वेद एवं मन्त्रोंका उच्चारण सही होना आवश्यक है Tanuja Thakur
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वेद एवं मन्त्रोंका उच्चारण सही होना आवश्यक है, अन्यथा हमें उनके अशुद्ध
उच्चारणसे हमें कष्ट होता है, मात्र नामजप हम किसी भी प्रकार कर सकते हैं,
ऐसा क्यों ?
पाणिनीय व्याकरणमें कहा गया है :
अनक्षरं हतायुष्यं विस्वरं व्याधिपीडितम् ।
अक्षता शस्त्रषरूपेण वज्रं पतति मस्तके ।।
अर्थात व्यंजन वर्णके अशुद्ध उच्चारणसे आयुका नाश होता है और स्वर वर्णके
अशुद्ध उच्चारणसे रोग होते हैं, अशुद्ध उच्चारणसे युक्त मंत्रद्वारा
अभिमंत्रित अक्षत सिरपर वज्रपात सामान गिरता है |
परन्तु नामजपके सन्दर्भमें पञ्चरत्रगम नामक धर्म शास्त्रमें कुछ इस प्रकार कहा गया है
मूर्खो वदति विष्णाय बुधो वदति विष्णवे |
नं इत्येव अर्थम् च द्वयोरपि समं फलं ||
अर्थात मूर्ख व्यक्ति अयोग्य उच्चारणकर, विष्णाय नमः कहता है और बुद्धिमान
व्यक्ति विष्णवे नमः कहता है, परन्तु दोनोंका हेतु नमन करना है | अतः
दोनोंको समान फल मिलता है |
देसी भाषामें इसलिए कहा गया है ‘रामनाम टेढो भला’ |
इस सन्दर्भमें एक अनुभूति बताती हूँ | अक्टूबर १९९९ में झारखण्डके बोकारो
जिलेमें एक मंदिरमें साप्ताहिक सत्संग लिया करती थी | एक दिन मैं कहीं जा
रही थी, एक अनपढ़ स्त्री राहमें मेरी दो पहिये वाहनको रोक कर, अत्यंत
भावपूर्ण होकर बोलीं, "मैं आपको कुछ बताना चाहती हूँ" |
मैंने कहा,
"क्या" ? उसने बताया कि तीन महीने पहले एक दिन मंदिरके बाहर वह किसीके घरके
बर्तन नल पर धो रही थी और उसने नामजपके विषयमें मुझे सत्संग लेते हुए
ध्वनिप्रक्षेपकके (माइक) माध्यमसे सुना था | उसने अपने हाथ पैरकी ओर दिखाते
हुए कहा, "चर्मरोगसे मेरा शरीर लगभग सड़ गया था और आपके बताये जप करनेपर
मेरा चर्म रोग ठीक हो गया" | उसके शरीरपर चर्मरोगके हलके धब्बे, निशानके
रूपमें दिख रहे थे | मुझे यह सुनकर अत्यंत आनंद हुआ, क्योंकि मैं उससे कभी
मिली भी नहीं थी और तब भी वह नामजप कर रही थी | मैंने यूँ ही पुछा, "आप
कौनसा जप कर रही हैं" ? उसने कहा, "श्री गुरुदेवे दत्ते नमः” |
! मैं
मुस्कराने लगी तो उसने कहा "क्या मुझसे कोई चूक हो गयी" ? मैंने कहा,
"हां, नामजप सही पद्धतिसे नहीं कर रही और मैंने उन्हें ‘श्री गुरुदेव दत्त’
जप करनेके लिए बताया और उसी समय उसे पांच बार दोहरानेके लिए भी कहा | उसने
आनंद पूर्वक अपने जपमें सुधारकर, मुझे कृतज्ञतापूर्ण नमस्कार कर चली गयी |
मैं वहीँ खड़ी, उपर्युक्त श्लोकका स्मरण कर मुस्कुराने लगी | वह स्त्री
अनपढ़ थी | अतः वह जप सही प्रकारसे नहीं कर पाई; परन्तु हेतु शुद्ध था | अतः
उसे अनुभूति हुई |
उस स्त्रीको अतृप्त पितरोंके कारण कष्ट था और उसी
कारण उसे चर्मरोग हो गया था, 'श्री गुरुदेव दत्त', अर्थात दत्तात्रेय
देवताका जप करनेसे उसके पितरोंको गति मिल गयी और उसका कष्ट समाप्त हो गया |
यद्यपि उसने जपको सही पद्धतिसे नहीं जपा तथापि उसके भावके कारण उसे योग्य
लाभ प्राप्त हुआ | अतः कहते हैं, ‘न पाप मारक है, न पुण्य तारक है, मात्र
भाव ही तारक है’ |
The correct pronunciation of Vedas and
Mantras is essential as the incorrect pronunciation can cause serious
troubles for us. But Naamjap (chanting of God’s name) can be done in any
manner. Why is it so?
Panini’s grammar says:
अनक्षरं हतायुष्यं विस्वरं व्यांधिपीडितम् ।
अक्षता शस्त्रषरूपेण वज्रं पतति मस्तके ।।
“anaksharaM hatayushyaM viswaraM vyaadhipeeditaM
akshataa shastrashrupen vajraM patati mastake”
It means incorrect pronunciation of consonants destroys age and faulty
pronunciation of vowels causes diseases. If the Akshat (unbroken rice )
is energised with faulty pronunciation of mantras and offered on
someone’s head, it falls as a thunderbolt.
However, in the context of Naamjap, it has been mentioned in a scripture titled Panchratragam thus:
मूर्खो वदति विष्णाय बुधो वदति विष्णवे |
नं इत्येव अर्थम् च द्वयोरपि समं फलं ||
“murkho vadati vishnaaya buddho vadati vishnave
naM ityeva arthaM cha dwayorapi samaM phalaM”
It means that through an ignorant fool wrongly pronounces the Lord’s
name as Vishnaaya Namah instead of the correct Vishnave Namah as
pronounced by the literate Seeker, yet both get the same result as the
motive of both is to venerate.
That is why there is a saying
Ram naam tedho bhala, meaning Lord’s name can give bliss even if it is
pronounced in an incorrect manner.
I will narrate a spiritual
experience in this context. It was October 1999. I used to conduct
weekly Satsang (discourses) in a temple in Bokaro district of Jharkhand.
One day, an illiterate woman stopped me when I was going out and in a
highly emotional tone, said that about three months ago while cleaning
utensils at someone’s house located next to the temple, she had heard my
discourse on chanting. Pointing towards her body, she said, “Due to
some skin disease, my entire body had almost become rotten, but the
chanting prescribed by you cured my disease.” Her body still bore faint
marks. I felt very happy upon hearing this. I had never met her, and yet
she had been chanting. I casually asked her, “What have you been
chanting?” She replied, “Guru Deve Datte Namah.”
Seeing me break
into a smile, she asked, “Why? Have I made a mistake?” I told her, “Yes,
you are not doing the chanting correctly,” and asked her to chant
“Shree Guru Dev Dutt” instead. Then I made her repeat it five times.
Blissfully, she corrected her chanting, greeted me and left. I stood
there smiling as I recollected the above-mentioned Shloka (Sanskrut
couplet). The woman was illiterate. Hence, she could not pick or do the
chant correctly, but since her objective was pure and she had faith, she
got the desired positive experience.
This woman had been troubled by Pitru Dosh (problems due to unsatiated ancestral souls) and had got eczema as a result.
By chanting “Shree Guru Dev Dutt”, ie. Lord Dattatreya’s chant, her
ancestors got their Gati (onward movement of the embodied soul after
life) and her troubles vanished. Although she did not do chanting the
correct way, yet through her Bhav (spiritual emotion) she achieved the
desired result. Hence, it is said, “Neither can sins ruin us, nor can
merits alleviate us. Only Bhav (spiritual emotion) can provide us
salvation.”
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