Tuesday, 8 October 2013

सनातन धर्म एक ही धर्म

जीवन के सभी क्षेत्रों में दुख हैं ! (ऐसी परिस्तिथियों में )हम कैसे धर्म की ओर यात्रा प्रारम्भ करें ?

धर्म की ओर यात्रा का प्रारंभ न हो पाने का मुख्या कारण मनुष्य का दुखों से भागना है ! दुःख हैं ! यदि दुःख न होते तो धर्म की ओर यात्रा कर पाना मनुष्य के लिए संभव न होता !
दुखों के लिए परमात्मा को धन्यवाद देना होगा ! मनुष्य के सारे प्रयास दुखों के प्रति मूर्क्षित होने के लिए हैं ! मनोरंजन के सभी साधन खुद को विस्मृत करने के उपाये हैं !
आज का मनुष्य प्राचीन काल के मनुष्य से ज्यादा दुखी है !क्यों की आज का मनुष्य ज्यादा चालाक है ! मन अत्यधिक विकसित हो चूका है ! उसने धर्म को भी मनोरंजन का साधन बना लिया है !और जिसके कारण और गहरे विषाद में चला गया है ! धर्म कथाएँ ,कीर्तन मण्डलियाँ ,जगराथे, कथा वाचकों की भीड़ लग गई है ! इन सब से धर्म यात्रा का कोई भी सम्बन्ध नहीं हैं ! हाँ इनके कारण हम धर्म के मार्ग पर चल रहे, ऐसा धोखा जरुर होता है ! लोगों को सांत्वना चाहिए ! सांत्वना अस्थाई होती है ! उससे मिला संतोष बहुत देर नहीं टिकता !
"हम कैसे धर्म की ओर यात्रा प्रारम्भ करें"?
दुखों के प्रति जाग कर ,दुखों के प्रति बोध पूर्ण हो कर ही दुखों की वास्तविकता का ज्ञान होता है !
संसारी तो कुछ भी दुखी नहीं ! जरा सन्नियासी की ओर देखो ! संन्यास का तो मतलब ही है दुखों को निमंत्रण देना ! संन्यास का तो मतलब ही है दुखों का अतिक्रमण कर देना ! संनियास का तो मतलब ही है आग में नर्तन करना ! संसारी का मतलब है ! दुखों से भागना ,संनियासी का मतलब है दुखों में जागना !
"धर्म का मतलब है चैतन्य ,हॊश और हॊश का प्रथम मिलन दुखों से ही होता है ! और अंतिम मिलन परमात्मा से ! परमानंद से" !

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