Thursday, 14 February 2013

तुम प्रेम हो ! "

रेम की आकांक्षा ही तो तुम्हारी आत्मा है| तुम कितने ही जंगलो में चले जाओ, कितनी ही दूर, और कितनी ही गुफाओं में बैठ जाओ, तुम्हारे भीतर प्रेम सुगबुगायेगा, तुम्हारे भीतर प्रेम का झरना फूटने की चेष्टा करता रहेगा| गुफा में बैठोगे तो गुफा से प्रेम हो जायेगा| किसी वृक्ष के नीचे बैठोगे तो उस वृक्ष से प्रेम हो जायेगा| कोई पक्षी तुम्हारे कंधे पर आकर बैठने लगेगा, वृक्ष के नीचे तुम्हे शांत बैठा देखकर, तो उस पक्षी से प्रेम हो जायेगा| अगर वह एक दिन न आएगा, तो तुम प्रतीक्षा करोगे| वैसी ही प्रतीक्षा जैसे प्रेमी प्रेयसी की करता है या प्रेयसी प्रेमी की करती है| तुम चिंतातुर होओगे की क्या हुआ उस पक्षी का?, अंधड़ था, तूफ़ान था, कहीं गिर तो नहीं गया? कहीं मर तो नहीं गया? वह वृक्ष सुखने लगेगा तो तुम बेचैन होओगे, तुम दूर नदी से जल भर कर लाओगे, उस वृक्ष को डालोगे| वह बेचैनी वैसी ही होगी जैसे बच्चा बीमार होता है तो माँ को होती है| प्रेम से भागोगे कहाँ? - तुम प्रेम हो ! "
प्रेम की आकांक्षा ही तो तुम्हारी आत्मा है| तुम कितने ही जंगलो में चले जाओ, कितनी ही दूर, और कितनी ही गुफाओं में बैठ जाओ, तुम्हारे भीतर प्रेम सुगबुगायेगा, तुम्हारे भीतर प्रेम का झरना फूटने की चेष्टा करता रहेगा| गुफा में बैठोगे तो गुफा से प्रेम हो जायेगा| किसी वृक्ष के नीचे बैठोगे तो उस वृक्ष से प्रेम हो जायेगा| कोई पक्षी तुम्हारे कंधे पर आकर बैठने लगेगा, वृक्ष के नीचे तुम्हे शांत बैठा देखकर, तो उस पक्षी से प्रेम हो जायेगा| अगर वह एक दिन न आएगा, तो तुम प्रतीक्षा करोगे| वैसी ही प्रतीक्षा जैसे प्रेमी प्रेयसी की करता है या प्रेयसी प्रेमी की करती है| तुम चिंतातुर होओगे की क्या हुआ उस पक्षी का?, अंधड़ था, तूफ़ान था, कहीं गिर तो नहीं गया? कहीं मर तो नहीं गया? वह वृक्ष सुखने लगेगा तो तुम बेचैन होओगे, तुम दूर नदी से जल भर कर लाओगे, उस वृक्ष को डालोगे| वह बेचैनी वैसी ही होगी जैसे बच्चा बीमार होता है तो माँ को होती है| प्रेम से भागोगे कहाँ? - तुम प्रेम हो ! "

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