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वैदिक सनातन धर्ममें ऐसा क्यों ?
१. संतोंके कर-कमलोंद्वारा उद्घाटन व दीपप्रज्वलन करवानेका महत्त्व
संतोंके अस्तित्वमात्रसे ब्रह्मांडसे आवश्यक देवताकी सूक्ष्मतर तरंगें कार्यस्थलकी ओर आकृष्ट व कार्यरत होती हैं । इससे वातावरण चैतन्यमय व शुद्ध बनता है और कार्यस्थलके चारों ओर सुरक्षाकवचकी निर्मिति होती है व जीवोंकी सूक्ष्मदेहकी शुद्धिमें सहायता मिलती है; इसलिए संतोंके करकमलोंद्वारा उद्घाटन अंतर्गत नारियल फोडनेकी आवश्यकता नहीं होती । (उद्घाटनके लिए संतोंको आमंत्रित करनेका महत्त्व इससे ज्ञात होता है । दुर्भाग्यकी बात यह है कि आजकल राज्यकर्ताओं, चित्रपट-अभिनेताओं, क्रिकेटके खिलाडियोंको उद्घाटनके लिए आमंत्रित किया जाता है।)
२. पश्चिमी संस्कृतिके अनुसार फीता काटकर उद्घाटन क्यों न करें ?
किसी वस्तुको काटना विध्वंसक वृत्तिका दर्शक है । फीता काटनेकी तामसी कृतिद्वारा उद्घाटन करनेसे वास्तुकी कष्टदायी स्पंदनोंपर कोई अच्छा प्रभाव नहीं पडता । जिस कृतिसे कष्टदायी तरंगोंकी निर्मिति होती है, वह हिन्दु धर्ममें त्याज्य (त्यागने योग्य) है; इसलिए फीता काटकर उद्घाटन न करें ।
• दीपप्रज्वलन मोमबत्तीसे नहीं, अपितु तेलके दीप (सकर्ण दीप) से क्यों करें ?
• दीपप्रज्वलनके लिए प्रयुक्त दीपस्तंभमें घीकी अपेक्षा तेल डालना अधिक योग्य क्यों है ?
• नारियल फोडकर उद्घाटन क्यों किया जाता है ?
उपर्युक्त प्रश्नोंके उत्तर और इस संदर्भमें और जानकारीके लिए पढ़ें:
‘सनातन संस्था’ द्वारा प्रकाशित ग्रंथ `पारिवारिक धार्मिक व सामाजिक कृतियोंका आधारभूत शास्त्र’
ग्रंथ पानेके लिए संपर्क करें – www.sanatan@sanatan.org , ९३२२३१५३१७
• आप इस लिंकपर भी भेंट देकर इस विषयके बारेमें और जानकारी प्राप्त कर सकते हैं
• http:// www.hindujagruti.org/ hinduism/knowledge/article/ nariyal-phodkar-udghatan-ky on-kiya-jata-hai-hindi-art icle.html
Why is it so in Vedic Sanatan Dharma?
(i) The importance of getting inauguration and lighting of the lamp by a saint.
The mere existence of saints attracts and activates the requisite subtlest currents from the Brahmaand (universe) to the workplace. This makes the environment Chaitanyamayi (absorbed with divine consciousness) and pure. This also constructs a Surakshaa Kavach (protective sheath) around the workplace; assisting in the purification of subtle body of the beings. That is why when inauguration is done by a saint, there is no need to break a coconut. (The importance of inviting saints becomes evident from this.) Unfortunately, nowadays politicians, cinema actors, cricket players etc are invited for inauguration.
(ii) Why should you not inaugurate by cutting a ribbon in accordance with the western culture?
Cutting any object demonstrates a destructive tendency. The Tamasic (spiritually impure) act of cutting the ribbon during an inauguration does not have any beneficial impact on the troublesome vibrations of the premises. Any act which creates troublesome vibrations has been considered to be prohibited in Hindu Dharma. Hence, do not cut a ribbon for an inauguration.
• Why should the ‘Lighting a lamp’ not be done with a candle, but only with a Sakarn deep (oil lamp)?
• Why is pouring oil into the lamp-pillar being used more qualified than ghee (clarified butter) for lighting a lamp?
• Why is a coconut broken for inauguration?
For answers to the above-mentioned questions and more information, read the book, ‘Science underlying various religious traditions and social customs’ To order the book, contact – www.sanatan@sanatan.org . or contact 9322315317
You can also visit this link to get more information on the issue:
http:// www.hindujagruti.org/ hinduism/knowledge/article/ nariyal phodkar-udghatan-kyon-kiya -jata-hai-hindi-article.ht ml
photo courtesy - hindujanjagruti samiti
वैदिक सनातन धर्ममें ऐसा क्यों ?
१. संतोंके कर-कमलोंद्वारा उद्घाटन व दीपप्रज्वलन करवानेका महत्त्व
संतोंके अस्तित्वमात्रसे ब्रह्मांडसे आवश्यक देवताकी सूक्ष्मतर तरंगें कार्यस्थलकी ओर आकृष्ट व कार्यरत होती हैं । इससे वातावरण चैतन्यमय व शुद्ध बनता है और कार्यस्थलके चारों ओर सुरक्षाकवचकी निर्मिति होती है व जीवोंकी सूक्ष्मदेहकी शुद्धिमें सहायता मिलती है; इसलिए संतोंके करकमलोंद्वारा उद्घाटन अंतर्गत नारियल फोडनेकी आवश्यकता नहीं होती । (उद्घाटनके लिए संतोंको आमंत्रित करनेका महत्त्व इससे ज्ञात होता है । दुर्भाग्यकी बात यह है कि आजकल राज्यकर्ताओं, चित्रपट-अभिनेताओं, क्रिकेटके खिलाडियोंको उद्घाटनके लिए आमंत्रित किया जाता है।)
२. पश्चिमी संस्कृतिके अनुसार फीता काटकर उद्घाटन क्यों न करें ?
किसी वस्तुको काटना विध्वंसक वृत्तिका दर्शक है । फीता काटनेकी तामसी कृतिद्वारा उद्घाटन करनेसे वास्तुकी कष्टदायी स्पंदनोंपर कोई अच्छा प्रभाव नहीं पडता । जिस कृतिसे कष्टदायी तरंगोंकी निर्मिति होती है, वह हिन्दु धर्ममें त्याज्य (त्यागने योग्य) है; इसलिए फीता काटकर उद्घाटन न करें ।
• दीपप्रज्वलन मोमबत्तीसे नहीं, अपितु तेलके दीप (सकर्ण दीप) से क्यों करें ?
• दीपप्रज्वलनके लिए प्रयुक्त दीपस्तंभमें घीकी अपेक्षा तेल डालना अधिक योग्य क्यों है ?
• नारियल फोडकर उद्घाटन क्यों किया जाता है ?
उपर्युक्त प्रश्नोंके उत्तर और इस संदर्भमें और जानकारीके लिए पढ़ें:
‘सनातन संस्था’ द्वारा प्रकाशित ग्रंथ `पारिवारिक धार्मिक व सामाजिक कृतियोंका आधारभूत शास्त्र’
ग्रंथ पानेके लिए संपर्क करें – www.sanatan@sanatan.org , ९३२२३१५३१७
• आप इस लिंकपर भी भेंट देकर इस विषयके बारेमें और जानकारी प्राप्त कर सकते हैं
• http://
Why is it so in Vedic Sanatan Dharma?
(i) The importance of getting inauguration and lighting of the lamp by a saint.
The mere existence of saints attracts and activates the requisite subtlest currents from the Brahmaand (universe) to the workplace. This makes the environment Chaitanyamayi (absorbed with divine consciousness) and pure. This also constructs a Surakshaa Kavach (protective sheath) around the workplace; assisting in the purification of subtle body of the beings. That is why when inauguration is done by a saint, there is no need to break a coconut. (The importance of inviting saints becomes evident from this.) Unfortunately, nowadays politicians, cinema actors, cricket players etc are invited for inauguration.
(ii) Why should you not inaugurate by cutting a ribbon in accordance with the western culture?
Cutting any object demonstrates a destructive tendency. The Tamasic (spiritually impure) act of cutting the ribbon during an inauguration does not have any beneficial impact on the troublesome vibrations of the premises. Any act which creates troublesome vibrations has been considered to be prohibited in Hindu Dharma. Hence, do not cut a ribbon for an inauguration.
• Why should the ‘Lighting a lamp’ not be done with a candle, but only with a Sakarn deep (oil lamp)?
• Why is pouring oil into the lamp-pillar being used more qualified than ghee (clarified butter) for lighting a lamp?
• Why is a coconut broken for inauguration?
For answers to the above-mentioned questions and more information, read the book, ‘Science underlying various religious traditions and social customs’ To order the book, contact – www.sanatan@sanatan.org . or contact 9322315317
You can also visit this link to get more information on the issue:
http://
photo courtesy - hindujanjagruti samiti
अनिष्ट शक्तिसे संबंधित आध्यात्मिक उपाय
मेरे पास पिछले दो वर्षमें फेसबुकपर कई पुरुषोंके एवं विशेषकर युवा-वर्गके और साधकोंके पत्र आए हैं कि उन्हें काम-वासना संबन्धित व्यसन हैं; और इस संबंधमें वे क्या करें, उन्हें समझमें नहीं आता, ऐसा पूछते हैं | अतः आज इसी मुद्देको अनिष्ट शक्तिसे संबंधित आध्यात्मिक उपायके अंतर्गत ले रही हूं | आजके अधिकांश पुरुषोंपर कामवासनाके संस्कार हावी रहते हैं, कारण है धर्माचरणका अभाव ! वासनाके प्राबल्यके कारण मनका एकाग्र न होना, मनमें वासनाकी तृप्तिके लिए विचार आना, गंदे एवं अश्लील चित्र देखना, अश्लील (पॉर्न) जालस्थान देखना जैसे कृति उनसे होती हैं; और वे इससे छुटकारा पाना चाहते हैं |
ध्यानमें रखें, वासना इतनी प्रबल होती है कि मनुस्मृतिमें कहा गया है :
मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् ।
बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ।।
अर्थात, पुरुषको अपनी मां, बहन या पुत्रीके साथ एक ही बिछावनपर सोना, या बैठना नहीं चाहिए; क्योंकि इन्द्रियोंका आकर्षण इतना अधिक प्रबल होता है कि कोई विद्वान व्यक्ति भी उसके आवेगमें बह जाये |
वासनाको नियंत्रित करने हेतु उपायके रूपमें क्या कर सकते हैं, वह देखेंगे:
१. स्वस्थ शरीरसे ही स्वस्थ मनकी रचना होती है | अतः शारीरिक स्वास्थ्यपर ध्यान दें | नियमित व्यायाम, या योगासन करें |
२. थोड़े समयके लिए ही सही प्राणायाम करें; इसे अपनी नियमित दिनचर्यामें डालें |
३. प्रतिदिन कुछ समयके लिए किसी संत-लिखित वाणी, या ग्रन्थको पढेँ, संत लिखित वाणीमें निहित चैतन्यसे बुद्धि सात्त्विक होती है; जिससे हमारा विवेक जागृत होता है और योग्य और अयोग्यमें अंतर समझमें आता है | संतके चित्रको अपने कमरेमें लगाएं; इससे हमारी वासना देहकी शुद्धि होती है |
४. ‘बुरा न देखें और न सुनें’ | जैसे मैंने एक हमारे ज्येष्ठ साधकको देखा कि वे अंग्रेजी समाचार पत्रको लेते समय फ़िल्मी समाचारवाला पन्ना छोड़ जाया करते थे | मैंने उन्हें यह एक बार नहीं, अनेक बार करते हुए देखा; इससे मुझे उनके प्रति श्रद्धा और बढ़ गयी |
५. यदि संभव हो तो किसी साप्ताहिक सत्संगमें जाएं |
बुरे और वासनायुक्त विचार आते समय, गणेशजीसे या अपने गुरुसे आर्ततासे प्रार्थना करें, कि आपकी बुद्धिको शुद्ध करें और मनपर नियंत्रण बने रहने दें |
७. जहां तक हो सके, सफ़ेद या हलके रंगका वस्त्र पहनें |
८. यदि वासनाके विचार अत्यधिक आते हों, तो नमक पानीका उपाय करें |
९. आकाश तत्त्वका भी उपाय वासना देह और मनो देहकी शुद्धि करनेमें अति उपयुक्त सिद्ध होता है | एक कुर्सी, या आसन लेकर जब आकाश नीला हो, और धूप मध्यम हो, तब २० मिनटके लिए बैठ जाएं और आकाश तत्त्वसे इस प्रकार प्रार्थना करें; "हे आकाश तत्त्व ! आपके चैतन्यसे हमारे मनो देह और कारण देहकी शुद्धि हो, और हमारे मन एवं बुद्धिपर छाया काला आवरण नष्ट हो " |
१०. घरकी वास्त शुद्धि करें | इस विषयमें पूर्वके अंकमें जानकारी दी जा चुकी है |
११. अपने गुरु-मंत्रका, या ''श्री गुरुदेव दत्त'' का कमसे कम तीन घंटे जप करें, दस मिनटसे जप आरम्भ कर धीरे-धीरे बढ़ाएं |
१२. स्वयं-सूचना दें | रात्रिमें सोनेसे पूर्व इस वाक्यको दस बार मन ही मनमें बोलें "जब-जब मेरे मनमें वासनाके विचार आयेंगे, तब तब मैं सतर्क हो जाऊंगा और नामजप करनेका प्रयास कर, मनको योग्य दिशा दूंगा, "यह स्वयं सूचना एक महीने तक दें |
१३. अपने कार्यालयमें भी अपने आराध्यका चित्र, यदि संभव हो, तो रखें; अन्यथा उनके लघु चित्र निकाल कर मेजपर रखें और बीच-बीचमें प्रार्थना और नामजप करें | ध्यानमें रखें वासनाको नियंत्रित करना सबसे कठिन है; और अद्वैत साध्य होनेपर ही, यह पूर्ण नियंत्रित होता है | अतः अपने मन एवं बुद्धिको सात्त्विक करनेका प्रयास करें |
१४. बाहरका भोजन जहां तक संभव हो कम से कम करें !
१५. तामसिक फिल्मी गाने एवं अश्लील फिल्में न देखें, साथ ही अश्लील साहित्य न पढ़ें |
१६. रात्रि ग्यारह बजेके पश्चात न जगें |
१७. किसी भी प्रकारके व्यसनसे बचें; यदि आपके मित्र व्यसनी हों, तो उनका त्याग करें; या उनके साथ उठना-बैठना कम कर दें |
मेरे पास पिछले दो वर्षमें फेसबुकपर कई पुरुषोंके एवं विशेषकर युवा-वर्गके और साधकोंके पत्र आए हैं कि उन्हें काम-वासना संबन्धित व्यसन हैं; और इस संबंधमें वे क्या करें, उन्हें समझमें नहीं आता, ऐसा पूछते हैं | अतः आज इसी मुद्देको अनिष्ट शक्तिसे संबंधित आध्यात्मिक उपायके अंतर्गत ले रही हूं | आजके अधिकांश पुरुषोंपर कामवासनाके संस्कार हावी रहते हैं, कारण है धर्माचरणका अभाव ! वासनाके प्राबल्यके कारण मनका एकाग्र न होना, मनमें वासनाकी तृप्तिके लिए विचार आना, गंदे एवं अश्लील चित्र देखना, अश्लील (पॉर्न) जालस्थान देखना जैसे कृति उनसे होती हैं; और वे इससे छुटकारा पाना चाहते हैं |
ध्यानमें रखें, वासना इतनी प्रबल होती है कि मनुस्मृतिमें कहा गया है :
मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् ।
बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ।।
अर्थात, पुरुषको अपनी मां, बहन या पुत्रीके साथ एक ही बिछावनपर सोना, या बैठना नहीं चाहिए; क्योंकि इन्द्रियोंका आकर्षण इतना अधिक प्रबल होता है कि कोई विद्वान व्यक्ति भी उसके आवेगमें बह जाये |
वासनाको नियंत्रित करने हेतु उपायके रूपमें क्या कर सकते हैं, वह देखेंगे:
१. स्वस्थ शरीरसे ही स्वस्थ मनकी रचना होती है | अतः शारीरिक स्वास्थ्यपर ध्यान दें | नियमित व्यायाम, या योगासन करें |
२. थोड़े समयके लिए ही सही प्राणायाम करें; इसे अपनी नियमित दिनचर्यामें डालें |
३. प्रतिदिन कुछ समयके लिए किसी संत-लिखित वाणी, या ग्रन्थको पढेँ, संत लिखित वाणीमें निहित चैतन्यसे बुद्धि सात्त्विक होती है; जिससे हमारा विवेक जागृत होता है और योग्य और अयोग्यमें अंतर समझमें आता है | संतके चित्रको अपने कमरेमें लगाएं; इससे हमारी वासना देहकी शुद्धि होती है |
४. ‘बुरा न देखें और न सुनें’ | जैसे मैंने एक हमारे ज्येष्ठ साधकको देखा कि वे अंग्रेजी समाचार पत्रको लेते समय फ़िल्मी समाचारवाला पन्ना छोड़ जाया करते थे | मैंने उन्हें यह एक बार नहीं, अनेक बार करते हुए देखा; इससे मुझे उनके प्रति श्रद्धा और बढ़ गयी |
५. यदि संभव हो तो किसी साप्ताहिक सत्संगमें जाएं |
बुरे और वासनायुक्त विचार आते समय, गणेशजीसे या अपने गुरुसे आर्ततासे प्रार्थना करें, कि आपकी बुद्धिको शुद्ध करें और मनपर नियंत्रण बने रहने दें |
७. जहां तक हो सके, सफ़ेद या हलके रंगका वस्त्र पहनें |
८. यदि वासनाके विचार अत्यधिक आते हों, तो नमक पानीका उपाय करें |
९. आकाश तत्त्वका भी उपाय वासना देह और मनो देहकी शुद्धि करनेमें अति उपयुक्त सिद्ध होता है | एक कुर्सी, या आसन लेकर जब आकाश नीला हो, और धूप मध्यम हो, तब २० मिनटके लिए बैठ जाएं और आकाश तत्त्वसे इस प्रकार प्रार्थना करें; "हे आकाश तत्त्व ! आपके चैतन्यसे हमारे मनो देह और कारण देहकी शुद्धि हो, और हमारे मन एवं बुद्धिपर छाया काला आवरण नष्ट हो " |
१०. घरकी वास्त शुद्धि करें | इस विषयमें पूर्वके अंकमें जानकारी दी जा चुकी है |
११. अपने गुरु-मंत्रका, या ''श्री गुरुदेव दत्त'' का कमसे कम तीन घंटे जप करें, दस मिनटसे जप आरम्भ कर धीरे-धीरे बढ़ाएं |
१२. स्वयं-सूचना दें | रात्रिमें सोनेसे पूर्व इस वाक्यको दस बार मन ही मनमें बोलें "जब-जब मेरे मनमें वासनाके विचार आयेंगे, तब तब मैं सतर्क हो जाऊंगा और नामजप करनेका प्रयास कर, मनको योग्य दिशा दूंगा, "यह स्वयं सूचना एक महीने तक दें |
१३. अपने कार्यालयमें भी अपने आराध्यका चित्र, यदि संभव हो, तो रखें; अन्यथा उनके लघु चित्र निकाल कर मेजपर रखें और बीच-बीचमें प्रार्थना और नामजप करें | ध्यानमें रखें वासनाको नियंत्रित करना सबसे कठिन है; और अद्वैत साध्य होनेपर ही, यह पूर्ण नियंत्रित होता है | अतः अपने मन एवं बुद्धिको सात्त्विक करनेका प्रयास करें |
१४. बाहरका भोजन जहां तक संभव हो कम से कम करें !
१५. तामसिक फिल्मी गाने एवं अश्लील फिल्में न देखें, साथ ही अश्लील साहित्य न पढ़ें |
१६. रात्रि ग्यारह बजेके पश्चात न जगें |
१७. किसी भी प्रकारके व्यसनसे बचें; यदि आपके मित्र व्यसनी हों, तो उनका त्याग करें; या उनके साथ उठना-बैठना कम कर दें |
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