Saturday, 23 February 2013

Tvam Eva Mata Prayer with Meaning

Tvam-Eva Mata Ca Pita Tvam-Eva |
Tvam-Eva Bandhush-Ca Sakhaa Tvam-Eva |
Tvam-Eva Viidya Dravinnam Tvam-Eva |
Tvam-Eva Sarvam Mama Deva Deva ||

You Truly are my Mother And You Truly are my Father.
You Truly are my Relative And You Truly are my Friend.
You Truly are my Knowledge and You Truly are my Wealth.
You Truly are my All, My God of Gods.
 
 
वो काला एक बांसुरी वाला, सुध बिसरा गया मोरी रे । माखन चोर वो नंदकिशोर जो, कर गयो मन की चोरी रे ॥ पनघट पे मोरी बईया मरोड़ी, मैं बोली तो मेरी मटकी फोड़ी । पईया परूँ करूँ बीनता मैं पर, माने ना वो एक मोरे रे ॥
वो काला एक बांसुरी वाला, सुध बिसरा गया मोरी रे । माखन चोर वो नंदकिशोर जो, कर गयो मन की चोरी रे ॥ पनघट पे मोरी बईया मरोड़ी, मैं बोली तो मेरी मटकी फोड़ी । पईया परूँ करूँ बीनता मैं पर, माने ना वो एक मोरे रे ॥
हम एक ओर पुण्य की कामना से कोई अच्छा कार्य करते हैं तो दूसरी ओर हमारे द्वारा पाप भी होते रहते हैं जिसके परिणामस्वरूप हमारी ही भूलों के कारण, प्रभु से दूरी बनी ही रहती है। सच तो यह है कि ढोंग-पाखन्ड की ओर हमारी स्वाभाविक वृत्ति होती है, इस शरीर को ही सब कुछ मानते-मानते हम सब समय इसी को सुखी करने की कामना में पाप करते चले जाते हैं। प्रभु कृपा से संत और सत्संग उपलब्ध होने पर भी हम अहंकारी उसे अपने आचरण में न उतारकर दिखावे तक ही सीमित कर लेते हैं। हमारा सबसे बड़ा दोष ही यह है कि हम स्वयं को सर्वकाल में निर्दोष ही मानते हैं और इस प्रकार अपने सुधार का मार्ग स्वयं ही बंद कर देते हैं। यदि हम अपने पापों को याद करें तो पायेंगे कि हमें जो मिला है, हम कभी भी उसके लायक नहीं थे और ऐसा इसलिये है कि प्रभु कभी भी हमारी योग्यता नहीं देखते, कृपा करते समय।
जय जय श्री राधे shri krishan italy
हम एक ओर पुण्य की कामना से कोई अच्छा कार्य करते हैं तो दूसरी ओर हमारे द्वारा पाप भी होते रहते हैं जिसके परिणामस्वरूप हमारी ही भूलों के कारण, प्रभु से दूरी बनी ही रहती है। सच तो यह है कि ढोंग-पाखन्ड की ओर हमारी स्वाभाविक वृत्ति होती है, इस शरीर को ही सब कुछ मानते-मानते हम सब समय इसी को सुखी करने की कामना में पाप करते चले जाते हैं। प्रभु कृपा से संत और सत्संग उपलब्ध होने पर भी हम अहंकारी उसे अपने आचरण में न उतारकर दिखावे तक ही सीमित कर लेते हैं। हमारा सबसे बड़ा दोष ही यह है कि हम स्वयं को सर्वकाल में निर्दोष ही मानते हैं और इस प्रकार अपने सुधार का मार्ग स्वयं ही बंद कर देते हैं। यदि हम अपने पापों को याद करें तो पायेंगे कि हमें जो मिला है, हम कभी भी उसके लायक नहीं थे और ऐसा इसलिये है कि प्रभु कभी भी हमारी योग्यता नहीं देखते, कृपा करते समय।
 जय जय श्री राधे shri krishan italy
 

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