Thursday, 7 March 2013

सनातन धर्म एक ही धर्म




हे जीवो ! गर्व नहीं करना, क्योंकि गर्व करने से विनाश हो जाता है । गर्व करने वाले को गोविन्द भगवान की कभी भी प्राप्ति नहीं होती है । गर्व करने वाले का नरक में वास होता है । गर्व करने वाला अधोगति को जाता है । गर्व भयंकर अन्धकाररूप है । इसमें आसक्त हुये मनुष्य को सत्य - असत्य कुछ भी नहीं दीखता है । गर्व करने वाला संसार समुद्र में ही डूबता है अर्थात् जन्म - मरण को प्राप्त होता है । गर्व करने वाला इस संसार का उरला किनारा और परला किनारा नहीं पा सकता । गर्व से यमलोक की प्राप्ति होती है । गर्व करने वाला जन्म - मरण से कभी छुटकारा नहीं पाता । गर्व करने वाला निषिद्ध कर्मों में, अर्थात् पाप कर्मों में ही बंधा रहता है । गर्व करने वाले पुरुष के अन्तःकरण में परमेश्वर प्राप्ति का भाव नहीं उत्पन्न होता है । गर्व करने वाले प्राणियों से, भगवान् की निष्काम भक्ति नहीं होती । गर्व करने वालों को मुखप्रीति का विषय आत्मस्वरूप परमेश्वर की प्राप्ति नहीं होती है । इसलिये हे भाई ! गर्व का सदैव त्याग करने से ही कल्याण होता है, क्योंकि गर्व करने से तो सब प्रकार से नाश हो जाता है । गर्व करने वालों के अन्दर तो, हर प्रकार के विकार होते हैं । इसलिये तत्ववेत्ता पुरुष कहते हैं कि हे जीवों ! गर्व नहीं करोगे, तो वह सिरजनहार परमेश्वर, तुम्हारे सन्मुख ही प्रत्यक्ष हैं ।
हे जीवो ! गर्व नहीं करना, क्योंकि गर्व करने से विनाश हो जाता है । गर्व करने वाले को गोविन्द भगवान की कभी भी प्राप्ति नहीं होती है । गर्व करने वाले का नरक में वास होता है । गर्व करने वाला अधोगति को जाता है । गर्व भयंकर अन्धकाररूप है । इसमें आसक्त हुये मनुष्य को सत्य - असत्य कुछ भी नहीं दीखता है । गर्व करने वाला संसार समुद्र में ही डूबता है अर्थात् जन्म - मरण को प्राप्त होता है । गर्व करने वाला इस संसार का उरला किनारा और परला किनारा नहीं पा सकता । गर्व से यमलोक की प्राप्ति होती है । गर्व करने वाला जन्म - मरण से कभी छुटकारा नहीं पाता । गर्व करने वाला निषिद्ध कर्मों में, अर्थात् पाप कर्मों में ही बंधा रहता है । गर्व करने वाले पुरुष के अन्तःकरण में परमेश्वर प्राप्ति का भाव नहीं उत्पन्न होता है । गर्व करने वाले प्राणियों से, भगवान् की निष्काम भक्ति नहीं होती । गर्व करने वालों को मुखप्रीति का विषय आत्मस्वरूप परमेश्वर की प्राप्ति नहीं होती है । इसलिये हे भाई ! गर्व का सदैव त्याग करने से ही कल्याण होता है, क्योंकि गर्व करने से तो सब प्रकार से नाश हो जाता है । गर्व करने वालों के अन्दर तो, हर प्रकार के विकार होते हैं । इसलिये तत्ववेत्ता पुरुष कहते हैं कि हे जीवों ! गर्व नहीं करोगे, तो वह सिरजनहार परमेश्वर, तुम्हारे सन्मुख ही प्रत्यक्ष हैं ।

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