Friday, 22 February 2013

ॐ !! shri sita ram consciousness !! ॐ.

 
  1. HAPPY VALENTINES DAY:

    गिर अर्थ जल बीच सम कहियत भिन्न न भिन्न ।
    बंदों सीता राम पद जिनहिं परम प्रिय खिन्न ।।
    (श्री रामचरितमानस, बालकाण्ड,18 )

    who appear different as speech and its meaning, as sea and its waves but still are not different. Who love poor and helpless. I pay my obesiences to that lotus feet of sri sita ramji.


    !! जय सिया राम !!

  2. कवच अभेद बिप्र-गुरुपूजा, एहि सम बिजय उपाय न दूजा।
    सखा धर्ममय अस रथ जाकें, जीतन कहँ न कतहूँ रिपु ताकें।

    worshiping guu and vipra(bramhan who knows vedas) prooves to be an unconquerable armour sheild. No other method is so great to obtain victory. Oh! friend whosoever has this dharma chariot (rath) why shall he not win!!???


    !! जय सिया राम !!

  3. रामनामैव नामैव नामैव मम जीवनं ।
    कलौ नस्तैव नस्तैव नस्तैव गतिरन्यथा ।।
    (स्कन्ध पुराण, उत्तरखंड ,नारद-सनत्कुमार संवाद ,पंचम अध्याय ,51)


    The name of shri ram and alone shri ram is my life.There is no other means other than shri ram ...See more

  4. रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
    श्री रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः||
    My salutations to Lord Rama; To Shri Ramabadhra, To Shri Ramachandra, To the lord of Vedas, To the chief of Raghu clan, To the lord of all worlds, And to the Lord of Sitā.


    !! जय सिया राम !!
  5. सुरो सुरो वाप्यथः वानरो नरः सर्वात्मना यः सुकृतग्यमुत्तमं |
    भजेहं रामं मनुजाकृतिं हरिं यः उत्तरानन यत्कोशलानदिविमति ||
    (श्री मद भग्वत् महापुरान 5.19.8)

    Whether one is a demigod or a demon, a man or a creature other than man, such as beast or bird all should worship LORD RAMA, the supreme personality of godhead, who has form of human being. There is no need of great austerity or penances to worship lord rama. He becomes easily satisfied with even a small service done to him.


    !! जय सिया राम !!
  6. सो गोसाईं बिधि गति जेहि छेंकी । सकई को टार टेक जो टेकी ।।
    (श्री राम चरितमानस, अयोध्या काण्ड 254,4)
    Oh lord you are the one who has stopped gati of bramha. Whatever you have certained who can go against it ??


    !! जय सिया राम !!

  7. O son of Bharata, according to one’s existence under the various modes of nature, one evolves a particular kind of faith. The living being is said to be of a particular faith according to the modes he has acquired.
    Men in the mode of goodne...See more
  8. सर्वदेवमयो रामः स्मृतश्चार्त्तिप्रणाशनः ॥
    (Skanda Purana)
    All the deities reside in Srī Rama or Srī Rama is the original root of everyone . Srī Rama destroys all type of agonies of his devotees.

    !! जय सिया राम !!

  9. PROBLEMS IN CHANTING:::::
    It may be a problem for many beginners who are not able to concentrate their mind during chanting.

    As a devotee recently asked what to do as he is not able to concentrate during chanting.. so I thought to update t...See more

  10. यश्च रामं न पश्येत्तु यं च रामो न पश्यति ।
    निन्दितः सर्वलोकेषु स्वात्माप्येनं विगर्हते ।।
    [Valmiki RamayaNa 2.17.14]

    जिसने श्री राम को नहीं देखा या जिसे भगवान श्री राम ने नहीं देखा , वह परम अ...See more
Without desiring fruitive results, one should perform various kinds of sacrifice, penance and charity with the word tat. The purpose of such transcendental activities is to get free from material entanglement.
(bhagwatgeeta)

!! जय सिया राम !!
Without desiring fruitive results, one should perform various kinds of sacrifice, penance and charity with the word tat. The purpose of such transcendental activities is to get free from material entanglement.
                                                                     (bhagwatgeeta)

!! जय सिया राम !!

Oм ηαмαн ѕнιναy

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I am Hindu and I Am Proud To Be A Hindu
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राम से बड़ा राम का नाम
अंत में निकला ये परिणाम, ये परिणाम,
राम से बड़ा राम का नाम ..

सिमरिये नाम रूप बिनु देखे,
कौड़ी लगे ना दाम .
नाम के बांधे खिंचे आयेंगे,
आखिर एक दिन राम .
राम से बड़ा राम का नाम ..

जिस सागर को बिना सेतु के ,
लांघ सके ना राम .
कूद गये हनुमान उसी को,
लेकर राम का नाम .
राम से बड़ा राम का नाम ..

वो दिलवाले डूब जायेंगे और वो दिलवाले क्या पायेंगे ,
जिनमें नहीं है नाम ..
वो पत्थर भी तैरेंगे जिन पर
लिखा हुआ श्री राम.
राम से बड़ा राम का नाम ..
जय परशुराम जी
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राम से बड़ा राम का नाम
 अंत में निकला ये परिणाम, ये परिणाम,
 राम से बड़ा राम का नाम ..
 
सिमरिये नाम रूप बिनु देखे,
 कौड़ी लगे ना दाम .
 नाम के बांधे खिंचे आयेंगे,
 आखिर एक दिन राम .
 राम से बड़ा राम का नाम ..
 
जिस सागर को बिना सेतु के ,
 लांघ सके ना राम .
 कूद गये हनुमान उसी को,
 लेकर राम का नाम .
 राम से बड़ा राम का नाम ..
 
वो दिलवाले डूब जायेंगे और वो दिलवाले क्या पायेंगे ,
 जिनमें नहीं है नाम ..
 वो पत्थर भी तैरेंगे जिन पर
 लिखा हुआ श्री राम.
 राम से बड़ा राम का नाम ..
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महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापूर
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Sanaischara Dwadasa Namam

 
 
Sanaischara Dwadasa Namam

Sanaischara Dwadasa nama stotra
( Prayer with twelve names to Saturn)

Kunee , Sanaischaro , manda , chaya hrudaya nandana ,
Marthandaja sthadha souree , pathangee , Gruha nayaka,
Brahmanya kroora karma cha neela vasthro anjana dhuthi,
Dwadasithani Naamami prathar uthaya ya padeth,
SAnaischara bhayam nasthi . Lalkshmim aayuscha vindathi,
Dwadasahta janmastha . yekadasa phala pradha ,
Vishamasthobhi Bhagawan supreethasthya jayathe.
Sanaischara Dwadasa Namam

Sanaischara Dwadasa nama stotra
( Prayer with twelve names to Saturn)

Kunee , Sanaischaro , manda , chaya hrudaya nandana ,
Marthandaja sthadha souree , pathangee , Gruha nayaka,
Brahmanya kroora karma cha neela vasthro anjana dhuthi,
Dwadasithani Naamami prathar uthaya ya padeth,
SAnaischara bhayam nasthi . Lalkshmim aayuscha vindathi,
Dwadasahta janmastha . yekadasa phala pradha ,
Vishamasthobhi Bhagawan supreethasthya jayathe.
एक भजन - मन्त्र मेरे हनुमानजी ने बनाया
है जिस में सारा ब्रह्माण्ड का ज्ञान समाया
जो पढ़े इसे या ध्याये इसे या जपे यह मन्त्र
डर, भय ...से दूर है वह जो पाए यह सफल यंत्र
न भाव लगे न रोकड़ा न मोल लगे न दाम
बनाये बिगड़े सारे काम बस जपते रहो यह नाम
अब तो भुजो अब तो बताओ क्या है वह नाम
इसने भूझा उसने भूझा सबने भूझा
राम राम है राम राम है जय श्री राम
_/\_ मारुति नंदन नमो नमः _/\_ कष्ट भंजन नमो नमः _/\_
_/\_ असुर निकंदन नमो नमः _/\_ श्रीरामदूतम नमो नमः _/\_


Oм ηαмαн ѕнιναy <==ज्वाइन करे ==> Oм ηαмαн ѕнιναy.
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एक भजन - मन्त्र मेरे हनुमानजी ने बनाया
है जिस में सारा ब्रह्माण्ड का ज्ञान समाया
जो पढ़े इसे या ध्याये इसे या जपे यह मन्त्र
डर, भय ...से दूर है वह जो पाए यह सफल यंत्र
न भाव लगे न रोकड़ा न मोल लगे न दाम
बनाये बिगड़े सारे काम बस जपते रहो यह नाम
अब तो भुजो अब तो बताओ क्या है वह नाम
इसने भूझा उसने भूझा सबने भूझा
राम राम है राम राम है जय श्री राम
_/\_ मारुति नंदन नमो नमः _/\_ कष्ट भंजन नमो नमः _/\_
_/\_ असुर निकंदन नमो नमः _/\_ श्रीरामदूतम नमो नमः _/\_


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हाजी अली दर्गा (मुंबई)
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Thursday, 21 February 2013

हिंदुत्व से बढ़कर कोई धर्म नहीं"गौ गीता गंगा और गायत्री

मंदिर जाने के चमत्कार जानेंगे तो आप भी रोज जाएंगे मंदिर -----
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मंदिर और उसमें स्थापित भगवान की मूर्ति हमारे लिए आस्था के केंद्र हैं। मंदिर हमारे धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं और हमारे भीतर आस्था जगाते हैं। किसी भी मंदिर को देखते ही हम श्रद्धा के साथ सिर झुकाकर भगवान के प्रति नतमस्तक हो जाते हैं। आमतौर पर हम मंदिर भगवान के दर्शन और इच्छाओं की पूर्ति के लिए जाते हैं लेकिन मंदिर जाने के और कई लाभ भी हैं। यहां जानिए मंदिर जाने से हमें क्या-क्या चमत्कारी लाभ प्राप्त होते हैं...

मंदिर वह स्थान है जहां जाकर मन को शांति का अनुभव होता है। वहां हम अपने भीतर नई शक्ति का अहसास करते हैं। हमारा मन-मस्तिष्क प्रफुल्लित हो जाता है। शरीर उत्साह और उमंग से भर जाता है। मंत्रों के स्वर, घंटे-घडिय़ाल, शंख और नगाड़े की ध्वनियां सुनना मन को अच्छा लगता है। इन सभी के पीछे है, ऐसे वैज्ञानिक कारण जो हमें प्रभावित करते हैं।

मंदिरों का निर्माण पूर्ण वैज्ञानिक विधि है। मंदिर का वास्तुशिल्प ऐसा बनाया जाता है, जिससे वहां शांति और दिव्यता उत्पन्न होती है। मंदिर की वह छत जिसके नीचे मूर्ति की स्थापना की जाती है। ध्वनि सिद्धांत को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, जिसे गुंबद कहा जाता है। गुंबद के शिखर के केंद्र बिंदु के ठीक नीचे मूर्ति स्थापित होती है। गुंबद तथा मूर्ति का मध्य केंद्र एक रखा जाता है। गुंबद के कारण मंदिर में किए जाने वाले मंत्रोच्चारण के स्वर और अन्य ध्वनियां गूंजती है तथा वहां उपस्थित व्यक्ति को प्रभावित करती है। गुंबद और मूर्ति का मध्य केंद्र एक ही होने से मूर्ति में निरंतर ऊर्जा प्रवाहित होती है। जब हम उस मूर्ति को स्पर्श करते हैं, उसके आगे सिर टिकाते हैं, तो हमारे अंदर भी ऊर्जा प्रवाहित हो जाती है। इस ऊर्जा से हमारे अंदर शक्ति, उत्साह, प्रफुल्लता का संचार होता है।

मंदिर की पवित्रता हमें प्रभावित करती है। हमें अपने अंदर और बाहर इसी तरह की शुद्धता रखने की प्रेरणा मिलती है। मंदिर में बजने वाले शंख और घंटों की ध्वनियां वहां के वातावरण में कीटाणुओं को नष्ट करते रहती हैं। घंटा बजाकर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करना हमें शिष्टाचार सिखाता है कि जब हम किसी के घर में प्रवेश करें तो पूर्व में सूचना दें। घंटे का स्वर देवमूर्ति को जाग्रत करता है, ताकि आपकी प्रार्थना सुनी जा सके। शंख और घंटे-घडिय़ाल की ध्वनि दूर-दूर तक सुनाई देती है, जिससे आसपास से आने-जाने वाले अंजान व्यक्ति को पता चल जाता है कि आसपास कहीं मंदिर है।

मंदिर में स्थापित देव प्रतिमा में हमारी आस्था और विश्वास होता है। मूर्ति के सामने बैठने से हम एकाग्र होते हैं। यही एकाग्रता धीरे-धीरे हमें भगवान के साथ एकाकार करती है, तब हम अपने अंदर ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करने लगते हैं। एकाग्र होकर चिंतन-मनन से हमें अपनी समस्याओं का समाधान जल्दी मिल जाता है।

मंदिर में स्थापित देव प्रतिमाओं के सामने नतमस्तक होने की प्रक्रिया से हम अनजाने ही योग और व्यायाम की सामान्य विधियां पूरी कर लेते हैं। इससे हमारे मानसिक तनाव, शारीरिक थकावट, आलस्य दूर हो जाते हैं। मंदिर में परिक्रमा भी की जाती है, जिसमें पैदल चलना होता है। मंदिर परिसर में हम नंगे पैर पैदल ही घूमते हैं। यह भी एक व्यायाम है। नए शोध में साबित हुआ है नंगे पैर मंदिर जाने से पगतलों में एक्यूपे्रशर होता है। इससे पगतलों में शरीर के कई भीतरी संवेदनशील बिंदुओं पर अनुकूल दबाव पड़ता है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।

इस तरह हम देखते हैं कि मंदिर जाने से हमे बहुत लाभ है। मंदिर को वैज्ञानिक शाला के रूप में विकसित करने के पीछे हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों का यही लक्ष्य था कि सुबह जब हम अपने काम पर जाएं उससे पहले मंदिर से ऊर्जा लेकर जाएं, ताकि अपने कर्तव्यों का पालन सफलता के साथ कर सकें और जब शाम को थककर वापस आएं तो नई ऊर्जा प्राप्त करें। इसलिए दिन में कम से कम एक या दो बार मंदिर अवश्य जाना चाहिए। इससे हमारी आध्यात्मिक उन्नति तो होती है, साथ ही हमें निरंतर ऊर्जा मिलती है और शरीर स्वस्थ रहता है।
jai parshuram ji

भक्ती सागर

 
Bhagwad Geeta - Chapter 11 - Shloka 33 - TheGita on Facebook

Therefore, arise O son of Kunti (Arjuna), win thy glory, conquer your enemies, enjoy a prosperous kingdom! Through the result of their own Karma, I have doomed these people to die and you, My Dear disciple, are simply a means of Mine by which this task shall be accomplished.

अतएव तू उठ ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीत कर धन-धान्य सम्पन्न राज्य को भोग । ये सब शूर वीर पहले ही से मेरे द्वारा मारे हुए हैं । हे सव्यसाचिन् ! तू तो केवल निमित्त मात्र बन जा ।। ३३ ।।

(To see the Sanskrit shloka, click on the image to enlarge and see in full view or visit www.TheGita.net)

www.Facebook.com/TheGita Twitter @KrishnaGeeta
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Therefore, arise O son of Kunti (Arjuna), win thy glory, conquer your enemies, enjoy a prosperous kingdom! Through the result of their own Karma, I have doomed these people to die and you, My Dear disciple, are simply a means of Mine by which this task shall be accomplished.

अतएव तू उठ ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीत कर धन-धान्य सम्पन्न राज्य को भोग । ये सब शूर वीर पहले ही से मेरे द्वारा मारे हुए हैं  । हे सव्यसाचिन् ! तू तो केवल निमित्त मात्र बन जा ।। ३३ ।। 

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निसर्गात जी तीन तत्त्वे -- (1) उत्पत्ती (2) स्थिती (3) लय -- सतत कार्य करीत असतात त्या तत्त्वांची धारणा मानवात व्हावी म्हणून नियंत्याने त्या प्रत्येक तत्त्वासाठी एक पुरूष व प्रकृती अशा तत्त्वांच्या ‘देव’ व ‘देवता’ यांची योजना करून दिली आहे.त्याप्रमाणे आपण ह्या देव - देवतांचे पूजार्चना करीत असतो. देव स्वरूपात श्रीशंकर हे आद्य असून त्यांचे विविध सौम्य व अंशात्मक स्वरूपातील बारा ज्योर्तिलिंगे व त्यांचे आणखी सौम्य स्वरूप म्हणजे श्रीखंडेराया. श्रीज्योतिबा आदि. तसेच प्रकृती स्वरूपातील अंशात्मक देवता म्हणजे श्रीमहाकाली, श्रीमहालक्ष्मी, श्रीमहासरस्वती व त्यांची सौम्य व अंशात्मक स्वरूपे वेगवेग•या नावाने निरनिरा•या प्रदेशात भौगोलिक गरजेप्रमाणे होत गेली.अशा प्रकारे देव व देवता ह्या अनेक स्वरूपात आजही कार्यरत आहेत.त्यांचे आशिर्वाद प्राप्त करण्यासाठी धर्मशास्त्राप्रमाणे कुलाचार, कुलधर्म व कुलोपासना, निरनिरा•या प्रकारचे देवतार्चन सांगितल्या आहेत.पण आजच्या विज्ञान युगातील प्रगत मानव ते विसरत जात असून आज तो देवधर्म, दानधर्म, परोपकार इत्यादी मानत नाही व त्यांची सेवा मानव करू इच्छित नाही व करीतही नाही.परिणामी देवदेवतांच्या आशिर्वादाला तो पारखा झाला आहे.आशिर्वादाच्या अभावमुळे मानवी जीवनात विविध प्रकाराच्या समस्या उद्भवत आहेत.
निसर्गात जी तीन तत्त्वे -- (1) उत्पत्ती (2) स्थिती (3) लय -- सतत कार्य करीत असतात त्या तत्त्वांची धारणा मानवात व्हावी म्हणून नियंत्याने त्या प्रत्येक तत्त्वासाठी एक पुरूष व प्रकृती अशा तत्त्वांच्या ‘देव’ व ‘देवता’ यांची योजना करून दिली आहे.त्याप्रमाणे आपण ह्या देव - देवतांचे पूजार्चना करीत असतो. देव स्वरूपात श्रीशंकर हे आद्य असून त्यांचे विविध सौम्य व अंशात्मक स्वरूपातील बारा ज्योर्तिलिंगे व त्यांचे आणखी सौम्य स्वरूप म्हणजे श्रीखंडेराया. श्रीज्योतिबा आदि. तसेच प्रकृती स्वरूपातील अंशात्मक देवता म्हणजे श्रीमहाकाली, श्रीमहालक्ष्मी, श्रीमहासरस्वती व त्यांची सौम्य व अंशात्मक स्वरूपे वेगवेग•या नावाने निरनिरा•या प्रदेशात भौगोलिक गरजेप्रमाणे होत गेली.अशा प्रकारे देव व देवता ह्या अनेक स्वरूपात आजही कार्यरत आहेत.त्यांचे आशिर्वाद प्राप्त करण्यासाठी धर्मशास्त्राप्रमाणे कुलाचार, कुलधर्म व कुलोपासना, निरनिरा•या प्रकारचे देवतार्चन सांगितल्या आहेत.पण आजच्या विज्ञान युगातील प्रगत मानव ते विसरत जात असून आज तो देवधर्म, दानधर्म, परोपकार इत्यादी मानत नाही व त्यांची सेवा मानव करू इच्छित नाही व करीतही नाही.परिणामी देवदेवतांच्या आशिर्वादाला तो पारखा झाला आहे.आशिर्वादाच्या अभावमुळे मानवी जीवनात विविध प्रकाराच्या समस्या उद्भवत आहेत.
 
क्रोध इस बात की खबर है कि भीतर आत्मा अंधकार में है,बीमार है, अस्वस्थ है,
बेईमानी, असत्य, इस बात कि खबर है कि भीतर प्राण स्वस्थ नहीं है,
ये सारी खबरे है, ये लक्षण है, यह बिमारी नहीं हे, बिमारी कुछ और है,
बिमारी दूसरी है और बीमारी एक ही हे और वह बिमारी है आत्म अज्ञान
क्रोध इस बात की खबर है कि भीतर आत्मा अंधकार में है,बीमार है, अस्वस्थ है,
बेईमानी, असत्य, इस बात कि खबर है कि भीतर प्राण स्वस्थ नहीं है,
ये सारी खबरे है, ये लक्षण है, यह बिमारी नहीं हे, बिमारी कुछ और है,
बिमारी दूसरी है और बीमारी एक ही हे और वह बिमारी है आत्म अज्ञान

Oм ηαмαн ѕнιναy

इस पेज से न जुरे तो फेसबुक पे आपका रहना व्यर्थ होगा!!
विस्वास नहीं तो खुद पेज को देखिये और फैसला कीजिये !!
हिंदुत्व से बढ़कर कोई धर्म नहीं"गौ गीता गंगा और गायत्री
हिंदुत्व से बढ़कर कोई धर्म नहीं"गौ गीता गंगा और गायत्री

दिगंबर शिव

दिगंबर शब्द का अर्थ है अंबर (आकाश) को वस्त्र सामान धारण करने वाला। दुसरे किसी वस्त्र के आभाव में इसका अर्थ ( या शायद अनर्थ ) यह भी निकलता है कि जो वस्त्र हिन हो (अथवा नग्न हो)। सही अर्थों में दिगंबर शिव के सर्वव्यापत चरीत्र की ओर इंगित करता है। शिव ही संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं। यह अनंत अम्बर शिव के वस्त्र सामान हैं।

शिव का एक नाम व्योमकेश भी है जिसका अर्थ है जिनके बाल आकाश को छूतें हों। इनका यह नाम एक बार फिर से उनके सर्वव्यापक चरीत्र की ओर ही इशारा करती है।

शिव सर्वेश्वर हैं। सर्वशक्तिमान तथा विधाता होने के बाद भी वे अत्यंत ही सरल हैं – भोलेनाथ हैं। वे शिघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। उन्हें प्रसनन करने के लिए किसी जटील विधान अथवा आडंबर की आवश्यकता नहीं पड़ती। वे तो भक्ति मात्र देखतें हैं। कोई भी किसी मार्ग द्वारा शिव को प्राप्त कर सकता है।

शिव देवाधिदेव हैं, पर उनमें कोई आडंबर नहीं है, वे सरल हैं, वस्त्र के स्थान पे बाघंबर, आभुषण के नाम पर सर्प और मुण्ड माल, श्रृंगार के नाम भस्म यही उनकी पहचान है| गिरीश योगी मुद्रा में कैलाश पर्वत पर योग में नित निरत रहते हैं| भक्तों के हर प्रकार के प्रसाद को ग्रहण करने वाले महादेव बिना किसी बनावट और दिखावा के होने के कारण दिगंबर कहे जाते हैं|
jai parshuram ji
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दिगंबर शिव

 दिगंबर शब्द का अर्थ है अंबर (आकाश) को वस्त्र सामान धारण करने वाला। दुसरे किसी वस्त्र के आभाव में इसका अर्थ ( या शायद अनर्थ ) यह भी निकलता है कि जो वस्त्र हिन हो (अथवा नग्न हो)। सही अर्थों में दिगंबर शिव के सर्वव्यापत चरीत्र की ओर इंगित करता है। शिव ही संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं। यह अनंत अम्बर शिव के वस्त्र सामान हैं।

 शिव का एक नाम व्योमकेश भी है जिसका अर्थ है जिनके बाल आकाश को छूतें हों। इनका यह नाम एक बार फिर से उनके सर्वव्यापक चरीत्र की ओर ही इशारा करती है।

 शिव सर्वेश्वर हैं। सर्वशक्तिमान तथा विधाता होने के बाद भी वे अत्यंत ही सरल हैं – भोलेनाथ हैं। वे शिघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। उन्हें प्रसनन करने के लिए किसी जटील विधान अथवा आडंबर की आवश्यकता नहीं पड़ती। वे तो भक्ति मात्र देखतें हैं। कोई भी किसी मार्ग द्वारा शिव को प्राप्त कर सकता है।

 शिव देवाधिदेव हैं, पर उनमें कोई आडंबर नहीं है, वे सरल हैं, वस्त्र के स्थान पे बाघंबर, आभुषण के नाम पर सर्प और मुण्ड माल, श्रृंगार के नाम भस्म यही उनकी पहचान है| गिरीश योगी मुद्रा में कैलाश पर्वत पर योग में नित निरत रहते हैं| भक्तों के हर प्रकार के प्रसाद को ग्रहण करने वाले महादेव बिना किसी बनावट और दिखावा के होने के कारण दिगंबर कहे जाते हैं|
 jai parshuram ji
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♥♥ ऊँ नम: शिवाय ♥ ऊँ नम: शिवाय ♥ऊँ नम: शिवाय ♥ऊँ नम: शिवाय ♥♥
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हिंदुत्व से बढ़कर कोई धर्म नहीं"गौ गीता गंगा और गायत्री

केरल। दक्षिण भारत में शबरीमलई में अयप्पा स्वामी मंदिर है
। इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में रह रहकर यहां एक ज्योति दिखती है। इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु हर साल आते हैं।
केरल में भगवान अयप्पा का यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।जहां करोड़ों की संख्या में हर साल तीर्थयात्री आते हैं।यहां विराजते हैं भगवान अय्यप्पा। इनकी कहानी भी बहुत अनूठी है। अय्यप्पा का एक नाम 'हरिहरपुत्र' है यानी हरि (विष्णु) और हर (शिव) के पुत्र। हरि के मोहनी रूप को ही अय्यप्पा की मां माना जाता है।
शबरीमलई का नाम शबरी के नाम पर पड़ा है। जी हां, वही रामायण वाली शबरी जिसने भगवान राम को जूठे फल खिलाए थे और राम ने उसे नवधा-भक्ति का उपदेश दिया था।
इतिहासकारों के मुताबिक, पंडालम के राजा राजशेखर ने अय्यप्पा को पुत्र के रूप में गोद लिया। लेकिन भगवान अय्यप्पा को ये सब अच्छा नहीं लगा और वो महल छोड़कर चले गए।
आज भी यह प्रथा है कि हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर पंडालम राजमहल से अय्यप्पा के आभूषणों को संदूकों में रखकर एक भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। जो 90 किलोमीटर की यात्रा तय करके तीन दिन में शबरीमलई पहुंचती है।
कहा जाता है इसी दिन यहां एक निराली घटना होती है। पहाड़ी की कांतामाला चोटी पर असाधारण चमक वाली ज्योति दिखलाई देती है।
15 नवंबर का मंडलम और 14 जनवरी की मकर विलक्कू, ये शबरीमलई के प्रमुख उत्सव हैं। मलयालम पंचांग (माह) के पहले पांच दिनों और विशु माह यानी अप्रैल में ही इस मंदिर के पट खोले जाते हैं।
उत्सव के दौरान भक्त घी से प्रभु अय्यप्पा की मूर्ति का अभिषेक करते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को 'स्वामी तत्वमसी' के नाम से संबोधित किया जाता है। उन्हें कुछ बातों का खास ख्याल रखना पड़ता है। इस समय श्रद्धालुओं को तामसिक प्रवृत्तियों और मांसाहार से बचना पड़ता है।
jai parshuram ji
केरल। दक्षिण भारत में शबरीमलई में अयप्पा स्वामी मंदिर है
। इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में रह रहकर यहां एक ज्योति दिखती है। इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु हर साल आते हैं।
केरल में भगवान अयप्पा का यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।जहां करोड़ों की संख्या में हर साल तीर्थयात्री आते हैं।यहां विराजते हैं भगवान अय्यप्पा। इनकी कहानी भी बहुत अनूठी है। अय्यप्पा का एक नाम 'हरिहरपुत्र' है यानी हरि (विष्णु) और हर (शिव) के पुत्र। हरि के मोहनी रूप को ही अय्यप्पा की मां माना जाता है।
शबरीमलई का नाम शबरी के नाम पर पड़ा है। जी हां, वही रामायण वाली शबरी जिसने भगवान राम को जूठे फल खिलाए थे और राम ने उसे नवधा-भक्ति का उपदेश दिया था।
इतिहासकारों के मुताबिक, पंडालम के राजा राजशेखर ने अय्यप्पा को पुत्र के रूप में गोद लिया। लेकिन भगवान अय्यप्पा को ये सब अच्छा नहीं लगा और वो महल छोड़कर चले गए।
आज भी यह प्रथा है कि हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर पंडालम राजमहल से अय्यप्पा के आभूषणों को संदूकों में रखकर एक भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। जो 90 किलोमीटर की यात्रा तय करके तीन दिन में शबरीमलई पहुंचती है।
कहा जाता है इसी दिन यहां एक निराली घटना होती है। पहाड़ी की कांतामाला चोटी पर असाधारण चमक वाली ज्योति दिखलाई देती है।
15 नवंबर का मंडलम और 14 जनवरी की मकर विलक्कू, ये शबरीमलई के प्रमुख उत्सव हैं। मलयालम पंचांग (माह) के पहले पांच दिनों और विशु माह यानी अप्रैल में ही इस मंदिर के पट खोले जाते हैं।
उत्सव के दौरान भक्त घी से प्रभु अय्यप्पा की मूर्ति का अभिषेक करते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को 'स्वामी तत्वमसी' के नाम से संबोधित किया जाता है। उन्हें कुछ बातों का खास ख्याल रखना पड़ता है। इस समय श्रद्धालुओं को तामसिक प्रवृत्तियों और मांसाहार से बचना पड़ता है।
jai parshuram ji
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Jai Maata Di

 
Tu De De Ambe Maa Kothi Car Bangala
Chadhaoon Chunri Maa Chuda Rangala
Ghar Ak Sundar Sa Main Chahoon
Ushme Mandir Maa Banwaoon
Nit Main Tera Darshan Paoon O Maa
Karne Ko Darshan Lagaoon Jangala Maa
Tu De De Ambe Maa Kothi Car Bangala

Ridhi Sidhi Labh Aur Shubh Ghar Mere Maa Lana
Mahadev Bajrangbali Bhairav Ko Nahi Bhulana
Bhairav Ko Nahi Bhulana Maa Bhairav Ko Nahi Bhulana
Tu Hi Culcutta Ki Kali Tuhi Maiya Sheranwali
Tu Hi Jag Ko Rachnewali Mansa Maa
Tu Chintapurni Maa Tu Hi Mangala
Tu De De Ambe Maa Kothi Car Bangala

Jab Aaogi Ghar Mein Mere Bas Itna Var Chahoon
Sau Karod Ki Lautari Dena Vinti Tujhe Sunaoon
Vinti Tujhe Sunaoon Maiya Vinti Tujhe Sunaoon
Dena Do Ladke Ik Ladki Rakhna Ghar Mein Na Koi Kadki
Sun Le Vinti Mujh Akhad Ki Meri Maa
Aata Na Mangana Main Jhat Yamala
Tu De De Ambe Maa Kothi Car Bangala
Tu De De Ambe Maa Kothi Car Bangala
Chadhaoon Chunri Maa Chuda Rangala
Ghar Ak Sundar Sa Main Chahoon
Ushme Mandir Maa Banwaoon
Nit Main Tera Darshan Paoon O Maa
Karne Ko Darshan Lagaoon Jangala Maa
Tu De De Ambe Maa Kothi Car Bangala

Ridhi Sidhi Labh Aur Shubh Ghar Mere Maa Lana
Mahadev Bajrangbali Bhairav Ko Nahi Bhulana
Bhairav Ko Nahi Bhulana Maa Bhairav Ko Nahi Bhulana
Tu Hi Culcutta Ki Kali Tuhi Maiya Sheranwali
Tu Hi Jag Ko Rachnewali Mansa Maa
Tu Chintapurni Maa Tu Hi Mangala
Tu De De Ambe Maa Kothi Car Bangala

Jab Aaogi Ghar Mein Mere Bas Itna Var Chahoon
Sau Karod Ki Lautari Dena Vinti Tujhe Sunaoon
Vinti Tujhe Sunaoon Maiya Vinti Tujhe Sunaoon
Dena Do Ladke Ik Ladki Rakhna Ghar Mein Na Koi Kadki
Sun Le Vinti Mujh Akhad Ki Meri Maa
Aata Na Mangana Main Jhat Yamala
Tu De De Ambe Maa Kothi Car Bangala
 
कुछ समय पूर्व एक श्वेत वस्त्र धारी सन्यासी से प्रयाग के महाकुंभ में मिलना हुआ | सन्यासी जी का आध्यात्मिक स्तर 40 % था और उन्होंने नाम के आगे 'श्री श्री अनंत विभूषित परमहंस --------' इस प्रकार अनेक उपाधि एवं अलंकार युक्त विशेषण लगा रखा था | स्वयं घोषित विशेषण एवं नामकरण से ऐसे सन्यासी अपना लाभ नहीं अपितु हानि करते हैं क्योंकि आध्यात्मिक क्षमता नहीं होने के कारण उनका सूक्ष्म अहं तुरंत बढ़ जाता है | वे मेरे फेसबुक के पेज एक सदस्य हैं और मेरे लेख भी पढ़ते हैं और उन्होंने मुझे देखते ही पहचान भी लिया था परंतु अहं वश बस इतना कह पाये कि पता नहीं कैसे आप मेरे फेसबुक की मित्र सूची में हैं (फेसबुक पर 70000 मित्रों की सूची के कारण कई बार सभी को पहचानना मेरे लिए संभव नहीं होता परंतु आपसे वैयक्तिक स्तर पर मिलकर हमें निश्चित ही आनंद मिलता है ) |
श्वेत वस्त्र धारण कर , जटाएँ बढ़ाकर अपने नाम के आगे अनेक विशेषण लगाने से कोई सन्यासी नहीं बनता यह आज के तथाकथित सन्यासियों को यह बार बार बताना पड़ेगा ! नाम के आगे विशेषण या आध्यात्मिक नाम तभी लगाना चाहिए जब हम उसके योग्य हों और उसे गुरु या आध्यात्मिक दृष्टि से अधिकारी पुरुष ने उसे दिया हो अन्यथा उस नाम की भी विडम्बना होती है | परंतु आज के सन्यासी 'परमहंस और सद्गुरु' जैसे विशेषण तो ऐसे लगाते हैं जैसे वे सामान्य विश्वविद्यालय से दी जाने वाली कोई स्नातक की उपाधि हो ! सद्गुरु पद 80% आध्यात्मिक स्तर पर और परमहंस की उपाधि 90% से अधिक आध्यात्मिक स्तर पर प्राप्त होता है !
आध्यात्मिक स्तर के मुद्दे को समझने के लिए इस लिंक पर जाएँ ! http://www.spiritualresearchfoundation.org/articles/id/spiritual-level

Ramana Maharshi on Obstacles for seekers

 

 
  Ramana Maharshi on Obstacles for seekers
Question : When I try to be without all thoughts, I pass into sleep. What should I do about it?
Ramana Maharshi : Once you go to sleep you can do nothing in that state. But while you are awake, try to keep away all thoughts. Why think about sleep? Even that is a thought, is it not? If you are able to be without any thought while you are awake, that is enough. When you pass into sleep the state which you were in before falling asleep will continue when you wake up. You will continue from where you left off when you fell into slumber. So long as there are thoughts of activity there will also be sleep. Thought and sleep are counterparts of one and the same thing.

We should not sleep too much or go without it altogether, but sleep only moderately. To prevent too much sleep, we must try and have no thoughts or chalana [movement of the mind], we must eat only sattvic food and that only in moderate measure, and not indulge in too much physical activity. The more we control thought, activity and food the more we shall be able to control sleep.

But moderation ought to be the rule, as explained in the Gita, for the seeker on the path. Sleep is the first obstacle, as explained in the books, for all sadhaks. The second obstacle is said to be vikshepa or the sense objects of the world which divert one's attention. The third is said to be kashaya or thoughts in the mind about previous experiences with sense objects. The fourth, ananda [bliss], is also called an obstacle, because in that state a feeling of separation from the source of ananda, enabling the enjoyer to say `I am enjoying ananda', is present.

Even this has to be surmounted. The final stage of samadhi has to be reached in which one becomes ananda or one with reality. In this state the duality of enjoyer and enjoyment ceases in the ocean of sat-chit-ananda or the Self.

Question : So one should not try to perpetuate blissful or ecstatic states?
Ramana Maharshi : The final obstacle in meditation is ecstasy; you feel great bliss and happiness and want to stay in that ecstasy. Do not yield to it but pass on to the next stage which is great calm. The calm is higher than ecstasy and it merges into samadhi.

Successful samadhi causes a waking sleep state to supervene. In that state you know that you are always consciousness, for consciousness is your nature. Actually, one is always in samadhi but one does not know it. To know it all one has to do is to remove the obstacles.

Related Ramana Maharshi Talks:
♣♣♣

Govinda
♣♣♣

Govinda

baja hare krishna japa hare krishna


Bhaja Hare Krishna Japa Hare Krishna

सनातन धर्म एक ही धर्म

 
प्रभु ने कहा है कि .. “मैं जिस पर
कृपा करता हूँ .. उसके धन को छीन लेता हूँ ..
उसके सुख को छीन लेता हूँ .. उसके मान
को छीन लेता हूँ ..”
क्योंकि ये सुख जीव को लुभा लेते है और जीव
इनमे प्रभु को भूल जाता है तथा अपने मनुष्य
जीवन के वास्तविक उद्देश्य ( ईश्वर प्राप्ति )
से विपरीत हो जाता हैं।
•˙•••●♥ जय श्री कृष्ण ♥●• •˙•
प्रभु ने कहा है कि .. “मैं जिस पर
 कृपा करता हूँ .. उसके धन को छीन लेता हूँ ..
 उसके सुख को छीन लेता हूँ .. उसके मान
 को छीन लेता हूँ ..”
 क्योंकि ये सुख जीव को लुभा लेते है और जीव
 इनमे प्रभु को भूल जाता है तथा अपने मनुष्य
 जीवन के वास्तविक उद्देश्य ( ईश्वर प्राप्ति )
 से विपरीत हो जाता हैं।
 •˙•••●♥ जय श्री कृष्ण ♥●• •˙•
AUM SHREE PARMAATMANE NAMAH!!!

Bhagavad Gita saar with Lyrics
Bhagavad Gita saar with Lyrics

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् |
परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च: दुष्कृताम, धर्मं संस्थापनार्थाय सम्भावामी युगे युगे ||

Whenever there is decline of Dharma (righteousness)..and rise of Adharma (unrighteousness);
To protect the virtuous..to destroy the wicked and to re-establish Dharma,
I manifest myself, through the ages.

yada yada hi dharmasya
glanir bhavati bharatah
abhyutthanam adharmasya
tadatmanam srijamyaham
Paritranaay Sadhunaam
Vinashay cha dushkritam
Dharma Sansthapanarthay
sambhawami yuge yuge
sambhawami yuge yuge
sambhawami yuge yuge

MahaBharat Ka Yudh Hai Divya Hai Gita Gyan
MahaBharat Ka Yudh Hai Divya Hai Gita Gyan

Hai Katha Parmarth Ki Kahe Krishna Bhagwan
Hai Katha Parmarth Ki Kahe Krishna Bhagwan

Vifal Hue Sabke Jatan Jab Bhacha Na Koi Dvyar
Vifal Hue Sabke Jatan Jab Bhacha Na Koi Dvyar

Ab Karenge Faisla Teer Dhanush Talwar Re Bhakto
Ab Karenge Faisla Teer Dhanush Talwar Re Bhakto

Sanjay Se Dhritrast Bole Hame Sunao Haal
Sanjay Se Dhritrast Bole Hame Sunao Haal

Kaha Khadi Dono Senai Le Dhanush Aur Bhal
Kaha Khadi Dono Senai Le Dhanush Aur Bhal
AUM SHREE PARMAATMANE NAMAH!!!
Bhagavad Gita saar with Lyrics
Bhagavad Gita saar with Lyrics

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् |
परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च: दुष्कृताम, धर्मं संस्थापनार्थाय सम्भावामी युगे युगे ||

Whenever there is decline of Dharma (righteousness)..and rise of Adharma (unrighteousness);
To protect the virtuous..to destroy the wicked and to re-establish Dharma,
I manifest myself, through the ages.

yada yada hi dharmasya
glanir bhavati bharatah
abhyutthanam adharmasya
tadatmanam srijamyaham
Paritranaay Sadhunaam
Vinashay cha dushkritam
Dharma Sansthapanarthay
sambhawami yuge yuge
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sambhawami yuge yuge

MahaBharat Ka Yudh Hai Divya Hai Gita Gyan
MahaBharat Ka Yudh Hai Divya Hai Gita Gyan

Hai Katha Parmarth Ki Kahe Krishna Bhagwan
Hai Katha Parmarth Ki Kahe Krishna Bhagwan

Vifal Hue Sabke Jatan Jab Bhacha Na Koi Dvyar
Vifal Hue Sabke Jatan Jab Bhacha Na Koi Dvyar

Ab Karenge Faisla Teer Dhanush Talwar Re Bhakto
Ab Karenge Faisla Teer Dhanush Talwar Re Bhakto

Sanjay Se Dhritrast Bole Hame Sunao Haal
Sanjay Se Dhritrast Bole Hame Sunao Haal

Kaha Khadi Dono Senai Le Dhanush Aur Bhal
Kaha Khadi Dono Senai Le Dhanush Aur Bhal
जिस प्रकार प्रज्ज्वलित अग्नि से लपटें तथा सूर्य से किरणें बार बार निकलती है और पुनः अपने कारण मे लीन हो जाती है उसी प्रकार बुद्धि, मन, इन्द्रियाँ और नाना योनियों के शरीर – यह गुणमय प्रपंच जिन स्वयंप्रकाश परमात्मा से प्रकट होता है और पुनः उन्ही में लीन हो जात है
क्योंकि भीतर और बाहर – सब ओर से अज्ञान से ढके हुए इस मानव के शरीर से मुझे क्या लेना है । मैं तो आत्मा के प्रकाश को ढक देने वाले उस अज्ञान की निवृत्ति चाहता हूँ, जिसका कालक्रम से अपने आप नाश नही होता , अपितु भगवान की दया से अथवा ज्ञान के उदय से होता है ॥
जिस प्रकार प्रज्ज्वलित अग्नि से लपटें तथा सूर्य से किरणें बार बार निकलती है और पुनः अपने कारण मे लीन हो जाती है उसी प्रकार बुद्धि, मन, इन्द्रियाँ और नाना योनियों के शरीर – यह गुणमय प्रपंच जिन स्वयंप्रकाश परमात्मा से प्रकट होता है और पुनः उन्ही में लीन हो जात है 
 क्योंकि भीतर और बाहर – सब ओर से अज्ञान से ढके हुए इस मानव  के शरीर से मुझे क्या लेना है । मैं तो आत्मा के प्रकाश को ढक देने वाले उस अज्ञान की निवृत्ति चाहता हूँ, जिसका कालक्रम से अपने आप नाश नही होता , अपितु भगवान की दया से अथवा ज्ञान के उदय से होता है ॥
 
इस प्रकार मोक्ष का अभिलाषी मैं विश्व के रचियता, स्वयं विश्व के रूप में प्रकट तथा विश्व से सर्वथा परे, विश्व को खिलौना बनाकर खेलने वाले, विश्व में आत्मरूप से व्याप्त , अजन्मा, सर्वव्यापक एवं प्राप्त्य वस्तुओं में सर्वश्रेष्ठ श्री भगवान को केवल प्रणाम ही करता हूं, उनकी शरण में हूँ ।
जिन्होने भगवद्भक्ति रूप योग के द्वारा कर्मों को जला डाला है, वे योगी लोग उसी योग के द्वारा शुद्ध किये हुए अपने हृदय में जिन्हे प्रकट हुआ देखते हैं उन योगेश्वर भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ
इस प्रकार मोक्ष का अभिलाषी मैं विश्व के रचियता, स्वयं विश्व के रूप में प्रकट तथा विश्व से सर्वथा परे, विश्व को खिलौना बनाकर खेलने वाले, विश्व में आत्मरूप से व्याप्त , अजन्मा, सर्वव्यापक एवं प्राप्त्य वस्तुओं में सर्वश्रेष्ठ श्री भगवान को केवल प्रणाम ही करता हूं, उनकी शरण में हूँ ।
जिन्होने भगवद्भक्ति रूप योग के द्वारा कर्मों को जला डाला है, वे योगी लोग उसी योग के द्वारा शुद्ध किये हुए अपने हृदय में जिन्हे प्रकट हुआ देखते हैं उन योगेश्वर भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ

BRIHASPATI :


~~Oм ηαмαн ѕнιναy~~Oм ηαмαн ѕнιναy~~

BRIHASPATI :

According to Hindu Mythology the vedic deity Brihaspati or Jupiter is guru of the gods whereas Shukracharya is the guru of the Danavas. He is the personification of piety and religion.

He is the leader of group of planets. He affects the mind thus accepted as a teacher and the god of wisdom and expression. The planet is illustrated as golden yellow in color holding a stick, a lotus and beads. Brihaspati is worshiped on Thursday or 'Guru-var' as the day is dedicated to him.

According to Shiva Purana Brihaspati is the son of Rishi Angirasa and Surupa and is the brother of Utathya and Samvartana. He has three wives, namely Shuba, Tara and Mamta.

He performed strong penances on the banks of Prabhas Tirtha, as a result of which Lord Shiva granted him the status of Guru of devas and position as one of the Navagrahas.

All Bharadwaja Brahmins are believed to be his descendants.

ASTROLOGICAL IMPORTANCE :
In Hindu astrology, Guru rules over Dhanu (Sagittarius) and Meena (Pisces), he is exalted in Karka (Cancer) and in his fall in Makara (Capricorn). Mostly Brihaspati is benefic of any of the planets. The Sun, Moon and Mars are considered friendly to Brihaspati, hostile to Mercury and neutral towards Saturn.

In Vedic astrology the element of Guru is considered to be of ether or Akasha Tattva. Thus this indicates vastness, growth and expansion in a person's life. Brihaspati also balances past karma, religion, philosophy, knowledge and issues relating to offspring.
Matters concerning education, teaching and the dispensation of knowledge are analysed by studying the position of Jupiter in an individual’s birth chart. Humans with Jupiter dominating in their horoscope could grow fat as life progresses and their empire and prosperity increases.

Jupiter affects pancreas and stomach thus diabetes is directly related to Jupiter. The worship or propitiation of Brihaspati helps ward off sins.
Brihaspati is lord of Punarvasu, Vishakha and Purva Bhadrapada Nakshatras or lunar mansions.

THE FOLLOWING ITEMS ARE ASSOCIATED WITH BRIHASPATI :
Color : Yellow
Metal : Gold
Gemstone : Yellow Topaz and Yellow Sapphire
Season : Winter (Snow)
Direction : North-East
Element : Ether or Space

OTHERE NAMES :
Brahmanaspati
Deva-guru - guru of the gods
Ganapati - leader of the group [of planets]
Cura

BRIHASPATI MANTRA :

"Om Strim Brahm Brihaspataye Namah"


BRIHASPATI GAYATRI MANTRAS :

Om vrishabadhwajaaya vidmahae
kruni hastaaya dheemahi
tanno guru: prachodayaat

‘Vrusha Dhwajaaya Vidhmahe
Gruni Hasthaaya Dheemahi
Thanno Guruh Prachodayat’

Translation: Om, Let me meditate on him who has bull in his flag,
Oh, He who has power to get things done, give me higher intellect,
And let Guru illuminate my mind.

BRIHASPATI NAVAGRAHA MANTRA :

‘Devaanaam Cha Risheenaam Cha Gurum Kaanchana Sannibham
Buddhibhootam Trilokesham Tam Namaami Brihaspateem’

Translation : I bow down to Brihaspathi who is the teacher of Gods and sages, who is resplendent and lustrous like burnished gold and who is endowed with a lot of wisdom and who is the lord of the three worlds.