Friday, 22 March 2013

गीता सार :


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गीता सार :
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥
अर्थ : दुःखोंकी प्राप्ति होनेपर जिसके मनमें उद्वेग नहीं होता, सुखोंकी प्राप्तिमें सर्वथा निःस्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं, ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है |
भावार्थ : जो सुख और दुख दोनों ही अवस्थामें समत्वमें रहता है उसे ही आनंदकी अनुभूति कहते है | सुख और दुखकी अनुभूति मनको होती है और आनंदकी अनुभूति जीवात्माको होती है | मन विचारोंका एक पुंज मात्र है, साधना करनेपर मनोलय हो जाता है और फलस्वरूप सुख और दुखका प्रभाव नहीं पड़ता | राग, भय और क्रोध ये संस्कार मनमें अंकित होते हैं जब मन ही नष्ट हो जाता है तो सारे विकार भी स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं और ऐसे व्यक्ति की बुद्धि आत्मतत्त्वमें स्थिर हो जाती है | सुख और दुख वस्तु, काल और परिस्थिति सापेक्ष होता है उसके विपरीत आनंद वस्तु, काल और परिस्थिति निरपेक्ष होता है | साधना आरंभ करने पर धीरे-धीरे साधक को आनंदकी अनुभूति होने लगती है और साधना पूर्ण होनेपर साधक अखंड आनंदकी अनुभूति लेता है इस स्थितिको स्थितप्रज्ञता कहते हैं |

Essence of Gita:
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥
Dukheshvanuddhignmanah sukheshu vigatspruhah
Veetaragabhayakrodhah sthitdheermunirucchyate
Meaning: One whose mind does not become agitated even in the midst of calamities and is not at all interested in the attainment of pleasures and one whose passion, fear and anger have been destroyed, such a Muni (saint) is called ‘Sthirbuddhi” (one with a steady intellect).

Implied Meaning: One who retains equanimity in both sorrow and happiness, experiences the feeling of bliss. Happiness and sorrow are both experienced by the mind and bliss is experienced by Jivatma (embodied soul). Mind is only a bundle of thoughts, and upon doing Sadhana (spiritual practice), the mind gets dissolved. As a result, happiness and sorrow do not have an impact. The feelings of passion, fear and anger are impressions of the mind. But once the mind has been dissolved, all the disorders too get destroyed automatically . Happiness and sorrow are relative to time, the circumstances and the objects. On the other hand, bliss is irrespective of time, the objects and the circumstances and once a seeker completes his or her Sadhana, he or she begins experiencing bliss and such a condition is known as Sthitpragyata (equanimity).
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दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥ 
अर्थ : दुःखोंकी प्राप्ति होनेपर जिसके मनमें उद्वेग नहीं होता, सुखोंकी प्राप्तिमें सर्वथा निःस्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं, ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है |
भावार्थ : जो सुख और दुख दोनों ही अवस्थामें समत्वमें रहता है उसे ही आनंदकी अनुभूति कहते है | सुख और दुखकी अनुभूति मनको होती है और आनंदकी अनुभूति जीवात्माको होती है | मन विचारोंका एक पुंज मात्र है, साधना करनेपर मनोलय हो जाता है और फलस्वरूप सुख और दुखका प्रभाव नहीं पड़ता | राग, भय और क्रोध ये संस्कार मनमें अंकित होते हैं जब मन ही नष्ट हो जाता है तो सारे विकार भी स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं और ऐसे व्यक्ति की बुद्धि आत्मतत्त्वमें स्थिर हो जाती है | सुख और दुख वस्तु, काल और परिस्थिति सापेक्ष होता है उसके विपरीत आनंद वस्तु, काल और परिस्थिति निरपेक्ष होता है | साधना आरंभ करने पर धीरे-धीरे साधक को आनंदकी अनुभूति होने लगती है और साधना पूर्ण होनेपर साधक अखंड आनंदकी अनुभूति लेता है इस स्थितिको स्थितप्रज्ञता कहते हैं | 

 Essence of Gita:
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥ 
Dukheshvanuddhignmanah sukheshu vigatspruhah 
Veetaragabhayakrodhah sthitdheermunirucchyate 
Meaning: One whose mind does not become agitated even in the midst of calamities and is not at all interested in the attainment of pleasures and one whose passion, fear and anger have been destroyed, such a Muni (saint) is called ‘Sthirbuddhi” (one with a steady intellect).

Implied Meaning: One who retains equanimity in both sorrow and happiness, experiences the feeling of bliss. Happiness and sorrow are both experienced by the mind and bliss is experienced by Jivatma (embodied soul). Mind is only a bundle of thoughts, and upon doing Sadhana (spiritual practice), the mind gets dissolved. As a result, happiness and sorrow do not have an impact. The feelings of passion, fear and anger are impressions of  the mind. But once the mind has been dissolved, all the disorders too get destroyed automatically . Happiness and sorrow are relative to time, the circumstances and the objects. On the other hand, bliss is irrespective of time, the objects and the circumstances and once a seeker completes his or her Sadhana, he or she begins experiencing bliss and such a condition is known as Sthitpragyata (equanimity).

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