Tanuja Thakur जय श्री कृष्णा !!!!
द्वापर युगके पश्चात होगा ऐसा, पहली बार जन्माष्टमीपर ५०५७(5057 ) वर्ष पश्चात दुर्लभ संयोग...
इस बार २८(28) अगस्तको मनाई जानेवाली जन्माष्टमी तिथि राशि और नक्षत्रके कारण विशेष है। ज्योतिष शास्त्रज्ञोंके अनुसार ५०५७ (5057) वर्ष पश्चात जन्म अष्टमीपर तिथि, वार, नक्षत्र व ग्रहोंके अद्भुत मेलका ऐसा संयोग बना है जो श्रीकृष्ण जन्मके समय द्वापर युगमें बना था।
इस दृष्टिकोणसे इस बारकी जन्माष्टमी विशेष फलदायी होगी। इससे पहले सन १९३२ (1932) और २००० (2000) में भी बुधवारके दिन जन्म अष्टमी पडी थी। उस समय तिथि और नक्षत्रका मेल नहीं था परंतु इस बार नक्षत्र, दिन, तिथि, लग्न सभी एक साथ विद्यमान रहेंगे। अष्टमी तिथि सूर्योदयसे होनेके कारण वैष्णव और शैव संप्रदाय इस पर्वको एक ही दिन मनाएंगे।
गीतामें श्री कृष्णका जन्म भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, अष्टम तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृषभके चंद्रमाकी मध्यरात्रिमें होना बताया गया है।
इसका लाभ लें और दूसरोंको भी अवगत कराकर श्री कृष्णकी कृपा प्राप्त करें ....!!!
जय श्री कृष्णा !!!!
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• जब भगवान श्रीकृष्णने गोवर्धन पर्वत उठाया था तब गोप –गोपियां, यह देख तालियां नहीं बजा रहे थे वरन सब अपनी अपनी लाठियां लगा अपना योगदान देना चाहते थे ! उन्हें पता थे भगवान श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत उठानेमें सक्षम हैं परंतु वे इस ईश्वरीय कार्यमें अपनी क्षमता अनुसार योगदान देना चाहते थे ! इसे भाव कहते हैं ! जब भगवान श्री राम लंका जानेके लिए समुद्र पर पुल बना रहे थे तब एक गिलहरी अपने गीले शरीरमें बालूमें लेप, पुल बनानेमें अपना सामर्थ्य अनुसार योगदान दे रही थी ! यह दोनों घटना हमें ईश्वरीय कार्यमें अपने सामर्थ्य अनुसार भागीदार बनने की प्रेरणा देते हैं ! कालानुसार धर्म संस्थापनाका कार्य संतों के संकल्पके कारण होने ही वाला है, हम इतिहासके भागीदार बनते हैं या मात्र साक्षीदार यह हमारे पुरुषार्थपर निर्भर करता है
When Shri Krushna had lifted Govardhan Parvat (mountain), the Gopas-Gopis (male and female cowherds) were not clapping. Instead, all of them tried to make a contribution by providing support with their lathis (sticks). They knew very well that Lord Krushna was capable of lifting Govardhan, but they wanted to contribute their mite to the divine act. This is known as Bhav (spiritual emotion). When Lord Rama was building the bridge across the sea to cross over to Lanka, a squirrel covered her body with sand, thereby contributing according to its own capacity in building the bridge. Both these incidents inspire us to become a participant in contributing to the divine work according to our capacity. At present , the work of Dharma Sansthapana (establishment of righteousness) will become a reality due to the resolve of the saints, so now it depend on us whether we become active participants in the making of history by putting our efforts, or remain a mere spectator in the entire process.
Source : www.tanujathakur.com
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