नक्षत्र
२७ हैं ,सभी जानते हैं ,किन्तु सभी नक्षत्रों की संज्ञा एवं उन नक्षत्रों
में हम कोन सा कार्ज करें --शास्त्रकारों के विचार को जाने की कोशिश करते
हैं --जिसे हमलोग भी अमुक -अमुक कार्ज नक्षत्रों के अनुसार करें |
-----{१}-उत्तरा फाल्गुनी,उत्तराषाढा,उत्तरा भाद्रपद -रोहिणी और रविवार
-यह ध्रुव एवं स्थिर संज्ञक हैं ---इन नक्षत्रों में स्थिर काम-जैसे
-गृहराम्भ,बिज बोना ,शांति कर्म {ग्रह आदि शांति }बगीचा लगाना ,तथा मृदु
नक्षत्र मधुर कार्ज करना शुभ होता है |
--{२}-स्वाति ,पुनर्वसु
,श्रवण ,धनिष्ठा ,शतभिषा --यह नक्षत्र और सोमवार यह चर एवं चल संज्ञक है
,इनमें -वहां ,हाथी,घोडा पर चढ़ना ,फुलवारी आदि लगानासाथ ही यात्रा एवं
लघुसंज्ञक कर्म करना भी शुभ रहता है ||
---{३}-पूर्वाफाल्गुनी ,पूर्वाषाढा,पूर्वा भाद्रपद -भरणी ,मघा और मंगलवार
यह उग्र तथा क्रूरसंज्ञक हैं,इनमें मारण,अग्नि कार्य ,शुद्धता तथा विष आदि
का प्रयोग ,शास्त्र बनाना तथा दारुण संज्ञक नक्षत्रों के कार्य शुभ होते
हैं ||
-----{४}-विशाखा ,कृतिका और बुधवार यह मिश्र एवं साधारण
संज्ञक हैं ,इनमें अग्नि कार्य,मिश्र नक्षत्रों में कहे हुए कार्य और वृष
उत्सर्ग गाय या बैल का दान आदि शब्द से उग्र संज्ञक नक्षत्र के भी कार्य
करना शुभ रहता है ||
---{५}-हस्त ,अश्विनी ,पुष्य ,अभिजित
,नक्षत्र और गुरुवार क्षिप्र और लघु संज्ञक हैं ,इनमें दुकान लगाना ,रति
ज्ञान {प्रेम }शास्त्र अध्ययन ,आभूषण बनाना या बनबाना ,शिल्प -चित्र रचना
,कला ,नृत्य आदि सीखना तथा आदि शब्द से चर संज्ञक नक्षत्रों में कहे हुए
कार्यों का करना भी शुभ होता है ||
----{६}-मृगशिरा ,रेवती
,चित्रा ,अनुराधा ,और शुक्रवार ये मृदु संज्ञक हैं,इनमें गीत ,वस्त्र ,खेल
,मित्र कार्य एवं आभूषण {गहना }बनाना या धारण करना शुभ होता है ||
---{७}-मूल ,ज्येष्ठा,आर्द्रा ,आश्लेषा और शनिवार यह तीक्ष्ण और दारुण
संज्ञक हैं ,इनमें अभिचार {मरण आदि प्रयोग}घात उग्र कार्य भेद अत्यंत
मित्रों में परस्पर कलह ,पशु शिक्षा आदि सब कार्य सिद्ध होता है ||
-----{८}-मूल ,आश्लेषा ,कृतिका ,और विशाखा तीनो पूर्वा और भरणी तथा मघा ये
नौ नक्षत्र अधोमुख हैं | आर्द्रा पुष्य ,श्रवण ,धनिष्ठा,शतभिषा ,तीनो
उत्तरा और रोहिणी ,यह नौ नक्षत्र उर्धमुख हैं |मृगशिरा ,रेवती ,चित्रा
अनुराधा ,हस्त ,स्वाति ,पुनर्वसु ,ज्येष्ठा ,अश्विनी ये नौ तियर्गमुख
नक्षत्र हैं |इन नक्षत्रों के मुख के अनुसार उसी तरह का कार्य सिद्ध होता
है ,जैसे अधोमुख से -कुंआं खुद्बबाना इत्यादि ,उर्ध मुख से मकान बनवाना
,तियर्ग मुख में बांध बंधवाना यात्रा एवं चक्र रथ इत्यादि बनवाना शुभ होता
है ||
नक्षत्र
२७ हैं ,सभी जानते हैं ,किन्तु सभी नक्षत्रों की संज्ञा एवं उन नक्षत्रों
में हम कोन सा कार्ज करें --शास्त्रकारों के विचार को जाने की कोशिश करते
हैं --जिसे हमलोग भी अमुक -अमुक कार्ज नक्षत्रों के अनुसार करें |
-----{१}-उत्तरा फाल्गुनी,उत्तराषाढा,उत्तरा भाद्रपद -रोहिणी और रविवार -यह ध्रुव एवं स्थिर संज्ञक हैं ---इन नक्षत्रों में स्थिर काम-जैसे -गृहराम्भ,बिज बोना ,शांति कर्म {ग्रह आदि शांति }बगीचा लगाना ,तथा मृदु नक्षत्र मधुर कार्ज करना शुभ होता है |
--{२}-स्वाति ,पुनर्वसु ,श्रवण ,धनिष्ठा ,शतभिषा --यह नक्षत्र और सोमवार यह चर एवं चल संज्ञक है ,इनमें -वहां ,हाथी,घोडा पर चढ़ना ,फुलवारी आदि लगानासाथ ही यात्रा एवं लघुसंज्ञक कर्म करना भी शुभ रहता है ||
---{३}-पूर्वाफाल्गुनी ,पूर्वाषाढा,पूर्वा भाद्रपद -भरणी ,मघा और मंगलवार यह उग्र तथा क्रूरसंज्ञक हैं,इनमें मारण,अग्नि कार्य ,शुद्धता तथा विष आदि का प्रयोग ,शास्त्र बनाना तथा दारुण संज्ञक नक्षत्रों के कार्य शुभ होते हैं ||
-----{४}-विशाखा ,कृतिका और बुधवार यह मिश्र एवं साधारण संज्ञक हैं ,इनमें अग्नि कार्य,मिश्र नक्षत्रों में कहे हुए कार्य और वृष उत्सर्ग गाय या बैल का दान आदि शब्द से उग्र संज्ञक नक्षत्र के भी कार्य करना शुभ रहता है ||
---{५}-हस्त ,अश्विनी ,पुष्य ,अभिजित ,नक्षत्र और गुरुवार क्षिप्र और लघु संज्ञक हैं ,इनमें दुकान लगाना ,रति ज्ञान {प्रेम }शास्त्र अध्ययन ,आभूषण बनाना या बनबाना ,शिल्प -चित्र रचना ,कला ,नृत्य आदि सीखना तथा आदि शब्द से चर संज्ञक नक्षत्रों में कहे हुए कार्यों का करना भी शुभ होता है ||
----{६}-मृगशिरा ,रेवती ,चित्रा ,अनुराधा ,और शुक्रवार ये मृदु संज्ञक हैं,इनमें गीत ,वस्त्र ,खेल ,मित्र कार्य एवं आभूषण {गहना }बनाना या धारण करना शुभ होता है ||
---{७}-मूल ,ज्येष्ठा,आर्द्रा ,आश्लेषा और शनिवार यह तीक्ष्ण और दारुण संज्ञक हैं ,इनमें अभिचार {मरण आदि प्रयोग}घात उग्र कार्य भेद अत्यंत मित्रों में परस्पर कलह ,पशु शिक्षा आदि सब कार्य सिद्ध होता है ||
-----{८}-मूल ,आश्लेषा ,कृतिका ,और विशाखा तीनो पूर्वा और भरणी तथा मघा ये नौ नक्षत्र अधोमुख हैं | आर्द्रा पुष्य ,श्रवण ,धनिष्ठा,शतभिषा ,तीनो उत्तरा और रोहिणी ,यह नौ नक्षत्र उर्धमुख हैं |मृगशिरा ,रेवती ,चित्रा अनुराधा ,हस्त ,स्वाति ,पुनर्वसु ,ज्येष्ठा ,अश्विनी ये नौ तियर्गमुख नक्षत्र हैं |इन नक्षत्रों के मुख के अनुसार उसी तरह का कार्य सिद्ध होता है ,जैसे अधोमुख से -कुंआं खुद्बबाना इत्यादि ,उर्ध मुख से मकान बनवाना ,तियर्ग मुख में बांध बंधवाना यात्रा एवं चक्र रथ इत्यादि बनवाना शुभ होता है ||
-----{१}-उत्तरा फाल्गुनी,उत्तराषाढा,उत्तरा भाद्रपद -रोहिणी और रविवार -यह ध्रुव एवं स्थिर संज्ञक हैं ---इन नक्षत्रों में स्थिर काम-जैसे -गृहराम्भ,बिज बोना ,शांति कर्म {ग्रह आदि शांति }बगीचा लगाना ,तथा मृदु नक्षत्र मधुर कार्ज करना शुभ होता है |
--{२}-स्वाति ,पुनर्वसु ,श्रवण ,धनिष्ठा ,शतभिषा --यह नक्षत्र और सोमवार यह चर एवं चल संज्ञक है ,इनमें -वहां ,हाथी,घोडा पर चढ़ना ,फुलवारी आदि लगानासाथ ही यात्रा एवं लघुसंज्ञक कर्म करना भी शुभ रहता है ||
---{३}-पूर्वाफाल्गुनी ,पूर्वाषाढा,पूर्वा भाद्रपद -भरणी ,मघा और मंगलवार यह उग्र तथा क्रूरसंज्ञक हैं,इनमें मारण,अग्नि कार्य ,शुद्धता तथा विष आदि का प्रयोग ,शास्त्र बनाना तथा दारुण संज्ञक नक्षत्रों के कार्य शुभ होते हैं ||
-----{४}-विशाखा ,कृतिका और बुधवार यह मिश्र एवं साधारण संज्ञक हैं ,इनमें अग्नि कार्य,मिश्र नक्षत्रों में कहे हुए कार्य और वृष उत्सर्ग गाय या बैल का दान आदि शब्द से उग्र संज्ञक नक्षत्र के भी कार्य करना शुभ रहता है ||
---{५}-हस्त ,अश्विनी ,पुष्य ,अभिजित ,नक्षत्र और गुरुवार क्षिप्र और लघु संज्ञक हैं ,इनमें दुकान लगाना ,रति ज्ञान {प्रेम }शास्त्र अध्ययन ,आभूषण बनाना या बनबाना ,शिल्प -चित्र रचना ,कला ,नृत्य आदि सीखना तथा आदि शब्द से चर संज्ञक नक्षत्रों में कहे हुए कार्यों का करना भी शुभ होता है ||
----{६}-मृगशिरा ,रेवती ,चित्रा ,अनुराधा ,और शुक्रवार ये मृदु संज्ञक हैं,इनमें गीत ,वस्त्र ,खेल ,मित्र कार्य एवं आभूषण {गहना }बनाना या धारण करना शुभ होता है ||
---{७}-मूल ,ज्येष्ठा,आर्द्रा ,आश्लेषा और शनिवार यह तीक्ष्ण और दारुण संज्ञक हैं ,इनमें अभिचार {मरण आदि प्रयोग}घात उग्र कार्य भेद अत्यंत मित्रों में परस्पर कलह ,पशु शिक्षा आदि सब कार्य सिद्ध होता है ||
-----{८}-मूल ,आश्लेषा ,कृतिका ,और विशाखा तीनो पूर्वा और भरणी तथा मघा ये नौ नक्षत्र अधोमुख हैं | आर्द्रा पुष्य ,श्रवण ,धनिष्ठा,शतभिषा ,तीनो उत्तरा और रोहिणी ,यह नौ नक्षत्र उर्धमुख हैं |मृगशिरा ,रेवती ,चित्रा अनुराधा ,हस्त ,स्वाति ,पुनर्वसु ,ज्येष्ठा ,अश्विनी ये नौ तियर्गमुख नक्षत्र हैं |इन नक्षत्रों के मुख के अनुसार उसी तरह का कार्य सिद्ध होता है ,जैसे अधोमुख से -कुंआं खुद्बबाना इत्यादि ,उर्ध मुख से मकान बनवाना ,तियर्ग मुख में बांध बंधवाना यात्रा एवं चक्र रथ इत्यादि बनवाना शुभ होता है ||
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