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कबीरदासजीने कहा है, ईश्वर तो चीटींके पांवमें लगे घुंघरुकी भी आवाज सुन
सकते हैं; परंतु कुछ हिन्दु मंदिरोंमें जाकर घंटेको ऐसे बजाते हैं जैसे
भगवान बहरे हों ! इस कारण वहां जितने भी अन्य भक्त होते हैं जिसमें कोई
नामजप कर रहा होता है, तो कोई ध्यान, उन सबकी साधनामें विघ्न पडता है इस
प्रकारके भक्तोंपर ईश्वरीय कृपा कैसे होगी आप स्वयं सोचें ! ध्यान रखें
दूसरोंका विचार करना इसे साधकत्व कहते हैं ! घंटा अत्यंत प्रेमसे और हल्की
ध्वनिमें बजाना चाहिए जैसे हम अपने प्रिय जनको जगा रहे हों और उनसे कुछ
विनती करनेवाले हों !
• Kabirdas said, ‘God can even listen to the
sound of Ghunghroo (trinklets) tied to an ant’s feet; however, some
Hindus ring the bell inside a temple, as if God is deaf ! Thus, the
other devotees present inside the temple, some of whom are doing Naamjap
(chanting) while some others are meditating get disturbed. You yourself
think how God’s grace will manifest itself on such devotees! Remember
seekerhood lies in sparing a thought for others! The bell must be struck
with extreme affection and ever so lightly, as if we were waking up a
near and dear one and are about to make an entreaty to that person!
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तेरे दर पे तो मै, आया साईं
अब मुझको तू न ठुकराना
मै हार गया, मेरे साईं
मै पा न सका , कोई ठिकाना
पूजा नहीं , तेरी मूरत को
घिरता ही रहा मैं पापों से
जलाया नहीं , दीपक कभी
साईं मेरे इन हाथों ने
फिर भी सुनो साईं अफसाना
कहते सभी, देता पनाह
तू मुझसे बे पनाहों को
गर शरण तेरी, आ जाएँतो
तू माफ़ करे है गुनाहों को
मैंने न कभी था पहचाना
मेरे ही तो दुष्कर्मों ने
मुझको ये दिन दिखलाया है
कोई तो बात रही होगी
जो तूने मुझे बुलाया है
समझ न मुझे अब बेगाना
तेरे दर पे तो मै, आया साईं
अब मुझको तू न ठुकराना
मै हार गया, मेरे साईं
मै पा न सका , कोई ठिकाना
▁ ▂ ▄ ▅ ▆ ▇ █ ॐ साई राम █ ▇ ▆ ▅ ▄ ▂ ▁
— with Anita Sharma and 49 others.
Hare Krishna to all :)
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Hope it represent our page best .
Prabhupāda-vāṇī Sevā shared a photo.
Sometimes
if one is liberated from the material world but has no shelter at the
lotus feet of Kṛṣṇa, one falls down to the material world again.
Liberation is like a state of convalescence, in which one is free from a
fever but is still not healthy. Even in the stage of convalescence, if
one is not very careful, one may have a relapse. Similarly, liberation
does not offer as much security as the shelter of the lotus feet of
Kṛṣṇa. It is stated in the śāstra:
ye 'nye 'ravindākṣa vimukta-māninas
tvayy asta-bhāvād aviśuddha-buddhayaḥ
āruhya kṛcchreṇa paraṁ padaṁ tataḥ
patanty adho 'nādṛta-yuṣmad-aṅghrayaḥ
"O Lord, the intelligence of those who think themselves liberated but
who have no devotion is impure. Even though they rise to the highest
point of liberation by dint of severe penances and austerities, they are
sure to fall down again into material existence, for they do not take
shelter at Your lotus feet." (Śrīmad-Bhāgavatam 10.2.32)
कबीरदासजीने कहा है, ईश्वर तो चीटींके पांवमें लगे घुंघरुकी भी आवाज सुन सकते हैं; परंतु कुछ हिन्दु मंदिरोंमें जाकर घंटेको ऐसे बजाते हैं जैसे भगवान बहरे हों ! इस कारण वहां जितने भी अन्य भक्त होते हैं जिसमें कोई
नामजप कर रहा होता है, तो कोई ध्यान, उन सबकी साधनामें विघ्न पडता है इस प्रकारके भक्तोंपर ईश्वरीय कृपा कैसे होगी आप स्वयं सोचें ! ध्यान रखें दूसरोंका विचार करना इसे साधकत्व कहते हैं ! घंटा अत्यंत प्रेमसे और हल्की ध्वनिमें बजाना चाहिए जैसे हम अपने प्रिय जनको जगा रहे हों और उनसे कुछ विनती करनेवाले हों !
• Kabirdas said, ‘God can even listen to the sound of Ghunghroo (trinklets) tied to an ant’s feet; however, some Hindus ring the bell inside a temple, as if God is deaf ! Thus, the other devotees present inside the temple, some of whom are doing Naamjap (chanting) while some others are meditating get disturbed. You yourself think how God’s grace will manifest itself on such devotees! Remember seekerhood lies in sparing a thought for others! The bell must be struck with extreme affection and ever so lightly, as if we were waking up a near and dear one and are about to make an entreaty to that person!
तेरे दर पे तो मै, आया साईं
अब मुझको तू न ठुकराना
मै हार गया, मेरे साईं
मै पा न सका , कोई ठिकाना
पूजा नहीं , तेरी मूरत को
घिरता ही रहा मैं पापों से
जलाया नहीं , दीपक कभी
साईं मेरे इन हाथों ने
फिर भी सुनो साईं अफसाना
कहते सभी, देता पनाह
तू मुझसे बे पनाहों को
गर शरण तेरी, आ जाएँतो
तू माफ़ करे है गुनाहों को
मैंने न कभी था पहचाना
मेरे ही तो दुष्कर्मों ने
मुझको ये दिन दिखलाया है
कोई तो बात रही होगी
जो तूने मुझे बुलाया है
समझ न मुझे अब बेगाना
तेरे दर पे तो मै, आया साईं
अब मुझको तू न ठुकराना
मै हार गया, मेरे साईं
मै पा न सका , कोई ठिकाना
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तेरे दर पे तो मै, आया साईं
अब मुझको तू न ठुकराना
मै हार गया, मेरे साईं
मै पा न सका , कोई ठिकाना
पूजा नहीं , तेरी मूरत को
घिरता ही रहा मैं पापों से
जलाया नहीं , दीपक कभी
साईं मेरे इन हाथों ने
फिर भी सुनो साईं अफसाना
कहते सभी, देता पनाह
तू मुझसे बे पनाहों को
गर शरण तेरी, आ जाएँतो
तू माफ़ करे है गुनाहों को
मैंने न कभी था पहचाना
मेरे ही तो दुष्कर्मों ने
मुझको ये दिन दिखलाया है
कोई तो बात रही होगी
जो तूने मुझे बुलाया है
समझ न मुझे अब बेगाना
तेरे दर पे तो मै, आया साईं
अब मुझको तू न ठुकराना
मै हार गया, मेरे साईं
मै पा न सका , कोई ठिकाना
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मै हार गया, मेरे साईं
मै पा न सका , कोई ठिकाना
पूजा नहीं , तेरी मूरत को
घिरता ही रहा मैं पापों से
जलाया नहीं , दीपक कभी
साईं मेरे इन हाथों ने
फिर भी सुनो साईं अफसाना
कहते सभी, देता पनाह
तू मुझसे बे पनाहों को
गर शरण तेरी, आ जाएँतो
तू माफ़ करे है गुनाहों को
मैंने न कभी था पहचाना
मेरे ही तो दुष्कर्मों ने
मुझको ये दिन दिखलाया है
कोई तो बात रही होगी
जो तूने मुझे बुलाया है
समझ न मुझे अब बेगाना
तेरे दर पे तो मै, आया साईं
अब मुझको तू न ठुकराना
मै हार गया, मेरे साईं
मै पा न सका , कोई ठिकाना
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Sometimes
if one is liberated from the material world but has no shelter at the
lotus feet of Kṛṣṇa, one falls down to the material world again.
Liberation is like a state of convalescence, in which one is free from a
fever but is still not healthy. Even in the stage of convalescence, if
one is not very careful, one may have a relapse. Similarly, liberation
does not offer as much security as the shelter of the lotus feet of
Kṛṣṇa. It is stated in the śāstra:
ye 'nye 'ravindākṣa vimukta-māninas
tvayy asta-bhāvād aviśuddha-buddhayaḥ
āruhya kṛcchreṇa paraṁ padaṁ tataḥ
patanty adho 'nādṛta-yuṣmad-aṅghrayaḥ
"O Lord, the intelligence of those who think themselves liberated but
who have no devotion is impure. Even though they rise to the highest
point of liberation by dint of severe penances and austerities, they are
sure to fall down again into material existence, for they do not take
shelter at Your lotus feet." (Śrīmad-Bhāgavatam 10.2.32)
ye 'nye 'ravindākṣa vimukta-māninas
tvayy asta-bhāvād aviśuddha-buddhayaḥ
āruhya kṛcchreṇa paraṁ padaṁ tataḥ
patanty adho 'nādṛta-yuṣmad-aṅghrayaḥ
"O Lord, the intelligence of those who think themselves liberated but who have no devotion is impure. Even though they rise to the highest point of liberation by dint of severe penances and austerities, they are sure to fall down again into material existence, for they do not take shelter at Your lotus feet." (Śrīmad-Bhāgavatam 10.2.32)
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