Saturday, 16 March 2013

प्रार्थना: - courtesy : www.tanujathakur.com

प्रार्थना:



प्रार्थना:

भक्तियोग अनुसार साधना करनेवाले सभी साधकके लिए प्रार्थनाका विशेष महत्त्व होता है | प्रार्थना ईश्वरके साथ जुडनेका एक सरल और सहज साधन है | जब हम प्रकर्षताके साथ ईश्वरसे कुछ विनती करते हैं उसे प्रार्…थना कहते हैं |
प्रार्थनाको यदि सरल शब्दोंमें उल्लेख करें तो यह ईश्वरसे बातचीत करनेका एक सूक्ष्म माध्यम है |

प्रार्थनाके भी दो प्रकार होते हैं – सकाम प्रार्थना और निष्काम प्रार्थना
सकाम प्रार्थना अर्थात जब कोई व्यक्ति अपनी किसी विशेष इच्छा पूर्ति हेतु ईश्वर या अपने इष्टदेवतासे निवेदन करता है उसे सकाम प्रार्थना कहते हैं | सकाम प्रार्थनासे आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती, इसके विपरीत उस इच्छाको पूर्ण करनेमें हमारी साधना खर्च हो जाती है|
निष्काम प्रार्थना अर्थात जब कोई साधक अपनी साधनामें आनेवाली अडचनको दूर करने हेतु, या अनिष्ट शक्तिसे रक्षण हेतु या मात्र ईश्वरीय कृपा पाने हेतु प्रार्थना करता है उसे निष्काम प्रार्थना कहते हैं | ऐसी प्रार्थनासे हामरी आध्यात्मिक प्रगति होती है | राष्ट्र एवं धर्म रक्षण हेतु भी की गयी प्रार्थना निष्काम प्रार्थनाकी श्रेणीमें आती है क्योंकि इसमे ‘बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय’ की भावना होती है |

सगुण और निर्गुण प्रार्थना
प्रार्थनाके भी सगुण और निर्गुण स्तर होते हैं | जब प्रार्थना शब्दके माध्यमसे हो उसे सगुण प्रार्थना कहते हैं और प्रार्थनामें मात्र शरणागति और कृतज्ञताका भाव हो और वह निःशब्द हो उसे निर्गुण प्रार्थना कहते हैं | साधारणतया संतोंकी प्रार्थना निर्गुण स्तरकी होती है |
दूसरोंके लिए प्रार्थना कब करना चाहिए ?

जब हम किसी व्यक्तिके कष्ट दूर करने हेतु प्रार्थना करते हैं तो यदि हमारा आध्यात्मिक स्तर ६०% से कम हो तो हमारी साधना द्रुत गतिसे व्यय होती है क्योंकि क्षमता न होते हुए भी हम या तो उस व्यक्तिके प्रारब्धमें हस्तक्षेप कर रहे होते हैं या उस व्यक्तिको कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्तिसे बचानेका प्रयत्न कर रहे होते हैं, दोनों ही स्थितिमें हमारी साधना खर्च हो जाती है |  अतः अध्यात्मिक क्षमता न होते हुए भावनामें बहकर दूसरोंके लिए प्रार्थना करना अयोग्य है | इसके विपरीत आध्यात्मिक क्षमता बढाकर हम मात्र अपनी संकल्प शक्तिसे अनेकका कल्याण कर सकते हैं ! हमारे ऋषि, मुनि और संतोंने ऐसे अनेक प्रार्थनाएं लिखी हैं जिसे हम स्त्रोत्र कहते हैं उसमें उनके संकल्प समाहित होनेके कारण वे चिरंतन फलदायी होते हैं |
प्रार्थनाका यशस्वी होना प्रार्थना करनेवालेके भावपर निर्भर करता है |


प्रार्थना सूक्ष्म युद्धका एक प्रभावी माध्यम है |
वर्तमान समयमें जब अनिष्ट शक्तिका कष्ट अपने चरमपर है, ऐसे कष्टोंके निवारण हेतु प्रार्थना साधनाका एक उत्तम माध्यम है | यदि नामजप न हो तो मात्र प्रार्थना करना चाहिए | अनिष्ट शक्तिसे सूक्ष्म युद्ध करनेका एक सरल उपाय प्रार्थना और नामजप है |
प्रार्थनाको दिनचर्याका अविभाज्य अंग बनाएं
प्रार्थना अधिकसे अधिक करना चाहिए, अर्थात प्रत्येक कृति यदि प्रार्थनासे आरंभ हो और कृतज्ञतासे समाप्त हो तो समझ लें कि हमारी सम्पूर्ण दिनचर्या यज्ञकर्म बन गयी जिसमें सारे कर्मफल जलकर भस्म हो जाते हैं | प्रार्थना करते समय एक आराध्यका ध्यान करें जिससे एकाग्रता और भाव दोनोंमें वृद्धि शीघ्र हो सके |
प्रार्थना हम कभी भी, कहीं भी, किसी भी स्थानपर, किसी भी भाषामें कर सकते हैं |

Prayer:
Prayers carry a special significance for all the seekers doing Sadhana, according to Bhaktiyoga (Path of devotion).
Prayer is a simple way of connecting with God.  When we make an intense plea to God, it is known as prayer.
If prayer be talked of in simple terms, it is a subtle medium of communicating with God.
Prayers too are of two types – Sakaam Prarthna (prayer with expectations) and Nishkaam Prarthna (prayer without expectations).
Sakaam Prarthna means when a person makes a prayer with a view to fulfil a particular desire, or when a person makes a request to one’s isht dev (benevolent deity).
Sakaam Prarthna does not lead to spiritual progress. On the contrary, we spend our Sadhana or spiritual energy in fulfilling a particular desire.
Nishkaam Prarthna means when a seeker prays for removal of obstacles, or protection from negative energies, or merely to receive divine grace. Such a prayer is known as Nishkaam Prarthna and leads to our spiritual progress.  A prayer made for the nation, or protection of Dharma too falls under the category of Nishkaam Prarthna, for it contains the sentiment of Bahujan Hitaay, Bahujan Sukhaay (benefit and happiness of the multitude).
Sagun (manifest)  and Nirgun (unmanifest ) Prarthna
Prayers too have levels of Sagun and Nirgun.  When a prayer is made using words as a medium, it is known as Saguna prarthana while the wordless prayer which just has the feeling of gratitude and complete surrender is known as Nirguna Prarthna .  Normally, the prayers of saints are of a Nirguna level.
When should one pray for others?
When we pray for the removal of problems of another person, we lose our Sadhana at a rapid pace if we are below 60% level because we are interfering in the other person’s Prarabdh (destiny) without possessing the ability, or are trying to make to an effort to protect that person from problems caused by negative energies. In both cases, we tend to spend our Sadhana.  Hence, it is improper to get swayed by emotions and pray for others despite not possessing the qualified spiritual capability. On the contrary, by enhancing our spiritual capability, we can do the welfare of others merely through our power of resolve. Our sages, hermits and saints have written several such prayers which we call Stotras, which inherently contain the power of their resolve. For this reason, we are eternally grateful to them.
The success of a prayer depends upon the Bhav (spiritual emotion) of the person and the spiritual level of the person who is praying.

Prayers are a powerful medium in subtle war
During the present times, when the problems caused by negative energies are at their pinnacle, prayers are the perfect medium of doing Sadhana and for resolving such problems.  If one cannot do chanting, one must pray.  A simple remedy  to fght with the negative energies is just praying and chanting.
Make prayers an integral part of daily life
Pray as much as you can. If every of our action starts with a prayer and ends with gratitude, you can consider that our entire daily routine has become a Yadnya Karma (spiritual deed), in which all the Karmaphal (fruits of the actions) will be burnt down. While praying, contemplate on  one deity, so that both your concentration and Bhav may increase rapidly. We can  pray anytime, anywhere, at any place and in any language.

Quote -

radhe_krissssshnaaaaa
आकाशात् पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम् | सर्वदेवनमस्कारान् केशवं प्रतिगच्छति || ||
Just as every drop of rain that falls from the sky flows into the Ocean, in the same way all prayers offered to any Deity goes to Lord Krishna (Bhagvan Vishn…u).
जिस प्रकार आकाश से गिरनेवाला वर्षा का प्रत्येक बूंद महासागर में समा जाता है उसी प्रकार किसी भी देवताको की गयी अराधना भगवान श्री कृष्ण तक पहुंच जाता है | आकाशात् = from the sky; पतितं = the fallen one; तोयं = water; यथा = in which manner; गच्छति = goes; सागरं = the ocean; सर्वदेवनमस्कारान् = the bowings for all the gods; केशवं = Keshava (Krishna); प्रतिगच्छति = reaches or returns;

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