Baratipura

Monday, 29 July 2013

अहिंसा परमो धर्मः धर्महिंसा तथैव च:

अहिंसा परमो धर्मः धर्महिंसा तथैव च:

एक संतपुरुष और ईश्वर के मध्य एक दिन बातचीत हो रही थी। संत ने ईश्वर से पूछा – “भगवन, मैं जानना चाहता हूँ कि स्वर्ग और नर्क कैसे दीखते हैं।”

ईश्वर संत को दो दरवाजों तक लेकर गए। उन्होंने संत को पहला दरवाज़ा खोलकर दिखाया। वहां एक बहुत बड़े कमरे के भीतर बीचोंबीच एक बड़ी टेबल रखी हुई थी। टेबल पर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पकवान रखे हुए थे जिन्हें देखकर संत का मन भी उन्हें चखने के लिए लालायित हो उठा।

लेकिन संत ने यह देखा की वहां खाने के लिए बैठे लोग बहुत दुबले-पतले और बीमार लग रहे थे। ऐसा लग रहा था कि उन्होंने कई दिनों से अच्छे से खाना नहीं खाया था। उन सभी ने हाथों में बहुत बड़े-बड़े कांटे-चम्मच पकड़े हुए थे। उन काँटों-चम्मचों के हैंडल २-२ फीट लंबे थे। इतने लंबे चम्मचों से खाना खाना बहुत कठिन था। संत को उनके दुर्भाग्य पर तरस आया। ईश्वर ने संत से कहा – “आपने नर्क देख लिया।”

फ़िर वे एक दूसरे कमरे में गए। यह कमरा भी पहलेवाले कमरे जैसा ही था। वैसी ही टेबल पर उसी तरह के पकवान रखे हुए थे। वहां बैठे लोगों के हाथों में भी उतने ही बड़े कांटे-चम्मच थे लेकिन वे सभी खुश लग रहे थे और हँसी-मजाक कर रहे थे। वे सभी बहुत स्वस्थ प्रतीत हो रहे थे।

संत ने ईश्वर से कहा – “भगवन, मैं कुछ समझा नहीं।”

ईश्वर ने कहा – “सीधी सी बात है, स्वर्ग में सभी लोग बड़े-बड़े चम्मचों से एक दूसरे को खाना खिला देते हैं। दूसरी ओर, नर्क में लालची और लोभी लोग हैं जो सिर्फ़ अपने बारे में ही सोचते हैं।

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