Thursday, 7 February 2013

Krishna Conscious World

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ananda-cinmaya-rasa-pratibha vitabhis
tabhir ya eva nija-rupataya kalabhih
goloka eva nivasaty akhilatma-bhuto
govindam adi-purusam tam aham bhajami
"I worship Govinda, the primeval Lord, residing in His own realm,
Goloka, with Radha, resembling His own spiritual figure, the embodiment
of the ecstatic potency possessed of the sixty-four artistic activities,
in the company of Her confidantes (sahkhis), embodiments of the
extensions of Her bodily form, permeated and vitalized by His everblissful
spiritual rasa." (Brahma-samhita 5.37)
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ananda-cinmaya-rasa-pratibha vitabhis
tabhir ya eva nija-rupataya kalabhih
goloka eva nivasaty akhilatma-bhuto
govindam adi-purusam tam aham bhajami
"I worship Govinda, the primeval Lord, residing in His own realm,
Goloka, with Radha, resembling His own spiritual figure, the embodiment
of the ecstatic potency possessed of the sixty-four artistic activities,
in the company of Her confidantes (sahkhis), embodiments of the
extensions of Her bodily form, permeated and vitalized by His everblissful
spiritual rasa." (Brahma-samhita 5.37)
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JAI SHRI RADHA KRISHNA HARE HAREಕನ್ನಡ ಭಕ್ತಿ ಭಾವಾಮೃತ
ಶ್ರೀ ಗುರು ಚರನ ಸರೋಜ ರಜ ನಿಜಮನು ಮುಕುರು ಸುಧಾರಿ
ಬರನಊ ರಘುಬರ ಬಿಮಲ ಜಸು ಜೋ ದಾಯಕು ಫಲ ಚಾರಿ
ಬುದ್ಧಿಹೀನ ನನು ಜಾನಿಕೇ ಸುಮಿರೌ ಪವನ ಕುಮಾರ
ಬಲ ಬುದ್ಧಿ ವಿದ್ಯಾ ದೇಹು ಮೋಹಿ ಹರಹು ಕಲೇಸ ಬಿಕಾರ್
ಶ್ರೀ ಗುರು ಚರನ ಸರೋಜ ರಜ ನಿಜಮನು ಮುಕುರು ಸುಧಾರಿ 
ಬರನಊ ರಘುಬರ ಬಿಮಲ ಜಸು ಜೋ ದಾಯಕು ಫಲ ಚಾರಿ 
ಬುದ್ಧಿಹೀನ ನನು ಜಾನಿಕೇ ಸುಮಿರೌ ಪವನ ಕುಮಾರ 
ಬಲ ಬುದ್ಧಿ ವಿದ್ಯಾ ದೇಹು ಮೋಹಿ ಹರಹು ಕಲೇಸ ಬಿಕಾರ್

  • सुनके महिमा महामाया शरण में तेरी आया हूँ II
    ना पूजा पाठ जानूं ना सेवा अर्चना चिंतन I
    मैं तेरा तुच्छ सेवक बनके सेवा भाव लाया हूँ II
    ह्रदय में प्रीत चरणों की करूँ दिन रत आराधना I
    करो स्वीकार आराधना मैं किस्मत का सताया हूँ II

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सुनके महिमा महामाया शरण में तेरी आया हूँ II
ना पूजा पाठ जानूं ना सेवा अर्चना चिंतन I
मैं तेरा तुच्छ सेवक बनके सेवा भाव लाया हूँ II
ह्रदय में प्रीत चरणों की करूँ दिन रत आराधना I
करो स्वीकार आराधना मैं किस्मत का सताया हूँ II

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  • एक बात ध्यान में रखनी होगी कि जिस प्राचीन भारतीय जाति में सभ्यता की किरणें सर्वप्रथम उदित हुई, जिसके गहन चिन्तनशीलता ने स्वयं को अपनी पूर्ण आभा के साथ सर्वप्रथम प्रचारित किया, उस जाति के हजारों-लाखों पुत्र, उसी मेधा के अंशभूत आज भी उन समस्त भावों एवं चिन्तन के उत्तराधिकारी के रूप में विद्यमान हैं।
    नदी, पर्वत एवं समुद्रों को लांघकर, देशकाल की बाधाओं को मानो नगण्य कर भारतीय चिन्तन का रक्त भूमण्डल पर रहनेवाली अन्य जातियो की नसों में अनेक जाने-अनजाने, स्पष्ट, अनिर्वचनीय मार्गों से, अब तक प्रवाहित हुआ है और आज भी हो रहा है। सम्भवत: विश्व की पुरातन ज्ञानराशि का बहुतांश हमारी देन है।

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