जिस
प्रकार कुम्हार आगे में पके हुए घड़े पर हाथ की थाप मार मार कर वह कितना
पका है उसकी पहचान करता है उसी प्रकार साधक के जीवन में विषम परिस्थितिका
निर्माण कर, गुरु या ईश्वर अपने भक्त की साधकत्व और शरणागति की परीक्षा
लेता है ! वस्तुतः एक उत्तम साधक के लिए विषम परिस्थितियाँ गुरु समान होती
है जो उसे अंतर्मुख कर अध्यात्म के अनेक सूक्ष्म पक्ष सिखा देती है ! आखिर
सोना तपकर ही कुन्दन बनता है |
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