Tuesday, 19 February 2013

सनातन धर्म एक ही धर्म

‎* नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी॥
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी॥4॥ - रामचरितमानस
भावार्थ:-नाम और रूप की गति की कहानी (विशेषता की कथा) अकथनीय है। वह समझने में सुखदायक है, परन्तु उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। निर्गुण और सगुण के बीच में नाम सुंदर साक्षी है और दोनों का यथार्थ ज्ञान कराने वाला चतुर दुभाषिया है॥
 
 
 
जीवात्मा ज्ञाननेत्रोंद्वारा परमेश्वरका ध्यान करता हुआ आनन्दमें कहता है --
अहो! अहो! आनन्द ! आनन्द ! प्रभो ! प्रभो ! क्या आप पधारे ? धन्य भाग्य ! धन्य भाग्य ! आज मैं पतित भी आपके चरणकमलोंके प्रभावसे कृतार्थ हुआ ! क्यों न हो, आपने स्वयं श्रीगीताजीमें कहा है कि --
यदि (कोई) अतिशय दुराचारी भी अनन्यभावसे मेरा भक्त हुआ मेरेको ( निरन्तर) भजता है, वह साधु हि मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चयवाला है !
इसलिये वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहनेवाली परम शान्तिको प्राप्त होता है! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता
जीवात्मा ज्ञाननेत्रोंद्वारा परमेश्वरका ध्यान करता हुआ आनन्दमें कहता है --
अहो! अहो! आनन्द ! आनन्द ! प्रभो ! प्रभो ! क्या आप पधारे ? धन्य भाग्य ! धन्य भाग्य ! आज मैं पतित भी आपके चरणकमलोंके प्रभावसे कृतार्थ हुआ ! क्यों न हो, आपने स्वयं श्रीगीताजीमें कहा है कि --
यदि (कोई) अतिशय दुराचारी भी अनन्यभावसे मेरा भक्त हुआ मेरेको ( निरन्तर) भजता है, वह साधु हि मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चयवाला है !
इसलिये वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहनेवाली परम शान्तिको प्राप्त होता है! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता
 
 
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