Tanuja Thakur साधना किसे कहते हैं ?
साधना किसे कहते हैं ?
ईश्वरप्राप्ति या आनंदप्राप्ति या आध्यात्मिक प्रगति हेतु प्रतिदिन जो भी हम तन, मन, धन, बुद्धि या कौशल्यसे प्रयास करते हैं, उसे साधना कहते हैं | साधनाके अनेक मार्ग हैं, जैसे कर्मयोग, ज्ञानयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग, राजयोग, शक्तिपातयोग, कुंडलिनियोग, भावयोग, क्रियायोग, गुरुकृपायोग इत्यादि | यह हिन्दू धर्मकी विशेषता है और धर्मके मूलभूत सिद्धान्त भी, जो स्पष्ट रूपसे कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्तिका साधना मार्ग भिन्न होता है | स्वामी विवेकानन्दने कहा है, ‘जतो मत, ततो पथ”, अर्थात जितने व्यक्ति, उतनी ही प्रकृतियाँ और उतनी ही साधनाकी पद्धतियाँ | प्रत्येक व्यक्ति अपने आपमें एक भिन्न अस्तित्व होता है | अतः उसके कर्म करनेकी गति, उसके विचार करनेकी प्रक्रिया, उसके पूर्व संचित, प्रारब्ध, आनुपातिक पंचतत्त्व और पंचमहाभूत, सब भिन्न होते हैं इसलिए साधनाके मार्ग भी भिन्न होते हैं |
कलियुगमें शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति हेतु गुरुकृपायोगका विहंगम मार्ग सर्वोत्तम है | इस मार्गके अनुसार शीघ्र प्रगति क्यों होती है ? क्योंकि इस योगमार्गमें अनेक योग मार्गोंकी साधना समाहित होती है | जैसे गुरुकृपायोगसे साधना करनेवाले खरे अर्थमें कर्मयोगी होते हैं | वे गुरुको कर्त्तापन अर्पण कर, निष्काम भावसे अखंड कर्ममें रत रहते हैं | यहाँ तक कि संत पदपर आसीन होनेपर भी उनके कर्म करनेकी अखंडता बनी रहती है | उसी प्रकारसे इस योगमार्गसे साधना करनेवाले हठयोगी भी होते हैं क्योंकि गुरुका कार्य है मन, बुद्धि और अहम् का लय करना | अतः वे सब कुछ शिष्यके मनके विरुद्ध बताते हैं और शिष्य उसका पालन भी करता है | मनके विरुद्ध जाना ही खरा हठयोग है | इस मार्गके साधकका ध्यान ‘जिस प्रकार अर्जुनका ध्यान चिड़ियाकी आँखपर केन्द्रित था’, उसी प्रकार शिष्यका भी ध्यान गुरुचरणोंपर टिका रहता है और ‘ध्यान ‘मूलं गुरोर मूर्ति’, की साधनामें रत शिष्यकी ध्यानयोगकी साधना सहज ही हो जाती है | इस मार्गमें श्रीगुरुसे अखंड ज्ञानकी गंगा प्रवाहित होती है और शिष्य उसमें डुबकियाँ ले, साधना रत रहता है | अतः ज्ञानयोगकी साधना भी इस मार्गमें समाहित है; परन्तु सद्गुरु को ढूँढनेकी आवश्यकता नहीं है | सद्गुरु कोई देह नहीं हैं, वे एक सर्वज्ञानी, सर्वव्यापी तत्त्व हैं | जब तक आपके जीवनमें देहधारी सद्गुरु नहीं हैं, तब तक आप जिस आराध्य-देवका जप कर रहे हैं, वही आपके निर्गुण गुरु हैं | जैसे ही आपके मनमें सगुण गुरुको पानेकी इच्छा और उस हेतु प्रयत्न और भक्ति बढ़ जायेगी, सद्गुरु आपके जीवनमें स्वतः ही चले आयेंगे | ध्यानमें रखें, गुरु मिलना सरल है तथापि शिष्य मिलना कठिन होता है | अतः सद्गुरु भी योग्य शिष्यकी खोजमें रहते हैं | आपके जीवनमें सद्गुरुका प्रवेश हो, इस हेतु आप निम्न प्रयत्न कर सकते हैं:
(१) अधिकसे अधिक योग्य नामजप करें |
(२) यदि घरमें पितृ-दोष हो, तो उसके निवारण हेतु प्रयास करें |
(३) धर्मकार्यर्में यथाशक्ति, तन-मन-धनसे सहयोग करें |
(४) अपने अहम् एवं स्वभाव-दोषके प्रति सतर्क रह कर उसे दूर करने हेतु प्रयत्न करें |
(५) धर्म-प्रसार करें, यह संतोंको प्रसन्न करनेका या उन्हें अपनी ओर आकृष्ट करनेका सर्वोत्तम मार्ग है |
(६) अपने व्यवहारिक समयमेंसे थोड़ा समय निकाल्रकर निष्काम भावसे नियमित व्यष्टि एवं समष्टि साधना हेतु प्रयत्न करें | आपके जीवनमें उच्च कोटिके संतका पदार्पण स्वतः ही हो जाएगा |
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