Friday, 27 September 2013

LINGASHTAKAM – PRAYER TO LORD SHIVA

  • LINGASHTAKAM – PRAYER TO LORD SHIVA
    ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गम निर्मलभासितशोभितलिङ्गम l
    जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गम तत प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम ll
    Brahma Murari Sura architha Lingam,
    Nirmala bashitha Shobitha Lingam,
    Janmaja dukha vinasaka lingam.
    That pranamami sada shiva lingam.
    I bow before that Lingam, which is the eternal Shiva,
    Which is worshipped by Brahma, Vishnu and other Devas,
    Which is pure and resplendent,
    And which destroys sorrows of birth...........
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  • कुछ भक्त, सन्यासी, धर्म प्रसारक समाजमें धर्मकी बातोंको पहुंचाना चाहते हैं और जब उनके फेसबुक प्रोफ़ाइलपर उनकी बातोंकी ओर लोगोंका ध्यान नहीं जाता है तो वे अपनी विचार मेरे पेजके प्रतिक्रियावाले भागमें लिखते रहते हैं परंतु अधिकांशतः उनकी प्रतिक्रियाका मेरे लेखसे कोई संबंध नहीं होता है | मैं ऐसे लोगोंको यह नम्रतापूर्वक बताना चहुंगी कि आपके सोच अच्छी है परंतु समाज तक आप जो भी बातें पहुंचाना चाहते हैं उसे समष्टि साधना कहते हैं और आपकी समष्टि साधना तभी परिणामकारक होगी जब आपकी व्यष्टि साधनाका ( स्वयंकी साधना) आधार ठोस हो | अतः अपनी व्यष्टि साधनापर अधिक ध्यान दें | ईश्वरको ऐसे जीव जिनमें समष्टि साधना करनेकी तडप होती है वे प्रिय होते हैं; परंतु ईश्वर ऐसे जीवको चुनते हैं जिनकी व्यष्टि साधना अच्छी है | अतः व्यष्टि साधना हेतु निम्नलिखित नियमित प्रयास करें :
    १. अधिकसे अधिक समय नामजप करें, नामजपमें संख्यात्मक और गुणांत्मक वृद्धि करें |
    २. प्रार्थनाको अपनी दिनचर्याका अविभाज्य अंग बनाएं, इस प्रकार आप ईश्वरीय तत्त्वसे धीरे-धीरे अखंड अनुसंधान बना पाएंगे |
    ३. आप जिस भी बातको समाज तक पहुंचाना चाहते हैं सर्वप्रथम उसे आत्मसात करें इससे आपकी लेखन और वाणी दोनोंमें चैतन्य आएगा और इससे समाज आपकी ओर सहज ही आकृष्ट होगा |
    ४. ईश्वरको नम्र जीव अति प्रिय होते हैं अतः अहंका त्याग हेतु विशेष प्रयास करें, इस हेतु अपने सर्व कृतियोंका कर्तापन ईश्वरके चरणोंमें सातत्यसे अर्पण करें |
    ५. अपने त्यागके प्रवृत्तिको बढ़ाएं अर्थात तन, मन और धन तीनोंका त्यागके प्रतिशतमें निरंतर वृद्धि हो रही है क्या इसकी समीक्षा करें |
    ६. जब भी आप कुछ साझा कर रहे हैं तो उसे कहांसे सीखा है वह अवश्य समाजको बताएं इससे कर्तापनका भाव घटने लगता है और मैं ज्ञानी हूं, यह अहंभाव कम होने लगता है, अधिकांश व्यक्ति गर्भसे सीख कर नहीं आते, माता-पिता, आचार्य, ग्रंथ, साधक, मार्गदर्शक और गुरुके माध्यमसे सब सीखते हैं , उनके प्रति एक क्षणके लिए भी कृतज्ञताका भाव कम न होने दें !
    ७. जहांपर आवश्यक हो वहींपर अपने ज्ञानकी अभिव्यक्ति करें, सर्वत्र अपने मनकी भडास उगलते न फिरें इसे बहिर्मुखता कहते हैं ! अपनी वृत्तिको अंतर्मुख करें !
    देखिएगा ईश्वर आपको अपने कार्य हेतु अवश्य चुनेंगे ! समष्टि साधना हेतु आपको ढेरों शुभेच्छा !
    source : www.tanujathakur.com
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