Thursday, 14 March 2013

सत्संग का महत्त्व

Tanuja Thakur shared a photo.
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सत्संग का महत्त्व
श्रवण भक्तिके माध्यमसे अध्यात्ममें प्रगति करनेमें बहुत समय लग जाता है | यदि अध्यात्ममें शीघ्र प्रगति करनी है, तो सत्संगमें बताये जानेवाले विषयको कृतिमें लाकर आत्मसात करनेका प्रयास करना चाहिए | अतः जब भी हम सत्संगमें जाते
हैं तो एक कॉपी और कलम अवश्य लेकर जाना चाहिए, जिससे कि सत्संगमें बताये जानेवाले विषयको हम लिख सकें और उसे अपने जीवनमें उतार सकें | अध्यात्म कृतिका शास्त्र है | अतः मात्र श्रवण करनेसे जीवनमें विशेष अंतर नहीं आता | अध्यात्म अनंत-सम्बन्धी ज्ञान है और एक शास्त्र भी | अतः अध्यात्म सीखनेका सबसे सरल माध्यम है, सत्संग में जाना और वह भी विद्यार्थी-समान बनकर | सत्संगमें जाते समय ध्यान रखना चाहिए की यदि बच्चे छोटे हों और वे अत्यधिक नटखट हों, तो उन्हें सत्संगमें लेकर न जाएं, क्योंकि इससे दूसरेकी एकाग्रता भंग होती है | सत्संग धर्मशिक्षणका स्थल है अतः वहांकी मर्यादाका मान रखना प्रत्येक साधकका धर्म है |
सत्संगमें शब्दका महत्त्व मात्र दो प्रतिशत होता है और शब्दातीत महत्त्व ९८% होता है | ऐसेमें प्रारम्भिक अवस्थाके साधकको (३०-४०% के स्तरवाले साधकोंको ) शब्दपर तो ध्यान देना ही है, साथ ही जो शब्दातीत चैतन्य सत्संगमें निर्मित हो रहा है, उसपर भी ध्यान देना चाहिए और साधनामें जो उन्नत हैं, (६०% आध्यात्मिक स्तरसे अधिक) उन्हें शब्दातीत चैतन्यपर अधिक ध्यान देना चाहिए | यदि किसी साधकमें भाव हो, तो भाषाकी मर्यादा नहीं रहती और सत्संगके शब्दातीत चैतन्यका वह लाभ लेकर आनंदकी अनुभूति प्राप्त करता है | इस सन्दर्भमें एक साधिकाकी अनुभूति बताती हूं |
जनवरी २०११ में मैं चेन्नईमें अंग्रेजी भाषामें तीन-दिवसीय सत्संग ले रही थी, वहां एक वृद्ध साधिका सत्संगमें बैठा करती थीं, उन्हें अंग्रेजी भाषा समझमें नहीं आती थी; परन्तु वे सत्संगमें प्रतिदिन आनंदपूर्वक बैठा करती थीं | जब मैंने एक दिन किसी साधककी सहायतासे उनसे पूछा कि आप सत्संगमें क्यों बैठती हैं ?

क्या जो मैं सत्संगमें बताती हूं वह आपको समझमें आती है ? उन्होंने बताया कि उन्हें शब्द तो कुछ भी समझमें नहीं आते; परन्तु सत्संगमें उन्हें मुझमें दुर्गाके स्वरुपका दर्शन होता है और आनंदकी अनुभूति भी होती है, इसलिए वे सत्संगमें बैठती हैं | सच्चाई यह है कि उस साधिकाका आध्यात्मिक स्तर ४५% है, जो सत्संगके सामूहिक सात्त्विकताके कारण ५०% से अधिक हो जाता है एवं उनमें भाव भी अधिक है | अतः वे शब्दातीत आनंदका अनुभव कर पाती हैं और उन्हें देव-दर्शन भी इसी कारणसे हुए | ऐसे ही झारखण्डके गोड्डा जिलेमें तीन दिवसीय आध्यात्मिक शिविरमें एक चार वर्षका बालक कुमार रौनक ठाकुर आया करता था, वह तीन घंटे आनंदपूर्वक एवं तन्मयतासे बैठता था और सत्संगके दौरान नामजप भी लिखता था | वह भी ‘ॐ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ’ का जप लिखा करता था (उसे उसके स्तरानुसार यह जप करनेके लिए बताया था) | उस बाल साधकको एक वाक्य भी ढंगसे लिखना नहीं आता है; परंतु बाल साधकका आध्यात्मिक स्तर ५० % होनेके कारण उसे सत्संगसे प्राप्त चैतन्यके कारण शब्दातीत आनंदकी अनुभूति होती है |
अब हम यह देखेंगे कि सत्संगमें बौद्धिक रूपसे सिखाये जाने वाले विषय और शब्दातीत स्तरपर प्रक्षेपित चैतन्यका पूर्ण लाभ लेनेके लिए हम क्या कर सकते हैं |
१. सत्संगमें जानेसे पूर्व ही नमक पानीका उपाय करें, जिससे सत्संगके चैतन्यको आप ग्रहण कर सकें | मैंने देखा है कि कुछ लोगोंको अत्यधिक आध्यात्मिक कष्ट होनेके कारण वे सत्संगमें आते ही सोने लगते हैं और इसी कारण वे सत्संगमें उपस्थित रहना टालते हैं | नमक-पानीका उपाय कर सत्संगमें जानेसे मन एवं बुद्धिपर छाया आवरण नष्ट हो जाता है एवं अध्यात्मका बौद्धिक भाग ग्रहण होता है | साथ ही आवरण कम रहनेके कारण सत्संगका चैतन्य भी अधिक मात्रामें ग्रहण होता है
२. सत्संगमें बैठनेसे दो घंटे पूर्वसे ही अपने आराध्यसे प्रार्थना करें जिससे कि आप सत्संगके चैतन्यको ग्रहण कर सकें |
३. सत्संग आरम्भ होनेसे पूर्व गणेशजी जो बुद्धिके देवता है उन्हें और मां सरस्वती जो विद्याकी देवी हैं उनसे प्रार्थना करें कि हमारे मन एवं बुद्धिपर जो भी आवरण हो वह नष्ट हो और सत्संगको हम मन, बुद्धि एवं चैतन्यके स्तरपर ग्रहण कर उसे अपने जीवनमें उतार सकें |
४. सत्संगके दौरान भी नामजप एवं प्रार्थनामें निरंतरता बनायें रखें |
५. वर्तमान समयमें अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट अत्यधिक बढ़ गया है ऐसेमें यदि सत्संगमें बैठनेके पश्चात कुछ शारीरिक कष्ट हो रहा हो तो एकाग्रतापूर्वक नामजप और प्रार्थना करें और वहांसे उठें नहीं बैठें ही रहें, इससे थोड़े समय पश्चात आपके कष्ट कम हो जायेंगे | फरवरी २०११ में मैं दिल्लीमें एक घरमें सत्संग ले रही थी, तो सत्संगमें बैठे एक साधकको कष्ट होने लगा | उन्हें थरथराहट होने लगी, पसीना आने लगा और लगा कि सत्संगसे उठकर भाग जाएं; परंतु वे नामजप और प्रार्थनाके बलपर बैठे रहे |
अगले दिन उन्होंने पाया कि उनकी पंद्रह वर्ष पुराने चर्मरोगसे प्रभावित पैरमें ८०% सुधार था और अगले तीन दिनमें उनका चर्मरोग बिलकुल ही समाप्त हो गया, जिसमें पिछले पंद्रह वर्षोंसे खुजली होती थी और खून निकला करता था | उन्हें एक्जिमा था | वास्तविकता यह थी कि उस साधकको अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट था | सत्संगके चैतन्यसे उन्हें कष्ट देने वाली शक्तिको गति मिल गयी, और उन्हें उस कष्टसे मुक्ति मिल गयी | यह सत्संगका माहात्म्य है | इसी प्रकार जब मैं बक्सरमें सत्संग ले रही थी तो सत्संग समाप्त होनेके पश्चात तीन साधकने बताया कि सत्संगसे पूर्व उन्हें अत्यधिक शारीरिक पीड़ा थी, जो सत्संग समाप्त होनेपर पूर्णतः ठीक हो गया | नामजपका महत्व ५ प्रतिशत है और सत्संगका महत्त्व ३०% प्रतिशत है |

Importance of Satsang ( holy company)
The spiritual progress through the medium of Shravan Bhakti (devotion through hearing) is very slow. If one wants to make rapid spiritual progress, efforts should be made to implement everything taught at the Satsang. Hence, whenever we go for a Satsang, we must take along a pen and pad, so that notes can be made of the topics discussed at the Satsang and implemented in daily life. Spirituality is a science of experience and only when one implements the tenets of spirituality, he/she gets anubhutis. Hence merely listening does not bring about any significant change in life. Spirituality is the knowledge of the infinite and is also a science. Hence, the simplest medium of learning spirituality is attending a Satsang and that too as a student. While going for a Satsang, one must avoid taking children to the satsang if the children are naughty, as it will disturb the concentration of others. Remember that Satsang is the place where education about Dharma is being imparted. Hence, upholding the dignity is the Dharma of every seeker.
In a Satsang, the importance of word is merely 2% and what is conveyed beyond words is 98%. The Seekers who have just begun their spiritual journey with spiritual levels of 30-40% must pay attention to the words and also be attentive to the Chaitanya (divine consciousness) that is being created beyond words in the satsang. Those who have progressed in Sadhana (spiritual practice), that is those who have acquired a spiritual level above 60%, must thrive to receive the divine consciousness present there and which is beyond words.
If a seeker possesses Bhav, language does not become an obstacle and they experience bliss through divine consciousness which is beyond words. I will narrate an Anubhuti (spiritual experience) of a woman seeker here. In January 2011, I was conducting a three-day Satsang in English at Chennai. An old woman Seeker used to attend the Satsang;but she did not understand English. However, she used to attend the Satsang daily and would sit blissfully. One day, I asked her through another Seeker as to why she attended the Satsang and whether she understood whatever I explained during Satsang.
She told me she did not understand all that I said at the Satsang, but she could perceive (divine glimpse) of the form of Maa Durgaa in me. The fact is that this Seeker was at 45% spiritual level which due to the collective Saatvikta (spiritual purity) of the satsang crossed the 50% spiritual level. Moreover, her Bhav was pronounced. Hence, she derived the bliss beyond words and also got a divine glimpse for the same reason.
Similarly, at a three-day spiritual camp in Godda district of Jharkhand, a four-year-old boy, Kumar Raunak Thakur used to come and sit blissfully and with full concentration for three hours on all the three days.

During the Satsang, he would also write down a Mantra – “Om Om Namo Bhagwate Vasudevaye Om” (he had been told to do this chanting according to his highly evolved spiritual level). This child Seeker does not even know how to write a sentence properly, but as his spiritual level is at 50%, he used to derive bliss through the Chaitanya generated beyond words in the Satsang and also could write the chant.
How to derive maximum benefit from the satsang: Now, we will take a look at what we can do to derive maximum benefit from the subjects taught intellectually and Chaitanya generated beyond words.
(i) Before going to attend a Satsang, do the salt-water treatment so that you can receive unhindered Chaitanya at the Satsang. I have seen that due to spiritual problems, some people start sleeping the moment they come for the Satsang. Attending a Satsang after doing the salt-water treatment destroys the black veil surrounding the mind and intellect, and the intellectual aspect of spirituality is received. Also, due to a reduction of the black veil, Chaitanya of the Satsang is grasped much easier.
(ii) Two hours before Satsang, pray to the one you venerate so that you can receive the Chaitanya of the Satsang.
(iii) Before Satsang starts, pray to Lord Ganesh, the deity of intellect and to Maa Saraswati, who is the goddess of knowledge, that “may the black veil clouding our mind and intellect be destroyed and may we accept the Satsang at the levels of mind, intellect and divine consciousness and may we be able to implement it in our life.” Maintain the continuity of chanting and prayers during the Satsang too.
(iv) In the present times, hundred per cent of the population is suffering from troubles caused by negative energies. Hence, if one experiences some kind of physical problems, do chanting attentively, pray and avoid getting up from the venue of the satsang. After some time, your problems will get reduced.
In February 2011, I was taking a Satsang at a house in Delhi, when a Seeker attending the Satsang started feeling uneasy. He started shivering, sweating and felt like running out of Satsang, but he kept chanting and praying and did not leave the satsang. The next day he discovered that there was an 80% improvement in his feet that had been plagued by a 15-year-old eczema.

Within three days, he was totally cured of his eczema that had been itching for the last 15 years and even used to bleed. The reality is that this Seeker was being troubled by a negative energy and due to the Chaitanya received at the Satsang, the negative energy troubling him left him and he was relieved of his problem. Such is the glory of Satsang.
Similarly, once I was in Buxar in Bihar for a Satsang. After the Satsang got over, t three seekers told me that prior to the Satsang they had excessive physical pain that was completely cured by the time the Satsang got over. Please remember, the importance of chanting is 5% and that of Satsang 30%.
courtesy : www.tanujathakur.com
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सत्संग का महत्त्व
श्रवण भक्तिके माध्यमसे अध्यात्ममें प्रगति करनेमें बहुत समय लग जाता है | यदि अध्यात्ममें शीघ्र प्रगति करनी है, तो सत्संगमें बताये जानेवाले विषयको कृतिमें लाकर आत्मसात करनेका प्रयास करना चाहिए | अतः जब भी हम सत्संगमें जाते
हैं तो एक कॉपी और कलम अवश्य लेकर जाना चाहिए, जिससे कि सत्संगमें बताये जानेवाले विषयको हम लिख सकें और उसे अपने जीवनमें उतार सकें | अध्यात्म कृतिका शास्त्र है | अतः मात्र श्रवण करनेसे जीवनमें विशेष अंतर नहीं आता | अध्यात्म अनंत-सम्बन्धी ज्ञान है और एक शास्त्र भी | अतः अध्यात्म सीखनेका सबसे सरल माध्यम है, सत्संग में जाना और वह भी विद्यार्थी-समान बनकर | सत्संगमें जाते समय ध्यान रखना चाहिए की यदि बच्चे छोटे हों और वे अत्यधिक नटखट हों, तो उन्हें सत्संगमें लेकर न जाएं, क्योंकि इससे दूसरेकी एकाग्रता भंग होती है | सत्संग धर्मशिक्षणका स्थल है अतः वहांकी मर्यादाका मान रखना प्रत्येक साधकका धर्म है |
सत्संगमें शब्दका महत्त्व मात्र दो प्रतिशत होता है और शब्दातीत महत्त्व ९८% होता है | ऐसेमें प्रारम्भिक अवस्थाके साधकको (३०-४०% के स्तरवाले साधकोंको ) शब्दपर तो ध्यान देना ही है, साथ ही जो शब्दातीत चैतन्य सत्संगमें निर्मित हो रहा है, उसपर भी ध्यान देना चाहिए और साधनामें जो उन्नत हैं, (६०% आध्यात्मिक स्तरसे अधिक) उन्हें शब्दातीत चैतन्यपर अधिक ध्यान देना चाहिए | यदि किसी साधकमें भाव हो, तो भाषाकी मर्यादा नहीं रहती और सत्संगके शब्दातीत चैतन्यका वह लाभ लेकर आनंदकी अनुभूति प्राप्त करता है | इस सन्दर्भमें एक साधिकाकी अनुभूति बताती हूं |
जनवरी २०११ में मैं चेन्नईमें अंग्रेजी भाषामें तीन-दिवसीय सत्संग ले रही थी, वहां एक वृद्ध साधिका सत्संगमें बैठा करती थीं, उन्हें अंग्रेजी भाषा समझमें नहीं आती थी; परन्तु वे सत्संगमें प्रतिदिन आनंदपूर्वक बैठा करती थीं | जब मैंने एक दिन किसी साधककी सहायतासे उनसे पूछा कि आप सत्संगमें क्यों बैठती हैं ?

क्या जो मैं सत्संगमें बताती हूं वह आपको समझमें आती है ? उन्होंने बताया कि उन्हें शब्द तो कुछ भी समझमें नहीं आते; परन्तु सत्संगमें उन्हें मुझमें दुर्गाके स्वरुपका दर्शन होता है और आनंदकी अनुभूति भी होती है, इसलिए वे सत्संगमें बैठती हैं | सच्चाई यह है कि उस साधिकाका आध्यात्मिक स्तर ४५% है, जो सत्संगके सामूहिक सात्त्विकताके कारण ५०% से अधिक हो जाता है एवं उनमें भाव भी अधिक है | अतः वे शब्दातीत आनंदका अनुभव कर पाती हैं और उन्हें देव-दर्शन भी इसी कारणसे हुए | ऐसे ही झारखण्डके गोड्डा जिलेमें तीन दिवसीय आध्यात्मिक शिविरमें एक चार वर्षका बालक कुमार रौनक ठाकुर आया करता था, वह तीन घंटे आनंदपूर्वक एवं तन्मयतासे बैठता था और सत्संगके दौरान नामजप भी लिखता था | वह भी ‘ॐ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ’ का जप लिखा करता था (उसे उसके स्तरानुसार यह जप करनेके लिए बताया था) | उस बाल साधकको एक वाक्य भी ढंगसे लिखना नहीं आता है; परंतु बाल साधकका आध्यात्मिक स्तर ५० % होनेके कारण उसे सत्संगसे प्राप्त चैतन्यके कारण शब्दातीत आनंदकी अनुभूति होती है |
अब हम यह देखेंगे कि सत्संगमें बौद्धिक रूपसे सिखाये जाने वाले विषय और शब्दातीत स्तरपर प्रक्षेपित चैतन्यका पूर्ण लाभ लेनेके लिए हम क्या कर सकते हैं |
१. सत्संगमें जानेसे पूर्व ही नमक पानीका उपाय करें, जिससे सत्संगके चैतन्यको आप ग्रहण कर सकें | मैंने देखा है कि कुछ लोगोंको अत्यधिक आध्यात्मिक कष्ट होनेके कारण वे सत्संगमें आते ही सोने लगते हैं और इसी कारण वे सत्संगमें उपस्थित रहना टालते हैं | नमक-पानीका उपाय कर सत्संगमें जानेसे मन एवं बुद्धिपर छाया आवरण नष्ट हो जाता है एवं अध्यात्मका बौद्धिक भाग ग्रहण होता है | साथ ही आवरण कम रहनेके कारण सत्संगका चैतन्य भी अधिक मात्रामें ग्रहण होता है
२. सत्संगमें बैठनेसे दो घंटे पूर्वसे ही अपने आराध्यसे प्रार्थना करें जिससे कि आप सत्संगके चैतन्यको ग्रहण कर सकें |
३. सत्संग आरम्भ होनेसे पूर्व गणेशजी जो बुद्धिके देवता है उन्हें और मां सरस्वती जो विद्याकी देवी हैं उनसे प्रार्थना करें कि हमारे मन एवं बुद्धिपर जो भी आवरण हो वह नष्ट हो और सत्संगको हम मन, बुद्धि एवं चैतन्यके स्तरपर ग्रहण कर उसे अपने जीवनमें उतार सकें |
४. सत्संगके दौरान भी नामजप एवं प्रार्थनामें निरंतरता बनायें रखें |
५. वर्तमान समयमें अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट अत्यधिक बढ़ गया है ऐसेमें यदि सत्संगमें बैठनेके पश्चात कुछ शारीरिक कष्ट हो रहा हो तो एकाग्रतापूर्वक नामजप और प्रार्थना करें और वहांसे उठें नहीं बैठें ही रहें, इससे थोड़े समय पश्चात आपके कष्ट कम हो जायेंगे | फरवरी २०११ में मैं दिल्लीमें एक घरमें सत्संग ले रही थी, तो सत्संगमें बैठे एक साधकको कष्ट होने लगा | उन्हें थरथराहट होने लगी, पसीना आने लगा और लगा कि सत्संगसे उठकर भाग जाएं; परंतु वे नामजप और प्रार्थनाके बलपर बैठे रहे |
अगले दिन उन्होंने पाया कि उनकी पंद्रह वर्ष पुराने चर्मरोगसे प्रभावित पैरमें ८०% सुधार था और अगले तीन दिनमें उनका चर्मरोग बिलकुल ही समाप्त हो गया, जिसमें पिछले पंद्रह वर्षोंसे खुजली होती थी और खून निकला करता था | उन्हें एक्जिमा था | वास्तविकता यह थी कि उस साधकको अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट था | सत्संगके चैतन्यसे उन्हें कष्ट देने वाली शक्तिको गति मिल गयी, और उन्हें उस कष्टसे मुक्ति मिल गयी | यह सत्संगका माहात्म्य है | इसी प्रकार जब मैं बक्सरमें सत्संग ले रही थी तो सत्संग समाप्त होनेके पश्चात तीन साधकने बताया कि सत्संगसे पूर्व उन्हें अत्यधिक शारीरिक पीड़ा थी, जो सत्संग समाप्त होनेपर पूर्णतः ठीक हो गया | नामजपका महत्व ५ प्रतिशत है और सत्संगका महत्त्व ३०% प्रतिशत है |

Importance of Satsang ( holy company)
The spiritual progress through the medium of Shravan Bhakti (devotion through hearing) is very slow. If one wants to make rapid spiritual progress, efforts should be made to implement everything taught at the Satsang. Hence, whenever we go for a Satsang, we must take along a pen and pad, so that notes can be made of the topics discussed at the Satsang and implemented in daily life. Spirituality is a science of experience and only when one implements the tenets of spirituality, he/she gets anubhutis. Hence merely listening does not bring about any significant change in life. Spirituality is the knowledge of the infinite and is also a science. Hence, the simplest medium of learning spirituality is attending a Satsang and that too as a student. While going for a Satsang, one must avoid taking children to the satsang if the children are naughty, as it will disturb the concentration of others. Remember that Satsang is the place where education about Dharma is being imparted. Hence, upholding the dignity is the Dharma of every seeker.
In a Satsang, the importance of word is merely 2% and what is conveyed beyond words is 98%. The Seekers who have just begun their spiritual journey with spiritual levels of 30-40% must pay attention to the words and also be attentive to the Chaitanya (divine consciousness) that is being created beyond words in the satsang. Those who have progressed in Sadhana (spiritual practice), that is those who have acquired a spiritual level above 60%, must thrive to receive the divine consciousness present there and which is beyond words.
If a seeker possesses Bhav, language does not become an obstacle and they experience bliss through divine consciousness which is beyond words. I will narrate an Anubhuti (spiritual experience) of a woman seeker here. In January 2011, I was conducting a three-day Satsang in English at Chennai. An old woman Seeker used to attend the Satsang;but she did not understand English. However, she used to attend the Satsang daily and would sit blissfully. One day, I asked her through another Seeker as to why she attended the Satsang and whether she understood whatever I explained during Satsang.
She told me she did not understand all that I said at the Satsang, but she could perceive (divine glimpse) of the form of Maa Durgaa in me. The fact is that this Seeker was at 45% spiritual level which due to the collective Saatvikta (spiritual purity) of the satsang crossed the 50% spiritual level. Moreover, her Bhav was pronounced. Hence, she derived the bliss beyond words and also got a divine glimpse for the same reason.
Similarly, at a three-day spiritual camp in Godda district of Jharkhand, a four-year-old boy, Kumar Raunak Thakur used to come and sit blissfully and with full concentration for three hours on all the three days.

During the Satsang, he would also write down a Mantra – “Om Om Namo Bhagwate Vasudevaye Om” (he had been told to do this chanting according to his highly evolved spiritual level). This child Seeker does not even know how to write a sentence properly, but as his spiritual level is at 50%, he used to derive bliss through the Chaitanya generated beyond words in the Satsang and also could write the chant.
How to derive maximum benefit from the satsang: Now, we will take a look at what we can do to derive maximum benefit from the subjects taught intellectually and Chaitanya generated beyond words.
(i) Before going to attend a Satsang, do the salt-water treatment so that you can receive unhindered Chaitanya at the Satsang. I have seen that due to spiritual problems, some people start sleeping the moment they come for the Satsang. Attending a Satsang after doing the salt-water treatment destroys the black veil surrounding the mind and intellect, and the intellectual aspect of spirituality is received. Also, due to a reduction of the black veil, Chaitanya of the Satsang is grasped much easier.
(ii) Two hours before Satsang, pray to the one you venerate so that you can receive the Chaitanya of the Satsang.
(iii) Before Satsang starts, pray to Lord Ganesh, the deity of intellect and to Maa Saraswati, who is the goddess of knowledge, that “may the black veil clouding our mind and intellect be destroyed and may we accept the Satsang at the levels of mind, intellect and divine consciousness and may we be able to implement it in our life.” Maintain the continuity of chanting and prayers during the Satsang too.
(iv) In the present times, hundred per cent of the population is suffering from troubles caused by negative energies. Hence, if one experiences some kind of physical problems, do chanting attentively, pray and avoid getting up from the venue of the satsang. After some time, your problems will get reduced.
In February 2011, I was taking a Satsang at a house in Delhi, when a Seeker attending the Satsang started feeling uneasy. He started shivering, sweating and felt like running out of Satsang, but he kept chanting and praying and did not leave the satsang. The next day he discovered that there was an 80% improvement in his feet that had been plagued by a 15-year-old eczema.

Within three days, he was totally cured of his eczema that had been itching for the last 15 years and even used to bleed. The reality is that this Seeker was being troubled by a negative energy and due to the Chaitanya received at the Satsang, the negative energy troubling him left him and he was relieved of his problem. Such is the glory of Satsang.
Similarly, once I was in Buxar in Bihar for a Satsang. After the Satsang got over, t three seekers told me that prior to the Satsang they had excessive physical pain that was completely cured by the time the Satsang got over. Please remember, the importance of chanting is 5% and that of Satsang 30%.

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