प्रेम
को ठीक से समझ लें | पहली तो प्रेम और पाप विपरीत होने चाहिएं | तभी तो
प्रेम से पाप मिट सकेगा | तुमने कभी इस तरह शायद सोचा न हो कि प्रेम और पाप
दुनिया में गहरी से गहरी विरोधी स्थितियां है |
क्योंकी जब भी तुम
पाप करते हो, तभी प्रेम नहीं होता इसीलिए कर पते हो| सभी पाप प्रेम के अभाव
से पैदा होते है| अगर प्रेम हो तो पाप असंभव है | इसलिए तो महावीर कहते
है, अहिंसा | अहिंसा का अर्थ है, प्रेम| बुद्ध कहते है, करुणा | करुणा का
अर्थ है प्रेम| और जीजस का तो वचन साफ है लव इस गाड | वह तो कहते है, तुम
ईश्वर की बात ही छोड़ दो, प्रेम ही परमात्मा है| —
क्योंकी जब भी तुम पाप करते हो, तभी प्रेम नहीं होता इसीलिए कर पते हो| सभी पाप प्रेम के अभाव से पैदा होते है| अगर प्रेम हो तो पाप असंभव है | इसलिए तो महावीर कहते है, अहिंसा | अहिंसा का अर्थ है, प्रेम| बुद्ध कहते है, करुणा | करुणा का अर्थ है प्रेम| और जीजस का तो वचन साफ है लव इस गाड | वह तो कहते है, तुम ईश्वर की बात ही छोड़ दो, प्रेम ही परमात्मा है| —
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