गीता सार
प्रकृतेर्गुणसम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् ॥ श्री मदभग्वद्गीता (३:२९ )
अर्थ : प्रकृतिके गुणोंसे अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणोंमें और
कर्मोंमें आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझने वाले मन्दबुद्धि
अज्ञानियोंको पूर्णतया जाननेवाला ज्ञानी विचलित न करे॥
भावार्थ :
सम्पूर्ण सृष्टि भिन्न आध्यात्मिक स्तरपर है अतः ज्ञानीने इस सिद्धान्तको
जानकार वर्तन करना चाहिए क्योंकि जीवोंका वर्तन उनके आध्यात्मिक स्तरके
अनुसार होता है | मनुष्य जन्म लेकर भी अनेक जीव जिनका आध्यात्मिक स्तर
निम्न होता है वे सांसरिक सुख उपभोगमें लिप्त रहते हैं, उन्हें लगता है कि
मैं देह हूँ और इस संसारमें आनेका मुख्य कारण है विषयोंका उपभोग कर सुखका
अनुभव करना | ऐसे मनुष्यको अध्यात्म और साधनामें तनिक भी रुचि नहीं होती ,
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ऐसे मनुष्यको ज्ञान देना उचित नहीं है और उन्हें
मंद बुद्धि संबोधित किया गया है | ऐसे मनुष्यको अपने तमोगुणी प्रकृति
अनुरूप वर्तन करने हेतु छोड देना चाहिए, ज्ञानी यदि इस बातको समझ ले कि
सृष्टि आगे सहस्रो वर्ष चलने वाली है और
प्रत्येक जीव सृष्टिके संचालनकी घटनाक्रममें अपना स्थान और महत्व रखता है
और ऐसी सोच रखनेपर उन्हें मायामें लिप्त देखकर ग्लानि नहीं होगी |
ज्ञान देते समय जिसे ईश्वर में तनिक भी रुचि नहीं है और वह कुछ जानना भी
नहीं चाहता है उन्हें ज्ञान नहीं देना चाहिए, उसी प्रकार जिसे यह लगता है
कि उसे अत्यधिक ज्ञान है और उसमें अहंकारका प्राबल्य अधिक है उसे भी ज्ञान
नहीं देना चाहिए | ज्ञान मात्र उसे देना चाहिए जिसे अध्यात्म पता नहीं है
परंतु जब बताया जाये तो वह नम्रतासे सुनकर उसे आचरणमें लानेका प्रयास करता
है या ज्ञान उसे देना चाहिए जो नम्र है और जिज्ञासु प्रवृत्तिका है | अतः
ज्ञानीको ज्ञानका प्रसार करते समय जिसे वह ज्ञान देने वाला है उसके बारेमें
थोडा अभ्यास करना चाहिए तभी उसके ज्ञान देने की कृति परिणामकारक होगी |
अनेक जीव इस सृष्टिमण्डलमें आध्यात्मिक स्तरके भिन्न चरणपर है और कालानुरूप
उनमें भी निम्न गतिसे उतरोत्तर प्रगति होगी और ज्ञानीने इस तथ्यको
स्वीकार कर साक्षीभावसे वर्तन करना चाहिए और सभी ईश्वर उन्मुख हो जाये और
इस हेतु बिना पात्रता देखे ज्ञान देना अयोग्य होगा | अत: तमोगुणी
प्रवृत्तिके व्यक्तिको संसारमें पूर्णत: लिप्त देखकर ज्ञानीने विचलित नहीं
होना चाहिए |
courtesy : www.tanujathakur.com
गीता सार
प्रकृतेर्गुणसम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् ॥ श्री मदभग्वद्गीता (३:२९ )
अर्थ : प्रकृतिके गुणोंसे अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणोंमें और कर्मोंमें आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझने वाले मन्दबुद्धि अज्ञानियोंको पूर्णतया जाननेवाला ज्ञानी विचलित न करे॥
भावार्थ : सम्पूर्ण सृष्टि भिन्न आध्यात्मिक स्तरपर है अतः ज्ञानीने इस सिद्धान्तको जानकार वर्तन करना चाहिए क्योंकि जीवोंका वर्तन उनके आध्यात्मिक स्तरके अनुसार होता है | मनुष्य जन्म लेकर भी अनेक जीव जिनका आध्यात्मिक स्तर निम्न होता है वे सांसरिक सुख उपभोगमें लिप्त रहते हैं, उन्हें लगता है कि मैं देह हूँ और इस संसारमें आनेका मुख्य कारण है विषयोंका उपभोग कर सुखका अनुभव करना | ऐसे मनुष्यको अध्यात्म और साधनामें तनिक भी रुचि नहीं होती , भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ऐसे मनुष्यको ज्ञान देना उचित नहीं है और उन्हें मंद बुद्धि संबोधित किया गया है | ऐसे मनुष्यको अपने तमोगुणी प्रकृति अनुरूप वर्तन करने हेतु छोड देना चाहिए, ज्ञानी यदि इस बातको समझ ले कि सृष्टि आगे सहस्रो वर्ष चलने वाली है और प्रत्येक जीव सृष्टिके संचालनकी घटनाक्रममें अपना स्थान और महत्व रखता है और ऐसी सोच रखनेपर उन्हें मायामें लिप्त देखकर ग्लानि नहीं होगी |
ज्ञान देते समय जिसे ईश्वर में तनिक भी रुचि नहीं है और वह कुछ जानना भी नहीं चाहता है उन्हें ज्ञान नहीं देना चाहिए, उसी प्रकार जिसे यह लगता है कि उसे अत्यधिक ज्ञान है और उसमें अहंकारका प्राबल्य अधिक है उसे भी ज्ञान नहीं देना चाहिए | ज्ञान मात्र उसे देना चाहिए जिसे अध्यात्म पता नहीं है परंतु जब बताया जाये तो वह नम्रतासे सुनकर उसे आचरणमें लानेका प्रयास करता है या ज्ञान उसे देना चाहिए जो नम्र है और जिज्ञासु प्रवृत्तिका है | अतः ज्ञानीको ज्ञानका प्रसार करते समय जिसे वह ज्ञान देने वाला है उसके बारेमें थोडा अभ्यास करना चाहिए तभी उसके ज्ञान देने की कृति परिणामकारक होगी | अनेक जीव इस सृष्टिमण्डलमें आध्यात्मिक स्तरके भिन्न चरणपर है और कालानुरूप उनमें भी निम्न गतिसे उतरोत्तर प्रगति होगी और ज्ञानीने इस तथ्यको स्वीकार कर साक्षीभावसे वर्तन करना चाहिए और सभी ईश्वर उन्मुख हो जाये और इस हेतु बिना पात्रता देखे ज्ञान देना अयोग्य होगा | अत: तमोगुणी प्रवृत्तिके व्यक्तिको संसारमें पूर्णत: लिप्त देखकर ज्ञानीने विचलित नहीं होना चाहिए |
courtesy : www.tanujathakur.com
प्रकृतेर्गुणसम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् ॥ श्री मदभग्वद्गीता (३:२९ )
अर्थ : प्रकृतिके गुणोंसे अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणोंमें और कर्मोंमें आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझने वाले मन्दबुद्धि अज्ञानियोंको पूर्णतया जाननेवाला ज्ञानी विचलित न करे॥
भावार्थ : सम्पूर्ण सृष्टि भिन्न आध्यात्मिक स्तरपर है अतः ज्ञानीने इस सिद्धान्तको जानकार वर्तन करना चाहिए क्योंकि जीवोंका वर्तन उनके आध्यात्मिक स्तरके अनुसार होता है | मनुष्य जन्म लेकर भी अनेक जीव जिनका आध्यात्मिक स्तर निम्न होता है वे सांसरिक सुख उपभोगमें लिप्त रहते हैं, उन्हें लगता है कि मैं देह हूँ और इस संसारमें आनेका मुख्य कारण है विषयोंका उपभोग कर सुखका अनुभव करना | ऐसे मनुष्यको अध्यात्म और साधनामें तनिक भी रुचि नहीं होती , भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ऐसे मनुष्यको ज्ञान देना उचित नहीं है और उन्हें मंद बुद्धि संबोधित किया गया है | ऐसे मनुष्यको अपने तमोगुणी प्रकृति अनुरूप वर्तन करने हेतु छोड देना चाहिए, ज्ञानी यदि इस बातको समझ ले कि सृष्टि आगे सहस्रो वर्ष चलने वाली है और प्रत्येक जीव सृष्टिके संचालनकी घटनाक्रममें अपना स्थान और महत्व रखता है और ऐसी सोच रखनेपर उन्हें मायामें लिप्त देखकर ग्लानि नहीं होगी |
ज्ञान देते समय जिसे ईश्वर में तनिक भी रुचि नहीं है और वह कुछ जानना भी नहीं चाहता है उन्हें ज्ञान नहीं देना चाहिए, उसी प्रकार जिसे यह लगता है कि उसे अत्यधिक ज्ञान है और उसमें अहंकारका प्राबल्य अधिक है उसे भी ज्ञान नहीं देना चाहिए | ज्ञान मात्र उसे देना चाहिए जिसे अध्यात्म पता नहीं है परंतु जब बताया जाये तो वह नम्रतासे सुनकर उसे आचरणमें लानेका प्रयास करता है या ज्ञान उसे देना चाहिए जो नम्र है और जिज्ञासु प्रवृत्तिका है | अतः ज्ञानीको ज्ञानका प्रसार करते समय जिसे वह ज्ञान देने वाला है उसके बारेमें थोडा अभ्यास करना चाहिए तभी उसके ज्ञान देने की कृति परिणामकारक होगी | अनेक जीव इस सृष्टिमण्डलमें आध्यात्मिक स्तरके भिन्न चरणपर है और कालानुरूप उनमें भी निम्न गतिसे उतरोत्तर प्रगति होगी और ज्ञानीने इस तथ्यको स्वीकार कर साक्षीभावसे वर्तन करना चाहिए और सभी ईश्वर उन्मुख हो जाये और इस हेतु बिना पात्रता देखे ज्ञान देना अयोग्य होगा | अत: तमोगुणी प्रवृत्तिके व्यक्तिको संसारमें पूर्णत: लिप्त देखकर ज्ञानीने विचलित नहीं होना चाहिए |
courtesy : www.tanujathakur.com
No comments:
Post a Comment