मनानुसार
साधनासे शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति संभव नहीं !! Spiritual practice as per
one’s own wish doesnt lead to faster spiritual progress
Scroll down to read in English
मनानुसार साधना करना : अधिकांश जिज्ञासु और साधक साधना तो करते हैं; परंतु
योग्य साधना नहीं करते | अधिकांशत: व्यक्ति मनानुसार साधना करते हैं और यह
अयोग्य है | वे मात्र अहंकार और अज्ञानताके कारण ऐसा करते हैं | जैसे हमें
कहीं जाना हो और यदि हमें मार्ग पता न हो तो हम किसीकी सहायता लेते हैं,
यदि कोई यंत्र बिगड़ जाये और हमें ठीक करना नहीं आता हो
तो चाहे वह
कितना भी महंगा क्यों न हो, अपनेसे कम पढे लिखे कारीगरको ठीक करने हेतु दे
देते हैं | स्वास्थ्य बिगड़ जाये तो अपना शरीर किसी चिकित्सकको सुपुर्द कर
देते हैं, मात्र जब साधना अर्थात सूक्ष्म अध्यात्मशास्त्र और जन्म-मरणके
चक्रसे मुक्तिकी बात आती है तो स्वयं ही प्रयोग करने लगते हैं ! यह अहंकार
नहीं तो और क्या है !! अपने २० वर्षके साधनाके कालखंडमें अनेक आध्यात्मिक
व्यक्ति, जिज्ञासु और साधकसे मिली जिनके आध्यात्मिक जीवनमें उन्हें जितनी
उपलब्धि प्राप्त करनी चाहिए थी वह नहीं हुई और उसका एक ही कारण था अपने
मनके अनुसार साधना करना | ध्यान रहे अध्यात्ममें मुझे क्या प्रिय है उंसका
विशेष महत्व नहीं होता, ईश्वरको क्या प्रिय है इसका महत्व होता है ! अनेक
बार साधक किसीको गुरु मान लेते हैं; परंतु उनकी आज्ञाका पालन नहीं करते,
अपने मनकी करते हैं, ऐसेमें गुरुतत्त्व किस प्रकार कार्य करेगा आप ही सोचें
?...........
Scroll down to read in English
मनानुसार साधना करना : अधिकांश जिज्ञासु और साधक साधना तो करते हैं; परंतु योग्य साधना नहीं करते | अधिकांशत: व्यक्ति मनानुसार साधना करते हैं और यह अयोग्य है | वे मात्र अहंकार और अज्ञानताके कारण ऐसा करते हैं | जैसे हमें कहीं जाना हो और यदि हमें मार्ग पता न हो तो हम किसीकी सहायता लेते हैं, यदि कोई यंत्र बिगड़ जाये और हमें ठीक करना नहीं आता हो
तो चाहे वह कितना भी महंगा क्यों न हो, अपनेसे कम पढे लिखे कारीगरको ठीक करने हेतु दे देते हैं | स्वास्थ्य बिगड़ जाये तो अपना शरीर किसी चिकित्सकको सुपुर्द कर देते हैं, मात्र जब साधना अर्थात सूक्ष्म अध्यात्मशास्त्र और जन्म-मरणके चक्रसे मुक्तिकी बात आती है तो स्वयं ही प्रयोग करने लगते हैं ! यह अहंकार नहीं तो और क्या है !! अपने २० वर्षके साधनाके कालखंडमें अनेक आध्यात्मिक व्यक्ति, जिज्ञासु और साधकसे मिली जिनके आध्यात्मिक जीवनमें उन्हें जितनी उपलब्धि प्राप्त करनी चाहिए थी वह नहीं हुई और उसका एक ही कारण था अपने मनके अनुसार साधना करना | ध्यान रहे अध्यात्ममें मुझे क्या प्रिय है उंसका विशेष महत्व नहीं होता, ईश्वरको क्या प्रिय है इसका महत्व होता है ! अनेक बार साधक किसीको गुरु मान लेते हैं; परंतु उनकी आज्ञाका पालन नहीं करते, अपने मनकी करते हैं, ऐसेमें गुरुतत्त्व किस प्रकार कार्य करेगा आप ही सोचें ?...........
No comments:
Post a Comment