Tuesday, 24 September 2013

अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने —

  • अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने —

    दो पक्ष – कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष !
    तीन ऋण – देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषि त्रण !

    चार युग – सतयुग , त्रेता युग , द्वापरयुग एवं कलयुग !

    चार धाम – द्वारिका , बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम !
    चारपीठ – शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम), गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं श्रन्गेरिपीठ !

    चर वेद- ऋग्वेद , अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद !
    चार आश्रम – ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , बानप्रस्थ एवं संन्यास !
    चार अंतःकरण – मन , बुद्धि , चित्त , एवं अहंकार !

    पञ्च गव्य – गाय का घी, दूध, दही, गोमूत्र एवं गोबर, !
    पञ्च देव – गणेश , विष्णु , शिव , देवी और सूर्य !
    पंच तत्त्व – प्रथ्वी , जल , अग्नि , वायु एवं आकाश !

    छह दर्शन – वैशेषिक, न्याय, सांख्य, योग, पूर्व मिसांसा एवं उत्तर मिसांसा !

    सप्त ऋषि – विश्वामित्र, जमदाग्नि, भरद्वाज, गौतम, अत्री, वशिष्ठ और कश्यप !
    सप्त पूरी – अयोध्या पूरी , मथुरा पूरी , माया पूरी ( हरिद्वार ) , कशी , कांची ( शिन कांची – विष्णु कांची ) , अवंतिका और द्वारिका पूरी !

    आठ योग – यम, नियम, आसन, प्राणायाम , प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधी !

    आठ लक्ष्मी – आग्घ , विद्या , सौभाग्य , अमृत , काम , सत्य , भोग , एवं योग लक्ष्मी !

    नव दुर्गा – शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री !

    दस दिशाएं – पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, इशान, नेत्रत्य, वायव्य आग्नेय,आकाश एवं पाताल !

    मुख्या दस अवतार – मत्स्य, कच्छप, बराह, नरसिंह, बामन, परशुराम, श्री राम, कृष्ण, बलराम एवं कल्कि !

    ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र पाशुपत, आग्नेय अस्त्र, पर्जन्य अस्त्र, पन्नग अस्त्र या सर्प अस्त्र,गरुड़ अस्त्र, शक्ति अस्त्र, फरसा, गदा एवं चक्र l

    ग्यारह कौमार ऋषि – सनक, सनन्दन, सनातन और सनत कुमार, मरीचि, अत्री, अंगीरा, पुलह, क्रतु, पुलस्त्य एवं वशिष्ठ l

    बारह मास – चेत्र, वैशाख, ज्येष्ठ,अषाड़, श्रावन, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष. पौष, माघ एवं फागुन !

    बारह राशी – मेष, ब्रषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, तुला, ब्रश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, कन्या एवं मीन !

    बारह ज्योतिर्लिंग – सोमनाथ, मल्लिकर्जुना, महाकाल, ओमकालेश्वर, बैजनाथ, रामेश्वरम, विश्वनाथ, त्रियम्वाकेश्वर, केदारनाथ, घुष्नेश्वर, भीमाशंकर एवं नागेश्वर !

    बारह विश्व की प्रारम्भिक जातियां – देवऋषि, देवता, गन्धर्व, किन्नर, रूद्र, खस, नाग, गरुड व अरुण, दानव, दैत्य, असुर एवं वसु l

    चौदह मनु – स्वायंभुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, अर्क सावर्णि, दक्ष सावर्णि, ब्रह्म सावर्णि, धर्म सावर्णि, रुद्र सावर्णि, रौच्य एवं भौत्य।

    पंद्रह तिथियाँ – प्रतिपदा, द्वतीय, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावश्या !

    स्म्रतियां – मनु, विष्णु, अत्री, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगीरा, यम, आपस्तम्ब, सर्वत, कात्यायन, ब्रहस्पति, पराशर, व्यास, शांख्य, लिखित, दक्ष, शातातप, वशिष्ठ !
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  • Maharaj: Can you sit on the floor? Do you need a pillow? Have you any questions to ask? Not that you need to ask, you can as well be quiet. To be, just be, is important. You need not ask anything, nor do anything. Such apparently lazy way of spending time is highly regarded in India. It means
    that for the time being you are free from the obsession with 'what next'. When you Are not in a hurry and the mind is free from anxieties, it becomes quiet and in the silence something may be heard which is ordinarily too fine and subtle for perception. The mind must be open and quiet to see. What
    we are trying to do here is to bring our minds into the right state for understanding what is real.

    Questioner: How do we learn to cut out worries?

    M: You need not worry about your worries. Just be. Do not try to be quiet; do not make 'being quiet'
    into a task to be performed. Don't be restless about 'being quiet', miserable about 'being happy'.
    Just be aware that you are and remain aware -- don't say: 'yes, I am; what next?' There is no 'next'
    in 'I am'. It is a timeless state.

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