Monday, 23 September 2013

ವಾಸ್ತುದೋಷವನ್ನು ದೂರಗೊಳಿಸುವ ಸುಲಭ ಪದ್ಧತಿಗಳು

ವಾಸ್ತುದೋಷವನ್ನು ದೂರಗೊಳಿಸುವ ಸುಲಭ ಪದ್ಧತಿಗಳು ವಾಸ್ತುವಿನಲ್ಲಿನ ಅಯೋಗ್ಯ ಮತ್ತು ತೊಂದರೆದಾಯಕ ಸ್ಪಂದನಗಳನ್ನು ದೂರಗೊಳಿಸಿ, ಅಲ್ಲಿ ಉತ್ತಮ ಸ್ಪಂದನಗಳನ್ನು ನಿರ್ಮಾಣ ಮಾಡುವುದೆಂದರೆ ವಾಸ್ತುವಿನ ಶುದ್ಧೀಕರಣ ಮಾಡುವುದು. ಇತ್ತೀಚೆಗೆ, ವಾಸ್ತುವಿನಲ್ಲಿ ದೋಷಗಳು ಇರಬಾರದೆಂದು ವಾಸ್ತುಶಾಸ್ತ್ರದ ಬಗ್ಗೆ ಗಂಭೀರವಾಗಿ ವಿಚಾರ ಮಾಡುತ್ತಾರೆ. ಇದಕ್ಕಾಗಿ ವಾಸ್ತುದೋಷದಿಂದಾಗುವ ದುಷ್ಪರಿಣಾಮಗಳ ಕೆಲವು ಉದಾಹರಣೆಗಳು ಮತ್ತು ವಾಸ್ತುದೋಷಗಳನ್ನು ದೂರಗೊಳಿಸಲು ಪ್ರಚಲಿತವಿರುವ ಪದ್ಧತಿಗಳಿಗಿಂತ ಕಡಿಮೆ ಖರ್ಚಿನ ಮತ್ತು ಸುಲಭ ವಿಧಾನಗಳ ಮಾಹಿತಿಯನ್ನು ಮುಂದೆ ಕೊಟ್ಟಿದ್ದೇವೆ. ವಾಸ್ತುದೋಷದಿಂದಾಗುವ ದುಷ್ಪರಿಣಾಮಗಳ ಕೆಲವು ಉದಾಹರಣೆಗಳು . ಹೊಟ್ಟೆಯ ವಿಕಾರ, ಅಂಗವಿಕಲತೆ ಮುಂತಾದ ಶಾರೀರಿಕ ರೋಗಗಳು  . ಚಿಂತೆ, ನಿರಾಶೆ ಮುಂತಾದ ಮಾನಸಿಕ ರೋಗಗಳು  . ಸತತವಾಗಿ ಆರ್ಥಿಕ ನಷ್ಟವಾಗುವುದು, ಮನೆಯಲ್ಲಿ ಜಗಳವಾಗುವುದು  . ನಾಮಜಪದಲ್ಲಿ ಅಡಚಣೆಯುಂಟಾಗುವುದು, ಕೆಟ್ಟಶಕ್ತಿಗಳ ಅಸ್ತಿತ್ವದ ಅರಿವಾಗುವುದು. ವಾಸ್ತುಶುದ್ಧಿಯ ಕೆಲವು ಸುಲಭ ಪದ್ಧತಿಗಳು . ಅನಾವಶ್ಯಕ ವಸ್ತುಗಳನ್ನು ಕಡಿಮೆ ಮಾಡುವುದು: ಮನೆಯಲ್ಲಿನ ಅನಾವಶ್ಯಕ ವಸ್ತುಗಳನ್ನು ಕಡಿಮೆ ಮಾಡಿ ಉಳಿದ ವಸ್ತುಗಳನ್ನು ಸುವ್ಯವಸ್ಥಿತವಾಗಿ ಇಡಬೇಕು. . ವಿಭೂತಿಯನ್ನು ಊದುವುದು: ತೀರ್ಥಕ್ಷೇತ್ರಗಳ ಅಥವಾ ಯಜ್ಞದ ವಿಭೂತಿಯನ್ನು ಕೈಯಲ್ಲಿ ತೆಗೆದುಕೊಂಡು ಪ್ರಾರ್ಥನೆ ಮಾಡಿ ವಾಸ್ತುವಿನಿಂದ ಹೊರಗಿನ ದಿಕ್ಕಿಗೆ ಊದಬೇಕು. ವಾಸ್ತುವಿನಲ್ಲಿ ವಿಭೂತಿಯ ತೀರ್ಥವನ್ನು (ನೀರಿನಲ್ಲಿ ವಿಭೂತಿಯನ್ನು ಹಾಕಿ ತಯಾರು ಮಾಡಿದ ನೀರು) ಸಿಂಪಡಿಸಿದರೆ ಅದರ ಪರಿಣಾಮವು ಹೆಚ್ಚು ಕಾಲ ಉಳಿಯುತ್ತದೆ. . ಗೋಮೂತ್ರ ಸಿಂಪಡಿಸುವುದು: ವಾಸ್ತುವಿನಲ್ಲಿ ಗೋಮೂತ್ರವನ್ನು ಸಿಂಪಡಿಸಬೇಕು. ಇದರಿಂದ ಕೆಟ್ಟಶಕ್ತಿಗಳ ತೊಂದರೆಯ ನಿವಾರಣೆಯಾಗುತ್ತದೆ. . ಧೂಪ ಹಾಕುವುದು: ಪ್ರತಿದಿನ ಎರಡು ಸಲ ಮನೆಯಲ್ಲಿ ಧೂಪವನ್ನು ಹಾಕಬೇಕು. ಇದರಿಂದ ವಾಸ್ತುವಿನಲ್ಲಿ ಒಳ್ಳೆಯ ಶಕ್ತಿಗಳು ಆಕರ್ಷಿತವಾಗಿ ವಾಸ್ತುವಿನ ಸಾತ್ತ್ವಿಕತೆಯು ಹೆಚ್ಚಾಗುತ್ತದೆ. ಹಾಗೆಯೇ ಕೆಲವೊಂದು ಕೆಟ್ಟಶಕ್ತಿಗಳು ವಾಸ್ತುವಿನಿಂದ ದೂರ ಹೋಗುತ್ತವೆ. . ನಾಮಜಪ ಮಾಡುವುದು: ವಾಸ್ತುಶುದ್ಧಿಗಾಗಿ ಉಪಾಸ್ಯದೇವತೆ ಮತ್ತು ವಾಸ್ತುದೇವತೆಗೆ ಪ್ರಾರ್ಥನೆ ಮಾಡಿ ನಾಮಜಪ ಮಾಡಬೇಕು. ಮೇಲೆ ಹೇಳಿದ ನಾಲ್ಕು ಉಪಾಯಗಳಿಗಿಂತ ನಾಮಜಪದಿಂದ ಅಧಿಕ ಲಾಭವಾಗುತ್ತದೆ. . ದೇವತೆಗಳ ನಾಮಜಪದ ಪಟ್ಟಿಗಳನ್ನು ಅಂಟಿಸುವುದು: ಹಂಚಿನ ಮನೆಗಳಲ್ಲಿ ಅಥವಾ ಮನೆಗಳ ಕೋಣೆಗಳಲ್ಲಿ ಛಾವಣಿಯು ಇಳಿಜಾರಾಗಿರುತ್ತದೆ, ಅಂದರೆ ಛಾವಣಿಯು ನೆಲಕ್ಕೆ ಸಮಾನಾಂತರವಾಗಿರುವುದಿಲ್ಲ. ಇದರಿಂದ ವಾಸ್ತುವಿನಲ್ಲಿ ಅಯೋಗ್ಯ ಸ್ಪಂದನಗಳು ತಯಾರಾಗಿ ವಾಸ್ತುವಿನಲ್ಲಿರುವ ಜನರಿಗೆ ತೊಂದರೆಯಾಗುತ್ತದೆ. ಇದಕ್ಕಾಗಿ ದೇವತೆಗಳ ನಾಮಪಟ್ಟಿಗಳನ್ನು ಕೋಣೆಯ ನಾಲ್ಕೂ ಬದಿಗಳ ಗೋಡೆಗಳ ಮೇಲೆ ಒಂದು ರೇಖೆಯಲ್ಲಿ (ನೆಲದಿಂದ ಸಮಾನಾಂತರವಾಗಿ) ಹಚ್ಚಬೇಕು. ನಾಮಪಟ್ಟಿಗಳಿಂದ ನೆಲಕ್ಕೆ ಸಮಾನಾಂತರ ಸೂಕ್ಷ್ಮ ಛಾವಣಿಯು ನಿರ್ಮಾಣವಾಗುತ್ತದೆ. ನಾಮಪಟ್ಟಿಗಳಿಂದ ಪ್ರಕ್ಷೇಪಿತವಾಗುವ ಚೈತನ್ಯ ಲಹರಿಗಳು ನೆಲಕ್ಕೆ ಸಮಾನಾಂತರವಾಗಿ ಮತ್ತು ಎದುರಿನ ದಿಕ್ಕಿನಲ್ಲಿ ಹೋಗುವುದರಿಂದ ಸೂಕ್ಷ್ಮಛಾವಣಿಯು ನಿರ್ಮಾಣವಾಗುತ್ತದೆ. ಇದರಿಂದಾಗಿ ವಾಸ್ತುವಿನಲ್ಲಿ ಒಳ್ಳೆಯ ಸ್ಪಂದನಗಳು ನಿರ್ಮಾಣವಾಗಿ ವಾಸ್ತುವಿನ ರಕ್ಷಣೆಯಾಗುತ್ತದೆ. (ಆಕೃತಿ ಕ್ರ. 1) ನಾಮಪಟ್ಟಿಗಳನ್ನು ಹಚ್ಚುವಾಗ ಎರಡು ನಾಮಪಟ್ಟಿಗಳ ನಡುವಿನ ಅಂತರವು 1 ಮೀಟರಿಗಿಂತ ಜಾಸ್ತಿ ಇರಬಾರದು. ದಿಕ್ಕಿಗನುಸಾರ ಹಾಕುವ ನಾಮಪಟ್ಟಿಗಳು - 1. ಉತ್ತರ - ಶಿವ 2. ದಕ್ಷಿಣ - ದತ್ತ ಮತ್ತು ಗಣಪತಿ 3. ಪೂರ್ವ - ಶ್ರೀರಾಮ, ಶ್ರೀಕೃಷ್ಣ ಮತ್ತು ಮಾರುತಿ 4. ಪಶ್ಚಿಮ - ದೇವಿ (ಶ್ರೀ ದುರ್ಗಾದೇವಿ, ಅಂಬಾ ಇತ್ಯಾದಿ) ಸನಾತನ ಸಂಸ್ಥೆಯು ನಿರ್ಮಿಸಿದ ದೇವತೆಗಳ ಸಾತ್ತ್ವಿಕ ನಾಮಪಟ್ಟಿಗಳು (ವಿವರಣೆ) 

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ತಪ್ಪು ತಿದ್ದುವ ಕೌಶಲ್ಯ

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Saturday, 21 September 2013

Saikatha

  • साईनाथ तेरे हज़ारों हाथ
    Like ·  ·  · 15 hours ago · 
  • एक समय की बात है किसी गाँव में एक साधु रहता था, वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था और निरंतर एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या किया करता था | उसका भागवान पर अटूट विश्वास था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते थे|

    एक बार गाँव में बहुत भीषण बाढ़ आ गई | चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे | जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप रहे हैं तो उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी| पर साधु ने कहा-

    ” तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!”

    धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ता गया , और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा , इतने में वहां से एक नाव गुजरी|

    मल्लाह ने कहा- ” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा |”

    “नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है , मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !! “, साधु ने उत्तर दिया.

    नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया.

    कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी , साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने लगा | तभी अचानक उन्हें गड़गडाहत की आवाज़ सुनाई दी, एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल ने एक रस्सी लटकाई और साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया|

    पर साधु फिर बोला-” मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा |”

    उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया |

    कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी |

    मरने के बाद साधु महाराज स्वर्ग पहुचे और भगवान से बोले -. ” हे प्रभु मैंने तुम्हारी पूरी लगन के साथ आराधना की… तपस्या की पर जब मै पानी में डूब कर मर रहा था तब तुम मुझे बचाने नहीं आये, ऐसा क्यों प्रभु ?

    भगवान बोले , ” हे साधु महात्मा मै तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं बल्कि तीन बार आया , पहला, ग्रामीणों के रूप में , दूसरा नाव वाले के रूप में , और तीसरा ,हेलीकाप्टर बचाव दल के रूप में. किन्तु तुम मेरे इन अवसरों को पहचान नहीं पाए |”

    मित्रों, इस जीवन में ईश्वर हमें कई अवसर देता है , इन अवसरों की प्रकृति कुछ ऐसी होती है कि वे किसी की प्रतीक्षा नहीं करते है , वे एक दौड़ते हुआ घोड़े के सामान होते हैं जो हमारे सामने से तेजी से गुजरते हैं , यदि हम उन्हें पहचान कर उनका लाभ उठा लेते है तो वे हमें हमारी मंजिल तक पंहुचा देते है, अन्यथा हमें बाद में पछताना ही पड़ता है|

The Gita – Chapter 2 – Shloka 31

The Gita – Chapter 2 – Shloka 31
तथा अपने धर्म को देखकर भी तू शोक करने के योग्य नहीं है अर्थात् तुझे भय नहीं करना चाहिये ; क्योंकि क्षत्रिय के लिये धर्मयुक्त्त युद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी कर्तव्य नहीं है ।। ३१ ।।
Looking upon your duty, ARJUNA, as a Kshatriya (warrior), you should never be afraid, but be courageous, because there is nothing better for a Kshatriya than to fight in a righteous war.
Read earlier shlokas at - Bhagwad Geeta - Lord Krishna

ॐ नम: शिवाय (Om Namah Shivaya)

ॐ मृत्यूंजय महादेव, त्राहिमाम शरणागतं।
जन्ममृत्यू जरा व्याधे पिडिदम कर्मबन्धनय।

हे मृत्यूंज्य महादेव, मैं आपकी शरण में आया हूँ। जन्म-मृत्यू, रोग, एवं कर्म बन्धन से मुझे मुक्ति प्रदान करें।

The Many Forms of Durga

  • The Many Forms of Durga
    There are many incarnations of Durga: Kali, Bhagvati, Bhavani, Ambika, Lalita, Gauri, Kandalini, Java, Rajeswari, et al. Durga incarnated as the united power of all divine beings, who offered her the required physical attributes and weapons to kill the demon "Mahishasur". Her nine appellations are Skondamata, Kusumanda, Shailaputri, Kaalratri, Brahmacharini, Maha Gauri, Katyayani, Chandraghanta and Siddhidatri.
    Like ·  ·  · 3 hours ago · 
  • जो सिंह की पीठ पर विराजमान है,जिनके मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है,जो मरकतमणि के समान कान्तिवाली अपनी चार भुआओं में शंख चक्र धनुष और बाण धारण करती हैं,तीन नेत्रों से सुशोभित होती है,जिनके भिन्न भिन्न अंग बांधे हुये बाजूबंद हार कंकण खनखनाती हुई करधनी और रुनझुन करते हुये नूपुरों से विभूषित है,तथा जिनके कानों में रत्न जटित कुण्डल झिलमिलाते रहते है,वे भगवती दुर्गा हमारी दुर्गति दूर करने वाली हों।
    Like ·  ·  · 18 hours ago · 

ಆತ್ಮಸಿದ್ಧಾಂತ.... ನೀವು ನಂಬುತ್ತೀರಲ್ಲ?

ಆತ್ಮಸಿದ್ಧಾಂತ....
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पाप का गुरु कौन

Story : पाप का गुरु कौन? PLEASE LIKE -> Bhagwad Geeta
एक पंडित जी कई वर्षों तक काशी में शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद अपने गांव लौटे। गांव के एक किसान ने उनसे पूछा, पंडित जी आप हमें यह बताइए कि पाप का गुरु कौन है? प्रश्न सुन कर पंडित जी चकरा गए, क्योंकि भौतिक व आध्यात्मिक गुरु तो होते हैं, लेकिन पाप का भी गुरु होता है, यह उनकी समझ और अध्ययन के बाहर था। पंडित जी को लगा कि उनका अध्ययन अभी अधूरा है, इसलिए वे फिर काशी लौटे। फिर अनेक गुरुओं से मिले। मगर उन्हें किसान के सवाल का जवाब
नहीं मिला। अचानक एक दिन उनकी मुलाकात एक वेश्या से हो गई। उसने पंडित जी से उनकी परेशानी का कारण पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी।

वेश्या बोली, पंडित जी..! इसका उत्तर है तो बहुत ही आसान, लेकिन इसके लिए कुछ दिन आपको मेरे पड़ोस में रहना होगा। पंडित जी के हां कहने पर उसने अपने पास
ही उनके रहने की अलग से व्यवस्था कर दी। पंडित जी किसी के हाथ का बना खाना नहीं खाते थे, नियम- आचार और धर्म के कट्टर अनुयायी थे।
इसलिए अपने हाथ से खाना बनाते और खाते। इस प्रकार से कुछ दिन बड़े आराम से
बीते, लेकिन सवाल का जवाब अभी नहीं मिला।
एक दिन वेश्या बोली, पंडित जी...! आपको बहुत तकलीफ होती है खाना बनाने में। यहां देखने वाला तो और
कोई है नहीं। आप कहें तो मैं नहा-धोकर आपके लिए कुछ भोजन तैयार कर दिया करूं।
आप मुझे यह सेवा का मौका दें, तो मैं दक्षिणा में पांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन दूंगी।
स्वर्ण मुद्रा का नाम सुन कर पंडित जी को लोभ आ गया। साथ में पका-
पकाया भोजन। अर्थात दोनों हाथों में लड्डू। इस लोभ में पंडित जी अपना नियम-
व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ भूल गए। पंडित जी ने हामी भर दी और वेश्या से बोले, ठीक है, तुम्हारी जैसी इच्छा।
लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना कि कोई देखे नहीं तुम्हें मेरी कोठी में आते-जाते हुए। वेश्या ने पहले
ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर पंडित जी के सामने परोस दिया। पर ज्यों ही पंडित जी खाने को तत्पर हुए,
त्यों ही वेश्या ने उनके सामने से परोसी हुई थाली खींच ली। इस पर पंडित जी क्रुद्ध हो गए और बोले, यह क्या मजाक है?

वेश्या ने कहा, यह मजाक नहीं है पंडित जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है।
यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथ का भी नहीं पीते थे,मगर
स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया।
यह लोभ ही पाप का गुरु है।

ದೇಹವು ದೇವರ ನಿಲಯ

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Hari Devote

Sri Mata Amritanandamayi Devi

Who is Amma?
Sri Mata Amritanandamayi Devi

Many people wonder how a little girl from a simple South Indian village came to be known throughout the world as “Amma, the Mother of All.” Motherhood, in its ultimate sense, has nothing to do with bearing a child, but with love, compassion and selflessness. It lies in totally giving one’s self to others.
If we look at Amma’s life, this is what we see—someone who has offered her every thought, word and deed for the benefit of others. Giving is the essence. It’s just that when the homeless come crying for shelter and Amma gives them a house, we call her a “humanitarian.” And when the sorrowful come crying for emotional solace and she gives them love, we call her a “mother.” And when those thirsty for spiritual knowledge come earnestly seeking and she gives them wisdom, we call her a “guru.” This attitude of selflessly serving all creation, knowing others to be extensions of one’s own self, Amma refers to as vishwa matrutvam—universal motherhood. And it is to this pinnacle of human existence that Amma is trying to awaken the world through her life, teachings and darshan [divine embrace].
Questions about the nature of the soul, the universe and God; about dharma, love and family life; about meditation and other spiritual practices…. Amma has been clearing the doubts of sincere seekers on such subtle subjects since her youth. She never had a guru nor studied the Vedas, yet she speaks on the truths expressed within the scriptures with wisdom, clarity and true insight. Hers is not an academic knowledge, but the knowledge of one who is ever-established in the Ultimate Reality. It is for this reason that Amma’s simple childhood home has become the spiritual home to thousands—an ashram where aspirants from around the world reside in order to imbibe Amma’s wisdom and realize the Truth that is their real nature. The seeker is instructed as per his level—from the child to the sannyasi [monk].
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Tuesday, 17 September 2013

Consciousness and the Absolute

  • संतोंकी शरणमें जाकर सेवा करनेके लिए प्रेरित करती श्रीमदभगवद्गीताके चौथे अध्यायका यह श्लोक - 

    तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।
    उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्वदर्शिनः ॥

    भावार्थ : उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भलीभाँति दण्डवत्‌ प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोडकर सरलतापूर्वक प्रश्न करनेसे वे परमात्म तत्वको भलीभाँति जाननेवाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्वज्ञानका उपदेश करेंगे॥

























  • To be aware is to be awake.
    Unaware means asleep.
    You are aware anyhow, you need not try to be. What you need is to be aware of being aware.

    Be aware deliberately and consciously, broaden and deepen the field of awareness. You are always conscious of the mind, but you are not aware of yourself as being conscious.

    ~ Nisargadatta Maharaj

ಕಲಿಯುಗದ ಸರ್ವಶ್ರೇಷ್ಠ ಸಾಧನೆ - ನಾಮಜಪದ ಬಗ್ಗೆ ಓದಿ -

ಪ.ಪೂ. ಗೋಂದವಲೇಕರ ಮಹಾರಾಜರ ಪ್ರವಚನ

ಕಲಿಯುಗದ ಸರ್ವಶ್ರೇಷ್ಠ ಸಾಧನೆ - ನಾಮಜಪದ ಬಗ್ಗೆ ಓದಿ -

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Tanuja Thakur
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सर्वोपनिषदो गाव: दोग्धा गोपालनंदन: |
पार्थो वत्स: सुधी: भोक्ता दुग्धं गीतामॄतं महत् ||
सभी उपनिषद गौ समान हैं, गोपालनंदन( भगवान श्रीकृष्ण) उनके रखवाले हैं | पार्थ (अर्जुन ) बछडे समान हैं जो उस दुग्धका रसपान करते हैं और श्रीमदभगवद्गीता उन गायोंके दुग्ध है |
All Upanishads are (like)cows, Gopalnandana (Shrikrishna) is their keeper. Intelligent Partha (Arjun) is the calf who enjoys the milk and splendid Geetamrut is the milk of these cows. (Geeta is the precise summary of all Upanishadas.)
source : www.tanujathakur.com