Friday, 15 March 2013

Krishna and Bhagavad Gita

Does Krishna offers the opportunity to engage in His devotional service to all? Whose mercy is the must for attaining the devotional service?

Srila Prabhupada writes in NECTAR OF DEVOTION:

In the preliminary phase of spiritual life there are different kinds of austerities, penances and similar processes for attaining self-realization.

However, even if an executor of these processes is without any material desire, he still cannot achieve devotional service. And aspiring by oneself alone to achieve devotional service is also not very hopeful, because Krsna does not agree to award devotional service to merely anyone. Krsna can easily offer a
person material happiness or even liberation, but He does not agree very easily to award a person engagement in His devotional service.

Devotional service can in fact be attained only through the mercy of a pure devotee. In the Caitanya caritamrta (Madhya 19.151) it is said, "By the mercy of the spiritual master who is a pure devotee and by the mercy of Krsna one can achieve the platform of devotional service. There is no other way."
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मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥
राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो। निज दिसि देखि दयानिधि पोसो॥

भावार्थ:-वे (श्री रामजी) मेरी (बिगड़ी) सब तरह से सुधार लेंगे, जिनकी कृपा कृपा करने से नहीं अघाती। राम से उत्तम स्वामी और मुझ सरीखा बुरा सेवक! इतने पर भी उन दयानिधि ने अपनी ओर देखकर मेरा पालन किया है॥


  • आगे गाय पाछें गाय इत गाय उत गाय,
    गोविंद को गायन में बसबोइ भावे।
    गायन के संग धावें, गायन में सचु पावें,
    गायन की खुर रज अंग लपटावे॥
    गायन सो ब्रज छायो, बैकुंठ बिसरायो,
    गायन के हेत गिरि कर ले उठावे।
    'छीतस्वामी' गिरिधारी, विट्ठलेश वपुधारी,
    ग्वारिया को भेष धरें गायन में आवे॥
    आगे गाय पाछें गाय इत गाय उत गाय,
 गोविंद को गायन में बसबोइ भावे।
 गायन के संग धावें, गायन में सचु पावें,
 गायन की खुर रज अंग लपटावे॥
 गायन सो ब्रज छायो, बैकुंठ बिसरायो,
 गायन के हेत गिरि कर ले उठावे।
 'छीतस्वामी' गिरिधारी, विट्ठलेश वपुधारी,
 ग्वारिया को भेष धरें गायन में आवे॥

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    ...Krishna Conscious Day To awl Devotees.... Hare Krshna _/\_
    K.G
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लोकहुँ बेद सुसाहिब रीती। बिनय सुनत पहिचानत प्रीती॥
गनी गरीब ग्राम नर नागर। पंडित मूढ़ मलीन उजागर॥

भावार्थ:-लोक और वेद में भी अच्छे स्वामी की यही रीति प्रसिद्ध है कि वह विनय सुनते ही प्रेम को पहचान लेता है। अमीर-गरीब, गँवार-नगर निवासी, पण्डित-मूर्ख, बदनाम-यशस्वी॥
लोकहुँ बेद सुसाहिब रीती। बिनय सुनत पहिचानत प्रीती॥
गनी गरीब ग्राम नर नागर। पंडित मूढ़ मलीन उजागर॥

भावार्थ:-लोक और वेद में भी अच्छे स्वामी की यही रीति प्रसिद्ध है कि वह विनय सुनते ही प्रेम को पहचान लेता है। अमीर-गरीब, गँवार-नगर निवासी, पण्डित-मूर्ख, बदनाम-यशस्वी॥

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