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- "साक्षीभाव जो है वह आत्मा में प्रवेश का उपाय है।
असल में पूर्ण साक्षी स्थिति को उपलब्ध हो जाना, स्वरूप को उपलब्ध हो जाना है। वह मन की कोई क्रिया नहीं है। और जो भी मन की क्रियाएं हैं, वे फिर ध्यान नहीं होंगी। इसलिये मैं जप को ध्यान नहीं कहता हूं। वह मन की क्रिया है। किसी पूजा को, किसी पाठ को ध्यान नहीं कहता हूं। वे सब मन की क्रियाएं हैं। सिर्फ एक ही आपके भीतर रहस्य का मार्ग है, जो मन का नहीं है, वह साक्षी का है। जिस-जिस मात्रा में आपके भीतर साक्षी का भाव गहरा होता जाएगा, आप मन के बाहर होते जाएंगे।
जिस क्षण साक्षी का भाव पूरा प्रतिष्ठित होगा, आप पाएंगे मन नहीं है।"
Some people accidentally walk on your feet and apologize, while others walk all over your heart and don't even realise..- स्वामी विवेकानंद के जीवन का प्रसंग
गंगा हमारी माँ है और उसका नीर, जल नहीं, अमृत है.
एक बार स्वामी विवेकानन्द जी अमेरिका में एक सम्मलेन में भाग ले रहे थे. सम्मलेन के बाद कुछ पत्रकारों ने उन से भारत की नदियों के बारे में एक प्रश्न पूछा.
पत्रकार ने पूछा – स्वामी जी आप के देश में किस नदी का जल सबसे अच्छा है?
स्वामी जी का उत्तर था – यमुना का जल सभी नदियों के जल से अच्छा है.
पत्रकार ने फिर पूछा – स्वामी जी आप के देशवासी तो बोलते है कि गंगा का जल सब से अच्छा है.
स्वामी जी का उत्तर था – कौन कहता है गंगा नदी है, गंगा हमारी माँ है और उस का नीर जल नहीं है, – अमृत है.
यह सुन कर वहाँ बैठे सभी लोग स्तब्ध रह गये और सभी स्वामी जी के सामने निरुत्तर हो गये.
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