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30 minutes ago · ये 10 चाणक्य नीतियां अपनाएंगे तो स्त्री हो या पुरुष कभी धोखा नहीं खाएंगे
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पहली नीति: आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी भी राजा की शक्ति उसका स्वयं का बाहुबल है। ब्राह्मणों की ताकत उनका ज्ञान होता है। स्त्रियों की ताकत उनका सौंदर्य, यौवन और उनकी मीठी वाणी होती है।
दूसरी नीति: आचार्य कहते हैं कि कभी भी अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गौ, कुमारी कन्या, वृद्ध और बालक, इन सातों को हमारे पैर नहीं लगना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार ये सभी पूजनीय और सदैव पवित्र हैं। अत: इन्हें पैर
लगाकर इनका निरादर नहीं करना चाहिए।
तीसरी नीति: चाणक्य के अनुसार ये सात जब भी सोते हुए दिखाई दें तो इन्हें तुरंत उठा देना चाहिए। ये सात लोग इस प्रकार हैं- द्वारपाल, नौकर, राहगीर, भूखा व्यक्ति, भंडारी, विद्यार्थी और डरे हुए व्यक्ति को नींद में से तुरंत जगा देना चाहिए।
चौथी नीति: लक्ष्य कैसे प्राप्त किया जाए... इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने बताया है कि किसी भी कार्य की शुरूआत से पहले हमें खुद से तीन सवाल पूछने चाहिए। ये तीन सवाल ही लक्ष्य प्राप्ति में आ रही बाधाओं को पार
करने में मददगार साबित होंगे। इसके साथ ही ये कार्य की सफलता भी सुनिश्चित करेंगे।
ये तीन प्रश्न हैं-
- मैं ये क्यों कर रहा हूं?
- मेरे द्वारा किए जा रहे इस कार्य के परिणाम
क्या-क्या हो सकते हैं?
- मैं जो कार्य प्रारंभ करने जा रहा हूं, क्या मैं
सफल हो सकूंगा?
पांचवी नीति: आचार्य कहते हैं जिस धर्म में दया का उपदेश न हो, उस धर्म को छोड़ देना चाहिए। जो गुरु ज्ञानहीन हो उसे त्याग देना चाहिए। यदि पत्नी हमेशा क्रोधित ही रहती है तो उसे छोड़ देना चाहिए और जो भाई-बहन स्नेहहीन हों, उन्हें भी त्याग देना चाहिए।
छठी नीति: जीवन में सफलताएं प्राप्त करने के लिए कई बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है। इस संबंध में आचार्य चाणक्य द्वारा कई सटीक सूत्र
बताए गए हैं। इन्हीं से एक सूत्र ये है सर्प, नृप अथवा राजा, शेर, डंक मारने वाले जीव, छोटे बच्चे, दूसरों के कुत्ते और मूर्ख, इन सातों को नींद से नहीं जगाना चाहिए। ये सो रहे हों तो इन्हें इसी अवस्था में रहने
देना ही लाभदायक है ।
सातवीं नीति: शारीरिक बीमारियों का उपचार उचित दवाइयों से किया जा सकता है, लेकिन मानसिक या वैचारिक बीमारियों का उपचार
किसी दवाई से होना संभव नहीं है। इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने सबसे बुरी बीमारी बताई है लोभ। लोभ यानी लालच। जिस व्यक्ति के मन में
लालच जाग जाता है वह निश्चित ही पतन की ओर भागने लगता है। लालच एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज आसानी से नहीं हो पाता। इसी वजह से आचार्य ने इसे सबसे बड़ी बीमारी बताया है।
आठवीं नीति: आचार्य चाणक्य कहते हैं समझदार मनुष्य वही है जो विवाह के लिए नारी की बाहरी सुंदरता न देखते हुए मन की सुंदरता देखे। यदि कोई उच्च कुल या श्रेष्ठ परिवार की कुरूप कन्या सुंस्कारी हो तो उससे विवाह कर लेना चाहिए। जबकि कोई सुंदर कन्या यदि संस्कारी न हो, अधार्मिक हो, नीच
कुल की हो, जिसका चरित्र ठीक न हो तो उससे किसी भी परिस्थिति में विवाह नहीं करना चाहिए। विवाह हमेशा समान कुल में शुभ रहता है।
नवीं नीति: आचार्य चाणक्य कहते हैं भगवान मूर्तियों या मंदिरों में नहीं है। भगवान हमारी अनुभूति में ही विराजमान हैं। हमारी आत्मा ही भगवान का मंदिर है। सभी के शरीर में आत्मा रूपी मंदिर में अनुभूति रूपी भगवान
विराजित रहते हैं। बस इंसान इन्हें महसूस नहीं कर पाता और दुनियाभर में खोजता रहता है। जबकि भगवान हमारे अंदर ही मौजूद हैं।
दसवीं नीति: आचार्य के अनुसार मूख शिष्य को उपदेश देने पर, किसी बुरे स्वभाव वाली स्त्री का भरण-पोषण करने पर और दुखी व्यक्तियों के साथ किसी भी प्रकार का व्यवहार करने पर दुख ही प्राप्त होते हैं।
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