पूजा करते समय इन बातों का रखें ध्यान !
धर्म प्रसारके मध्य कुछ घरों में पूजक द्वारा किए जा रहे अयोग्य कृतियों को मैंने अनुभव किए उसे आपके समक्ष प्रस्तुत करने की धृष्टता मात्र इसलिए कर रही हूँ कि आप भी अंतर्मुख होकर विचार करें कहीं आपके द्वारा ऐसी अयोग्य कृति देवतापूजन के मध्य तो नहीं हो रहा है !
१. देवता पूजन भक्तियोग अंतर्गत कर्मकांड की साधना है | कर्मकांड की साधना अर्थात शरीर के माध्यम से ईश्वरप्राप्ति हेतु प्रयास करना | जब हम कर्मकांड करते हैं तब शरीर की सुचिता का ध्यान अवश्य रखना चाहिए | यदि स्त्री रजस्वला (माहवारी) हुई हो तब उन्होंने पूजा नहीं करना चाहिए कारण यह है कि उस समय स्त्री का रजोगुण बढ़ जाता है अतः ऐसी स्थिति में पूजा नहीं करना चाहिए परंतु नामजप चूंकि मन से होता है उसे अवश्य कर सकते हैं | वैसे ही घर में यदि सूतक हो उस समय भी पूजा नहीं करनी चाहिए उसका भी कारण यही है कि मृत्यु के पश्चात प्रेत तेरह दिनों तक घर के आस पास घूमता रहता है अतः घर में रजोगुण का प्रमाण बढ़ जाता है | पूजा करने से स्नान इत्यादि कर सात्त्विक वस्त्र ( सूती या रेशमी भारतीय परिधान सात्विक वस्त्र में आते हैं )पहन कर पूजन करने से मन की एकाग्रता तो साध्य होती ही है साथ ही पूजक की कुंडलिनी शक्ति भी जागृत होती है |
२. कुछ भक्तों के घर जाने पर उनके पूजा घर में दीपका की लौ से दीवारों पर कालिमा फैली होती है | अतः पूजा घर में दीपक की लौ सौम्य और माध्यम हो यह ध्यान रखें ! दीपक जलाने से देवता के तत्त्व आकृष्ट होते हैं मशाल जलाने से नहीं !!
३. कुछ भक्तों के घर अनेक पुराने एवं फटे हुए देवताओं के चित्र लगे रहते हैं, कुछ मूर्तियां भी पुरानी और खंडित होती है, जब उनसे पूछती हूं कि इतने पुराने फटे हुए चित्र और खंडित मूर्ति पूजा घरमें क्यों रखी है तो वे कहते हैं कि वे उनके किसी प्रिय एवं निकट संबंधी के है जो अब इस संसार में नहीं है या उन्होने दी थी | ध्यान रहे चित्र यदि जीर्ण शीर्ण हो जाए और मूर्ति खंडित हो तो उससे देवता के चैतन्य के प्रक्षेपण का प्रमाण नगण्य हो जाता है अतः उन्हें स्वच्छ एवं बहते जल में प्रवाहित करें और नयी चित्र या मूर्ति लाकर पूजा घर में रखें ! (मूर्ति विज्ञान अनुसार संतों के मार्गदर्शन में बने हुए सात्विक चित्र पाने हेतु इसपर संपर्क कर सकते हैं - ९३२२३१५३१७ (9322315317))
४. पूजा करते समय पुष्प की पंखुरियों को तोड़ कर न चढ़ाएँ | पुष्प के रूप, रंग और गंध से देवता का तत्त्व आकृष्ट होता है | पुष्प के आकृति को तोड़ देने पर उसके रूप विकृत हो जाते हैं ऐसे में देवताके तत्त्व नाम मात्र ही आकृष्ट हो पाते हैं | अतः पुष्प कम हो और पुष्पांजलि अर्पित करनी हो तो मन से अर्थात सूक्ष्म से पुष्प अर्पित करें पुष्प की पंखुरियों को तोड़कर पुष्प न चढ़ाएं !
५. अनेक व्यक्ति पूजा घर को प्लास्टिक के फूल, पत्ते और रोलेक्स के बने वंदनवार से पूजाघर को सजाते हैं तो कुछ पूजाघर में अति छोटे आकार के बिजली के बल्ब (ट्यूनीबल्ब) जलाकर उसकी सजावट करते हैं | यह सब तमोगुणी होने के कारण पूजा घर की सात्त्विकता को न्यून कर देता है | अतः पूजा घर में ताजे फूल, आम्रपल्लव या उत्सवों के समय केले के स्तम्भ से सजावट करें एवं घी या तिल के तेल का दीप जलाएं
६. कुछ भक्त अपने घर के सभी कमरों में देवी-देवता के अनेक चित्र लगा कर रखते हैं | चित्र का सभी कमरे में लगाना तब तक ठीक है जब तक आप उस सभी चित्रों का पंचोपचार पूजन करते हैं और अधिकांशत: मैंने पाया है लोग ऐसे करते नहीं है | देवी-देवता कोई सजावट की वस्तु नहीं हैं वे पूज्य है अतः जहां भी उनका स्वरूप हो उसे प्रतिदिन पूजाघर में रखें स्वच्छ सूखे कपड़े से पोछें और कम से कम धूप अवश्य दिखाएँ | ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि देवता के रूप के साथ शब्द, रस, गंध नाम और शक्ति सहवर्ती होती हैं, ऐसा न करना एक प्रकार से उनकी अवमानना करना है, अतः यदि आपसे देवता की पूजा सर्वत्र नहीं हो पाती है तो प्रयास करें कि मात्र देवघर में देवताओं की प्रतिमा या चित्र रखें |
७. पूजा घर में कम से कम देवी या देवता का चित्र या मूर्ति रखें, उतना ही रखें जितने देवताओं की आप नियमित भावपूर्वक पंचोपचार पूजन कर सकते हैं, (अधिकतम संख्या पाँच से आठ हो) | मैंने पाया है कि अनेक भक्तों के पूजा घर में एक ही देवता के अनेक चित्र या मूर्ति होते हैं वस्तुत: एक देवता के एक चित्र या मूर्ति पर्याप्त होता है | आपके पूजा घर आपके वास्तु को शुद्ध और सात्विक बनाए रखने में सहायता करता है अतः पूजा घर को सात्विक रखने का प्रयास करें | जब भी कोई हमें कोई चित्र या मूर्ति भेंट स्वरूप देता है हम उसे पूजा घर में रख देते हैं आपका पूजा घर आपके देवताओं का संग्रहालय नहीं है और न ही देवता की मूर्ति सजावट की वस्तु इसे ध्यान में रख सभी को देवता के चित्र या मूर्ति भेंट न करें | और जब भी आपके पास अनावशयक चित्र या मूर्ति एकत्रित हो जाये उसकी पूजा इत्यादि कर उसे उसे नए वस्त्र में लपेट कर बहते जल में विसर्जित करें
धर्म प्रसारके मध्य कुछ घरों में पूजक द्वारा किए जा रहे अयोग्य कृतियों को मैंने अनुभव किए उसे आपके समक्ष प्रस्तुत करने की धृष्टता मात्र इसलिए कर रही हूँ कि आप भी अंतर्मुख होकर विचार करें कहीं आपके द्वारा ऐसी अयोग्य कृति देवतापूजन के मध्य तो नहीं हो रहा है !
१. देवता पूजन भक्तियोग अंतर्गत कर्मकांड की साधना है | कर्मकांड की साधना अर्थात शरीर के माध्यम से ईश्वरप्राप्ति हेतु प्रयास करना | जब हम कर्मकांड करते हैं तब शरीर की सुचिता का ध्यान अवश्य रखना चाहिए | यदि स्त्री रजस्वला (माहवारी) हुई हो तब उन्होंने पूजा नहीं करना चाहिए कारण यह है कि उस समय स्त्री का रजोगुण बढ़ जाता है अतः ऐसी स्थिति में पूजा नहीं करना चाहिए परंतु नामजप चूंकि मन से होता है उसे अवश्य कर सकते हैं | वैसे ही घर में यदि सूतक हो उस समय भी पूजा नहीं करनी चाहिए उसका भी कारण यही है कि मृत्यु के पश्चात प्रेत तेरह दिनों तक घर के आस पास घूमता रहता है अतः घर में रजोगुण का प्रमाण बढ़ जाता है | पूजा करने से स्नान इत्यादि कर सात्त्विक वस्त्र ( सूती या रेशमी भारतीय परिधान सात्विक वस्त्र में आते हैं )पहन कर पूजन करने से मन की एकाग्रता तो साध्य होती ही है साथ ही पूजक की कुंडलिनी शक्ति भी जागृत होती है |
२. कुछ भक्तों के घर जाने पर उनके पूजा घर में दीपका की लौ से दीवारों पर कालिमा फैली होती है | अतः पूजा घर में दीपक की लौ सौम्य और माध्यम हो यह ध्यान रखें ! दीपक जलाने से देवता के तत्त्व आकृष्ट होते हैं मशाल जलाने से नहीं !!
३. कुछ भक्तों के घर अनेक पुराने एवं फटे हुए देवताओं के चित्र लगे रहते हैं, कुछ मूर्तियां भी पुरानी और खंडित होती है, जब उनसे पूछती हूं कि इतने पुराने फटे हुए चित्र और खंडित मूर्ति पूजा घरमें क्यों रखी है तो वे कहते हैं कि वे उनके किसी प्रिय एवं निकट संबंधी के है जो अब इस संसार में नहीं है या उन्होने दी थी | ध्यान रहे चित्र यदि जीर्ण शीर्ण हो जाए और मूर्ति खंडित हो तो उससे देवता के चैतन्य के प्रक्षेपण का प्रमाण नगण्य हो जाता है अतः उन्हें स्वच्छ एवं बहते जल में प्रवाहित करें और नयी चित्र या मूर्ति लाकर पूजा घर में रखें ! (मूर्ति विज्ञान अनुसार संतों के मार्गदर्शन में बने हुए सात्विक चित्र पाने हेतु इसपर संपर्क कर सकते हैं - ९३२२३१५३१७ (9322315317))
४. पूजा करते समय पुष्प की पंखुरियों को तोड़ कर न चढ़ाएँ | पुष्प के रूप, रंग और गंध से देवता का तत्त्व आकृष्ट होता है | पुष्प के आकृति को तोड़ देने पर उसके रूप विकृत हो जाते हैं ऐसे में देवताके तत्त्व नाम मात्र ही आकृष्ट हो पाते हैं | अतः पुष्प कम हो और पुष्पांजलि अर्पित करनी हो तो मन से अर्थात सूक्ष्म से पुष्प अर्पित करें पुष्प की पंखुरियों को तोड़कर पुष्प न चढ़ाएं !
५. अनेक व्यक्ति पूजा घर को प्लास्टिक के फूल, पत्ते और रोलेक्स के बने वंदनवार से पूजाघर को सजाते हैं तो कुछ पूजाघर में अति छोटे आकार के बिजली के बल्ब (ट्यूनीबल्ब) जलाकर उसकी सजावट करते हैं | यह सब तमोगुणी होने के कारण पूजा घर की सात्त्विकता को न्यून कर देता है | अतः पूजा घर में ताजे फूल, आम्रपल्लव या उत्सवों के समय केले के स्तम्भ से सजावट करें एवं घी या तिल के तेल का दीप जलाएं
६. कुछ भक्त अपने घर के सभी कमरों में देवी-देवता के अनेक चित्र लगा कर रखते हैं | चित्र का सभी कमरे में लगाना तब तक ठीक है जब तक आप उस सभी चित्रों का पंचोपचार पूजन करते हैं और अधिकांशत: मैंने पाया है लोग ऐसे करते नहीं है | देवी-देवता कोई सजावट की वस्तु नहीं हैं वे पूज्य है अतः जहां भी उनका स्वरूप हो उसे प्रतिदिन पूजाघर में रखें स्वच्छ सूखे कपड़े से पोछें और कम से कम धूप अवश्य दिखाएँ | ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि देवता के रूप के साथ शब्द, रस, गंध नाम और शक्ति सहवर्ती होती हैं, ऐसा न करना एक प्रकार से उनकी अवमानना करना है, अतः यदि आपसे देवता की पूजा सर्वत्र नहीं हो पाती है तो प्रयास करें कि मात्र देवघर में देवताओं की प्रतिमा या चित्र रखें |
७. पूजा घर में कम से कम देवी या देवता का चित्र या मूर्ति रखें, उतना ही रखें जितने देवताओं की आप नियमित भावपूर्वक पंचोपचार पूजन कर सकते हैं, (अधिकतम संख्या पाँच से आठ हो) | मैंने पाया है कि अनेक भक्तों के पूजा घर में एक ही देवता के अनेक चित्र या मूर्ति होते हैं वस्तुत: एक देवता के एक चित्र या मूर्ति पर्याप्त होता है | आपके पूजा घर आपके वास्तु को शुद्ध और सात्विक बनाए रखने में सहायता करता है अतः पूजा घर को सात्विक रखने का प्रयास करें | जब भी कोई हमें कोई चित्र या मूर्ति भेंट स्वरूप देता है हम उसे पूजा घर में रख देते हैं आपका पूजा घर आपके देवताओं का संग्रहालय नहीं है और न ही देवता की मूर्ति सजावट की वस्तु इसे ध्यान में रख सभी को देवता के चित्र या मूर्ति भेंट न करें | और जब भी आपके पास अनावशयक चित्र या मूर्ति एकत्रित हो जाये उसकी पूजा इत्यादि कर उसे उसे नए वस्त्र में लपेट कर बहते जल में विसर्जित करें