आओ,
पहले हम सन्तों के चरणों में प्रणाम करें, जिनकी कृपादृष्टि मात्र से ही
समस्त पापसमूह भस्म होकर हमारे आचरण के दोष नष्ट हो जायेंगे । उनसे
वार्तालाप करना हमारे लिये शिक्षाप्रद और अति आनन्ददायक है । वे अपने मन
में "यह मेरा और वह तुम्हारा" ऐसा कोई भेद नहीं रखते । इस प्रकार के भेदभाव
की कल्पना उनके हृदय में कभी भी उत्पन्न नहीं होती । उनका ऋण इस जन्म में
तो क्या, अनेक जन्मों में भी न चुकाया जा सकेगा ।
(श्री साई सच्चरित्र) (2 photos)
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