Bharthipura - bharathi means language its a village of talking different mother tongue like Tamil ,marati,Urdu,kannada,Telugu in past days & now also.and a history tells that it was a big agrahara their lived a yathi of sringeri parmpara so bharthipura - Bharathipura is situated in Krishnarajpet tehsil and located in Mandya district of Karnataka. Pincode is 571426 , Bharathipura village code is 2296000 Source: Census of India 2001,
Tuesday, 19 February 2013
धर्म क्या है ?
धर्म क्या है ?
जो धारण करने योग्य है वही धर्म है , और
धर्म के लक्षण है - धैर्य , क्षमा,मन एवं
शरीर की पवित्रता, इंद्रियो पर
नियंत्रण, सत्य,बोलना,अहिंसा (कायरता नहीं ),
परोपकार, चरित्रवान, दया,
मानवता आदि आदि जो इन मानवीय
गुणो को धारण करता है अथवा इनके
सापेक्ष रहता है वह "धार्मिक" है ....
Oм ηαмαн ѕнιναy <==ज्वाइन करे ==> Oм ηαмαн ѕнιναy
धर्म क्या है ?
जो धारण करने योग्य है वही धर्म है , और
धर्म के लक्षण है - धैर्य , क्षमा,मन एवं
शरीर की पवित्रता, इंद्रियो पर
नियंत्रण, सत्य,बोलना,अहिंसा (कायरता नहीं ),
परोपकार, चरित्रवान, दया,
मानवता आदि आदि जो इन मानवीय
गुणो को धारण करता है अथवा इनके
सापेक्ष रहता है वह "धार्मिक" है ....
Oм ηαмαн ѕнιναy <==ज्वाइन करे ==> Oм ηαмαн ѕнιναy
जो धारण करने योग्य है वही धर्म है , और
धर्म के लक्षण है - धैर्य , क्षमा,मन एवं
शरीर की पवित्रता, इंद्रियो पर
नियंत्रण, सत्य,बोलना,अहिंसा (कायरता नहीं ),
परोपकार, चरित्रवान, दया,
मानवता आदि आदि जो इन मानवीय
गुणो को धारण करता है अथवा इनके
सापेक्ष रहता है वह "धार्मिक" है ....
Oм ηαмαн ѕнιναy <==ज्वाइन करे ==> Oм ηαмαн ѕнιναy
क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?
सन्यासी
अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी केतट पर नहाने पहुंचा. वहां एक ही परिवार के
कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और
जोर-जोर से चिल्लाने लगे.
संयासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पुछा ; "क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?"
शिष्य कुछ देर सोचते रहे, एक ने उत्तर दिया, "क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए !”
"पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की
क्या ज़रुरत है, जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं",
सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया.
कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया, पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए.
अंततः सन्यासी ने समझाया…
“जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो
जाते हैं. और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये नहीं सुन सकते…
वे जितना अधिक क्रोधित होंगे, उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और
उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा.
क्या होता है जब दो लोग
प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं,
क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं, उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती
है.”
सन्यासी ने बोलना जारी रखा,” और जब वे एक दूसरे को हद से भी
अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है ? तब वे बोलते भी नहीं, वे सिर्फ एक
दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं.
सन्यासी
अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी केतट पर नहाने पहुंचा. वहां एक ही परिवार के
कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और
जोर-जोर से चिल्लाने लगे.
संयासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पुछा ; "क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?"
शिष्य कुछ देर सोचते रहे, एक ने उत्तर दिया, "क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए !”
"पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है, जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं", सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया.
कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया, पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए.
अंततः सन्यासी ने समझाया…
“जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं. और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये नहीं सुन सकते… वे जितना अधिक क्रोधित होंगे, उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा.
क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं, क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं, उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है.”
सन्यासी ने बोलना जारी रखा,” और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है ? तब वे बोलते भी नहीं, वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं.
संयासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पुछा ; "क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?"
शिष्य कुछ देर सोचते रहे, एक ने उत्तर दिया, "क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए !”
"पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है, जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं", सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया.
कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया, पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए.
अंततः सन्यासी ने समझाया…
“जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं. और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये नहीं सुन सकते… वे जितना अधिक क्रोधित होंगे, उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा.
क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं, क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं, उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है.”
सन्यासी ने बोलना जारी रखा,” और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है ? तब वे बोलते भी नहीं, वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं.
Swami Chinmayananda Wise Words
Pilgrimages, sacrifices, the various programs of the Bhakti
Marga, physical practices such as Asana and Pranayama, severe tapascharya, Guru
Seva, etc. are all for making the seekers mind subtle enough to peep over the
limited vision of life to the farthest beyond.
Austerity redeems the personality in the seeker from its
inertia; Brahmacharya relieves our psychological and intellectual debilities;
and faith sharpens the intensity at and the sincerity in meditation. Without these
three, life in the spiritual path cannot be ever graced with full and easy
success.
Austerity is mainly for the discipline and control of the
body; Brahmacharya is essentially a discipline of the mind; and faith
necessarily is an adjustment in the intellectual sheath.
Swami Chinmayananda
सात्त्विक बनने के छोटे छोटे प्रयास : भाग
-
मित्रो इस पेज की 5000 लाइक्स को पूरा करने में आपकी मदद की जरूरत है!!जरूर लाइक करे अपने सोशल पेज कोYouth For Change India(भ्रस्टाचार से बदलाव की ओर)
Youth For Change India(भ्रस्टाचार से बदलाव की ओर)
अपने रास्ट्रवादी और हिंदूवादी पेज से भी जुरेहिंदुत्व से बढ़कर कोई धर्म नहीं"गौ गीता गंगा और गायत्री
हिंदुत्व से बढ़कर कोई धर्म नहीं"गौ गीता गंगा और गायत्री
सुप्रभात मित्रो..............
"शंकर जी का भजन "
शिव शंकर कहूँ याद करते हैं हम
पूजा कैसे करूँ यह नहीं है पता ।
तुमको कहते हैं औघर दानी सही,
इस अधम को तो यह भी नहीं है पता ।
शिव शंकर ............................ ।
फूल अक्षत औ चन्दन धरा थाल में ,
ध्यान कैसे धरूँ यह नहीं है पता ।
शिव शंकर .............................।
तुम तो बसते हो भक्तों के दिल में सही
भक्ति का सुर मुझे भी नहीं है पता ।
शिव शंकर ............................ ।
आई शरणों में तेरे क्या अर्पण करूँ ,
सब तो तेरा दिया है यही है पता ।।
शिव शंकर ..........................
-
-
Padyavali Devi Dasi shared Rohit Kanoi's photo.
-
-
* How Colours Affect us Spiritually *
The entire Universe, at a subtle intangible level, is made up of three
subtle components of Sattva, Raja and Tama. We have explained this in
detail on our website and urge you to familiarise yourself with this
concept, so as to gain a better understanding of this article.
Colours are also categorised as sāttvik, rājasik or tāmasik depending on
their predominant subtle components. Sattva stands for ‘spiritual
purity’ while Raja and Tama stand for ‘action’ and ‘spiritual ignorance’
respectively. When we wear clothes that are of sāttvik colours, it
helps us with our spiritual practice, while colours that are Raja-Tama
in nature are detrimental towards making spiritual progress. Wearing
clothes that have a Raja-Tama predominance increases the negative
spiritual vibrations around us. Hence we are also more likely to attract
negative energies as they too are Raja-Tama predominant.
The following is a list of colours and their effect on our spiritual
state. When a colour is described as being ‘Helpful’, as mentioned in
the chart below, it means that the colour helps to attract spiritually
positive vibrations and repel negative vibrations. ‘Harmful’ indicates
the ability to attract negative vibrations whilst simultaneously
alienating us from spiritually positive vibrations.
Full research available at: http:// www.spiritualresearchfoundation .org/spiritualresearch/ spritualscience/ how-colours-affects-us
-
Chandra Kala shared IPBYS's photo.
[Sri Nityananda Prabhu never gets angry]
by Srila Lochana dasa Thakura
akrodha paramananda nityananda raya
abhimana sunya nitai nagare bedaya
adhama patita jivera dware dware giya
harinama maha mantra dena bilaiya
jare dekhe tare kahe dante trina dhorií
amare kiniya laha bhaja gaurahari
eta boli' nityananda bhume gadi jaya
sonara parvata jena dhulate lotaya
hena avatare jara rati na janmilo
locana bole sei papi elo ara gelo
1. Lord Nityananda Raya never gets angry. He is always in ecstasy,
supreme bliss. He has no false ego. He wanders to every town and village
in Nadia chanting Hare Krishna, dancing, and offering krishna-prema to
everyone indiscriminately.
2. Sri Nitai goes to every doorstep and
knocks on the door, 'Tap! Tap!Tap!' He goes to those who are very much
distressed, degraded, and fallen. He goes to them and gives them
krishna-prema. He says, "Please Chant! Please Chant!":
hare krishna hare krishna krishna krishna hare hare
hare rama hare rama rama rama hare hare
If they do not chant and shut the door, then He rolls there on the ground and cries!
3. Whomever He meets, catching a straw between His teeth, He begs, "O
Brothers! Please do the bhajana of Sri Gaurahari and purchase Me,
purchase Me, purchase Me."
4. Saying this, Lord Nityananda
rolls on the ground in the dust, cries, and sheds tears, looking like a
mountain of gold rolling on the ground.
5. Such a merciful
incarnation is Lord Nityananda. If someone doesn't develop love for such
an incarnation as Sri Nityananda-Rama, Locana says, "Such a sinful
person wastes his life, remaining in the cycle of birth and death. He
cannot be delivered."
-
सुप्रभातम् ! सुदिनमस्तु ! शुभमस्तु !
Suprabhatam and Namaskar
As per Hindu Almanac i.e.Vedic Panchang For 20th February , 2013, Wednesday
Kaliyug Varsha 5114, ,shak varsh-1934,vikram samwat-2068-69
Diwas – Budhwar
paksh- Shukla
tithi - dashmi
maas - Maagh
samwatsar naam-vishwasu
surya aayan-uttaraayan
courtesy : www.tanujathakur.com
-
- मित्रो इस पेज की 5000 लाइक्स को पूरा करने में आपकी मदद की जरूरत है!!जरूर लाइक करे अपने सोशल पेज कोYouth For Change India(भ्रस्टाचार से बदलाव की ओर)
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हिंदुत्व से बढ़कर कोई धर्म नहीं"गौ गीता गंगा और गायत्री
सुप्रभात मित्रो..............
"शंकर जी का भजन "
शिव शंकर कहूँ याद करते हैं हम
पूजा कैसे करूँ यह नहीं है पता ।
तुमको कहते हैं औघर दानी सही,
इस अधम को तो यह भी नहीं है पता ।
शिव शंकर ............................ ।
फूल अक्षत औ चन्दन धरा थाल में ,
ध्यान कैसे धरूँ यह नहीं है पता ।
शिव शंकर .............................।
तुम तो बसते हो भक्तों के दिल में सही
भक्ति का सुर मुझे भी नहीं है पता ।
शिव शंकर ............................ ।
आई शरणों में तेरे क्या अर्पण करूँ ,
सब तो तेरा दिया है यही है पता ।।
शिव शंकर .......................... Padyavali Devi Dasi shared Rohit Kanoi's photo.
- * How Colours Affect us Spiritually *
The entire Universe, at a subtle intangible level, is made up of three subtle components of Sattva, Raja and Tama. We have explained this in detail on our website and urge you to familiarise yourself with this concept, so as to gain a better understanding of this article.
Colours are also categorised as sāttvik, rājasik or tāmasik depending on their predominant subtle components. Sattva stands for ‘spiritual purity’ while Raja and Tama stand for ‘action’ and ‘spiritual ignorance’ respectively. When we wear clothes that are of sāttvik colours, it helps us with our spiritual practice, while colours that are Raja-Tama in nature are detrimental towards making spiritual progress. Wearing clothes that have a Raja-Tama predominance increases the negative spiritual vibrations around us. Hence we are also more likely to attract negative energies as they too are Raja-Tama predominant.
The following is a list of colours and their effect on our spiritual state. When a colour is described as being ‘Helpful’, as mentioned in the chart below, it means that the colour helps to attract spiritually positive vibrations and repel negative vibrations. ‘Harmful’ indicates the ability to attract negative vibrations whilst simultaneously alienating us from spiritually positive vibrations.
Full research available at: http://www.spiritualresearchfoundation .org/spiritualresearch/ spritualscience/ how-colours-affects-us Chandra Kala shared IPBYS's photo.
[Sri Nityananda Prabhu never gets angry]
by Srila Lochana dasa Thakura
akrodha paramananda nityananda raya
abhimana sunya nitai nagare bedaya
adhama patita jivera dware dware giya
harinama maha mantra dena bilaiya
jare dekhe tare kahe dante trina dhorií
amare kiniya laha bhaja gaurahari
eta boli' nityananda bhume gadi jaya
sonara parvata jena dhulate lotaya
hena avatare jara rati na janmilo
locana bole sei papi elo ara gelo
1. Lord Nityananda Raya never gets angry. He is always in ecstasy, supreme bliss. He has no false ego. He wanders to every town and village in Nadia chanting Hare Krishna, dancing, and offering krishna-prema to everyone indiscriminately.
2. Sri Nitai goes to every doorstep and knocks on the door, 'Tap! Tap!Tap!' He goes to those who are very much distressed, degraded, and fallen. He goes to them and gives them krishna-prema. He says, "Please Chant! Please Chant!":
hare krishna hare krishna krishna krishna hare hare
hare rama hare rama rama rama hare hare
If they do not chant and shut the door, then He rolls there on the ground and cries!
3. Whomever He meets, catching a straw between His teeth, He begs, "O Brothers! Please do the bhajana of Sri Gaurahari and purchase Me, purchase Me, purchase Me."
4. Saying this, Lord Nityananda rolls on the ground in the dust, cries, and sheds tears, looking like a mountain of gold rolling on the ground.
5. Such a merciful incarnation is Lord Nityananda. If someone doesn't develop love for such an incarnation as Sri Nityananda-Rama, Locana says, "Such a sinful person wastes his life, remaining in the cycle of birth and death. He cannot be delivered."- सुप्रभातम् ! सुदिनमस्तु ! शुभमस्तु !
Suprabhatam and Namaskar
As per Hindu Almanac i.e.Vedic Panchang For 20th February , 2013, Wednesday
Kaliyug Varsha 5114, ,shak varsh-1934,vikram samwat-2068-69
Diwas – Budhwar
paksh- Shukla
tithi - dashmi
maas - Maagh
samwatsar naam-vishwasu
surya aayan-uttaraayan
courtesy : www.tanujathakur.com
Kin Kin Maiya tera bhawan banaya, kis ne chavar dhulaya.
Panja panja pandava ne bhavan banaya, Arjun ne chavar dhulaya
Meri Ma Arjun ne chavar dhulaya.
Tera Chola bhi lal, Tera Chuda bhi lal..
Chatar chada ke bholan baksha ke, Charni sheesh jhukaya
Meri Ma Charni sheesh jhukaya
Tera Chola bhi lal, Tera Chuda bhi lal..
Bhagt khade darshan no, De darshan ek bari.
Meri Ma de darshan ek bari.
Tera Chola bhi lal, Tera Chuda bhi lal.
Kin Kin Maiya tera bhawan banaya, kis ne chavar dhulaya.
Panja panja pandava ne bhavan banaya, Arjun ne chavar dhulaya
Meri Ma Arjun ne chavar dhulaya.
Tera Chola bhi lal, Tera Chuda bhi lal..
Chatar chada ke bholan baksha ke, Charni sheesh jhukaya
Meri Ma Charni sheesh jhukaya
Tera Chola bhi lal, Tera Chuda bhi lal..
Bhagt khade darshan no, De darshan ek bari.
Meri Ma de darshan ek bari.
Tera Chola bhi lal, Tera Chuda bhi lal.
Panja panja pandava ne bhavan banaya, Arjun ne chavar dhulaya
Meri Ma Arjun ne chavar dhulaya.
Tera Chola bhi lal, Tera Chuda bhi lal..
Chatar chada ke bholan baksha ke, Charni sheesh jhukaya
Meri Ma Charni sheesh jhukaya
Tera Chola bhi lal, Tera Chuda bhi lal..
Bhagt khade darshan no, De darshan ek bari.
Meri Ma de darshan ek bari.
Tera Chola bhi lal, Tera Chuda bhi lal.
कुछ
व्यक्ति मेरे लेखों को पढ़ने के पश्चात पूछते हैं कि अपने जीवन प्रणाली को
सात्त्विक कैसे बनाएँ आज से ऐसे दो प्रयास प्रतिदिन जानेंगे | आप चाहें तो
इन्हें अपने जीवन में उतार सकते हैं |
सात्त्विक बनने के छोटे छोटे प्रयास : भाग - २
१.अपने घर के दीवार को आज के आधुनिक रंग शैली अनुसार रंगने की अपेक्षा उसे
श्वेत, हल्का पीला , चन्दन या आकाशी नीला रंग दें | आज के प्रचलित गहरे
रंग ( जामुनी, भूरा, हरा इत्यादि रंग से कमरे की दीवार न रंगें ) तमोगुणी
होने के कारण घर के वास्तु एवं उनके रहनेवाले पर विपरीत प्रभाव पड़ता है |
इसलिए पहले हम पुताई के समय चुना में नील डालकर घर को रंगते थे |
२.
रतिदिन घर में प्रकृतिक धूप और हवा हेतु खिड़कियाँ और दरवाजे थोड़ी देर के
लिए ही सही उन्हें अवश्य खोलें | आकाश और सूर्य के प्रकृतिक तत्त्व से आपके
वास्तु की सहज ही शुद्धि होती है | आज अनेक घर वातानुकूलित होने के कारण
कई घरों में कई कई दिन खिड़कियाँ नहीं खुलती हैं ऐसे वास्तु से रज-तम का
प्रमाण बढ़ जाता है | घर बनाते समय या नए घर क्रय करते समय यह अवश्य देखें
कि घर के कमरों में प्रकृतिक रोशनी आती हा या नहीं |
courtesy : www.tanujathakur.com
सात्त्विक बनने के छोटे छोटे प्रयास : भाग - २
१.अपने घर के दीवार को आज के आधुनिक रंग शैली अनुसार रंगने की अपेक्षा उसे श्वेत, हल्का पीला , चन्दन या आकाशी नीला रंग दें | आज के प्रचलित गहरे रंग ( जामुनी, भूरा, हरा इत्यादि रंग से कमरे की दीवार न रंगें ) तमोगुणी होने के कारण घर के वास्तु एवं उनके रहनेवाले पर विपरीत प्रभाव पड़ता है | इसलिए पहले हम पुताई के समय चुना में नील डालकर घर को रंगते थे |
२. रतिदिन घर में प्रकृतिक धूप और हवा हेतु खिड़कियाँ और दरवाजे थोड़ी देर के लिए ही सही उन्हें अवश्य खोलें | आकाश और सूर्य के प्रकृतिक तत्त्व से आपके वास्तु की सहज ही शुद्धि होती है | आज अनेक घर वातानुकूलित होने के कारण कई घरों में कई कई दिन खिड़कियाँ नहीं खुलती हैं ऐसे वास्तु से रज-तम का प्रमाण बढ़ जाता है | घर बनाते समय या नए घर क्रय करते समय यह अवश्य देखें कि घर के कमरों में प्रकृतिक रोशनी आती हा या नहीं |
courtesy : www.tanujathakur.com
Bhagawan explaination of various yoga practices of people in this sloka too:
Bhagawan explaination of various yoga practices of people in this sloka too:
His Divine Grace A.C. Bhakthivedanta Swami Srila Prabhupada, Founder
Acharya, International Society for Krishna Consciousness, explains the
words of Krishna in BHAGAVAD GITA AS IT IS (C-4, T-29):
apane juhvati pranam
prane 'panam tathapare
pranapana-gati ruddhva
pranayama-parayanah
apare niyataharah
pranan pranesu juhvati
TRANSLATION
And there are even others who are inclined to the process of breath
restraint to remain in trance, and they practice stopping the movement
of the outgoing breath into the incoming, and incoming breath into the
outgoing, and thus at last remain in trance, stopping all breathing.
Some of them, curtailing the eating process, offer the outgoing breath
into itself, as a sacrifice.
PURPORT
This system of
yoga for controlling the breathing process is called pranayama, and in
the beginning it is practiced in the hatha-yoga system through different
sitting postures. All of these processes are recommended for
controlling the senses and for advancement in spiritual realization.
This practice involves controlling the air within the body to enable
simultaneous passage in opposite directions. The apana air goes
downward, and the prana air goes up. The pranayama-yogi practices
breathing the opposite way until the currents are neutralized into
puraka, equilibrium. Similarly, when the exhaled breathing is offered to
the inhaled breathing, it is called recaka. When both air currents are
completely stopped, it is called kumbhaka-yoga. By practice of
kumbhaka-yoga, the yogis increase the duration of life by many, many
years. A Krsna conscious person, however, being always situated in the
transcendental loving service of the Lord, automatically becomes the
controller of the senses. His senses, being always engaged in the
service of Krsna, have no chance of becoming otherwise engaged. So at
the end of life, he is naturally transferred to the transcendental plane
of Lord Krsna; consequently he makes no attempt to increase his
longevity. He is at once raised to the platform of liberation. A Krsna
conscious person begins from the transcendental stage, and he is
constantly in that consciousness. Therefore, there is no falling down,
and ultimately he enters into the abode of the Lord without delay. The
practice of reduced eating is automatically done when one eats only
krsna-prasadam, or food which is offered first to the Lord. Reducing the
eating process is very helpful in the matter of sense control. And
without sense control there is no possibility of getting out of material
entanglement.
Bhagawan explaination of various yoga practices of people in this sloka too:
His Divine Grace A.C. Bhakthivedanta Swami Srila Prabhupada, Founder Acharya, International Society for Krishna Consciousness, explains the words of Krishna in BHAGAVAD GITA AS IT IS (C-4, T-29):
apane juhvati pranam
prane 'panam tathapare
pranapana-gati ruddhva
pranayama-parayanah
apare niyataharah
pranan pranesu juhvati
TRANSLATION
And there are even others who are inclined to the process of breath restraint to remain in trance, and they practice stopping the movement of the outgoing breath into the incoming, and incoming breath into the outgoing, and thus at last remain in trance, stopping all breathing. Some of them, curtailing the eating process, offer the outgoing breath into itself, as a sacrifice.
PURPORT
This system of yoga for controlling the breathing process is called pranayama, and in the beginning it is practiced in the hatha-yoga system through different sitting postures. All of these processes are recommended for controlling the senses and for advancement in spiritual realization. This practice involves controlling the air within the body to enable simultaneous passage in opposite directions. The apana air goes downward, and the prana air goes up. The pranayama-yogi practices breathing the opposite way until the currents are neutralized into puraka, equilibrium. Similarly, when the exhaled breathing is offered to the inhaled breathing, it is called recaka. When both air currents are completely stopped, it is called kumbhaka-yoga. By practice of kumbhaka-yoga, the yogis increase the duration of life by many, many years. A Krsna conscious person, however, being always situated in the transcendental loving service of the Lord, automatically becomes the controller of the senses. His senses, being always engaged in the service of Krsna, have no chance of becoming otherwise engaged. So at the end of life, he is naturally transferred to the transcendental plane of Lord Krsna; consequently he makes no attempt to increase his longevity. He is at once raised to the platform of liberation. A Krsna conscious person begins from the transcendental stage, and he is constantly in that consciousness. Therefore, there is no falling down, and ultimately he enters into the abode of the Lord without delay. The practice of reduced eating is automatically done when one eats only krsna-prasadam, or food which is offered first to the Lord. Reducing the eating process is very helpful in the matter of sense control. And without sense control there is no possibility of getting out of material entanglement.
His Divine Grace A.C. Bhakthivedanta Swami Srila Prabhupada, Founder Acharya, International Society for Krishna Consciousness, explains the words of Krishna in BHAGAVAD GITA AS IT IS (C-4, T-29):
apane juhvati pranam
prane 'panam tathapare
pranapana-gati ruddhva
pranayama-parayanah
apare niyataharah
pranan pranesu juhvati
TRANSLATION
And there are even others who are inclined to the process of breath restraint to remain in trance, and they practice stopping the movement of the outgoing breath into the incoming, and incoming breath into the outgoing, and thus at last remain in trance, stopping all breathing. Some of them, curtailing the eating process, offer the outgoing breath into itself, as a sacrifice.
PURPORT
This system of yoga for controlling the breathing process is called pranayama, and in the beginning it is practiced in the hatha-yoga system through different sitting postures. All of these processes are recommended for controlling the senses and for advancement in spiritual realization. This practice involves controlling the air within the body to enable simultaneous passage in opposite directions. The apana air goes downward, and the prana air goes up. The pranayama-yogi practices breathing the opposite way until the currents are neutralized into puraka, equilibrium. Similarly, when the exhaled breathing is offered to the inhaled breathing, it is called recaka. When both air currents are completely stopped, it is called kumbhaka-yoga. By practice of kumbhaka-yoga, the yogis increase the duration of life by many, many years. A Krsna conscious person, however, being always situated in the transcendental loving service of the Lord, automatically becomes the controller of the senses. His senses, being always engaged in the service of Krsna, have no chance of becoming otherwise engaged. So at the end of life, he is naturally transferred to the transcendental plane of Lord Krsna; consequently he makes no attempt to increase his longevity. He is at once raised to the platform of liberation. A Krsna conscious person begins from the transcendental stage, and he is constantly in that consciousness. Therefore, there is no falling down, and ultimately he enters into the abode of the Lord without delay. The practice of reduced eating is automatically done when one eats only krsna-prasadam, or food which is offered first to the Lord. Reducing the eating process is very helpful in the matter of sense control. And without sense control there is no possibility of getting out of material entanglement.
सही कर्म ही धर्म है "विश्व हिन्दू संगठन"
कृपया
सिख भाइयोँ पर कोई चुटकुला करके उनका मजाक न उड़ाएँ । कदाचित् आप नहीँ
जानते कि वैदिक सनातन संस्कृति की रक्षा के लिये परम पूज्य सद्गुरु गोबिँद
सिँह जी ने खालसा संगठन का निर्माण किया था और सिख समुदाय के अनेक
महापुरुषोँ ने माँ भारती की इज्जत बचाने के लिये समय समय पर अपना अमूल्य
योगदान दिया है जो कभी भुलाया नहीँ जा सकता । कौन नहीँ जानता परम पूज्य
सद्गुरु नानकदेव जी का नाम । अमर क्राँतिकारी ऊधमसिँह को क्या भुलाया जा
सकता है जिन्होँने क्रूर आताताई अंग्रेज अधिकारी "जनरल डायर" को लंदन मेँ
जाकर गोली मार के वीरता का अद्भुत प्रमाण दिया था । आज माँ भारती का चीरहरण
हो रहा है और वो अपने सच्चे सपूतोँ की प्रतीक्षा कर रही है । हम सब
नौजवानोँ को मिलकर ये अंग्रेजी रावण राज्य मिटाना होगा । मैँ तो अपनी
क्षमता के अनुसार लोगोँ का स्वाभिमान जगाने मेँ जुटा हूँ और आप क्या कर रहे
है ?
|| OM SHRI SAINATHAYA NAMAH ||
|| OM SHRI SAINATHAYA NAMAH ||
|| OM SHRI SAINATHAYA NAMAH ||
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friends of Lord Krishna, By Subuddhi Krishna Das
कृपया
सिख भाइयोँ पर कोई चुटकुला करके उनका मजाक न उड़ाएँ । कदाचित् आप नहीँ
जानते कि वैदिक सनातन संस्कृति की रक्षा के लिये परम पूज्य सद्गुरु गोबिँद
सिँह जी ने खालसा संगठन का निर्माण किया था और सिख समुदाय के अनेक
महापुरुषोँ ने माँ भारती की इज्जत बचाने के लिये समय समय पर अपना अमूल्य
योगदान दिया है जो कभी भुलाया नहीँ जा सकता । कौन नहीँ जानता परम पूज्य
सद्गुरु नानकदेव जी का नाम । अमर क्राँतिकारी ऊधमसिँह को क्या भुलाया जा
सकता है जिन्होँने क्रूर आताताई अंग्रेज अधिकारी "जनरल डायर" को लंदन मेँ
जाकर गोली मार के वीरता का अद्भुत प्रमाण दिया था । आज माँ भारती का चीरहरण
हो रहा है और वो अपने सच्चे सपूतोँ की प्रतीक्षा कर रही है । हम सब
नौजवानोँ को मिलकर ये अंग्रेजी रावण राज्य मिटाना होगा । मैँ तो अपनी
क्षमता के अनुसार लोगोँ का स्वाभिमान जगाने मेँ जुटा हूँ और आप क्या कर रहे
है ?
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Sripad Madhvacharya with Udupi Krishna
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