Saturday, 16 February 2013

shri shri SANIDEV

  • Om Sai ♥
    Om Sai <3
    Like · · · 31 minutes ago ·
  • shri shri SANIDEV
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    गुरु नानक देव परमात्मा को उपलब्ध हुए ! उन्होंने खेत में काम किया लोगों को जगाया , गृहस्थ आश्रम ग्रहण किया ,दो पुत्रों को जनम दिया ,उनका सारा दर्शन कर्म पर केन्द्रित है !
    कही एसा तो नहीं कुछ लोग दमित काम से मुक्ति के नाम पर, तांत्रिक मैथुन के नाम पर दुराचार की व्यभिचार की स्वतन्त्रता चाहते हैं !
    ओशो जिस सम्भोग की बात कर रहे हैं बो आपकी ही स्त्री और पुरुष उर्जा का नाभि और सहस्रार पर एक दुसरे में विलय हो जाना है !
    लोग पशु तल से ऊपर उठने को राज़ी नहीं और दूसरों को भी उसी तल पर खीच लेने को आतुर हैं !
    ओशो की सारी देशना पशु तल से ऊपर की ओर यात्रा करने पर,जोर देती मालुम होती है !
     
    गुरु नानक देव परमात्मा को उपलब्ध हुए ! उन्होंने खेत में काम किया लोगों को जगाया , गृहस्थ आश्रम ग्रहण किया ,दो पुत्रों को जनम दिया ,उनका सारा दर्शन कर्म पर केन्द्रित है !
कही एसा तो नहीं कुछ लोग दमित काम से मुक्ति के नाम पर, तांत्रिक मैथुन के नाम पर दुराचार की व्यभिचार की स्वतन्त्रता चाहते हैं ! 
ओशो जिस सम्भोग की बात कर रहे हैं बो आपकी ही स्त्री और पुरुष उर्जा का नाभि और सहस्रार पर एक दुसरे में विलय हो जाना है ! 
लोग पशु तल से ऊपर उठने को राज़ी नहीं और दूसरों को भी उसी तल पर खीच लेने को आतुर हैं ! 
ओशो की सारी देशना पशु तल से ऊपर की ओर यात्रा करने पर,जोर देती मालुम होती है !
    बाबा कहते है सबका मालिक एक। मुझे नहीं मालूम वो मालिक कैसा है कहाँ रहता है। मैंने तो सिर्फसाईं को ही जाना है

    साईं को ही माना है। एक ही परम सत्य है साईं राम साईं राम साईं राम। —

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ॐ श्री शिर्डी साईं बाबा ॐ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
    Like · · · 58 minutes ago ·
    परम अक्षर 'ब्रह्म' है, अपना स्वरूप अर्थात जीवात्मा 'अध्यात्म' नाम से कहा जाता है तथा भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है, वह 'कर्म' नाम से कहा गया है

    उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष (जिसको शास्त्रों में सूत्रात्मा, हिरण्यगर्भ, प्रजापति, ब्रह्मा इत्यादि नामों से कहा गया है) अधिदैव है इस शरीर में मैं वासुदेव ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ

    जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है

    यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है
    परम अक्षर 'ब्रह्म' है, अपना स्वरूप अर्थात जीवात्मा 'अध्यात्म' नाम से कहा जाता है तथा भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है, वह 'कर्म' नाम से कहा गया है

उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष (जिसको शास्त्रों में सूत्रात्मा, हिरण्यगर्भ, प्रजापति, ब्रह्मा इत्यादि नामों से कहा गया है) अधिदैव है  इस शरीर में मैं वासुदेव ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ

जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है

यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है

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