Saturday, 9 February 2013

सनातन धर्म एक ही धर्म

जगत भगवान नहीं है, भक्तिपूर्ण ह्रदय जगत को भगवान की तरह देख पाता है। जगत पत्थर भी नहीं है, पत्थर की तरह हृदय जगत को पत्थर की तरह देख पाता है। जगत में जो हम देख रहे हैं, वह प्रोजेक्शन है, वह हमारे भीतर जो है उसका प्रतिफलन है। जगत में वही दिखाई पड़ता है, जो हम हैं। अगर भीतर भक्ति का भाव गहरा हुआ, तो जगत भगवान हो जाता है। फिर ऐसा नहीं है कि भगवान कहीं बैठा होता है किसी मंदिर में; फिर जो होता है वह भगवान ही होता है।

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