Sunday, 17 February 2013

सनातन धर्म एक ही धर्म

‎"काम रति का गुणगान न करो ,प्रमाद में मत जियो ,ध्यान में रत अप्रमादी जन विपुल सुख को प्राप्त होते हैं" !

"काम रति का गुणगान न करो" लोग जिसका गुणगान करते हैं उसके प्रति आकर्षित होते चले जाते हैं !
अपनी ही कही बात सच मालूम होने लगती है ! तुम्हारा मन तुम्हारे अवचेतन मन को सुझाव भेजने लगता है,यही आत्म सम्मोहन है !
देह के लिए भोजन और जल दोनों ही महत्वपूर्ण है ,काम की तरह! लोग भोजन और जल का गुणगान नहीं करते, काम का करते हैं ,लोगो ने काम को बहुत अधिक मूल्य दे कर ,अपने मार्ग का कंटक बना लिया है,और दूसरों को भी उसको महत्व देने को राजी करने में प्रयास रत हैं !
महागुरु और बुद्ध दोनों की देशना-काम उर्जा के उधर्वगमन से समाधि और समाधि से सम्भोग ,जिसे बुद्ध आमानुषी रति कहते हैं ,के पक्छ में है !

"प्रमाद में मत जियो" प्रमाद का अर्थ होता है जानते हुए ,समझते हुए,विपरीत आचरण करना !
आग जलाती है ,ये जानते हुए भी उसमे हाँथ दे देना ! जारी .....
"काम रति का गुणगान न करो ,प्रमाद में मत जियो ,ध्यान में रत अप्रमादी जन विपुल सुख को प्राप्त होते हैं" !

"काम रति का गुणगान न करो" लोग जिसका गुणगान करते हैं उसके प्रति आकर्षित होते चले जाते हैं !
अपनी ही कही बात सच मालूम होने लगती है ! तुम्हारा मन तुम्हारे अवचेतन मन को सुझाव भेजने लगता है,यही आत्म सम्मोहन है ! 
देह के लिए भोजन और जल दोनों ही महत्वपूर्ण है ,काम की तरह! लोग भोजन और जल का गुणगान नहीं करते, काम का करते हैं ,लोगो ने काम को बहुत अधिक मूल्य दे कर ,अपने मार्ग का कंटक बना लिया है,और दूसरों को भी उसको महत्व देने को राजी करने में प्रयास रत हैं !
महागुरु और बुद्ध दोनों की देशना-काम उर्जा के उधर्वगमन से समाधि और समाधि से सम्भोग ,जिसे बुद्ध आमानुषी रति कहते हैं ,के पक्छ में है !

"प्रमाद में मत जियो" प्रमाद का अर्थ होता है जानते हुए ,समझते हुए,विपरीत आचरण करना ! 
आग जलाती है ,ये जानते हुए भी उसमे हाँथ दे देना ! जारी .....

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