सनातन धर्म एक ही धर्म
"संत हृदय नवनीत समाना। कहा कबिन्ह परि कहै न जाना॥
निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर सुख द्रवहिं संत सुपुनीता॥4॥"
(उत्तरकाण्ड- श्रीरामचरितमानस)
भावार्थ:-संतों का हृदय मक्खन के समान होता है, ऐसा कवियों ने कहा है,
परंतु उन्होंने (असली बात) कहना नहीं जाना, क्योंकि मक्खन तो अपने को ताप
मिलने से पिघलता है और परम पवित्र संत दूसरों के दुःख से पिघल जाते हैं॥
meaning thereby that: the poets say the heart of the saints is very
much like butter, but even they did not realize the truth, for butter
melts only when it gets heat, but the kind heart of the saints melts
simply by the pains of others…
निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर सुख द्रवहिं संत सुपुनीता॥4॥"
(उत्तरकाण्ड- श्रीरामचरितमानस)
भावार्थ:-संतों का हृदय मक्खन के समान होता है, ऐसा कवियों ने कहा है, परंतु उन्होंने (असली बात) कहना नहीं जाना, क्योंकि मक्खन तो अपने को ताप मिलने से पिघलता है और परम पवित्र संत दूसरों के दुःख से पिघल जाते हैं॥
meaning thereby that: the poets say the heart of the saints is very much like butter, but even they did not realize the truth, for butter melts only when it gets heat, but the kind heart of the saints melts simply by the pains of others…
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