Tuesday, 29 January 2013

fake and real - in spirituality

na tv evaham jatu nasam 
                                                      na tvam neme janadhipah 
                                                      na caiva na bhavisyamah 
                                                      sarve vayam atah param

                                      

Young child wants to catch hold of the moon,

In giving mirror, mother hopes pacification to come soon.

 

But this isn’t the thing real,

Only fake control to feel.

 

Material world a reflection in the same way,

We feel like kings though temporary is our stay.

 

In service to the Supreme Lord our ideal seat,

Highest gain to have devotion to His lotus feet.
na tv evaham jatu nasam
na tvam neme janadhipah
na caiva na bhavisyamah
sarve vayam atah param
Young child wants to catch hold of the moon,
In giving mirror, mother hopes pacification to come soon.
But this isn’t the thing real,
Only fake control to feel.
Material world a reflection in the same way,
We feel like kings though temporary is our stay.
In service to the Supreme Lord our ideal seat,
Highest gain to have devotion to His lotus feet.
 
तेरी प्रीत ने हमको क्या न दिखाया,
बदनाम कर के जगत में हंसाया ,
खिची आई बेखुद न सोचा समझा
लबों से लगा बांसुरी जब बुलाया
अदाओं भरी टेढ़ी चितवन जो देखी
दिल-ओ-जान लुटा जब ज़रा मुस्कुराया
सुना भोली भली वो प्रीती की बातें
कहा चल दिए जाने क्या दिल मई आया
तेरी खोज में जिस्म -ओ-जान राह भूली
पत्ता पत्ता में ढूंडा पता कुछ न पाया
सब रिश्ते दिल-ओ-जान तेरे हाथ बेचे
बहुत कुछ गवाया न कुछ हाथ आया
मजा खूब ये श्याम वह तेरी उल्फत
न घर का रखा और न अपना बनाया

गोपाल सावरियां मेरे... नन्दलाल सावरिया मेरे
— with Vinay Gupta and 49 others.
 
 
शंकराचार्य हिमालयकी ओर यात्रा कर रहे थे । तब उनके साथ उनके सभी शिष्य थे । सामने अलकनंदा नदीका विस्तीर्ण पात्र था । किसी एक शिष्यने शंकराचार्यजीकी स्तुति करना प्रारंभ किया । उसने कहा, ‘‘आचार्य, आप कितने ज्ञानी हैं ! यह अलकनंदा सामनेसे बह रही है ना ! कितना पवित्र प्रवाह है ये ! इससे भी कितने गुना अधिक ज्ञान आपका है ! महासागरसमान !’’

उस समय शंकराचार्यजीने हाथका दंड पानीमें डुबाया, बाहर निकाला एवं शिष्यको दिखाया । ‘‘देख, कितना पानी आया ? एक बूंद आई उसपर ।'’ शंकराचार्य हंसकर बोले, ‘‘पागल, मुझे कितना ज्ञान है बताऊं ? अलकनंदाके पात्रमें जितना जल है ना, उसका केवल एक बिंदु दंडपर आया । पूरे ज्ञानमेंसे मेरा ज्ञान केवल उतना ही है । जब आदि शंकराचार्य ऐसा कहते है, तो आप-हम क्या है ?
शंकराचार्य हिमालयकी ओर यात्रा कर रहे थे । तब उनके साथ उनके सभी शिष्य थे । सामने अलकनंदा नदीका विस्तीर्ण पात्र था । किसी एक शिष्यने शंकराचार्यजीकी स्तुति करना प्रारंभ किया । उसने कहा, ‘‘आचार्य, आप कितने ज्ञानी हैं ! यह अलकनंदा सामनेसे बह रही है ना ! कितना पवित्र प्रवाह है ये ! इससे भी कितने गुना अधिक ज्ञान आपका है ! महासागरसमान !’’

उस समय शंकराचार्यजीने हाथका दंड पानीमें डुबाया, बाहर निकाला एवं शिष्यको दिखाया । ‘‘देख, कितना पानी आया ? एक बूंद आई उसपर ।'’ शंकराचार्य हंसकर बोले, ‘‘पागल, मुझे कितना ज्ञान है बताऊं ? अलकनंदाके पात्रमें जितना जल है ना, उसका केवल एक बिंदु दंडपर आया । पूरे ज्ञानमेंसे मेरा ज्ञान केवल उतना ही है । जब आदि शंकराचार्य ऐसा कहते है, तो आप-हम क्या है ?
 

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