"सीयाराम
मय सब जग जाना " सीया अर्थात सीता और राम !जब आप ध्यान में गहरे जाओगे
सबसे पहले शरीर के ह्रदय(बाईं ओर) भाग में,पैर के पंजे से नासिका से होते
हुए माथे, (माँग स्थान) के अन्त तक उर्जा को अनुभव करोगे,शारीर का आधा भाग
उर्जा के कारण विभाजित अनुभव होगा !
ये आधा भाग आपका स्त्री शरीर है !
इस भाग में जो उर्जा गामित हो रही है वह स्त्री उर्जा है ! तब पहली बार
साधक को अर्ध नारिश्वर चित्र का मतलब समझ पड़ता है !
फिर देह के सीधे
(दायाँ पक्ष) भाग में उर्जा का गमन होता है,ये भाग आपका पुरुष शरीर है !
इस भाग में जो उर्जा गामित हो रही है वह पुरुष उर्जा है !
साधना काल में क्रम से कभी बाईं भाग में कभी दायाँ भाग में उर्जा गति करती है !
अंत में दोनों उर्जाये का विलय हो जाता है,और उर्जा सामान रूप से पूरी देह में गतिमान हो जाती है !
सनातन देवी देवताओं के सभी चित्र इशारे हैं,जिनको ध्यान से ही समझा जा सकता है ! एक साधक ही समझ सकता है !
शिव लिंग को ध्यान से देखें उसके मूल में योनि है,स्त्री साधक के योनि और
पुरुष साधक के लिंग स्थान से उर्जा यात्रा प्रारम्भ करती है ! जनेन्द्रि के
निचे मलद्वार के ऊपर ही वह कुण्ड है जिसमे अपार उर्जा भरी है ! ध्यान के
द्वारा उस कुण्ड का ढक्कन खुलता है !
साधक ही जान पता है शिव और शक्ति को,वही कह सकता है " ।।सीयाराम मय सब जग जाना ।।
"सीयाराम
मय सब जग जाना " सीया अर्थात सीता और राम !जब आप ध्यान में गहरे जाओगे
सबसे पहले शरीर के ह्रदय(बाईं ओर) भाग में,पैर के पंजे से नासिका से होते
हुए माथे, (माँग स्थान) के अन्त तक उर्जा को अनुभव करोगे,शारीर का आधा भाग
उर्जा के कारण विभाजित अनुभव होगा !
ये आधा भाग आपका स्त्री शरीर है ! इस भाग में जो उर्जा गामित हो रही है वह स्त्री उर्जा है ! तब पहली बार साधक को अर्ध नारिश्वर चित्र का मतलब समझ पड़ता है !
फिर देह के सीधे (दायाँ पक्ष) भाग में उर्जा का गमन होता है,ये भाग आपका पुरुष शरीर है ! इस भाग में जो उर्जा गामित हो रही है वह पुरुष उर्जा है !
साधना काल में क्रम से कभी बाईं भाग में कभी दायाँ भाग में उर्जा गति करती है !
अंत में दोनों उर्जाये का विलय हो जाता है,और उर्जा सामान रूप से पूरी देह में गतिमान हो जाती है !
सनातन देवी देवताओं के सभी चित्र इशारे हैं,जिनको ध्यान से ही समझा जा सकता है ! एक साधक ही समझ सकता है !
शिव लिंग को ध्यान से देखें उसके मूल में योनि है,स्त्री साधक के योनि और पुरुष साधक के लिंग स्थान से उर्जा यात्रा प्रारम्भ करती है ! जनेन्द्रि के निचे मलद्वार के ऊपर ही वह कुण्ड है जिसमे अपार उर्जा भरी है ! ध्यान के द्वारा उस कुण्ड का ढक्कन खुलता है !
साधक ही जान पता है शिव और शक्ति को,वही कह सकता है " ।।सीयाराम मय सब जग जाना ।।
ये आधा भाग आपका स्त्री शरीर है ! इस भाग में जो उर्जा गामित हो रही है वह स्त्री उर्जा है ! तब पहली बार साधक को अर्ध नारिश्वर चित्र का मतलब समझ पड़ता है !
फिर देह के सीधे (दायाँ पक्ष) भाग में उर्जा का गमन होता है,ये भाग आपका पुरुष शरीर है ! इस भाग में जो उर्जा गामित हो रही है वह पुरुष उर्जा है !
साधना काल में क्रम से कभी बाईं भाग में कभी दायाँ भाग में उर्जा गति करती है !
अंत में दोनों उर्जाये का विलय हो जाता है,और उर्जा सामान रूप से पूरी देह में गतिमान हो जाती है !
सनातन देवी देवताओं के सभी चित्र इशारे हैं,जिनको ध्यान से ही समझा जा सकता है ! एक साधक ही समझ सकता है !
शिव लिंग को ध्यान से देखें उसके मूल में योनि है,स्त्री साधक के योनि और पुरुष साधक के लिंग स्थान से उर्जा यात्रा प्रारम्भ करती है ! जनेन्द्रि के निचे मलद्वार के ऊपर ही वह कुण्ड है जिसमे अपार उर्जा भरी है ! ध्यान के द्वारा उस कुण्ड का ढक्कन खुलता है !
साधक ही जान पता है शिव और शक्ति को,वही कह सकता है " ।।सीयाराम मय सब जग जाना ।।
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