसे उनकेद्वारा अर्जित ज्ञान, भक्ति और वैराग्यकी थाती हमें स्वतः ही प्राप्त होने लगती है !
By showing off ornamental words, hollow mastery and artificial prayers, one can become a disciple of a fraudulent Guru, but cannot attain the grace of a self-realised One.  If we come to know that a person is a  saint, even an obeisance paid in the mind reaches Him; and our absolute love; obeying Him and performing Sadhana (spiritual practice) as per His directives and by offering one’s body, mind, wealth, ability and intellect as per one’s capacity, the achievement of His knowledge, devotion and detachment come to us automatically.

Tuesday 19 March 2013

Why is it so in Vedic Sanatan Dharma? from Tanuja Thakur


Scroll down to read in English
वैदिक सनातन धर्ममें ऐसा क्यों ?
१. संतोंके कर-कमलोंद्वारा उद्‌घाटन व दीपप्रज्वलन करवानेका महत्त्व
संतोंके अस्तित्वमात्रसे ब्रह्मांडसे आवश्यक देवताकी सूक्ष्मतर तरंगें कार्यस्थलकी ओर आकृष्ट व कार्यरत होती हैं । इससे वातावरण चैतन्यमय व शुद्ध बनता है और कार्यस्थलके चारों ओर सुरक्षाकवचकी निर्मिति होती है व जीवोंकी सूक्ष्मदेहकी शुद्धिमें सहायता मिलती है; इसलिए संतोंके करकमलोंद्वारा उद्घाटन अंतर्गत नारियल फोडनेकी आवश्यकता नहीं होती । (उद्घाटनके लिए संतोंको आमंत्रित करनेका महत्त्व इससे ज्ञात होता है । दुर्भाग्यकी बात यह है कि आजकल राज्यकर्ताओं, चित्रपट-अभिनेताओं, क्रिकेटके खिलाडियोंको उद्घाटनके लिए आमंत्रित किया जाता है।)
२. पश्चिमी संस्कृतिके अनुसार फीता काटकर उद्‌घाटन क्यों न करें ?
किसी वस्तुको काटना विध्वंसक वृत्तिका दर्शक है । फीता काटनेकी तामसी कृतिद्वारा उद्घाटन करनेसे वास्तुकी कष्टदायी स्पंदनोंपर कोई अच्छा प्रभाव नहीं पडता । जिस कृतिसे कष्टदायी तरंगोंकी निर्मिति होती है, वह हिन्दु धर्ममें त्याज्य (त्यागने योग्य) है; इसलिए फीता काटकर उद्घाटन न करें ।

• दीपप्रज्वलन मोमबत्तीसे नहीं, अपितु तेलके दीप (सकर्ण दीप) से क्यों करें ?
• दीपप्रज्वलनके लिए प्रयुक्त दीपस्तंभमें घीकी अपेक्षा तेल डालना अधिक योग्य क्यों है ?
• नारियल फोडकर उद्घाटन क्यों किया जाता है ?
उपर्युक्त प्रश्नोंके उत्तर और इस संदर्भमें और जानकारीके लिए पढ़ें:
‘सनातन संस्था’ द्वारा प्रकाशित ग्रंथ `पारिवारिक धार्मिक व सामाजिक कृतियोंका आधारभूत शास्त्र’
ग्रंथ पानेके लिए संपर्क करें – www.sanatan@sanatan.org , ९३२२३१५३१७
• आप इस लिंकपर भी भेंट देकर इस विषयके बारेमें और जानकारी प्राप्त कर सकते हैं
http://www.hindujagruti.org/hinduism/knowledge/article/nariyal-phodkar-udghatan-kyon-kiya-jata-hai-hindi-article.html

Why is it so in Vedic Sanatan Dharma?

(i) The importance of getting inauguration and lighting of the lamp by a saint.
The mere existence of saints attracts and activates the requisite subtlest currents from the Brahmaand (universe) to the workplace. This makes the environment Chaitanyamayi (absorbed with divine consciousness) and pure. This also constructs a Surakshaa Kavach (protective sheath) around the workplace; assisting in the purification of subtle body of the beings. That is why when inauguration is done by a saint, there is no need to break a coconut. (The importance of inviting saints becomes evident from this.) Unfortunately, nowadays politicians, cinema actors, cricket players etc are invited for inauguration.
(ii) Why should you not inaugurate by cutting a ribbon in accordance with the western culture?
Cutting any object demonstrates a destructive tendency. The Tamasic (spiritually impure) act of cutting the ribbon during an inauguration does not have any beneficial impact on the troublesome vibrations of the premises. Any act which creates troublesome vibrations has been considered to be prohibited in Hindu Dharma. Hence, do not cut a ribbon for an inauguration.
• Why should the ‘Lighting a lamp’ not be done with a candle, but only with a Sakarn deep (oil lamp)?
• Why is pouring oil into the lamp-pillar being used more qualified than ghee (clarified butter) for lighting a lamp?
• Why is a coconut broken for inauguration?
For answers to the above-mentioned questions and more information, read the book, ‘Science underlying various religious traditions and social customs’ To order the book, contact – www.sanatan@sanatan.org . or contact 9322315317
You can also visit this link to get more information on the issue:
http://www.hindujagruti.org/hinduism/knowledge/article/nariyal phodkar-udghatan-kyon-kiya-jata-hai-hindi-article.html
photo courtesy - hindujanjagruti samiti

अनिष्ट शक्तिसे संबंधित आध्यात्मिक उपाय
मेरे पास पिछले दो वर्षमें फेसबुकपर कई पुरुषोंके एवं विशेषकर युवा-वर्गके और साधकोंके पत्र आए हैं कि उन्हें काम-वासना संबन्धित व्यसन हैं; और इस संबंधमें वे क्या करें, उन्हें समझमें नहीं आता, ऐसा पूछते हैं | अतः आज इसी मुद्देको अनिष्ट शक्तिसे संबंधित आध्यात्मिक उपायके अंतर्गत ले रही हूं | आजके अधिकांश पुरुषोंपर कामवासनाके संस्कार हावी रहते हैं, कारण है धर्माचरणका अभाव ! वासनाके प्राबल्यके कारण मनका एकाग्र न होना, मनमें वासनाकी तृप्तिके लिए विचार आना, गंदे एवं अश्लील चित्र देखना, अश्लील (पॉर्न) जालस्थान देखना जैसे कृति उनसे होती हैं; और वे इससे छुटकारा पाना चाहते हैं |
ध्यानमें रखें, वासना इतनी प्रबल होती है कि मनुस्मृतिमें कहा गया है :
मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् ।
बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ।।
अर्थात, पुरुषको अपनी मां, बहन या पुत्रीके साथ एक ही बिछावनपर सोना, या बैठना नहीं चाहिए; क्योंकि इन्द्रियोंका आकर्षण इतना अधिक प्रबल होता है कि कोई विद्वान व्यक्ति भी उसके आवेगमें बह जाये |
वासनाको नियंत्रित करने हेतु उपायके रूपमें क्या कर सकते हैं, वह देखेंगे:
१. स्वस्थ शरीरसे ही स्वस्थ मनकी रचना होती है | अतः शारीरिक स्वास्थ्यपर ध्यान दें | नियमित व्यायाम, या योगासन करें |
२. थोड़े समयके लिए ही सही प्राणायाम करें; इसे अपनी नियमित दिनचर्यामें डालें |
३. प्रतिदिन कुछ समयके लिए किसी संत-लिखित वाणी, या ग्रन्थको पढेँ, संत लिखित वाणीमें निहित चैतन्यसे बुद्धि सात्त्विक होती है; जिससे हमारा विवेक जागृत होता है और योग्य और अयोग्यमें अंतर समझमें आता है | संतके चित्रको अपने कमरेमें लगाएं; इससे हमारी वासना देहकी शुद्धि होती है |
४. ‘बुरा न देखें और न सुनें’ | जैसे मैंने एक हमारे ज्येष्ठ साधकको देखा कि वे अंग्रेजी समाचार पत्रको लेते समय फ़िल्मी समाचारवाला पन्ना छोड़ जाया करते थे | मैंने उन्हें यह एक बार नहीं, अनेक बार करते हुए देखा; इससे मुझे उनके प्रति श्रद्धा और बढ़ गयी |
५. यदि संभव हो तो किसी साप्ताहिक सत्संगमें जाएं |
बुरे और वासनायुक्त विचार आते समय, गणेशजीसे या अपने गुरुसे आर्ततासे प्रार्थना करें, कि आपकी बुद्धिको शुद्ध करें और मनपर नियंत्रण बने रहने दें |
७. जहां तक हो सके, सफ़ेद या हलके रंगका वस्त्र पहनें |
८. यदि वासनाके विचार अत्यधिक आते हों, तो नमक पानीका उपाय करें |
९. आकाश तत्त्वका भी उपाय वासना देह और मनो देहकी शुद्धि करनेमें अति उपयुक्त सिद्ध होता है | एक कुर्सी, या आसन लेकर जब आकाश नीला हो, और धूप मध्यम हो, तब २० मिनटके लिए बैठ जाएं और आकाश तत्त्वसे इस प्रकार प्रार्थना करें; "हे आकाश तत्त्व ! आपके चैतन्यसे हमारे मनो देह और कारण देहकी शुद्धि हो, और हमारे मन एवं बुद्धिपर छाया काला आवरण नष्ट हो " |
१०. घरकी वास्त शुद्धि करें | इस विषयमें पूर्वके अंकमें जानकारी दी जा चुकी है |
११. अपने गुरु-मंत्रका, या ''श्री गुरुदेव दत्त'' का कमसे कम तीन घंटे जप करें, दस मिनटसे जप आरम्भ कर धीरे-धीरे बढ़ाएं |
१२. स्वयं-सूचना दें | रात्रिमें सोनेसे पूर्व इस वाक्यको दस बार मन ही मनमें बोलें "जब-जब मेरे मनमें वासनाके विचार आयेंगे, तब तब मैं सतर्क हो जाऊंगा और नामजप करनेका प्रयास कर, मनको योग्य दिशा दूंगा, "यह स्वयं सूचना एक महीने तक दें |
१३. अपने कार्यालयमें भी अपने आराध्यका चित्र, यदि संभव हो, तो रखें; अन्यथा उनके लघु चित्र निकाल कर मेजपर रखें और बीच-बीचमें प्रार्थना और नामजप करें | ध्यानमें रखें वासनाको नियंत्रित करना सबसे कठिन है; और अद्वैत साध्य होनेपर ही, यह पूर्ण नियंत्रित होता है | अतः अपने मन एवं बुद्धिको सात्त्विक करनेका प्रयास करें |
१४. बाहरका भोजन जहां तक संभव हो कम से कम करें !
१५. तामसिक फिल्मी गाने एवं अश्लील फिल्में न देखें, साथ ही अश्लील साहित्य न पढ़ें |
१६. रात्रि ग्यारह बजेके पश्चात न जगें |
१७. किसी भी प्रकारके व्यसनसे बचें; यदि आपके मित्र व्यसनी हों, तो उनका त्याग करें; या उनके साथ उठना-बैठना कम कर दें |