साधना  की दृष्टिकोण देती कुछ प्रेरक कहानियां  भाग – 3
एक बार कबीरदास जी को लगने लगा की उनके पास साधक कम और सांसारिक इच्छा की पूर्ती करनेवाले लोग अधिक आने लगे हैं अतः  एक दिन उन्होंने सबके सामने एक वैश्या के घर चले गए | वहां  उपस्थति अधिकांश लोग कानाफूसी करने लगे और कहने लगे ” देखा, मैंने  तो पहले ही कहा था की ये ढोंगी हैं चलो अच्छा हुआ कि  उनकी कलाई खुल गयी ” और सब प्रवचन स्थल से चले गए  |
एक घंटे… पश्चात कबीर दस जी लौटे तो देखा की पूरा मैदान खली था और मात्र  पांच लोग वहां बैठे  थे ,  जैसे ही उन्होंने उन्हें देखा उनके चरण स्पर्श किये | कबीरदासजी बोले ” अरे तुमने देखा नहीं मैं अभी कहाँ गया था” !! वहां उपस्थित एक साधक ने कहा “महाराज, हम सब तो यह जानते हैं की उस वैश्य ने निश्चित ही कुछ पुण्य किये होंगे जो आपकी  चरण धूलि उसके आँगन तक पहुँच गयी , उसके तो भाग्य जग गए ” !!! कबीरदास जी मुस्कुराये और बोले बैठो ” भिखमंगो की भीड़ लग गयी थी इसलिए  उन्हें भगाने के लिए  यह सब नाटक करना पड़ा  और उन्होंने उन पांचो को ज्ञान दिए !!
संतों  की लीला का हम अपनी बुद्धि से कभी भी समीक्षा नहीं कर सकते हैं उनकी प्रत्येक लीला निराली होती