Friday, 8 March 2013

सनातन धर्म एक ही धर्म



















हम जो आज हैं और भविष्य में जो होना चाहते हैं उन सभी के पीछे हमारे चिंतन के अभ्यंतर में हमारे दर्शनों के उद्गम वेद ही हैं। यह कहना उचित नहीं कि वेदों का सनातन ज्ञान हमारे लिए सहज मार्ग की प्राप्ति के लिए अति दुरूह और भटकने जैसा है। हां इनको समझने के लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता है।

जिस प्रकार ईश्वर अनादि, अनंत और अविनाशी है, उसी प्रकार वेद ज्ञान भी अनादि, अनंत और अविनाशी है। उपनिषदों में वेदों को परमात्मा का निःश्वास कहा गया है। वेद मानव मात्र का मार्गदर्शन करते हैं।

हम जो आज हैं और भविष्य में जो होना चाहते हैं उन सभी के पीछे हमारे चिंतन के अभ्यंतर में हमारे दर्शनों के उद्गम वेद ही हैं। यह कहना उचित नहीं कि वेदों का सनातन ज्ञान हमारे लिए सहज मार्ग की प्राप्ति के लिए अति दुरूह और भटकने जैसा है। हां इनको समझने के लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता है।

जिस प्रकार ईश्वर अनादि, अनंत और अविनाशी है, उसी प्रकार वेद ज्ञान भी अनादि, अनंत और अविनाशी है। उपनिषदों में वेदों को परमात्मा का निःश्वास कहा गया है। वेद मानव मात्र का मार्गदर्शन करते हैं।




















और वे ऐसा अन्याय करते हैं कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता तथा ब्राह्मण, गो, देवता और पृथ्वी कष्ट पाते हैं, तब-तब वे कृपानिधान प्रभु भाँति-भाँति के (दिव्य) शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं


और वे ऐसा अन्याय करते हैं कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता तथा ब्राह्मण, गो, देवता और पृथ्वी कष्ट पाते हैं, तब-तब वे कृपानिधान प्रभु भाँति-भाँति के (दिव्य) शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं











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