Wednesday, 27 February 2013

JAI Shree Krishan *HARI BOL Album

खूबसूरती में मानव खुद को पूर्णता के स्तर पर देखता है, कुछ परिस्थितियों में वह खुद की पूजा करता है, मनुष्य यह मान लेता कि यह पूरा विश्व खूबसूरती से भरा हुआ है यह भूल जाता है कि जो सुंदरता वह देख रहा है वह उसके ‌‍द्वारा बनाई हुई है | मानव ने अकेले ही इस जहान को खूबसूरती अर्पित कि है |

* !!..जयश्रीकृष्ण..!! * JAI Shree Krishan * !!..जयश्रीकृष्ण..!! *
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खूबसूरती में मानव खुद को पूर्णता के स्तर पर देखता है, कुछ परिस्थितियों में वह खुद की पूजा करता है, मनुष्य यह मान लेता कि यह पूरा विश्व खूबसूरती से भरा हुआ है यह भूल जाता है कि जो सुंदरता वह देख रहा है वह उसके ‌‍द्वारा बनाई हुई है | मानव ने अकेले ही इस जहान को खूबसूरती अर्पित कि है | 

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एक बार एक स्वामी जी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी,
भीक्षा दे दे माते!!
घर से महिला बाहर आयी। उसने उनकी झोली मे भिक्षा डाली और कहा,
“महात्माजी,
कोई उपदेश दीजिए!”
स्वामीजी बोले, “आज नहीं, कल दूँगा।”
दूसरे दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज दी –
भीक्षा दे दे माते!!
उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनायीं थी, जिसमे बादाम-पिस्ते भी डाले थे, वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी।
स्वामी जी ने अपना कमंडल आगे कर दिया।
वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है। उसके हाथ ठिठक गए। वह बोली,
“महाराज !
यह कमंडल तो गन्दा है।”
स्वामीजी बोले, “हाँ,
गन्दा तो है, किन्तु खीर इसमें डाल दो।”
स्त्री बोली, “नहीं महाराज, तब तो खीर ख़राब हो जायेगी। दीजिये यह कमंडल, में इसे शुद्ध कर लाती हूँ।”
स्वामीजी बोले, मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न?”
स्त्री ने कहा : “जी महाराज !”
स्वामीजी बोले,
“मेरा भी यही उपदेश है। मन में जब तक चिन्ताओ का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्करो का गोबर भरा है, तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा।
यदि उपदेशामृत पान करना है, तो प्रथम अपने मन को शुद्ध करना चाहिए, कुसंस्कारो का त्याग करना चाहिए, तभी सच्चे सुख और आनन्द की प्राप्ति होगी।”

जय श्री राधेकृष्ण
HARI BOL
एक बार एक स्वामी जी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी,
भीक्षा दे दे माते!!
घर से महिला बाहर आयी। उसने उनकी झोली मे भिक्षा डाली और कहा,
“महात्माजी, 
कोई उपदेश दीजिए!”
स्वामीजी बोले, “आज नहीं, कल दूँगा।” 
दूसरे दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज दी –
भीक्षा दे दे माते!!
उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनायीं थी, जिसमे बादाम-पिस्ते भी डाले थे, वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी।
स्वामी जी ने अपना कमंडल आगे कर दिया।
वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है। उसके हाथ ठिठक गए। वह बोली,
“महाराज ! 
यह कमंडल तो गन्दा है।”
स्वामीजी बोले, “हाँ,
गन्दा तो है, किन्तु खीर इसमें डाल दो।” 
स्त्री बोली, “नहीं महाराज, तब तो खीर ख़राब हो जायेगी। दीजिये यह कमंडल, में इसे शुद्ध कर लाती हूँ।”
स्वामीजी बोले, मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न?”
स्त्री ने कहा : “जी महाराज !”
स्वामीजी बोले,
“मेरा भी यही उपदेश है। मन में जब तक चिन्ताओ का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्करो का गोबर भरा है, तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा।
यदि उपदेशामृत पान करना है, तो प्रथम अपने मन को शुद्ध करना चाहिए, कुसंस्कारो का त्याग करना चाहिए, तभी सच्चे सुख और आनन्द की प्राप्ति होगी।”

जय श्री राधेकृष्ण
HARI BOL
 
मायूस इनके दर से सवाली नही होता
वेह बाग़ खिलते है जहा माली नही होता
लुटते जाते है अपनी रहमतों को ज़माने पर
मेरे साईं का खजाना कभी खाली नही होता...
मायूस इनके दर से सवाली नही होता 
वेह बाग़ खिलते है जहा माली नही होता 
लुटते जाते है अपनी रहमतों को ज़माने पर 
मेरे साईं का खजाना कभी खाली नही होता...

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