सृष्टि
के निर्माण के हेतु शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक किया| शिव स्वयं
पुरूष लिंग के द्योतक हैं तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की द्योतक| पुरुष
(शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी,
अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं| जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब
उन्होंने पाया कि उनकी रचनायं अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जायंगी तथा हर बार
उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी
निर्णय पर नहीं पहुँच पाय। तब अपने समस्या के सामाधान के हेतु वो शिव की
शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्मा
की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा के समस्या के सामाधान हेतु शिव
अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रगट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में
शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजन्नशिल प्राणी के सृजन की
प्रेरणा प्रदा की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के सामान महत्व का
भी उपदेश दिया। इसके बाद अर्धनारीश्वर भगवान अंतर्धयान हो गए।
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·٠•ılılı•ღ shiv shakti ღ•ılılı•٠·
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