भगवान श्री बांके बिहारी जी को बांसुरी अत्यंत प्रिय है. हम मुरली के बिना ठाकुर जी कि कल्पना भी नहीं कर सकते. यह कोई साधारण बंसी नहीं है, इस बंसी के तो इतना प्रभाव है कि इस मुरली की तान ने भगवान भोलेनाथ की भी समाधी भंग कर दी थी. सब गोपियाँ इस मुरली को सुन के बावरी हो जाती थी. इस का प्रभाव तो यहाँ तक बताया जा चुका है कि जब भगवान बांसुरी बजाते थे, तो समय भी मानो उनको सुनने के लिए ठहर जाता था.
क्या आपने कभी यह सोचा है कि भगवन ने केवल बांसुरी को इतना बड़ा सौभाग्य क्यों दिया कि बांसुरी हमेशा उनके साथ रहती है और उनके अधरामृत का पान भी करती है. वाद्य यन्त्र तो और भी अनेक हैं पर प्रभु ने केवल बांसुरी को ही क्यों चुना. अनेक टीकाकारों ने इसके अनेक कारण बताये हैं पर जैसा पूज्य गुरुदेव से सुना है आप सब को बताने जा रही हू.
भगवान को बांसुरी इसलिए प्यारी है क्यूंकि इसमें ऐसे तीन गुण है जो अन्य किसी भी वाद्य यन्त्र में नहीं होते. और इन्ही तीन गुणों के प्रभाव से बांसुरी भगवान के अधरों पर विराजमान हो गयी.
बांसुरी का पहला गुण है कि यह अपने आप नहीं बजती. अर्थार्थ जब इसे फूंक मार के बजाया जायेगा तभी यह बजेगी. तो आप प्रश्न कर सकते हैं कि ऐसे तो कोई भी वाद्य यन्त्र अपने आप नहीं बजता, सबको बजाना ही पड़ता है. पर यदि आप मुरली से ठोकर खाते हैं, तो यह आपका रास्ता नहीं रोकती, स्वयं एक ओर हो जाती है और आपको कभी हानि नहीं पहुंचाती. अब आप कभी ढोलक से टकरा के देखना. खुद तो बजेगी ही आपको भी बजा देगी. पर मुरली बड़ी शांत स्वाभाव की है.
इसका दूसरा गुण है कि यह सदा मीठा बोलती है. कोई बालक जिसे बांसुरी बजानी नहीं आती है, यदि वेह भी इसको बजाता है तो इसका स्वर कर्कश नहीं लगता. हमेशा मधुर ही लगता है. और यदि किसी को बजानी आती हो तो व्यक्ति इसकी तान में ही खो जाते हैं. परन्तु अन्य यन्त्र केवल उसी व्यक्ति के हाथ में शोभा देते हैं जो उन्हें बजाना जानता हो. अन्यथा तो बहुत कर्कश ध्वनि उनमे से निकलती है.
मुरली का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण गुण है उसकी सरलता और उसका भोलापन. आप देख सकते हैं कि मुरली में कभी कोई गांठ नहीं होती. यह ऊपर और नीचे से एक समान होती है और अंदर से खोखली भी होती है. ये जैसे ऊपर से दिखती है वैसी ही ये अंदर से भी है.
बंधुओ, यदि बांसुरी के ये तीन गुण हम अपने अंदर भी जागृत कर लें, तो विश्वास रखिये कि भगवान आपको अपने अधरामृत से वंचित नहीं रख पाएंगे. वो आपको भी वही स्थान दे देंगे जो उन्होंने मुरली को दे रखा है. कहने का तात्पर्य यह है कि आप भी बिना कारण के मत बोलिए. जब बहुत आवश्यकता हो तभी बोलिए, व्यर्थ में इस जिह्वा का उपयोग न करें. और जब भी उपयोग करें दूसरों कि भलाई के लिए करें. हमेशा मधुर वाणी बोलिए. यदि कोई आपके साथ अपशब्द प्रयोग भी करता है तो आप उसे उसकी भाषा में जवाब देने के स्थान पर मधुर वचन बोलिए, तो सामने वाला व्यक्ति अपने आप लज्जित हो जायेगा और उसे अपनी भूल का एहसास भी हो जायेगा. पूज्य गुरुदेव कहा करते हैं:
दुनिया कभी किसी को मुहब्बत नहीं देती
इनाम तो चाहती है पर कीमत नहीं देती
देने को तो दे सकता हूँ मै भी तुम्हे गाली
पर मेरी तहज़ीब मुझे इसकी इजाज़त नहीं देती
और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण गुण, कि आप भी अपने अंदर से हर प्रकार कि गांठ को मिटा दीजिए. इर्ष्या, घृणा, राग, द्वेष जैसे जो दुर्गुण है उन्हें अपने अंदर ने निकल दीजिए, सबके साथ एक समान व्यव्हार करिये और अपने अंदर भोलेपन को जागृत करिये. सहज रहने कि आदत डाल लीजिए और हर कदम पे, हर साँस पे प्रभु कि कृपा का अनुभव करिये और खुश रहिये.
यदि ये सरे गुण आप अपना लेते हैं तो आप भी भगवान को मुरली के समान ही प्यारे लगोगे. आशा करता हूँ कि आपको इस जानकारी से कुछ लाभ अवश्य होगा और यह बातें आपको प्रभु के नज़दीक ले जाने में सहायक अवश्य होंगी
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