गीता सार
योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः ।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥ - श्रीमदभगवद्गीता (५:२४)
अर्थ : जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुखवाला है, आत्मा में ही रमण करने वाला है तथा जो आत्मा में ही ज्ञान वाला है, वह सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा के साथ एकीभाव को प्राप्त सांख्य योगी शांत ब्रह्म को प्राप्त होता है |
भावार्थ : उच्च कोटि अर्थात परमहंस स्तरके योगी जो खरे अर्थमें मोक्षके अधिकारी होते हैं, वे किस प्रवृत्तिके होते है इसका इस श्लोकमें वर्णन किया गया है | ...... सम्पूर्ण लेख पढ़ने हेतु इस लिंक पर जाएँ =
योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः ।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥ - श्रीमदभगवद्गीता (५:२४)
अर्थ : जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुखवाला है, आत्मा में ही रमण करने वाला है तथा जो आत्मा में ही ज्ञान वाला है, वह सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा के साथ एकीभाव को प्राप्त सांख्य योगी शांत ब्रह्म को प्राप्त होता है |
भावार्थ : उच्च कोटि अर्थात परमहंस स्तरके योगी जो खरे अर्थमें मोक्षके अधिकारी होते हैं, वे किस प्रवृत्तिके होते है इसका इस श्लोकमें वर्णन किया गया है | ...... सम्पूर्ण लेख पढ़ने हेतु इस लिंक पर जाएँ =
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