आपकी व्यष्टि साधना ( स्वयं की साधना) का आधार ठोस हो
आपकी व्यष्टि साधना ( स्वयं की साधना) का आधार ठोस हो
मैं ऐसे लोगों को यह बताने की धृष्टता करना चाहूंगी कि आपके विचार अच्छे है कि समाज तक आप जो भी बातें पहुंचाना चाहते हैं और इसे समष्टि साधना कहते हैं परंतु आपकी समष्टि साधना तभी परिणामकारक होगी
जब आपकी व्यष्टि साधना ( स्वयं की साधना) का आधार ठोस हो | अतः अपनी व्यष्टि साधना पर अधिक ध्यान दें | ईश्वर को ऐसे जीव जिनमें समष्टि साधना करने की तड़प होती है वे प्रिय होते हैं परंतु ईश्वर ऐसे जीव को चुनते हैं जिनकी व्यष्टि साधना अच्छी है | अतः व्यष्टि साधना हेतु निम्नलिखित नियमित प्रयास करें
: १. अधिक से अधिक समय नामजप करें , नामजप में संख्यात्मक और गुणांत्मक वृद्धि करें
२. प्रार्थना को अपनी दिनचर्या का अविभाज्य अंग बनाएँ
३. आप जिस भी बात को समाज तक पहुंचाना चाहते हैं सर्वप्रथम उसे आत्मसात करें इससे आपकी लेखन और वाणी दोनों में चैतन्य आएगा और इससे समाज आपकी ओर सहज ही आकृष्ट होगा
४. ईश्वर को नम्र जीव अति प्रिय होते हैं अतः अहम का त्याग हेतु विशेष प्रयास करें , इस हेतु अपने सर्व कृतियों का कर्तापन ईश्वर के चरणो में सातत्य से अर्पण करें
५. अपने त्याग के प्रवृत्ति को बढ़ाएँ अर्थात तन,मन धन तीनों का त्याग के प्रतिशत में निरंतर वृद्धि हो रही है क्या इसकी समीक्षा करें
६. जब भी आप कुछ साझा कर रहे हैं तो उसे कहाँ से सीखा है वह अवश्य समाज को बताएं इससे कर्तापन का भाव घटने लगता है और मैं ज्ञानी हूँ इस अहंभाव कम होने लगता है , अधिकांश व्यक्ति गर्भ से सीख कर नहीं आते , माता पिता , आचार्य , ग्रंथ , साधक , मार्गदर्शक और गुरु के माध्यम से सब सीखते हैं , उनके प्रति एक क्षण के लिए भी कृतज्ञता का भाव कम न होने दें !
७. जहां पर आवश्यक हो वहीं पर अपने ज्ञान की अभिव्यक्ति करें , सर्वत्र अपने मन की भड़ास उगलते न फिरें इसे बहिर्मुखता कहते हैं ! अपनी वृत्ती को अंतर्मुख करें ! देखिएगा ईश्वर आपको अपने कार्य हेतु अवश्य चुनेंगे ! समष्टि साधना हेतु आपको ढेरों शुभेच्छा !
कुछ भक्त, सन्यासी, धर्म प्रसारक समाज
में धर्म की बातें को पहुंचाना चाहते हैं और जब उनके फेसबुक प्रोफ़ाइल पर
उनकी बातों की ओर लोगों का ध्यान नहीं जाता है तो वे अपनी भड़ास मेरे पेज के
कॉमेंट के माध्यम से निकालते हैं अर्थात अधिकांशतः उनकी प्रतिक…्रिया का
लेख से कोई संबंध नहीं होता है |
मैं ऐसे लोगों को यह बताने की धृष्टता करना चाहूंगी कि आपके विचार अच्छे है कि समाज तक आप जो भी बातें पहुंचाना चाहते हैं और इसे समष्टि साधना कहते हैं परंतु आपकी समष्टि साधना तभी परिणामकारक होगी
जब आपकी व्यष्टि साधना ( स्वयं की साधना) का आधार ठोस हो | अतः अपनी व्यष्टि साधना पर अधिक ध्यान दें | ईश्वर को ऐसे जीव जिनमें समष्टि साधना करने की तड़प होती है वे प्रिय होते हैं परंतु ईश्वर ऐसे जीव को चुनते हैं जिनकी व्यष्टि साधना अच्छी है | अतः व्यष्टि साधना हेतु निम्नलिखित नियमित प्रयास करें
: १. अधिक से अधिक समय नामजप करें , नामजप में संख्यात्मक और गुणांत्मक वृद्धि करें
२. प्रार्थना को अपनी दिनचर्या का अविभाज्य अंग बनाएँ
३. आप जिस भी बात को समाज तक पहुंचाना चाहते हैं सर्वप्रथम उसे आत्मसात करें इससे आपकी लेखन और वाणी दोनों में चैतन्य आएगा और इससे समाज आपकी ओर सहज ही आकृष्ट होगा
४. ईश्वर को नम्र जीव अति प्रिय होते हैं अतः अहम का त्याग हेतु विशेष प्रयास करें , इस हेतु अपने सर्व कृतियों का कर्तापन ईश्वर के चरणो में सातत्य से अर्पण करें
५. अपने त्याग के प्रवृत्ति को बढ़ाएँ अर्थात तन,मन धन तीनों का त्याग के प्रतिशत में निरंतर वृद्धि हो रही है क्या इसकी समीक्षा करें
६. जब भी आप कुछ साझा कर रहे हैं तो उसे कहाँ से सीखा है वह अवश्य समाज को बताएं इससे कर्तापन का भाव घटने लगता है और मैं ज्ञानी हूँ इस अहंभाव कम होने लगता है , अधिकांश व्यक्ति गर्भ से सीख कर नहीं आते , माता पिता , आचार्य , ग्रंथ , साधक , मार्गदर्शक और गुरु के माध्यम से सब सीखते हैं , उनके प्रति एक क्षण के लिए भी कृतज्ञता का भाव कम न होने दें !
७. जहां पर आवश्यक हो वहीं पर अपने ज्ञान की अभिव्यक्ति करें , सर्वत्र अपने मन की भड़ास उगलते न फिरें इसे बहिर्मुखता कहते हैं ! अपनी वृत्ती को अंतर्मुख करें ! देखिएगा ईश्वर आपको अपने कार्य हेतु अवश्य चुनेंगे ! समष्टि साधना हेतु आपको ढेरों शुभेच्छा !
Prayer
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श्रृंगार-युक्त शब्द प्रयोग, कोरा पांडित्य और दिखावटी स्तुतिसे कोई
ढोंगी गुरुका चेला बन सकता है, आत्मज्ञानी व्यक्तिकी कृपा प्राप्त नहीं कर
सकता है | यदि हमें पता चले कि कोई अध्यात्मविद संत हैं, तो मनसे किया …नमन
उन तक पहुंचता है; और हमारा उनके प्रति निरपेक्ष प्रेम, उनकी आज्ञाका
पालन कर, साधना करना और उनके कार्यमें यथाशक्ति तन, मन, धन, बुद्धि और
कौशल्य-अर्पण करनेसे उनकेद्वारा अर्जित ज्ञान, भक्ति और वैराग्यकी थाती
हमें स्वतः ही प्राप्त होने लगती है !
By showing off ornamental words, hollow mastery and artificial
prayers, one can become a disciple of a fraudulent Guru, but cannot
attain the grace of a self-realised One. If we come to know that a
person is a saint, even an obeisance paid in the mind reaches Him; and
our absolute love; obeying Him and performing Sadhana (spiritual
practice) as per His directives and by offering one’s body, mind,
wealth, ability and intellect as per one’s capacity, the achievement of
His knowledge, devotion and detachment come to us automatically.
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