Saturday, 16 March 2013

कलियुगकी सर्वोत्तम साधना -

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कलियुगकी सर्वोत्तम साधना -
नाम संकीर्तन योग कलिकालमें साधारण व्यक्तिकी सात्त्विकता निम्न स्तरपर पहुंच गयी है | ऐसेमें वेद उपनिषद्के गूढ़ भावार्थको समझना क्लिष्ट हो गया है | अतः ज्ञानयोगकी साधना कठिन है | वर्त…मान समयमें लोगोंके पास पूजा करनेके लिए दस मिनट भी समय नहीं होता तो अनेक वर्षों तक विधिपूर्वक ध्यान योगकी साधना कहां संभव है ? उसी प्रकार कर्मकांड अंतर्गत यज्ञयाग करना भी वर्तमान समयमें कठिन हो जाता है क्योंकि यज्ञयागके लिए सात्त्विक सामग्री एवं सात्त्विक पुरोहितका होना अति आवश्यक है साथ ही यज्ञयागके लिए कर्मकांडके कठोर नियमोंका पालन करना भी सरल नहीं | अतः कलियुगके लिए सबसे सरल मार्ग है भक्ति योग और उसके अंतर्गत नामसंकीर्तनयोग सबसे सहज और सरल साधना मार्ग है | अब हम नामसंकीर्तनयोगका महत्त्वके विषयमें देखेंगे |
मनुस्मृतिमें कहा गया है ये पाकयज्ञाश्चत्वारो विधियज्ञसमन्विता: । सर्वे ते जपयज्ञस्य कलां नार्हन्तिषोडशीम् ।। (मनुस्मृति २.८६) अर्थात गृहस्थद्वारा जो चार महायज्ञ ( वैश्वेदेव , बलिकर्म , नित्य श्राद्ध एवं अतिथि भोजन ) प्रतिदिन किये जाते हैं, जपयज्ञका फल इस सब कृतियोंके फलसे कई गुना अधिक होता है | नामजपमें जप शब्दकी व्युत्पत्ति ‘ज’ जोड़ ‘प’ से हुई है जप शब्दका अर्थ है ‘जकारो जन विच्छेदकः पकारो पाप नाशक: | अर्थात जो हमें जन्म और मृत्युके चक्रसे निकाल कर हमारे पापोंका नाश करता हैं उसे उसे जप कहते हैं |
साधनाकी अखंडता नामजपसे ही संभव है | यदि हमें उस अनंत परमेश्वरसे एकरूप होना है तो हमें अखंड साधना करनी होगी और ज्ञान योगके अनुसार ग्रथोंका अखंड पठन करना या ध्यानयोगके अनुसार अखंड ध्यान लगाना या त्राटक या प्राणायाम करना या भक्तियोग अनुसार अखंड भजन करना, पूजा करना, तीर्थ करना, या कीर्तन प्रवचन सुनना यह भी २४ घंटे संभव नहीं | साथ ही गृहस्थके लिए घर-द्वार, बाल-बच्चे, नौकरी-चाकरी सब संभालते हुए साधनामें अखंडता बनाये रखनेका सबसे अच्छा साधन है नामजप करना | कुछ व्यक्तिको यह भ्रान्ति होती है कि आसन और प्राणायामके माध्यमसे हम आध्यात्मिक प्रगति कर सकते हैं | यह अपने आपमें एक त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण है | आसन और प्राणायाम हमारी आध्यात्मिक प्रगति करवानेकी क्षमता नहीं रखते | वे मात्र हमारी स्थूल देह एवम प्राण देहकी कुछ सीमा तक शुद्धि कर सकते हैं | इन देहोंकी शुद्धि अन्य साधना मार्गसे भी संभव है | अतः आध्यात्मिक प्रगतिमें आसन एवं प्राणायामको विशेष महत्व नहीं दिया जाता है | इसका एक उदहारण देती हूं |
झारखंडके गोड्डा जिलेमें एक परिवार एक योगासन सिखानेवाले गुरुके मार्गदर्शनमें अनेक वर्षोंसे आसन एवं प्राणायाम करते हैं और अन्योंको भी सिखाते हैं परन्तु उस परिवारके सभी सदस्योंको अनके शारीरिक एवं मानसिक कष्ट है क्योंकि उस परिवारके पितर अत्यंत अशांत है और घरमें कुलदेवीका प्रकोप भी है क्योंकि योगिक क्रियासे शरीरकी शुद्धि तो हो सकती है पितरोंको गति नहीं मिल सकती और न ही कुलदेवता प्रसन्न हो सकते हैं | इन सब कष्टोंके निवारण हेतु योग्य साधना ही करनी पड़ती है और जबसे उस परिवारने योग्य प्रकारसे साधना करने आरम्भ किये है उनके कष्टका प्रमाण कम हो गया है | आसन और प्राणायाम उन व्यक्तियोंके लिए योग्य है जो और किसी मार्गसे साधना नहीं कर पा रहे हों | आसन और प्राणायामके माध्यमसे मात्र शरीरकी शुद्धि होती है और शारीरिक क्षमता बढ़नेके कारण प्रारब्धकी तीव्रता भोगनेकी शक्ति मिलती है |
किसी भी योगमार्गसे साधना करनेपर स्थूल देह एवं प्राण देहका अधिकाधिक २०% से ३०% तक ही शुद्धि होती है और स्वर्ग एवं उसके आगेके लोक अर्थात महा, जन, तप या सत्य लोक तकके आध्यात्मिक प्रवास हेतु सभी देहोंकी पूर्ण शुद्धि परम आवश्यक है और नामजपसे हमारे चारो देह अर्थात स्थूल देह, मनो देह अर्थात मन, कारण देह अर्थात बुद्धि तथा महाकारण देह अर्थात अहंकी पूर्ण शुद्धि संभव है | यह नामसंकिर्तनयोगका महत्व है |
The best Sadhana  in Kaliyug (Age of Kali)  – Namsankirtanyog (chanting the Almighty’s name ) In the age of Kali, the Sattvikta(purity levels) of the ordinary people have hit the rock bottom and understanding the profound gist of Vedas and Upanishads has become extremely difficult. Thus, Sadhana of Dnyanayog (Path of knowledge) has also become difficult.  At present, people do not even have time to perform Puja (ritualistic worship) for 10 minutes.
Hence, performing Dhyanyog(meditation) and concentrating for years altogether too is not possible.  Similarly, performing the rites and rituals according to Karm Kaand (the ritualistic procedures laid down in the scriptures) also have become difficult during the present times, since procuring satttvik(spiritually pure) material  is alos a problem and a  Purohit(priest) who is sattvik and well versed in scriptures is extremely important for performing such rites and rituals. Besides, it is also not easy to follow the stringent rules laid down for Karm Kaand.
Hence, the easiest path in Kaliyug is Bhakti Marg (the path of devotion), and under it, is Namsankirtanyog (Path of chanting the Lord’s name). This is the most simple and easy path of Sadhana in the present time. Now, we will take a look at the importance of Namsankirtanyog: It has been said in Manusmriti: ये पाकयज्ञाश्चत्वारो विधियज्ञसमन्विता: । सर्वे ते जपयज्ञस्य कलां नार्हन्तिषोडशीम् ।। -(मनुस्मृति २.८६) Ye pakayagnaaashchtvaro vidhiyagyasamanvitah Sarve te japaygyasy kalaam naarhantishodasheem – (Manusmriti, 2.86) Meaning : The four ritualistic sacrifices [namely Vaishvadev, Balikarma, Nityashraddha and offering food to guests (Atithibhojan)] do not match even the 16th grade of the sacrificial fire of chanting (japayadnya) •
The word Jap in Naamjap (chanting) originates from ‘Ja´+ ‘Pa’.  The word Jap has been described as ‘जकारो जन विच्छेदकः पकारो पाप नाशक: ‘Jakaro jan vicchedakah pakaro paap naashakah’ meaning That which liberates us from the cycle of birth and death, and destroys our sins is called Jap.  • Continuity in Sadhana is possible only with Naamjap(chanting). If we desire unison with the eternal Supreme Being, we will have to do continuous Sadhana; like read the scriptures continuously (according to Gnan Yog); or sit in continuous mediation; do ‘Traatak’ or Pranayam ; or sing Bhajans (devotional hymns) non-stop; undertake pilgrimages; or listen to Kirtans (devotional songs) or discourses continuously. But it is not possible to do these things  twenty four hours of the day
.   Besides, for a householder, looking after home, children, job and  balancing all this  then doing Sadhana at the same time is very difficult. Hence, the best method to maintain continuity in Sadhana  is chanting.  Some people have a misunderstanding that we can make spiritual progress through Aasans (Yogic postures) and Pranayam(breathing exercises).  This in itself is an erroneous perception.   Aasans and Pranayam do not have the ability to ensure our spiritual progress.  They can only purify to some extent our gross body and Pran Deh (vital energy body) .These bodies can be purified through other means also.  Hence, Aasans and Pranayam have not been given much importance in spiritual progress.
I will cite an example.   In Godda district of Jharkhand, a family have been doing Aasans and Pranayam under the guidance of a Yoga Master and also teaches the same to others. But all members of this family suffer from physical and mental troubles because their ancestors are extremely unsatiated and they also face the wrath of Kuldevi (family deity). Yogic Kriyas (some physical  techniques as per deliberate rigour or hathyog ) can purify the body, but cannot grant Gati (momentum after life) to the ancestors; nor can the family deities be appeased. For resolving all these troubles, appropriate Sadhana (spiritual practice) had to be done.
Ever since this family started appropriate Sadhana , the severity of their problems has been  decreasing. Aasans and Pranayam are apt for those who are not able to do Sadhana through any other means.  Aasans and Pranayam merely purify the body, and by enhancing the physical capacity, one gets the power to endure Prarabdh (destiny). By doing Sadhana through any other Yogmarg (path of spiritual practice), the physical body and Pran Deh can be purified only by 20% to 30%. But to be able to proceed to heaven and the regions beyond it such as Maha, Jan, Tap, or Satya Lok, the purification of all the bodies is absolutely necessary.
Through chanting, complete purification of all the  four bodies ie. gross body, mind, intellect and ego is possible. This is the importance of Namsankirtanyog.  courtesy : www.tanujathaku.com

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