अंत कैसे सुधरे ???
मानव शरीर बड़ा मूल्यवान है l इसे प्राप्त करने के लिए देवता भी तरसते हैं
l भगवत कृपा से ऐसा शरीर हमें मिलगया है, परन्तु हम अभागे हैं; क्योंकि
इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं , इस पवित्र शरीर को हम सांसारिक भोगों की
कीच में दुबोयें हुए हैं और उसी मे डूबते-उतरते हुए अंत में काल के मुह
में समां जायेंगे l कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकेंगे l क्या यही जीवन की
नियति है ? यह एक विचारनीय प्रश्न है l
सांसारिक भोग-व्रीत्ति प्रारंभ में सुख देती प्रतीत होती है , किन्तु उसका परिणाम दुखदायी है l
हॉग-व्रीती जीवन का समाधान नहीं है l
जीवन तो जैसे-तैसे भी गुजरता चला जाता है l काल हमारी जीन्दगी का कब द्वार
खटखटा दे , इसका कोई ठिकाना नहीं l काल अचानक हमारी जीन्दगी में आये ,
इसके पहले ही हमें उसके स्वागत के लिए तैयार रहना चाहिए l अंत संवर जाये
तो पूरा जीवन संवर जाय और बिगड़ गया तो समझो पूरा जीवन बिगड़ गया l
इसलिए 'अंता भला सो सब भला ' परन्तु अंत कैसे सुधरे ? इसका प्रत्येक कल्याण कामी को विचार करना चाहिए ल
जय राधे ...!!!
अंत कैसे सुधरे ???
मानव शरीर बड़ा मूल्यवान है l इसे प्राप्त करने के लिए देवता भी तरसते हैं l भगवत कृपा से ऐसा शरीर हमें मिलगया है, परन्तु हम अभागे हैं; क्योंकि इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं , इस पवित्र शरीर को हम सांसारिक भोगों की कीच में दुबोयें हुए हैं और उसी मे डूबते-उतरते हुए अंत में काल के मुह में समां जायेंगे l कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकेंगे l क्या यही जीवन की नियति है ? यह एक विचारनीय प्रश्न है l
सांसारिक भोग-व्रीत्ति प्रारंभ में सुख देती प्रतीत होती है , किन्तु उसका परिणाम दुखदायी है l
हॉग-व्रीती जीवन का समाधान नहीं है l
जीवन तो जैसे-तैसे भी गुजरता चला जाता है l काल हमारी जीन्दगी का कब द्वार खटखटा दे , इसका कोई ठिकाना नहीं l काल अचानक हमारी जीन्दगी में आये , इसके पहले ही हमें उसके स्वागत के लिए तैयार रहना चाहिए l अंत संवर जाये तो पूरा जीवन संवर जाय और बिगड़ गया तो समझो पूरा जीवन बिगड़ गया l
इसलिए 'अंता भला सो सब भला ' परन्तु अंत कैसे सुधरे ? इसका प्रत्येक कल्याण कामी को विचार करना चाहिए ल
जय राधे ...!!!
मानव शरीर बड़ा मूल्यवान है l इसे प्राप्त करने के लिए देवता भी तरसते हैं l भगवत कृपा से ऐसा शरीर हमें मिलगया है, परन्तु हम अभागे हैं; क्योंकि इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं , इस पवित्र शरीर को हम सांसारिक भोगों की कीच में दुबोयें हुए हैं और उसी मे डूबते-उतरते हुए अंत में काल के मुह में समां जायेंगे l कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकेंगे l क्या यही जीवन की नियति है ? यह एक विचारनीय प्रश्न है l
सांसारिक भोग-व्रीत्ति प्रारंभ में सुख देती प्रतीत होती है , किन्तु उसका परिणाम दुखदायी है l
हॉग-व्रीती जीवन का समाधान नहीं है l
जीवन तो जैसे-तैसे भी गुजरता चला जाता है l काल हमारी जीन्दगी का कब द्वार खटखटा दे , इसका कोई ठिकाना नहीं l काल अचानक हमारी जीन्दगी में आये , इसके पहले ही हमें उसके स्वागत के लिए तैयार रहना चाहिए l अंत संवर जाये तो पूरा जीवन संवर जाय और बिगड़ गया तो समझो पूरा जीवन बिगड़ गया l
इसलिए 'अंता भला सो सब भला ' परन्तु अंत कैसे सुधरे ? इसका प्रत्येक कल्याण कामी को विचार करना चाहिए ल
जय राधे ...!!!
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